नमस्कार दोस्तों, धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज मैं एक विशेष प्रकार की शक्ति के विषय में बात करने जा रहा हूँ, जिसे हम महेश्वरी पराशक्ति योगिनी के नाम से जानते हैं। इसके अलावा, महेश्वरी शक्ति का महेश्वर से कैसे संबंध है, महेश्वरी समाज का इतिहास क्या है और यह साधना कैसे की जाती है, इन सभी विषयों पर हम आज चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम यह जानते हैं कि महेश्वरी आती कहाँ से हैं, उनका स्वरूप क्या है और उनकी योगिनी शक्ति कैसी है।
महेश्वरी प्रकृतिव्या वृषभभासना समस्थिता कपाला शूल, खतवांग, वरदा चतुरभुजा, महेश्वरी माता भगवान शिव की शक्ति हैं। उन्हें महेश्वर के नाम से भी जाना जाता है और उनके कई नाम हैं – रूद्र, रूद्राणी, माहेश्वरी आदि। उनका रंग सफेद है और उनकी तीन आँखें हैं। उनका वाहन नंदी बैल है। वे सर्प के आभूषण धारण करती हैं और उनके जटा मुकुट में अर्धचंद्र सुशोभित रहता है। अपने दो हाथों में वे त्रिशूल और माला धारण करती हैं, जबकि अन्य हाथ अभय और वरदान की मुद्रा में होते हैं।
देवी महेश्वरी का एक षठभुजी रूप भी है, जिसे हम योगिनी के रूप में समझ सकते हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी देवी महेश्वरी के इस योगिनी रूप का वर्णन मिलता है। देवी महेश्वरी के पांच मुख हैं और प्रत्येक मुख में तीन आँखें हैं। प्रत्येक मुख पर जटा मुकुट सुशोभित रहता है, जिसमें अर्धचंद्र का स्थान है। चार हाथों में वे डमरू, शूल, घंटी धारण करती हैं और शेष हाथ अभय और वरदान मुद्रा में होते हैं। यह स्वरूप उनके दिव्य और रहस्यमयी स्वभाव को दर्शाता है।
जब हम 64 योगिनियों की उत्पत्ति की बात करते हैं तो देवी महेश्वरी से ही इन योगिनियों का मूल तत्व निकला है। महेश्वरी पराशक्ति एक ऐसी देवी हैं जो महेश्वर के साथ गुप्त रूप में रहती हैं। उनका स्वरूप अद्भुत चमत्कारों से भरा हुआ है और 64 योगिनियों में 62वें स्थान पर उनका नाम आता है। महेश्वरी शक्ति का उत्पत्ति काल खंडेलपुर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा खड़क सेन के समय से संबंधित है। राजा की कोई संतान नहीं थी, और पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप महारानी ने सुजन सिंह नामक पुत्र को जन्म दिया।
राजकुमार सुजन सिंह का विवाह चंद्रवती नामक कन्या से हुआ। एक समय जैन मुनियों के प्रभाव में आकर सुजन सिंह ने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया और अन्य धर्मों के उपासकों को प्रताड़ित करना आरंभ कर दिया। ऋषियों ने उसे श्राप दिया, जिससे वह और उसके 72 सैनिक पत्थर बन गए। राजा और उनकी आठ रानियाँ सती हो गईं, लेकिन राजकुमार की पत्नी चंद्रवती ऋषियों से क्षमा मांगने गई। ऋषियों ने बताया कि भगवान महेश्वर और देवी पार्वती की कृपा से ही श्राप से मुक्ति मिल सकती है।
चंद्रवती ने भगवान महेश्वर के अष्टाक्षर मंत्र “ओम् नमो महेश्वराय” का जाप करते हुए तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान महेश और देवी पार्वती ने उन्हें वरदान दिया। भगवान महेश ने सुजन सिंह और उसके सैनिकों में प्राण शक्ति प्रवाहित कर उन्हें पुनः जीवित कर दिया। भगवान महेश ने सुजन सिंह से कहा कि उनके वंश पर महेश्वरी का आशीर्वाद रहेगा और उन्हें महेश्वरी नाम से जाना जाएगा।
महेश्वरी समाज महेश नवमी के रूप में अपने उत्पत्ति दिवस को मनाता है। इस समाज की उत्पत्ति महेश और पार्वती की कृपा से हुई थी। देवी महेश्वरी पराशक्ति का स्वरूप अत्यंत रहस्यमयी और दुर्लभ है, और उनकी साधना करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। महेश्वरी पराशक्ति का साधना विधि भी अत्यंत गोपनीय है और हिमालय में गुफा के अंदर वृष चर्म पर बैठकर की जाती है। देवी का मंत्र है: ” ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।”
इस साधना में 41 दिन तक रात्रि के समय देवी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाकर रुद्राक्ष की माला से मंत्र का जाप किया जाता है। देवी महेश्वरी पराशक्ति की साधना करने वाले को दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है और शिवलोक का दर्शन भी मिलता है। यह साधना कठिन है और इसे करने से पहले गुरु से विधि और विधान को जानना आवश्यक है।
आशा करता हूँ कि आज का यह वीडियो आपको पसंद आया होगा। आपका दिन मंगलमय हो। जय माँ पराशक्ति।
सारांश: महेश्वरी पराशक्ति योगिनी की उत्पत्ति और साधना का रहस्य, महेश्वरी समाज का इतिहास, भगवान शिव से महेश्वरी का संबंध, 64 योगिनियों में महेश्वरी का स्थान, महेश नवमी का महत्व, दुर्लभ साधनाओं की जानकारी, और महेश्वरी पराशक्ति के मंत्र का महत्व।
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