भलुनी देवी यक्षिणी का रहस्य भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। भलुनी देवी यक्षिणी साधना रहस्य भाग 3 में आज हम प्रवेश करते हैं। पिछले भागों में आपने जाना कि किस प्रकार कालूनाथ नाम का व्यापारी अपना धन खोकर एक ऐसे सिद्धाराम साधु की मदद से यक्षिणी साधना शुरू करता है जहां उसे विचित्र अनुभव होते हैं। अब स्त्री के द्वारा उसकी रक्षा होने पर कालूनाथ को यह तो विश्वास हो गया था कि यह कोई साधारण साधना नहीं है। इसलिए अब उसे पवित्र मन से और संकल्प को मजबूत करके साधना करनी होगी। सारी बात उसने सिद्ध राम नाम के उस साधु को बताई थी तब उस साधु ने कहा, ठीक है यह जो तुम भालू की खाल लाए हो। इसे वस्त्र की तरह कुछ हिस्सा काटकर पहन लो और इसी के आसन को बनाकर उसी पर बैठकर तुम्हें साधना शुरू करनी होगी। इसके अलावा तुम्हें एक यक्षिणी देवी की प्रतिमा भी सामने बनानी होगी और उसके आगे दीपक जलाकर रोज रात को इसी स्थान पर बैठकर साधना करनी होगी। इस पर कालूनाथ ने सिद्ध राम से कहा, गुरुदेव वह सब तो ठीक है, लेकिन खुले में मेरी बस की साधना करना नहीं है क्योंकि मुझे भालुओं से बहुत डर लगता है। इसलिए आप कृपया कुटी बना दीजिए और मैं कुटी के अंदर बैठ कर के ही साधना करूंगा। तब? सिद्ध राम साधु ने कहा, ठीक है लेकिन? कुटी सिर्फ रक्षा के लिए ही बनाना सही है क्योंकि साधना में खुला आकाश होना आवश्यक है। तब कालूनाथ ने कहा, आप कुटी बनवा दीजिए। और? छत मत बनाइएगा। क्योंकि छत अगर बनेगी तभी तो यह एक घर होगा वरना एक रक्षा का स्थान बन जाएगा। मुझे भालुओं से बहुत अधिक डर लगता है। उनका क्रोध मैंने देखा है। इसीलिए आप मेरी मदद कीजिए। सिद्ध राम और कालू नाथ ने मिलकर उस स्थान पर एक कुटी का निर्माण कर दिया जिसके ऊपर की छत खुली हुई थी, जिससे आकाश स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता था। असल में कालूनाथ भालुओं से बहुत अधिक डरता था। भालूओं केभय से ही उसने अपने चारों तरफ एक प्रकार से रक्षा प्राचीर बनाई थी। अब समय था साधना शुरू करने का कालू नाथ ने भालुनी देवी की प्रतिमा सिद्ध राम के कहे अनुसार बना दी। उसे एक मंच पर स्थापित किया और उनका जाप उसी की आगे बैठकर करने लगा । उसके गुरु ने एक सिद्ध माला जोकि भालू के बालों से निर्मित थी। उसे दी थी जिसमें भालू की ही हड्डियां पिरोई गई थी। ऐसी दिव्य अद्भुत माला को देखकर कालूनाथ को बड़ा आश्चर्य हुआ। लेकिन जब शिष्य के साथ गुरु होता है तो शिष्य का विश्वास कई स्तर ऊंचा होता है। अब कालूनाथ ने भालू की खाल पहन कर भालू के बने आसन पर बैठकर साधना शुरू कर दी। पहला दिन साधना संपन्न कर कालूनाथ को बहुत अच्छा लगा और उसे अपने अंदर दिव्यता महसूस होने लगी। अगली रात जब वह साधना कर रहा था तो। उसे महसूस हुआ कि चारों तरफ बहुत सारे भालू इकट्ठा होने लगे हैं और सच में उस दिन चारों तरफ उसकी झोपड़ी के। बहुत सारे भालुओं को उपस्थित होते उसने देखा था। वहां पर भालुओं का पूरा जमावड़ा उपस्थित हो गया था। यह कोई साधारण बात नहीं थी। क्या उसके मंत्रों से प्रभावित होकर ही सारे भालू वहां पर आने लगे थे, लेकिन उसे क्या करना था। वह यह बात जानता था कि वह सुरक्षित है क्योंकि चारों तरफ कुटी के रूप में सुरक्षा प्राचीर बनी हुई है। अब उसके लिए साधना करना आसान था। रोज वह मंत्रों का जाप करता जिसमें उसे कई घंटे लगते थे। लेकिन अब वह तैयार हो चुका था साधना के विभिन्न चरणों के लिए। उसे मंत्र जाप करने में आनंद आने लगा। यह बात उसने जब सिद्ध राम को बताई तो वह भी प्रसन्न होकर कहने लगा। एक साधक के लिए साधना में आनंद लेना सबसे अधिक अनिवार्य है। ध्यान स्पष्ट रूप से लगाना चाहिए जिस? शक्ति कि वह आराधना कर रहा होता है उसके प्रति प्रेम और साथ ही साथ विश्वास पूरा होना चाहिए। ध्यान केवल उसी शक्ति का लगाना चाहिए। इधर-उधर मन को भटकने नहीं देना चाहिए। तभी सिद्धि मिलती है वरना। अगर आपका ध्यान इधर-उधर भटकता है तो फिर सिद्धि आपसे दूर रहती है क्योंकि आप केवल! औपचारिकता दिखा रहे होते हैं। इसके अलावा मंत्र जाप शुद्ध उच्चारण के साथ शांत भाव से पवित्र हृदय के द्वारा करना चाहिए और हर प्रकार की परीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। इसी प्रकार साधना के कई दिन गुजरते चले गए। अब कठिन परीक्षा का समय आ चुका था। 1 दिन साधना के समय अचानक से कालू नाथ को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके बदन को कोई बहुत तेजी से छू रहा है। गुरु के कहे अनुसार साधना काल में कुछ भी हो जाए, साधना त्यागी नहीं जाती है। उसने जब आंखें खोली तो जो नजारा देखा उसकी आत्मा तक कांप गई थी। उसके चारों तरफ भालू उसके बदन को चाट रहे थे जैसे कि उसका बदन शहद हो उसके शरीर को सारे भालू आकर तेजी से चाटने लगे। कालूनाथ के लिए यह पल बहुत ही भयानक था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जब मैंने कुटी का निर्माण किया है, तुम यह भालू अंदर कहां से आ गए? उनके चाटने के स्वर शरीर पर। जीभ के रगड़ने से उत्पन्न होने वाली खुजली। बहुत अधिक! उसका ध्यान भंग कर रही थी लेकिन गुरु के कहे अनुसार उसे साधना नहीं छोड़नी थी। और वह यह भी जानता था कि अगर वह साधना छोड़कर भागा तो भालू उसे मार डालेंगे इसलिए उसने वह सब कुछ सहते हुए साधना करना जारी रखा। साधना समाप्त होते ही उसे जो दृश्य दिखाई दिया उसे फिर से अचंभित कर गया। वह कुटी के अंदर बैठा हुआ था और सब प्रकार से सुरक्षित था। साधना खत्म होने के बाद वह सिद्ध राम के पास जाता है और कहता है कि पता नहीं कहां से कुटी के अंदर भालू आ गए थे। मैं तो साधना छोड़ने ही वाला था। आप मेरी रक्षा कीजिए, कोई कवच लगा दीजिए। मैंने सुना है जिन साधकों के ऊपर कवच लगा रहता है उनका कोई शक्ति कुछ बिगाड़ नहीं पाती। तब सिद्ध राम ने कहा, कवच लगाने से शक्तियां आ नहीं पाती है और इसकी वजह से सिद्धि भी प्राप्त नहीं होती। तो कालूनाथ ने कहा, मुझे ऐसा कवच लगाकर दीजिए जिससे सिद्धि अंदर भी आ सके और मेरी मदद भी हो सके। तब सिद्ध राम ने उसे एक शक्तिशाली और साधना के स्तर के बराबर का ही एक दिव्य कवच प्रदान किया। वह साधना में उस कवच का पाठ कर बैठने लगा। इससे भालू तो उसके नजदीक नहीं आ पा रहे थे, लेकिन उनका पूर्ण अनुभव उसे अभी भी हो रहा था। इस प्रकार साधना चलती रही और! साधना के 21 वें दिन अचानक से ही सामने से एक भालू आया और उसने सिद्ध राम के सामने चिल्लाना शुरू कर दिया। सिद्ध राम! यह सारी बातें देखकर। कालूनाथ की ओर दौड़ा। और कालू नाथ से कहने लगा अपनी साधना बंद कर मेरी रक्षा कर। कालूनाथ ने अपनी आंखें नहीं खोली। और तभी सिद्ध राम के चीखने की बहुत तेज आवाज आने लगी। तभी कालूनाथ ने अपनी आंखें खोल कर देखा तो वहां पर उसकी पूरी कुटी को तहस-नहस कर चुके थे। वहां के सारे भालू! इस प्रकार कुटी को तहस-नहस होता देख! कालूनाथ घबराने लगा, लेकिन इसके बाद जो नजारा उसकी आंखों ने देखा, अब उसे सहन करना असंभव ही हो रहा था क्योंकि भालूओ ने क्रोधित होकर सिद्ध राम को पकड़ लिया था। तभी दो भालूओ ने सिद्ध राम की पीठ पर पंजा मारा और एक ने सिद्ध राम की गर्दन उखाड़ दी। इस प्रकार सिद्दराम का धड़ और सर अलग-अलग पड़े हुए थे। और यह सब नजारा देखकर कालूनाथ अब अपनी साधना छोड़कर भागने का मन बनाने लगा। आगे क्या हुआ जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। भलुनी देवी यक्षिणी का रहस्य भाग 4
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