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माता पार्वती रहस्य और साधना

माता पार्वती रहस्य और साधना

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम लोग एक विशेष स्वरूप के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे। और यह स्वरूप है जगत जननी माता पार्वती का, माता पार्वती के विषय में सभी लोग जानते हैं, लेकिन इनकी साधना और इनके रहस्य को कम ही लोग समझते हैं। तो आज का यह वीडियो माता पार्वती को ही समर्पित है और हिंदू सनातन धर्म में मां पार्वती अपना एक विशेष स्थान किस प्रकार रखती हैं और इस के संदर्भ में हमें धर्म ग्रंथों में क्या देखने को मिलता है। आज के वीडियो के माध्यम से हम लोग जानेंगे।

माता पार्वती। हिंदू सनातनी भगवान शिव की पत्नी मानी जाती है और पर्वत के राजा हिमालय और रानी मैना की बेटी है।

हिंदू देवताओं, भगवान गणेश, कार्तिकेय, अशोक सुंदरी, ज्योति और मनसा देवी

की माता के स्वरूप में इनको जाना जाता है वही पुराणों में भगवान विष्णु की बहन को ही माता पार्वती कहा गया है।

यह जगत जननी और पर ब्रह्म स्वरूप ने मानी जाती है। इन के 1000 नामों की सूची ललिता सहस्त्रनाम में

प्राप्त होती हैं।

इनका प्रसिद्ध नाम उमा और अर्पणा है।

दुर्गम नामक दैत्य को मारने के बाद पार्वती माता का नाम दुर्गा स्वरूप में भी लिया जाने लगा।

इनके जो नाम है और उनके अलग अर्थ देखने को मिलते हैं जैसे पार्वती अंबिका- प्रिय मां! शक्ति -शक्ति स्वरूपा माता जी, पूज्य माता, माहेश्वरी-महान देवी दुर्गा अर्थात अजेय, भैरवी अर्थात क्रूर भवानी अर्थात उर्वरता। कामाक्षी! प्रजनन स्वरूपा और अन्नपूर्णा अर्थात भोजन पूर्ण करने वाली।

इन्हें मां के कई स्वरूपों में जाना जाता है। स्वर्ण स्वरूप, गौरी स्वरूप, काली स्वरूप श्यामा स्वरूप।

तो अपनी अपनी साधना और! उपासना के माध्यम से हम इन्हें विभिन्न रूपों में जानते हैं।

देवी स्वरूप में यह परम ब्रह्म की परम शक्ति कहलाती है।

सती स्वरूप में इन्होंने ही जन्म लेकर भगवान शिव को पूर्ण किया और अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण शरीर को त्याग दिया और संसार को यह संदेश दिया कि प्रत्येक नारी अगर उसके पति का अपमान किया जाए तो वह स्वयं को क्षति कर ले किंतु उसके किसी भी प्रकार से किए गए

अपमान को स्वीकार बिल्कुल भी ना करें।

इसीलिए भारत की प्रत्येक नारी शक्ति स्वरूपा स्वयं इनकी आराधना के कारण हो ही जाती है और इसी कारण यहां देवताओं से ज्यादा स्त्री शक्ति की पूजा होती है। क्योंकि स्त्री यहां परोपकार की मूर्ति। प्रेम! दया और तपस्या की साक्षात मूर्ति होती है।

माता पार्वती के

उपनिषद स्वरूप में जो इनका वर्णन और कथा आती है, वह जाननी बहुत आवश्यक है क्योंकि वहां पर इनके महत्वपूर्ण महान स्वरूप को दर्शाया गया है। 108 उपनिषदों में दूसरे सबसे प्रमुख उपनिषद केनोपनिषद के तृतीय और चतुर्थ खंड में देवी मां पार्वती स्वरूप का वर्णन है। जहां इन्हें हेमावती उमा नाम से पुकारा गया है। यही ब्रह्मविद्या परब्रह्म की शक्ति और संसार की मां के रूप में दिखाई पड़ती है। कथा के अनुसार परब्रह्म परमात्मा ने देवताओं को जब विजय दिलवाई। पर ईश्वर के द्वारा प्रदत्त विजय से देवताओं को अहंकार हो गया। देवता यह सोचने लगे कि हम अपने कर्मों से ही राक्षसों को जीत पाए हैं। इसमें ईश्वर का कोई भी हाथ नहीं है। और स्वयं वह अपनी महिमा गाने लगे। तब परब्रह्म परमात्मा ने यक्ष रूप में प्रकट होकर। वहां पर देवताओं से कहा। इसमें पहले अग्नि से कहा है जातवेद!

आप मेरे समीप आये?

तब अग्नि ने पूछा तू कौन है अग्नि ने कहा, मैं अग्नि हूं, मैं ही जात वेदा हूं।

तुझ अग्नि में क्या सामर्थ है तब अग्नि कहता है। इस पृथ्वी में जो कुछ भी है उसे जलाकर भस्म कर सकता हूं। तब उस यक्ष स्वरूप ने एक तिनका रख कर कहा। इसे जला कर दिखा। अपनी सारी शक्ति लगाकर भी उस दिन कोई तिनका ना जला पर जब! अग्नि शांत हो गया तो उस यक्ष के सामर्थ्य को। ना जान सके, इंद्र के पास जाकर कहा तब इंद्र ने वायु को भेजा। वायु ने कहा, मैं वायु हूं। मैं पूरी पृथ्वी को ग्रहण करता हूं। और पर्वतों को उड़ा कर फेंक सकता हूं। तब उस यक्ष ने उस तिनके की ओर इशारा कर कहा इस तिनके को हिलाकर ही दिखा तब? वायु भी! अपनी शक्ति! से उस तिनको नहीं हिला पाया। फिर इंद्र स्वयं यक्ष के पास गए और तब उन्होंने उनसे क्षमा मांगी तब उन्होंने कहा ठीक है अगर तू मेरे स्वरूप को जानना ही चाहता है। हे इंद्र तो इस संपूर्ण आकाश को देख तब अति शोभा युक्त मां पार्वती साक्षात वहां पर प्रकट हुई। जिनके प्रकाश से अग्नि को अग्नि का बल वायु को वायु का बल वरुण को जल का बल इंद्र को 100 शक्तियों का बल। प्राप्त हो रहा था। ब्रह्मांड में ऐसी कोई वस्तु नहीं थी जो उनसे ऊर्जा प्राप्त न कर पा रही हो। तब इंद्र ने कहा, आप सब श्रेष्ठ हैं। आप कौन हैं तब उन ममतामई माता ने कहा, मैं परब्रह्म हूँ और? मेरी ही शक्ति से सारे संसार का भर! पोषण और कार्य-कारण का सिद्धांत चलता है। अगर मैं उर्जा स्वरूप में ना बहूँ तो समस्त वस्तुएं निर्जीव ही है।

इस कथा से हम मां पार्वती के उस दिव्य परमात्मा स्वरूप का दर्शन करते हैं। इनकी सबसे बड़ी।

जो परीक्षा थी वह थी सती के बाद। पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लेकर शिव को प्राप्त करना थी क्योंकि भगवान शिव को एक साधारण मनुष्य कभी प्राप्त नहीं कर सकता था। और वह भी जब एक स्त्री हो।

तो एक मानव स्त्री! परमात्मा स्वरुप शिव को। केवल अपनी तपस्या से प्राप्त करें, यह साधारण नहीं था, किंतु इन्होंने अपने तप से वह करके दिखाया। एक मनुष्य अपनी सामर्थ्य और तपस्या के कारण परमात्मा को भी जीत सकता है।

इनका नाम अपर्णा भी इसीलिए पड़ा था क्योंकि इन्होंने पहले केवल पत्ते खाकर तपस्या की थी और जब उन्होंने देखा कि भगवान शिव प्रकट नहीं हो रहे हैं तो उन्होंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया। इस प्रकार निर्जल उस महान तपस्या को उन्होंने सार्थक किया था। जिसकी।

छाया देखने के लिए संसार के सभी सिद्ध गंधर्व यक्ष देवता और बड़े-बड़े ऋषि मुनि स्वयं ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु भी गए थे। तब ब्रह्मा जी ने कहा था इन्होंने! पत्ती खाना तक छोड़ दिया इसलिए इनका एक नाम अपर्णा होगा। तो माता पार्वती अपनी तपस्या से ब्रह्म स्वरूप। अपने महान और स्वरूपों में।

उन्होंने भगवान शिव को भी साक्षात कर लिया और अर्धनारीश्वर स्वरूप ग्रहण किया। इसीलिए माता! पार्वती के माध्यम से प्रत्येक स्त्री।

संसार में कुछ भी करने की क्षमता रखती है। सिर्फ उसे अपने सतीत्व और तप शक्ति को जगाने की आवश्यकता है।

देवी माता पार्वती को हरतालिका तीज जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है इसके अलावा नवरात्रि का पर्व।

इनके प्रमुख पूजा हेतु किए जाने वाले प्रमुख पर्वों में शामिल है। माता के बहुत सारे मंदिर भारत में है। वहीं विदेशों में भी उनके मंदिर देखने में आते हैं। कंबोडिया और बाहर के देशों में भी जैसे इंडोनेशिया, वहां भी इनकी पूजा हजारों वर्षों से होती चली आ रही है।

दक्षिण पूर्वी एशिया, वियतनाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया इत्यादि कई जगहों पर माता की अभी भी मूर्तियां प्राप्त होती है। इसलिए मां की महिमा सिर्फ भारत वर्ष तक सीमित नहीं है। वह पूरे विश्व में देखने को मिलती है।

माता की पूजा के लिए जो मंत्र का इस्तेमाल किया जाता है उसमें सर्वोत्तम मंत्र।

माता का? नर्वाण मंत्र है। किंतु अगर इनके सिर्फ पार्वती स्वरूप की पूजन करनी हो तो दो मंत्र बहुत ही शुभ और संपूर्णता देने वाले माने जाते हैं जिसमें एक गायत्री मंत्र है और दूसरा है पार्वती मंत्र।

ॐ पां पार्वत्ये नमः

यह इनका मूल मंत्र है वही! गायत्री मंत्र इस प्रकार से है ॐ गिरिजाय विद्माहे शिवप्रियाय धीमहि तन्नो उमा प्रचोद्यात

इसके अलावा ॐ उमा महेश्वरभ्यं नमः।

यह भी इनका बहुत ही प्रिय मंत्र माना जाता है। माता को लाल चुनरी चढ़ाना। कन्या पूजन करना और विधिवत तरीके से माता के मंत्रों का जाप करना ठीक वैसे ही जैसे बाकी मंत्रों का माता के जाप किया जाता है। बहुत ही शुभ माना जाता है।

माता! की कृपा प्राप्त करने के लिए इनके। 4 मंदिरों में अगर पूजा की जाए तो बहुत शुभ है जैसे खजुराहो का पार्वती मंदिर, उत्तराखंड का गिरिजा देवी मंदिर, गुजरात का अंबाजी मंदिर, कोच्चि का पार्वती मंदिर और वाराणसी का विशालाक्षी मंदिर।

इनके साधना के लिए इनकी मूर्ति को स्नान कराने पर सामने तांबे का पात्र कलश दूध वस्त्र, आभूषण इत्यादि रखें। चावल दीपक तेल, रुई कुमकुम, धूपबत्ती, अष्टगंध गुलाब के फूल, प्रसाद के फल, फूल, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान और दक्षिणा रखे।  सबसे पहले संकल्प लें। हाथों में जल पूरा कलश लेकर जिस दिन पूजा कर रहे हो उस तिथि वार बस का नाम ले गोत्र का नाम लेकर संकल्प लेते हुए जल को जमीन पर गिरा दीजिए।

फिर भगवान गणेश की प्रार्थना करने पर फिर भगवान शिव की पूजा अवश्य करें। भगवान शिव का स्थान माता पार्वती की मूर्ति के।

दाहिनी तरफ होना चाहिए। यानी माता पार्वती बाई तरफ विराजमान होंगी। अब दोनों लोगों का एक साथ पूजन करना चाहिए। देवी को स्नान कराये। जल से स्नान फिर पंचामृत से फिर स्वच्छ जल से पहुंचते वस्त्र फिर आभूषण पहनाये , माला अर्पित करें। इत्र लगाकर तिलक करें। धूप और दीप जलाकर फूल और चावल अर्पित करें। घी का दीपक लगाकर फिर आरती करें और नैवेद्य अर्पित करें। इस प्रकार नियमित रूप से माता के मंत्रों का जाप करें। माता के मूल मंत्र ॐ पां पार्वत्ये नमः का रोज 21 माला जाप करने से व्यक्ति के अंदर अद्भुत ऊर्जा उत्पन्न होती है और धीरे-धीरे माता पार्वती उसकी समस्त मनोकामना को पूर्ण कर देती हैं। यही नहीं उसे जीवन में दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। माता पार्वती पूजन बहुत ही गुप्त और दुर्लभ माना जाता है। इनकी साधना करने से समस्त प्रकार के विघ्नों का नाश तो होता ही है। भगवान शिव भगवान गणेश की भी कृपा स्वता ही प्राप्त होने लगती है माता पार्वती।

जिस प्रकार संसार में स्त्रियों के लिए सौभाग्य दायक है। अगर कोई स्त्री इनकी पूजा करती है तो अवश्य ही मनोवांछित वर को प्राप्त कर लेती है। इन्हें शादी का जोड़ा अर्पित कर अगर कन्या नियमित रूप से 1 वर्ष तक इनकी आराधना करें तो मनोवांछित पति को प्राप्त करती है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है तो यह था माता पार्वती का रहस्य संबंधी जानकारी और साधना अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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