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भगवती भुवनेश्वरी जानकारी और साधना विधान गुप्त नवरात्रि

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार  फिर से स्वागत है आज हम दर्शकों की मांग पर माता

 

भुवनेश्वरी की नवरात्रि में की जाने वाली साधना के  विषय में बात करेंगे क्योंकि माता स्वरूप है उनमें

 

माता भुवनेश्वरी का विशेष महत्व है और अगर गुप्त  नवरात्रि में इनकी साधना की जाए तो साधक माता से

 

बहुत सारे वरदान और लाभ प्राप्त कर सकता है यहां  पर मैं सिद्धि के विषय में बात नहीं कर रहा हूं

 

मैं यहां पर आप लोगों के लिए साधारण पूजा और उससे  होने वाले लाभ साथ ही साथ उनकी कृपा की बात कर रहा

 

हूं लेकिन माता की कृपा भी बहुत ज्यादा बड़ी चीज है  जो संसार में सब कुछ प्रदान करने की क्षमता रखती है

 

तो भुवनेश्वरी माता है कौन सबसे पहले यह समझते हैं  भुवनेश्वरी का मतलब होता है भुवन की ईश्वरी भुवन

 

क्या है यह भुवन तीन तरह के माने गए हैं स्वर्ग लोक  पृथ्वी लोक और पाताल लोक और जितने भी लोक हैं वह सारे

 

कहते हैं 10 mahavidyayon में माता भुवनेश्वरी की  पूजा का विधान चौथी विद्या के रूप में किया जाता है

 

tridevon यानी ब्रह्मा विष्णु और महेश को इन्होंने  दर्शन दिए द और इनके संबंध में हम इनका नाम राज

 

राजेश्वरी भी कहते हैं सिद्धिदात्री सिद्ध विद्या  कहलाती है इनके जो शिव है वह त्र्यंबक माने जाते हैं

 

संसार में जितनी भी प्रजा है सब माता  भुवनेश्वरी से ही अपने लबों को प्राप्त करती है

 

यह आश्चर्य की स्वामी मणि जाती है ऐश्वर्या  गुण है और यह आनंद के रूप में प्रकट होता है

 

जीवन में हर एक चीज को प्राप्त करने जो सोच है  और जो भी व्यक्ति उसके लिए गर्म करता है वह सब

 

भुवनेश्वरी की कृपा से ही करता है वह व्यक्ति जीवन  में सम्मान सौभाग्य राजपथ गौरव आनंद इत्यादि सब कुछ

 

प्राप्त करने के लिए सभी सामर्थ्य पैदा करता है  उसकी आंतरिक प्रेरणा माता भुवनेश्वरी से ही आती है

 

माता इतनी अधिक दयालु है यही शताक्षी बनती है और  यही शाकंभरी बांके सबके लिए भोजन और साग को उत्पन्न

 

करवाती हैं इनकी सामर्थ्य अतुलनीय है भुवनेश्वरी  को समझना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है

 

क्योंकि संसार का स्वामी बनने के लिए ही व्यक्ति  इनके स्वरूप को अच्छी प्रकार समझ सकता है

 

और उसी हिसाब से जीवन में कर्म करके सभी भोगों  को भोगते हुए मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है

 

माता की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इनका स्वरूप जो  है वह सौम्या है और अंग की क्रांति अरुण के समान है

 

इनके तीन नेत्र है चार हाथ है मस्तिष्क  के ऊपर चंद्रमा विराजित होता है

 

आशीर्वाद मुद्रा प्रजा पालन को दर्शाता  है गधा शक्ति को प्रदर्शित करता है

 

महानिर्वाण तंत्र में भी कहा गया है की सारी  vidyaen इनकी सेवा में सदैव संलग्न रहती हैं

 

कहते हैं 7 करोड़ महामंत्र इनकी आराधना  करते हैं माता भुवनेश्वरी व्यक्त होकर

 

ब्रह्मांड का रूप धारण करती है यह भक्तों  को अभय और समस्त सिद्धियां प्रदान करती है

 

देवी भागवत में दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचार को  नष्ट करने के लिए देवताओं और ब्राह्मणों ने हिमालय

 

पर्वत पर इनकी ही उपासना की थी तब यह प्रकट हो गई  थी देवी भागवत में वर्णित मणि द्वीप की अधिष्ठान

 

भगवान शिव के साथ सारी लीलाएं यह रचती हैं भक्तों को  अभय और सिद्धियां प्रदान करना इनका गुण माना जाता है

 

इन्हें मूल प्रकृति कहा जाता है ईश्वरीय रात्रि  कहा जाता है अंकुश और पेश इनके हथियार है अंकुश

 

नियंत्रण का प्रतीक है और पास राग और आकाश  जा सकती का यानी की एक तरफ तो यह राग और

 

अशक्त प्रदान करते हैं वहीं दूसरी तरफ अंकुश के  माध्यम से नियंत्रित करती हैं संसार को यह देवी

 

पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित कर सकती है

 

जिनको हम दास महाविद्या के नाम से  जानते हैं इसमें काली तत्वों से

 

लेकर कमला तत्व तक ब्रह्मांड के विभिन्न  स्वरूपों को संभालने का कार्य होता है

 

देखिए ब्रह्मांड व्यक्ति जब होता है या रूप  धारण करता है उसे ही हम भुवनेश्वरी कहते हैं

 

और पहले कल में कमला से व्यक्त होकर यह होकर काली  रूप में मूल प्रगति यही बनती हैं माता भुवनेश्वरी

 

के अगर mantron की बात की जाए तो इनके तीन मंत्र  अधिकतर साधक जपते हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण ह्रीं

 

दूसरा ऐं ह्रीं और तीसरा ऐं ह्रीं ऐं

 

तो यह तीनों जो है मंत्र साधक जप सकता है इनका  ध्यान मंत्र जिसे हम पढ़ते हैं वह इस प्रकार से

 

उद्यदहर्द्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां

 

नयनत्रययुक्ताम् । स्मेरमुखीं  वरदांकुशपाशाभीतिकरां प्रभजेद् भुवनेशीम्

 

इसका मतलब होता है देवी की देह की क्रांति  उदय होते हुए सूर्य के समान है देवी के

 

ललाट में अर्धचंद्र मस्तक पर मुकुट दोनों  स्तन ऊंचे तीन नेत्र चेहरे पर सदा हास्य

 

चारों हाथों में वर अंकुश  पास और अभय मुद्रा सम्मिलित

 

है इनकी साधना की जो विधि है वह रुद्र मल तंत्र में  और भुवनेश्वरी रहस्य के माध्यम से जानने को मिलती है

 

इनकी साधना के विभिन्न मंत्र विधि कवच सहस्त्रनाम  पूजा पढ़ती इत्यादि सभी की विधि विधान से साधना

 

करनी चाहिए इनके यंत्र को स्थापित करके फिर इनके  मेट्रो का जाप करने से कई गुना लाभ प्राप्त होता है

 

भुवनेश्वर माता की कृपा से साधक में  शक्ति बल सामर्थ्य लक्ष्मी प्राप्ति

 

वैभव उत्तम विद्या का ज्ञान भक्ति  ज्ञान वैराग्य और पुत्र इत्यादि की

 

सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है

 

यह भी माना जाता है की भुवनेश्वर देवी  भद्रा पास मास के शुक्ल पक्ष की द्वादश

 

स्थिति के दिन प्रकट हुई थी इन इस दिन को  आप इनकी जयंती के रूप में बना सकते हैं

 

माता भुवनेश्वरी कृपा प्राप्ति के लिए अनेक मंदिर  है जिन मंदिरों में जाकर के आप इनकी साधना और

 

उपासना करके खासतौर से गुप्त नवरात्रि में विशेष लाभ  प्राप्त कर सकते हैं इन मंदिरों का नाम इस प्रकार

 

से है नैना देवी यानी मणि pallabam श्रीलंका के  उत्तरी भाग में स्थित भुवनेश्वर देवी का शक्तिपीठ है

 

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू प्रांत से 2  किलोमीटर की दूर देवी भुवनेश्वरी का मंदिर

 

के नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर में देवी की  कोई प्रतिमा नहीं है सिर्फ साधारण पिंडी के रूप

 

में पूजा की जाती है यहां वर्ष में दो बार मेले  का आयोजन भी होता है उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल

 

के बिल में स्थित मैन भुवनेश्वरी का सिद्ध पीठ  है भुवनेश्वरी देवी का एक मंदिर गुजरात के गोंडल

 

में स्थित है जो 1946 के समय में बनाया गया था  कामाख्या मंदिर क्षेत्र में भुवनेश्वरी देवी का भी

 

मंदिर स्थित है और ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर का  निर्माण सातवीं से लेकर नवीन शताब्दी के बीच हुआ था

 

माता भुवनेश्वरी का सबसे पुराना मंदिर उत्तरी गुजरात  के गुंजा प्रांत में है केरल के कालीकट में नो

 

चिप्रा भगवती क्षेत्र मंदिर है जहां 900 साल पुराना  मंदिर है जिसकी मुख्य देवी भुवनेश्वरी अम्मा है

 

भुवनेश्वरी देवी का एक मंदिर तमिलनाडु  के पुदुक्कोत्तई में भी स्थित है

 

और महाराष्ट्र के सांगली जिले में बिलावली में कृष्ण  नदी के तट पर भी देवी भुवनेश्वरी का मंदिर स्थित है

 

इन सभी मंदिरों में माता की उपासना खासतौर से गुप्त  नवरात्रि के समय करना बहुत ही लाभप्रद होता है

 

अब बात करते हैं साधारण रूप से इनकी साधना किस  प्रकार से की जा सकती है आप इनकी साधना के लिए

 

भुवनेश्वरी यंत्र सफेद हकीकी या फिर रुद्राक्ष  की माला 10 लघु नारियल ये सारी चीज होनी चाहिए

 

शिवरात्रि इत्यादि में कर सकते हैं सबसे पहले  साधक को स्नान करके शुद्ध सफेद वस्त्र धारण

 

करके अपने घर में किसी एकांत स्थान या पूजा  कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके सफेद

 

उनके कंबल पर बैठ जाए उसके बाद सामने चौकी  पर रखकर उसे पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाए और

 

उसे पर प्लेट रखकर रोली से त्रिकोण बनाए और  उसके बाद उसे त्रिकोण में अखंडित चावल भर दे

 

उसके बाद उन चावलों के ऊपर सिद्ध प्राण  प्रतिष्ठा युक्त भुवनेश्वर यंत्र को स्थापित करें

 

फिर उसके बाद भुवनेश्वर यंत्र के सामने 10 चावल  की दरिया बनाकर उसे पर 10 लघु नारियल स्थापित

 

करें प्रत्येक नारियल पर होली से तिलक करें उसके  बाद यंत्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र

 

का पूजन करें और मंत्र विधान के अनुसार संकल्प  लेकर विनियोग करते हुए साधना का चरण शुरू करें

 

विनियोग इस प्रकार से पढ़े

ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी  महा मन्त्रस्य सदाशिव ऋषि: त्रिष्टुपछन्द: श्री

 

भुवनेश्वरी देवता ह्रीं बीजं ऐं शक्ति: श्रीं कीलकं  श्री भुवनेश्वरी देवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोग:

 

कहकर जल को नीचे गिरा दे

 

और फिर

ऋष्यादि न्यास :  बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! मंत्र :

सदाशिवऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )

त्रिप्टुश्छन्दसे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )

श्रीभुवनेश्वरी देवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )

ह्रीं बीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )

ऐं शक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )

श्रीं कीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )

विनियोगाय नम: सर्वांगे। ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )

कर न्यास :  अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है ।

ह्राँ अंगुष्ठाभ्यां नम: ।

ह्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।

ह्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।

ह्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।

ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।

ह्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

 

ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ! मंत्र :

ह्रां ह्रदयाय नम: ( ह्रदय को स्पर्श करें )

ह्रीं शिरसे स्वाहा ( सर को स्पर्श करें )

ह्रूं शिखायै वषट् ( शिखा को स्पर्श करें )

ह्रैं कवचाय हुम् ( कंधों को स्पर्श करें )

ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ( नेत्रों को स्पर्श करें )

ह्र: अस्त्राय फट् ( सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं )

 

ध्यान मंत्र करें जैसा मैंने बताया है अब है अगर  9 दिन का संकल्प लेना है तो आप 3 अक्षर मंत्र का

 

संकल्प लेना है तो ह्रीं मंत्र का जाप करें

 

इस प्रकार से आप 9 दिन रोजाना कम से कम 100 मालाये  अवश्य करें ताकि माता की कृपा अवश्य प्राप्त हो

 

इससे आप उनके पूरे ही स्वरूप का प्रभाव अपने ऊपर  देखेंगे और अवश्य ही स्वप्न के माध्यम से उनकी कृपा

 

आपको देखने को मिलेगी माता अगर प्रसन्न होंगी तो  सिद्धि भी प्रदान करती है और इस प्रकार उनकी साधना

 

करने के बाद हवन भी अवश्य ही कर ले शुद्ध घी और हवन  सामग्री मिलाकर के वह हवन कर सकता है इस प्रकार माता

 

भुवनेश्वर की कृपा उसे पर सदैव बनी रहती है और अगर  इसका तांत्रिक प्रयोग करना है तो हवन के बाद माता

 

भुवनेश्वरी के यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी  में लाल कपड़े में लपेटकर रख दीजिए और बाकी बची हुई

 

सामग्री को नदी में विसर्जित कर दीजिए ऐसा करने से  निश्चित रूप से माता भुवनेश्वरी की कृपा साधक को

 

प्राप्त रहती है और जिसको भुवनेश्वरी की कृपा हो  फिर उसे किसी और की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि

 

त्रिभुवन में इनसे बड़ा कोई नहीं यह भुवन को चलाने  वाली है तो यह पृथ्वी तो एक बहुत छोटी सी बात है

 

इसलिए यहां पर इनका साधक सुख संपदा वैभव शक्ति  समर्थ सब कुछ प्राप्त कर लेता है जो भी गुरु मंत्र

 

से दीक्षित व्यक्ति हैं इनकी साधना माता भुवनेश्वरी  अवश्य स्वीकार करती हैं और बहुत प्रसन्न होते हैं

 

क्योंकि मैन के जो मूल स्वरूप है उनसे  यह सारे स्वरूप अलग-अलग कार्यों को कर

 

रहे हैं इसलिए मूल स्वरूप और गुरु मंत्र का जाप करने

 

वाले साधक के ऊपर यह दास महाविद्या के  सारे स्वरूप सदैव ही प्रसन्न रहते हैं

 

तो यह थी माता भुवनेश्वरी की साधना की विधान  अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है

 

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