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माँ कामाख्या शक्ति रजवंती योगिनी कथा और साधना भाग 2

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माँ कामाख्या शक्ति रजवंती योगिनी कथा और साधना भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। मां कामाख्या शक्ति रजवंती योगिनी की कथा भाग 1 में अभी तक आपने जाना एक साधु देवी के रजस्वला स्वरूप की सिद्धि के लिए आया हुआ था लेकिन उनकी सिद्धि प्राप्त नहीं कर पा रहा था। कारण था। एक देवी का बीच में आना और वह देवी बहुत ज्यादा शक्तिशाली थी। इसीलिए देवी के गदा के प्रहार से तांत्रिक दूर जाकर गिरता है। इस बात से तांत्रिक बहुत क्रोध में आ जाता है। तांत्रिक को एहसास होता है कि यह कोई साधारण शक्ति नहीं हो सकती है। इसे हराने के लिए किसी विशेष शक्ति की आवश्यकता होगी क्योंकि सीधे मंत्रों का इसमें प्रयोग करने पर भी कोई फायदा नहीं मिलने वाला है। यहां पर तांत्रिक बल काम नहीं आएगा। ऐसे में मुझे कोई ऐसी शक्ति चाहिए जो इस से युद्ध कर सके और अगर यह उस दौरान मुझे मौका मिल जाएगा और देवी के रजस्वला स्वरूप को प्राप्त कर पाऊंगा या उनकी सिद्धि कर पाऊंगा इसी के लिए तांत्रिक साधु।  कुछ देर सोचता है और फिर वहां से थोड़ी दूर नीलांचल पर्वत पर एक गुप्त स्थान में चला जाता है। वहां पर अपने गुरु को पुकारता है।

उसका गुरु जो कि अदृश्य अवस्था में सदैव उसके साथ रहता था। उसकी पुकार सुनकर वहां पर आ जाता है। आकाश में प्रकट होकर वह पूछता है कि आखिर तूने मुझे इतने बरसों के बाद क्यों याद किया है मुझे यह बताओ। कि तुमने आखिर इतने दिनों बाद मुझे याद करने का? उद्देश्य क्यों बनाया है जरूर कोई ऐसी परेशानी यह शक्ति है जिसकी वजह से तुम परेशान हो और मेरी सहायता चाहते हो? तब उस तांत्रिक साधु ने कहा, गुरुदेव आपका यह कथन पूरी तरह सत्य हैं। मैं असल में अपनी तांत्रिक विद्या में तपस्या कर रहा था। तपस्या करने के दौरान पता चला कि कामाख्या पीठ क्षेत्र देवी सती का एक दुर्लभ सिद्ध पीठ स्थल है। पर यहां पर देवि का कामाख्या स्वरूप विद्यमान है। लेकिन अचरज तो मुझे तब हुआ जब सिद्धियों के कारण मुझे पता चला कि देवी कुछ समय के लिए रजस्वला होती है। अर्थात उनका कोई स्वरुप साक्षात् रूप में यहां पर विद्यमान होता है। सिर्फ ऊर्जा के रूप में ही नहीं बल्कि साक्षात रूप में यहां पर वह आता है। इसी साक्षात स्वरूप में देवी का रजस्वला होने के कारण ही इस पूरे क्षेत्र में। पूरी ब्रम्ह पुत्र नदी भी लाल रंग की हो जाती है।

इसी रक्तश्राव की वजह से पूरा क्षेत्र लाल हो जाता है। मुझे जब इस बात का पता चला तो मुझे यह पता भी पता चला कि अगर मैं देवी की इस स्वरूप को सिद्धि कर लूं। मुझे भी शक्तियां प्राप्त हो सकती है। बस यही विचार था जिसकी वजह से मैं तुरंत ही अपनी गोपनीय साधना को छोड़कर इस क्षेत्र में आ गया।

कुछ समय पहले ही यहाँ पहुंचा था और जैसे ही देवी का रूप प्रकट होता है। उसकी निशानी रक्त के रूप में बहता हुआ लाल रंग का पानी मैं देखता हूं और मैं उसकी और बढ़ने की कोशिश करता हूं। तब कोई शक्ति है जो आकर मुझे रोक लेती है यह शक्ति। मुझे देवी का ही कोई शक्ति लग रही थी। पर किंतु मेरे पास बहुत सारी सिद्धियां है तो मैं उसे रोक सकता था। मुझे ऐसा नहीं लगा कि जब मैंने इस से युद्ध किया। मै पराजित हो गया। उसकी एक ही गदा के वार से मैं दूर जाकर गिरा। इससे यह स्पष्ट है कि यह शक्ति कोई साधारण शक्ति बिल्कुल भी नहीं है। मैं आपकी इसी शक्ति के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहता हूं। मैं इसे कैसे युद्ध में हरा सकता हूं?

उसके गुरु ने। उससे कहा यह शक्ति स्वयं देवी माता कामाख्या की एक सेविका योगिनी शक्ति है। उसके विषय में तुम सारी जानकारी प्राप्त कर पाओगे। लेकिन किसी योगिनी से लड़ने के लिए तुम्हारे पास भी इतनी शक्तिशाली कोई योगिनी अथवा यक्षिणी शक्ति होनी चाहिए। तभी तुम उसके सामने कुछ देर टिक पाओगे अन्यथा तो ऐसी शक्तियां बहुत प्रबल और शक्तिशाली होती है और देवी की भी।

अशांत अवस्था की द्योतक है।

शांत अवस्था और पीड़ादायक समय जब कोई भी स्त्री मासिक धर्म से गुजर रही होती है तब वह बहुत जल्दी क्रोधित हो सकती है। इसीलिए! कितनी भी शांत माता कामाख्या हो किंतु इस वक्त उनकी।

इस स्वरूप का प्रभाव और असर होने के कारण ही।

शक्ति उत्पन्न हुई होगी, लेकिन मैं तुम्हें एक विद्या सिखाता हूं। 1 योगिनी को हराने के लिए एक शक्ति साधना बताता हूं।

मैंने अपने गुरु से सीखी थी। इसे कपाल यक्षिणी साधना कहते हैं। यह सिद्ध होने में केवल मात्र 3 प्रहर का समय लेगी। तुम्हें पहले से सिद्धि प्राप्त है इसलिए यह साधना सिद्ध होने में ज्यादा समय भी नहीं लगाएगी कि गोपनीय विधि और सारा ज्ञान मैं तुम्हें उस व्यक्ति के गुरु ने उस साधु को कपाल यक्षिणी की साधना का भी ज्ञान दे दिया। उस तांत्रिक साधु ने तुरंत ही एक कपाल को प्राप्त किया। उसका शुद्धिकरण किया। उसे जागृत करने के बाद वह श्मशान भूमि में ले जाकर उसे 3 प्रहर में सिद्ध करने की कोशिश करने लगा। अंतिम प्रहर के वक्त अचानक से जहां बैठकर वह साधना कर रहा था, वह क्षेत्र जागृत हो जाता है। वहां पर विभिन्न प्रकार के उत्पात से, तांत्रिक इन सब चीजों से बिल्कुल भी नहीं घबराता है क्योंकि उसके लिए यह चीजें नई नहीं थी। वह पहले से प्रकार की तांत्रिक साधना करता रहता था और उसे यह ज्ञान था। इस प्रकार के विभिन्न प्रकार के अनुभव और शक्तियों से होने वाली भूत प्रेत रहस्ययमयी सारी चीजें होती रहती है। इसलिए उसने इन चीजों पर ध्यान नहीं दिया।

वह शक्तियां आकर उसे पीटने और मारने लगती है किंतु तभी उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है? अंततोगत्वा।

तीसरा पहर रात्रि का समाप्त होते ही वहां पर एक शक्तिशाली कपाल यक्षिणी प्रकट हो जाती है। यक्षिणी प्रकट होकर कहती है तूने मुझे क्यों बुलाया है मुझे सिद्ध करने का तेरा क्या प्रयोजन है तब वह साधु सारी बात बताता है और कहता है मेरी तरफ से युद्ध करके उसी योगिनी को रोकने का प्रयास करो और उसे हरा दो बंदी बना लो या फिर उस क्षेत्र की जितनी भी शक्तियां हैं, उन्हें सबको तुम्हारा कर बंदी बना लेना और तब मैं देवी को प्राप्त कर लूंगा। तब यह बात सुनकर यक्षिणी हंसने लगी।

उसने कहा ठीक है मैं तुम्हारा पूरी तरह साथ दूंगी इस प्रकार। वह तांत्रिक अब उस यक्षिणी को साथ लेकर फिर से माता कामाख्या के उस मंदिर की तरफ पहुंच गया जहां पर रजस्वला स्वरूप देवी का रक्त।

रूपी पानी वहां बह रहा था।

जैसे ही वह आगे बढ़ा एक बार फिर से। वही योगिनी सामने खड़ी हो गई। अपनी अस्त्र शस्त्रों को लेकर के और! जोरदार चेतावनी देती है, उसने कहा। मैंने तुम्हें पिछली बार भी समझाया था किंतु तुम नहीं माने। मैं दुबारा से तुम्हें चेतावनी देती हूं। इस क्षेत्र को छोड़कर चले जाओ। देवी का रजस्वला समय समाप्त होने के बाद आकर तुम चाहे यहां पूजा या तपस्या कुछ भी कर लेना मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी, किंतु समय देवी को किसी प्रकार से परेशान नहीं कर सकते हो। यह बात सुनकर वह तांत्रिक कहने लगा। तुम्हारा जो काम है, तुम करो, मैं तो देवी को प्राप्त करके ही रहूंगा। आगे बढ़ने लगा। तब योगिनी सामने आकर कहने लगी, ठीक है तो फिर मेरी प्रहार को सहने के लिए तैयार हो जाओ। और जैसे ही वह प्रहार करती है, सामने यक्षिणी उसके प्रहार को और रोक लेती है और कपाल यक्षिणी और उसी योगिनी में भयंकर युद्ध होने लगता है। यह देखकर वह साधु हंसते हुए कहता है। तुम युद्ध करती रहो, अब मैं जा रहा हूं देवी के पास।

यह सुनकर वह योगिनी बहुत ज्यादा क्रोधित हो जाती है और कहती है मुझे अपनी समस्त शक्तियों को जगाना होगा और योगिनी समस्त शक्तियों का आवाहन करती है। यक्षिणी को पाश में बांधकर बंदी बना लेती है। और? एक बार फिर से उस तांत्रिक को गधा मारकर दूर गिरा देती है।

तब वह तांत्रिक वहां से भाग जाता है और यक्षिणी भी वहां से गायब हो जाती है। तब? दूसरे स्थान पर पहुंच कर वह तांत्रिक साधु यक्षिणी को फिर से बुलाता है। यक्षिणी प्रकट होती है, उससे वह पूछता है। क्या कोई मार्ग ऐसा है जिससे हम इसी योगिनी को हरा सके तब यक्षिणी? अपनी ज्ञान मुद्रा बनाकर थोड़ी देर तपस्या करती है और कहती है।

चुकन्दर के फल के माध्यम से हम इस योगिनी को बंधन में ले सकते हैं।

तब यह बात सुनकर उस तांत्रिक को बड़ा आश्चर्य होता है।

लेकिन कार्य करने के लिए अब समय बहुत कम था।

और इसी प्रकार दुबारा उसने प्रयास किया लेकिन?

योगिनी को परास्त नहीं कर पाया योगिनी! समय समाप्त होते ही गायब हो जाती है क्योंकि देवी का रजस्वला स्वरुप कब का समाप्त हो चुका था और 3 दिन का समय बीत गया था।

साधु इस बात को लेकर बहुत खिन्न था कि वह किसी भी प्रकार से देवी की उस रजस्वला स्वरूप की सिद्धि नहीं कर पाया। इसीलिए वहीं रहकर 1 वर्ष तक देवी कामाख्या की साधना करने लगता है और इस प्रकार पूरे वर्ष बहुत कठिन तपस्या करता है।

देवी का रजस्वला  समय निकट आ चुका होता है। इधर साधु को पूरा 1 वर्ष तपस्या करते हो चुका था। रात्रि के समय अचानक से ही 1 दिन। वह देवी के दिव्य स्वरूप का दर्शन करता है।

तक देवी पूछती है कि मैंने?

तुम्हें दर्शन दे दिया है तुम मुझ से क्या प्राप्त करना चाहते हो?

कहता है आपको प्राप्त करने की इच्छा थी मेरी किंतु मैं प्राप्त नहीं कर पाया और पराजित हो गया। यह बात मुझे सोने नहीं देती है। मैं बहुत ज्यादा इस बात को सोचता रहता हूं कि मैंने स्वयं माता कामाख्या भगवती के दर्शन प्राप्त कर लिए हैं, किंतु अपनी उस पराजय को नहीं भूल पाया। आपकी मां शक्ति कौन थी और कैसे मैं उसे अपने वश में ले सकता हूं तब माता कामाख्या मुस्कुराती हैं। वह मेरी इच्छा से उत्पन्न हुई रजवंती नाम की योगिनी है। वह मेरी ही सेवा में रहती है और जब तक मेरा रजस्वला स्वरूप रहता है तब तक वह मेरे क्षेत्र की रक्षा करती है।

और सभी प्रकार से मेरी सेवा का दायित्व उसके पास रहता है। मुझे कोई परेशान ना करें। इसीलिए रजवंती योगिनी सदैव उस वक्त बड़ी तत्परता से कार्य करती है। अगर तुम उस से पराजित हुए हो तो वह शक्ति भी मेरी ही थी मेरी ऊर्जा के कारण!

उसे परास्त करना संभव नहीं है। साधु कहता है देवी, आप से मेरे मन में एक ही इच्छा है कि मैं रजवंती को सिद्ध कर लूं क्योंकि मैं उसे जानना और समझना चाहता हूं।

उसकी शक्तियों को जानना चाहता हूं।

आपकी प्रभाव से वह इतनी शक्तिशाली कैसे हैं, यह समझना चाहता हूं? मुझे यक्षिणी ने चुकंदर के फल के विषय में बताया था। आप मुझे रजवंती को सिद्ध करने की विधि बताइए। माता मैं रजवंती प्राप्त करना चाहता हूं। तब माता कामाख्या ने कहा। कि चाहे चुकंदर का फल हो या फिर अनार।

तुम उसे प्राप्त करने की विद्या मुझ से प्राप्त कर लो। मैं तुम्हें इसका दिव्य ज्ञान देती हूं।

और फिर माता कामाख्या ने रजवंती योगिनी को सिद्ध करने की विधि उस साधु को बताना शुरू कर दिया।

लेकिन माता ने कहा। कि मैं तुम्हें उसे सिद्ध करके नहीं दे सकती। यह तुम्हारी तपस्या और साधना पर निर्भर करेगा।

अगर तुम प्रयास करना चाहते हो तो अवश्य कर सकते हो। मेरी कृपा भी तुम्हारे साथ अवश्य रहेगी क्योंकि तुमने बहुत ज्यादा तपस्या मेरी 1 वर्ष तक की है।

वह शक्ति केवल मेरे रजस्वला स्वरूप के समय ही जागृत रहती है। इसलिए केवल 3 दिनों में ही तुम उसे सिद्ध कर सकते हो।

इसके बाद क्या हुआ साधु ने आखिर आगे क्या किया जानेंगे। हम लोग अगले भाग में इसी के साथ ही अगर आप इस साधना को खरीदना चाहते हैं। मैंने लिंक दे रखा है आप वहां से क्लिक करके इंस्तामोजो स्टोर से।

और आने वाले! अंबुबाची मेला के पर्व पर किसी भी वर्ष इस प्रकार की यह साधना कर सकते हैं और मात्र 3 दिनों में ही देवी को सिद्ध करने का प्रयास कर सकते हैं। जय मां पराशक्ति!

माँ कामाख्या शक्ति रजवंती योगिनी कथा और साधना भाग 3

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