भू निधि योगिनी साधना अनुभव भाग 2
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अभी तक आपने भू निधि योगिनी साधना अनुभव में जाना कि एक ब्राह्मण गरीब व्यक्ति के द्वार पर गुरु मत्स्येंद्रनाथ आ जाते हैं और उसे उसकी धन की समस्या को हल करने के लिए एक गुप्त धन प्राप्त करने वाली विद्या प्रदान करते हैं। रात्रि उसके घर में विश्राम करते हैं। और भोजन करने के बाद अब उस ब्राम्हण व्यक्ति से कहते हैं कि? अपनी पत्नी को यहां से दूर भेज दो। अब मैं तुम्हें गुप्त विद्या की जानकारी देने वाला हूं। तब ब्राह्मण व्यक्ति कहता है गुरुदेव। आप मेरी पत्नी को यहां से दूर क्यों भेज रहे हैं तब हंसते हुए गुरु मत्स्येंद्रनाथ कहते हैं कि ऐसी विद्याओं की जानकारी आपके गृहस्थी में भी किसी को नहीं होनी चाहिए क्योंकि तंत्र विद्या अत्यंत ही गोपनीय विषय होता है। इसमें गुरु और शिष्य के अलावा किसी तीसरे को आभास तक नहीं होना चाहिए, वरना कभी भी सिद्धि प्राप्त नहीं होती है।अगर कोई व्यक्ति ऐसी साधना या इस ज्ञान का बेमतलब? प्रचार करता है और? केवल जो यह करना चाहते हैं उनके अतिरिक्त अन्य लोगों को बताता है तो सिद्धि उसकी नष्ट होती है। इसीलिए तंत्र विद्या में गोपनीयता सबसे अनिवार्य वस्तु है। ब्राम्हण व्यक्ति अपनी पत्नी को दूर भेज देता है। अब वह तैयार था। तब मच्छिंद्रनाथ कहते हैं पहले मेरे चरण। स्वच्छ जल से धो उसके बाद मुझे गुरु स्वीकार करो और दक्षिणा अर्पण करो। यह सब करने के बाद ब्राम्हण व्यक्ति अब उनके सामने! अपनी इच्छा कहता है और कहता है कि है? देवता स्वरूप मेरे गुरुदेव आप मुझे धन प्राप्त करने की योगिनी साधना सिखाइए। अब मुस्कुराते हुए गुरु मत्स्येंद्रनाथ कहते हैं। सुनो यह एक गुप्त वैदिक विधि है। यह नाथ संप्रदाय की कोई विधि नहीं है। यह विधि वेदों में वर्णित थी, लेकिन इसे छुपा कर रखा गया ताकि इसका दुरुपयोग ना हो सके। यहां पर मैं इस विद्या की जानकारी तुम्हें दे रहा हूं। सुनो! इसे हम भू निधि योगिनी साधना के नाम से जानते हैं। यह एक ऐसी साधना है जिस साधना को करके व्यक्ति। अतुलनीय धन की प्राप्ति कर सकता है। इतना ही नहीं उसका भूमि पर अधिकार हो जाता है जिस भूमि पर वह। अपना कदम रख देता है। वह भूमि भी उसी की हो जाती है। वहां पर वह पहरा बिठा सकता है। तब उस गरीब ब्राह्मण व्यक्ति ने हाथ जोड़कर गुरु मछिंद्रनाथ से पूछा। गुरुदेव यह पहरा बिठाना क्या होता है और कदम रखने मात्र से उसकी धरती कैसे हो सकती है? तब गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी कहते हैं सुनो! यह एक ऐसी विद्या है जिसके माध्यम से भू निधि योगिनी सिद्ध हो जाती है और जिसे भी जमीन पर धन निकालने के लिए इस शक्ति का आवाहन किया जाता है वहां पर। भू निधि अपना खुद का स्थान घोषित कर देती है। अब उसी स्थान पर रहने वाली समस्त शक्तियां। उसे प्रणाम कर उसके अधीन हो जाते हैं। इसीलिए वह जमीन भू निधि योगिनी की हो जाती है। और तब साधक! किसी गड़े धन को न सिर्फ निकाल सकता है बल्कि उस स्थान पर। इस गुप्त भू निधि योगिनी के मंत्रों के माध्यम से पहरा लगा कर उस स्थान को कीलित कर सकता है। अर्थात वह! भू निधि योगिनी की शक्तियों को यानी कि भूत प्रेत पिशाच इत्यादि जो भी योगिनी के सेवक हैं उनको उन स्थानों पर बैठाकर वहां पर पहरा बिठा देता है। अब जब तक स्वयं साधक नहीं चाहेगा, कोई भी उसी स्थान से धन संपदा प्राप्त नहीं कर सकता। इसके लिए उसे सिर्फ थोड़ा सा जल लेकर उस स्थान पर मंत्र पढ़ते हुए गिरा देना होता है और योगिनी से प्रार्थना करनी होती है कि इस स्थान पर आप नाग पहरा या भूत प्रेत पहरा बिठा दीजिए। कोई भी इस स्थान से धन ना निकाल पाए। इसीलिए यह साधना धन संपदा देने के मामले में सबसे उत्तम साधना मानी जाती है। इससे ना सिर्फ व्यक्ति धन प्राप्त कर सकता है बल्कि किसी गड़े धन की रक्षा भी सदैव के लिए कर सकता है। अब ब्राह्मण व्यक्ति ने कहा गुरुदेव अगर उसी स्थान पर कोई बड़ी शक्ति बैठी हो क्या तब भी? भू निधि योगिनी अपने कब्जे में उसे ले पाएगी तब? मत्स्येंद्रनाथ कहते हैं अगर साक्षात भैरव उस स्थान पर विराजमान है तो भी दोनों की आपसी रजामंदी से वह स्थान भू निधि को ही प्राप्त हो जाता है और इससे बड़ी शक्ति कोई स्थापित नहीं हो सकती। इसीलिए! यह एक उत्तम और शक्तिशाली शक्ति है जो धन की रक्षा में वहां विद्यमान रहती है। ब्राह्मण व्यक्ति ने कहा, यह सब तो ठीक है किंतु मुझे धन कैसे प्राप्त होगा तब मछिंद्रनाथ उसे इस विद्या की पूरी जानकारी प्रदान करते हैं और कहते हैं कि किसी भी स्थान पर जो कि एकल एकांत और शांत हो। वहां पर यह साधना करो। उसके बाद आगे का सारा मार्ग स्वयं ही तय हो जाएगा। यह सुनकर अब ब्राह्मण व्यक्ति अपने गुरु मछिंद्रनाथ की सेवा करते हैं। सुबह के समय मत्स्येंद्रनाथ उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर आगे बढ़ जाते हैं ब्राह्मण व्यक्ति के लिए अब ऐसा स्थान ढूंढना अनिवार्य था जहां पर वह यह साधना कर पाए। वह घर पर यह साधना नहीं कर सकता था क्योंकि उसकी पत्नी वहां पर रहती थी। उसे शांत और एकल स्थान चाहिए था। क्योंकि गुरु की आज्ञा से वह यह बात जान चुका था कि तंत्र साधना के दौरान पूरी तरह शांत और एकल रहना जरूरी है और इस विद्या की जानकारी उसकी पत्नी को नहीं होनी चाहिए। तब वह अपनी पत्नी को कहता है कि मैं कुछ दिन के लिए साधना करना चाहता हूं जो गुरुदेव ने मुझे बताई है इस दौरान मुझे किसी भी प्रकार से डिस्टर्ब ना करना अब इस प्रकार कहकर वह अपनी साधना के लिए चला जाता है। कोई भी पत्नी जो इन बातों को जानती है, वह अपने पति को किसी भी प्रकार से अनावश्यक दखलअंदाजी और डिस्टर्ब नहीं करती है। इसीलिए वह भी कहती है केवल मैं आप को भोजन देने के लिए आ सकती हूँ क्या तब ब्राह्मण व्यक्ति कहता है, ठीक है। तुम मुझे भोजन देने आ जाया करना और दूर रख देना और वहां से चली जाया करना। बहुत सोच विचार करने के बाद ब्राह्मण व्यक्ति ने उसी बंजर जमीन को चुना, क्योंकि राजा द्वारा प्रदान की गई। वह जमीन दूर और गांव से अलग हटकर थी। इसलिए अगर वहां पर झोपड़ी बनाकर ब्राह्मण व्यक्ति साधना करता तो उसे कोई भी डिस्टर्ब नहीं करता और पत्नी से तो वह कहीं चुका था। उसे केवल उसके लिए भोजन बनाकर लाना है जो चुपचाप दूर रख देना है अब आगे की। अपनी चुनौती के लिए वह ब्राह्मण व्यक्ति तैयार था। उस व्यक्ति ने वहां पर साधना शुरू कर दी। साधना के कुछ दिन बीत जाने के बाद अचानक से ही एक दिन जब वह साधना कर रहा था तो वहां पर। जब वह अपनी आंखें खोलता है तो सामने सफेद रंग का एक सर्प उसे दिखाई देता है। सामने सर्प को देखकर वह डर जाता है और कहता है यह कैसी समस्या मेरे आगे आ गई। गुरुदेव ने पहले ही उसे समझाया था कि भय और ब्रह्मचर्य हर साधना के लिए अनिवार्य वस्तुएं हैं। भय को जीते बिना आगे नहीं बढ़ सकते और ब्रह्मचर्य के बिना आप सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते। सामने भय भी आ चुका था। अब इस डर से बचने के लिए ब्राह्मण व्यक्ति क्या करता उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अभी! दाहिनी ओर पर एक छोटे से डंडे से उसने उस सांप को हल्का सा मारा पर जैसे ही उसने उस सांप को मारा सांप का आकार बढ़ गया। यह देखकर ब्राह्मण व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया। उसे और डर लगा और अबकी बार उसने जोर से उस सफेद रंग के सांप को मारा। उसका आकार और अधिक विशाल हो गया और अधिक घबरा गया और अब की बार उसने पास रखे। डंडे से पूरी शक्ति लगाकर उस सांप को हटाने की कोशिश की। लेकिन तीसरी बार जब डंडा उस सांप को लगा तो सांप का आकार। अत्यंत विशाल हो गया। अब वह सर्प इतना बड़ा था कि अगर वो चाहता तो उस गरीब ब्राम्हण व्यक्ति को अपने मुंह के अंदर! निगल सकता था। उसकी फुँकार और बहुत तेज आने लगी। वह गुस्से से भरा हुआ था। ब्राह्मण व्यक्ति ने सोचा। इससे पहले कि यह मुझे डसे या निगल जाए। मुझे यहां से भाग जाना चाहिए और ब्राह्मण व्यक्ति तीव्रता से भागने की सोचने ही वाला था। इसके आगे क्या घटित हुआ जानेंगे अगले भाग में। अगर यह जानकारी और कहानी आपको पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें और अगर इस साधना को खरीदना चाहते हैं तो नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में लिंक है। वहां से क्लिक करके इंस्टामोजो में जाकर आप इसे खरीद सकते हैं। आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद। |
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