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भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा सच्ची घटना 14 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा। आज के इस भाग में हम लोग साधक के जीवन के सबसे बड़े रहस्य को खुलता हुआ देखेंगे। इसलिए इस पोस्ट को कृपया पूरा देखें।

पिछली बार हम लोगों ने जाना कैसे कृत्या प्रयोग साधक पर कर दिया गया था?

अब कृत्या तेजी से दौड़ती हुई। साधक यौधेय की तरफ आने लगी।

यौधेय ने नीलिमा को याद किया। नीलिमा तुरंत प्रकट हो गई और उस खतरनाक और शक्तिशाली कृत्या का सामना करने के लिए वह वहां पर उपस्थित थी।

यौधेय कृत्या के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता था। जो युद्ध करना था वह नीलिमा को करना था और इस प्रकार कृत्या और नीलिमा के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया।

इस दौरान जब नीलिमा से युद्ध कर रही थी। तब नीलिमा ने अपनी माया को यौधेय के पास भेजा और उससे कहा, यह युद्ध तीन दिवस तक चलेगा।

कौन विजयी होगा इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती क्योंकि यह कृत्या अत्यंत ही शक्तिशाली है।

उस दौरान तुम मारण योगिनी की साधना करो और इस साधना को मैं तुम्हें अंतर्ज्ञान द्वारा बता रही हूँ ।

तुम इस साधना द्वारा। राजा, महा पुजारिन और रानी को समाप्त कर दो। क्योंकि? उन्होंने तुम्हें जान से मारने की कोशिश की है।

यौधेय यह बात समझ चुका था कि अब उसे जल्दी ही कुछ करना होगा। वह मारन योगिनी की साधना करने लगा। मारण योगिनी 1 दिन की साधना के पश्चात ही प्रकट हो गई। उसने कहा मेरे लिए क्या आज्ञा है? किसका रक्त पीना है?

तब? उसने कहा कि जाओ राजा और उसकी सेना सहित महा पुजारिन और रानी को समाप्त कर दो।

योगिनी तीव्रता से राजा के राज दरबार में पहुंच जाती है। सबसे पहले वह राजा का सर काट देती है। राजा की सेना के साथ उसका युद्ध होता है और उस युद्ध में भी वह राजा के प्रत्येक सैनिक का वध कर देती है।

अब वह महा पुजारिन और रानी की तरफ बढ़ती है। रानी और महा पुजारिन अपने मंदिर में थे।

महापूजारिन को इस सत्य का आभास हो जाता है कि उसके साथ कुछ गलत होने वाला है। और अपनी शक्तियों के माध्यम से वह जान लेती है कि क्या उसके साथ घटित होने वाला है? मारण योगिनी उस की ओर बढ़ रही है जिससे उसकी रक्षा कोई नहीं कर पाएगा। क्योंकि उसके पास साधना के लिए समय होना चाहिए और इस योगिनी को रोकने के लिए कृत्या भी वह निर्माण नहीं कर सकती। इसलिए अब अपनी गुरु माता के पास जाने के अलावा और कोई मार्ग शेष नहीं है।

इस प्रकार वह और रानी दोनों गुरु माता के पास तुरंत ही पहुंच जाते हैं।

गुरु माता अत्यंत ही भीषण तपस्या कर रही होती हैं। वहां पुजारिन उन्हें पुकारती है। गुरु माता अपने 12 वर्षों की तपस्या को समाप्त करते हुए अपने भक्तों और शिष्या की मदद के लिए अपनी आंखें खोल दी और गुरु माता क्रोधित होकर श्राप देती हैं और कहती हैं कि जो भी! वह व्यक्ति है वह किसी भी कालखंड में अगर तुम पर किसी भी प्रकार का मारण प्रयोग या कोई स्तंभन प्रयोग करेगा तो उस साधक की सभी प्रत्यक्ष सिद्धियां नष्ट हो जाएं

चाहे वह कितनी भी बड़ी साधना, क्यों ना कर चुका हो। अब तुम निश्चिंत हो जाओ क्योंकि जैसे ही कोई शक्ति तुम्हारे पास आएगी, वह स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।

इस प्रकार जैसे ही मारण योगिनी पुजारिन और रानी के पास पहुंचती है। वह अपनी शक्तियां खोकर अदृश्य हो जाती है।

गुरु माता! के दिए गए श्राप और वचन से संतुष्ट होकर महा पुजारिन और रानी वापस मंदिर में आ जाते हैं। अब महापूजारिन कहती है। अब मैं उस शक्ति का प्रयोग करूंगी जिसका विकल्प इस ब्रह्मांड में किसी के भी पास नहीं है। मैं एक पाद भैरव के द्वारा मारण प्रयोग करूंगी। अब यौधेय को संसार की कोई शक्ति नहीं बचा सकती। यह कहकर महा पुजारिन और रानी एक पाद भैरव का आवाहन और पूजन शुरू कर देते हैं।

इस प्रकार से अब! यौधेय को पता नहीं था कि उस पर मृत्यु मंडरा रही है।

कुछ समय पश्चात एक पाद भैरव प्रकट हो जाते हैं।

महापुजारिन अपना हाथ काटते हुए रक्त अर्पित कर कहती है कि हे महान भैरव आप मारण प्रयोग द्वारा मेरे एक दुश्मन का नाश कर दीजिए। आपको मुझे वचन देना होगा। इस प्रकार एक पाद भैरव उस महा पुजारिन को वचन देते हैं और कहते हैं तुम्हारे शत्रु को मैं मृत्युदंड स्वरूप नष्ट कर दूंगा।

इसके बाद एक पाद भैरव! यौधेय के सामने प्रकट हो जाते हैं और कहते हैं तुम्हारा अंतिम समय आ चुका है। महा पुजारिन, अपनी साधना से मुझे यहां भेजा है। मैं तुम्हारा वध करने के लिए आया हूं।

मैं तुम्हें प्रत्युत्तर देने का पूरा मौका देता हूं। संसार की कोई भी शक्ति अगर मुझे पराजित कर देगी तो मैं यहां से चला जाऊंगा। इस पर यौधेय नीलिमा भैरवी और मारण योगिनी का आवाहन करता है। दोनों शक्तियां एक पाद भैरव से युद्ध करने लगती हैं।

लेकिन जल्दी ही!

नीलिमा और मारण योगिनी दोनों पराजित हो जाती हैं।

नीलिमा भैरवी एक पादभैरव के सामने पराजित होकर यौधेय के पास पहुंचती है और कहती है तुम्हारी रक्षा अब कोई नहीं कर सकता। क्योंकि एक पाद भैरव स्वयं 11 रूद्र में से एक है। इनकी शक्ति का सामना मैं तो क्या कोई और शक्ति भी नहीं कर पाएगी?

इसलिए अब एक ही मार्ग है जाओ तीव्रता से माता महाकाली के मंदिर में जाकर छुप जाओ। मां के पैर पकड़ लो। अब केवल वह ही तुम्हारी रक्षा कर सकती हैं।

इस प्रकार!

माता महाकाली के मंदिर में यौधेय चला जाता है और माता की पैरों को पकड़कर माता से प्रार्थना करने लगता है।

उनके मंत्रों का जाप करने लगता है।

महा पुजारिन को जब यह बात पता चलती है। तो वह कहती है कि अगर 7 दिन तक। यह बाहर नहीं आया तो फिर मुझे एक पाद भैरव को वापस बुला लेना होगा। और दोबारा फिर उनसे मारण प्रयोग में नहीं करवा पाऊंगी। इसलिए किसी भी सूरत में यौधेय को मंदिर से बाहर लाना ही होगा क्योंकि! एक पाद भैरव माता महाकाली की शरण में गए साधक का वध मंदिर के अंदर जाकर नहीं करेंगे। क्योंकि वह मां महाकाली के विरुद्ध नहीं जाएंगे। इस प्रकार! महा पुजारिन! एक बुरा शक्तिशाली प्रपंच रचती है।

साधक को मंदिर के बाहर से उसकी प्रेमिका के पुकारने के शब्द सुनाई पड़ते हैं। वह बाहर आकर देखता है तो उसकी प्रेमिका मंदिर के बाहर खड़े होकर उसे बुला रही थी। साधक बाहर निकल जाता है और उस स्त्री के पास पहुंचकर उससे पूछता है। तुम्हारी तो मृत्यु का समाचार मैंने सुना था पर तुम तो जीवित हो।

वह स्त्री हंसते हुए कहती है तुम्हारी प्रेमिका तो। अप्सरा की साधना करते हुए मर चुकी है। इसी कारण से उसे स्वर्ग में आनंद पूर्वक अप्सरा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

और तुम तो धरती पर ही रह गए।

क्योंकि अंतिम समय में उसने अप्सरा के मंत्रों का उच्चारण किया था। इसी कारण से वह अप्सरा बनकर इस वक्त स्वर्ग में एक आत्मा के रूप में विचर रही है।

लेकिन उसका रूप लेकर मैंने तुम्हें मंदिर से बाहर बुला लिया है। अब तुम भी मृत्यु को प्राप्त होकर नरक भोगोगे। यह कहते हुए हंसते हुए वह परछाई गायब हो जाती है। तभी वहां पर एक पादभैरव प्रकट होते हैं और साधक की छाती पर अपने एक पैर से वार करते हैं। क्योंकि एक पाद भैरव एक पैर पर ही चलते हैं और जिस पर वह अपना पैर रख देते हैं उसकी मृत्यु।

स्वयं यमराज भी नहीं रोक सकते।

इसी के साथ यौधेय की मृत्यु हो जाती है। यौधेय अपने शरीर से बाहर आत्मा रूप में निकलता है।

एक पाद भैरव, रूपी, 11 वे रूद्र।

को प्रणाम करते हुए उनसे कहता है मेरी किसी भी गलती के बिना मुझे ऐसा दंड प्राप्त हुआ है। तब एक पाद भैरव कहते हैं। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। हां किंतु मेरी मृत्यु। देने की शक्ति के कारण।

और मेरे हाथों मारे जाने के कारण तुम्हें मैं भैरव लोक प्रदान करता हूं।

जाओ भैरव लोक में तब तक निवास करो जब तक कि तुम्हारा अगला जन्म नहीं हो जाता?

इस प्रकार से भैरव लोक में। साधक की आत्मा तब तक के लिए निवास करती है जब तक कि वह पृथ्वी पर दोबारा जन्म ना ले। साधक भैरव लोक से अपनी प्रेमिका को स्वर्ग में अप्सरा बने देखता है इधर! साधक की प्रेमिका स्वर्ग में उस व्यक्ति को खोजती है जिसे वह चाहती है किंतु वह दिखाई नहीं देता। क्योंकि मृत्यु से पूर्व। अपने प्रेमी को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा।

उसके लिए सर्वोपरि थी। और स्वयं उसने उस वक्त अप्सरा के मंत्रों का प्रयोग किया था। इसी कारण से वह अप्सरा के रूप में स्वर्ग में तब तक निवास करती है जब तक कि उसे पृथ्वी लोक में वापस जन्म न लेना पड़े।

इस प्रकार से साधक को अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिलने शुरू हो जाते हैं। अब वह अपने इस जन्म को देखता है। और उसे याद होता है कि आखिर उसके हाथों! नेपाल की उन दो कन्याओं का। वध क्यों हुआ? क्योंकि यह महा पुजारिन और रानी का अगला जन्म था। क्योंकि पिछले जन्म में मारण प्रयोग द्वारा साधक की मृत्यु हुई थी। इसी कारण से मारण और स्तंभन प्रयोग के द्वारा इस जन्म में महा पुजारी और रानी का वध होना तय था। चाहे जाने में हो या अनजाने में।

इसी प्रकार महापूजारिन गुरु माता का श्राप भी फलित होना था। क्योंकि उन्होंने कहा था किसी भी कालखंड में अगर  मारण स्तंभन प्रयोग, साधक उनकी शिष्याओं पर करेगा तो उसकी सभी प्रत्यक्ष साधनाएँ नष्ट हो जाएं। इस प्रकार पूर्व जन्म के किए गए सभी कर्म वापस लौट कर आए थे। साधक के द्वारा उन दो कन्याओं का वध हुआ।और साथ ही साथ साधक की प्रत्यक्ष विधि भैरवी भी नष्ट हो गई। इस प्रकार से साधक को अपने सारे प्रश्नों का जवाब मिला।

अब साधक! उठता है और अपनी साधना को त्याग कर अपनी पत्नी के पास पहुंचता है।

पत्नी भी संतुष्ट होकर कहती है आपकी इतनी लंबी साधना आखिरकार पूर्ण हुई। तभी साधक अपनी पत्नी को गले लगा लेता है और कहता है तुम तो मेरा कई जन्मों से इंतजार कर रही थी।

तब पत्नी व्यंगात्मक तरीके से कहते हैं। मैं तो इस जन्म में भी इंतजार ना करूं। आप तो कई जन्मों की बात कर रहे हो? साधक अपनी पत्नी को देखकर कहता है नहीं, तुम पूर्व जन्म में अप्सरा थी। तब राजा की पत्नी एक बार फिर से कहती हैं तो क्या इस जन्म में मैं अप्सरा जैसी नहीं लगती हूं?

और हां, पर अप्सरा जैसे मै नृत्य नहीं कर सकती और कहते हुए वह हंसने लगती हैं। वह कहती हैं कि आप भूखे होंगे। पूजा करते बहुत समय बीता चलिए मैं आपके लिए प्याज की पकौड़ी बना देती हूं। पर यह बात स्पष्ट रूप से कह देना चाहती हूं कि कोई अप्सरा यह कार्य नहीं कर सकती है।

साधक अपनी पत्नी की बातों को सुनकर हंसने लगता है। और एक बात तो साधक को भी समझ में आ गई थी। कि घर की मुर्गी दाल बराबर। यानी कि उसकी कही किसी बात को उसकी पत्नी स्वीकार करने से रहे। भले ही वह सत्य बोल रहा हो यह हाल लगभग सभी पतियों का भी है। इस प्रकार से साधक अपने जीवन के और पूर्व जन्म के सभी रहस्यों को आज जान चुका था। ऐसे कई रहस्यों से अन्य साधनाओं के द्वारा पर्दा उठने वाला था। इस प्रकार से साधक के कई प्रश्न जो उसे परेशान करते थे, वह आज हल हो चुके थे।

तो यह थी अभी तक की कहानी साधक की अगर आपको यह वीडियो पोस्ट पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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