मधुमती योगिनी कथा और साधना भाग 1
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम मधुमती योगिनी के विषय में जानेंगे और साथ ही उनकी साधना का भी ज्ञान इंस्टामोजो के माध्यम से सभी के लिए उपलब्ध करवाएंगे क्योंकि यह एक ऐसी देवीय शक्ति है जो अपने सिद्ध होने पर साधक को सब कुछ प्रदान करने की क्षमता रखती है। इसीलिए इसे गोपनीय रहस्यमई योगिनी की संज्ञा दी जाती है। यह एक ऐसी शक्तिशाली योगिनी है जो एक बार सिद्ध हो जाए तो फिर साधक को कुछ और करने की आवश्यकता रह नहीं जाती। आखिर इनकी कथा क्या है इनका प्रादुर्भाव कैसे हुआ और कैसे इन के माध्यम से हम सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। इस वीडियो के माध्यम से हम लोग जानेंगे तो आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व माधव नाम का एक व्यक्ति अपने प्रिय गुरु के आश्रम में जाया करता था। वह दत्तात्रेय द्वारा स्थापित कोई आश्रम था। वहां पर गुरु संजीवन रहा करते थे। माधव और गुरु संजीवन एक दूसरे को बहुत अधिक पसंद करते थे। 1 दिन गुरु ने कहा कि मेरे लिए एक कार्य करके आओ सामने एक प्राचीन अप्सरा तालाब है। वहां पर जाकर तुम जल लेकर आओ, कहते हैं वहां पर रात्रि काल में अप्सरा, योगिनी इत्यादि गुप्त रहस्यमई शक्तियां विचरण करती हैं। मैं किसी साधक को वहां नहीं भेजना चाहता क्योंकि साधकों को देखकर वह नहीं आती हैं और कहते हैं अगर जिस दिन वह जल लाया जाए उस दिन उस जल से किसी शक्ति का स्पर्श हो जाए तो निश्चित रूप से जल में दैवीय शक्तियां आ जाती हैं और इस जल से देवी का जब अभिषेक किया जाता है तो सिद्धियां प्राप्त होती है। तुम समझ सकते हो कि मैं किसी तंत्र साधक को वहां पर क्यों नहीं भेज रहा हूं। इस प्रकार जब संजीवन ने अपने शिष्य माधव को इस विषय में बताया तो कौतूहल वश माधव ने कहा, गुरु जी अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं इस कार्य को अवश्य पूर्ण करूंगा। मैं कोई तंत्र साधक नहीं हूं। सिर्फ आपका एक छोटा सा शिष्य हूं। सांसारिक प्राणी आपकी आज्ञा से मैं अवश्य ही इस कार्य को जरूर करूंगा। किस दिन मुझे वहां जाकर देवी की पूजा के लिए जल लाना है। तब गुरु संजीवन ने उन्हें कहा कि आने वाली पूर्णिमा को रात्रि के समय तुम यहां से प्रस्थान करोगे और रात्रि ठीक 12:00 बजे जल लेकर आ जाओगे। लेकिन माधव को क्या पता था उसके साथ आज क्या घटित होने वाला है? माधव गुरु से आज्ञा लेकर रात्रि को 12:00 बजे उस स्थान की ओर चल पड़ा। घना जंगल था लेकिन पूर्णिमा की रात होने के कारण। चंद्रमा अपना प्रकाश तीव्रता से फैला रहा था। चारों ओर बड़ी ही शांति थी। यह जंगली जानवरों से भरा हुआ स्थान नहीं था। वहां पर हिंसक पशु भी नहीं आते थे। लेकिन सभी लोग उस तालाब के निकट जाने में सदैव घबराते थे क्योंकि उन सब का ऐसा मानना था कि देवीय आत्माएँ वहां आती है। वह सारी देवीय आत्माएं बहुत अधिक शक्तिशाली है और किसी भी प्राणी का भला या बुरा करने में सक्षम है। केवल गुरु संजीवन ही जानते थे कि वहां पर अप्सराएँ और योगिनी शक्तियां विचरण करते हैं। लेकिन कोई साधक जब वहां पहुंचता है तो वह गायब हो जाती हैं और उस स्थान पर जब तक वह रहता है, नहीं आती है। इसी कारण से उनका स्पर्श जल को नहीं होता। अब माधव के मन में कई तरह के विचार चल रहे थे। वह उसी स्थान की ओर तेजी से जाने लगा। कुछ ही समय बाद घने जंगल से गुजरते हुए अचानक से उसने कुछ शब्द सुने। उसे लगा जैसे पायलों की झंकार उसके पीछे से एक तरफ से दूसरी तरफ गई है। उसे ऐसा आभास हुआ जैसे कोई। स्त्री जिसने पैरों में घुंघरू पहन रखे हो, तेजी से भागी है। उसकी साँसे तेज होने लगी। मन में एक घबराहट कि वह कोई बड़ा तांत्रिक नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में उसे बहुत डर लगता था लेकिन क्योंकि गुरु की आज्ञा थी इसलिए उसे यह कार्य तो करना ही था। कुछ दूर आगे जाने पर उसे एक बार फिर से अपने दाहिनी ओर जंगल में किसी के पुकारने की आवाज सुनाई दी। ऐसा लगता था जैसे कोई उसे पुकार रहा है। आवाज बहुत धीमी और मधुर थी। जैसे कोई फुसफुसाहट हो। इससे उसके दिल में उसकी धड़कन और अधिक तेज धड़कने लगी। मन में एक डर सा व्याप्त हो रहा था। एक बेचैनी जो उसके पसीने की तरह उसके शरीर से बाहर निकल रही थी, पर वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया। एक बार फिर से उसे लगा कि पेड़ पर से किसी ने उस पर पत्ते गिराये हैं जिनसे वह और भी अधिक डर गया। उसे अब सारी बात समझ में आ रही थी। वह समझ गया। यहां पर कोई शक्ति विराजमान है। जो उसका अब पीछा कर रही है। गुरु ने स्पष्ट संकेत दिया था कि यहां पर कोई योगिनी या अप्सरा का वास है। और शायद उसी की नजर मुझ पर पड़ गई है। तब उसने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का मन ही मन जाप करना शुरू कर दिया और मन से भय को निकालने की कोशिश करने लगा। उसका प्रभाव भी उसे देखने को मिला और कुछ समय के लिए सब कुछ शांत हो गया। अब वह तालाब पर पहुंच चुका था। तालाब बड़ा ही मनोरम था। ऐसी खूबसूरती जो देखने लायक होती है। ऊपर से पूर्णिमा का चांद उस स्थान को जगमग कर रहा था। जल पर पड़ रही प्रकाश की चमक को कोई भी व्यक्ति आनंद से निहार सकता था। ऐसा दिव्य वातावरण उसे वहाँ का लग रहा था। उसे ऐसा लगा यह स्थान बहुत ही अधिक पवित्र है। शायद पूर्व काल में किसी की तपस्थली रहा होगा। अब उसने गुरु द्वारा दिए गए उस बर्तन को भरने की कोशिश की। जैसे ही उसने बर्तन को ऊपर उठाया। किसी हाथ में बर्तन को रोक लिया। और अब माधव यह देखकर भयभीत हो गया। तभी जल से निकलती हुई एक महा सुंदरी उसे दिखाई दी। वह पूर्ण सज्जा में ऊपर से नीचे गहनों से लदी हुई थी। उसने उसके बर्तन को पकड़ रखा था जिसे माधव ने भी पकड़ा हुआ था। इस प्रकार वह पानी से बाहर निकल कर आने लगी। लेकिन अचरज भरी बात यह थी जो माधव ने अपने नेत्रों से देखी वह यह थी कि जल का कोई भी प्रभाव उसके शरीर पर नहीं पड़ा था। अर्थात! उसने यह देखा कि कोई भी अगर जल से बाहर निकल कर आएगा तो पानी से भीगा हुआ होगा। उसके सारे वस्त्र गीले होंगे। तब तक करके पानी की बूंदे उसके शरीर से गिर रही होती है। पर यहां पर तो ऐसा लग रहा है जैसे वह जल से नहीं। सूखे स्थान से निकल कर बाहर आई है। उसने अतुलनीय तेज़ था उसका प्रकाश मैं चेहरा और शरीर से निकलती हुई जगमग किरण आनंदित कर रही थी। उसे एक बार देखकर बार-बार उसी पर नजरें टिकाने का मन माधव का हो रहा था। उसके चेहरे और शरीर पर से उसकी नजर हट ही नहीं रही थी। ऐसी दिव्य आभा से युक्त वह स्त्री बाहर आई और बोली कौन हो तुम और इस प्रकार चंद्रमा की रोशनी में इस दिव्य जल को लेकर कहां जा रहे हो? माधव एकटक उसे कुछ देर घूरता रहा। उसके बाद उसके मुंह से शब्द निकले। उसने कहा आप कौन हैं, मैं तो अपने गुरु के लिए इस जल को लेने आया था। आप इस जल से कैसे प्रकट हुई हैं। क्या आप कोई अप्सरा है? इस प्रकार माधव के प्रश्न पूछने पर वह मुस्कुरा कर बोली, मैं अप्सरा नहीं हूं। तुम मुझे योगिनी समझ सकते हो? मैं एक! देवी की उपासिका योगिनी हूँ और इसी जल में बार-बार आकर साधना किया करती हूँ । मुझे वर्षों हो गए हैं साधना करते हुए। तुम्हारा गुरु बड़ा चतुर है। उसने किसी साधक को नहीं भेजा। तुम जैसे एक सांसारिक प्राणी को भेजा है। इसी कारण से मैं तुम्हें रोक नहीं पाई क्योंकि हम मंत्र और तंत्र को बहुत जल्दी समझ लेते हैं। पर तुम से कोई मंत्र का आभास नहीं हो रहा था। सिवाय एक बार जब जंगल में मैं तुम्हारे पीछे थी तब तुमने अपने गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप किया था। इसलिए मैंने कुछ देर के लिए तुम्हारा साथ छोड़ दिया था। और अब मैं समझ चुकी हूं। कि वह तुम्हारा गुरु मंत्र था। इसीलिए मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम कोई तंत्र साधक नहीं हो। यह सारी बातें सुनकर माधव आश्चर्य में आ चुका था। आखिर यह स्त्री कौन है जो इतना सब कुछ उसके विषय में इतनी आसानी से जान गई है। इसके आगे क्या घटित हुआ जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है। लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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