नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज एक अनुभव लेंगे जो यमदूत से संबंधित है। वहीं कुछ ऐसे गंभीर प्रश्नों को लेंगे जिनको आप सुनेंगे तो आप भी सोच में पड़ जाएंगे। चलिए पहले लेते हैं इनके अनुभव को और सभी प्रश्नों को भी समझते हैं ताकि सभी के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें सीखी जा सके। यमदूत वाला सच्चा अनुभव।
नमस्ते गुरुजी, मैंने आपसे बताया था एक दिन कि मुझे दादी से रिलेटेड अनुभव! आपसे कुछ सवाल पूछे थे लेकिन मैं फिर कभी और पूछूंगी क्योंकि आपके पास और भी लोगों की ईमेल आते रहते हैं। गुरु जी आप जानते हैं आपको दादी वाले अनुभव पहले भी मैंने बताए हैं। लेकिन यह बातें जबकि हैं जब दादी ने पलंग को पकड़ लिया था। जुलाई 2017 कि मैं और मेरे पेरेंट्स हम लोग हरिद्वार गए थे। गंगा स्नान करने। सावन में त्रिवेणी का संगम रहता है। आप जानते ही होंगे।
हम लोग दादी को मेरी बुआ के यहां छोड़ कर गए थे। तो बाद में एक बार बुआ ने बताया कि माँ यानी कि मेरी दादी जो है, वह चिल्ला रही थी-घर में पलंग के नीचे काला आदमी बैठा हुआ है। उसे वह बार-बार कह रही थी। कि एक आदमी जो काले रंग का है वह पलंग के नीचे बैठा हुआ है, उसको भगाया जाए।
फिर गुरुजी सितंबर 2017 गया श्राद्ध शुरू हो गए तो मेरे घर पर श्राद्ध था तो दादी के ही रूम में मेरे दादाजी एवं मेरे पापा की दादी की फोटो लगी हुई थी वह फोटो ऊंचाई पर लगी थी। स्टूल या कुर्सी पर चढ़ना पड़ता था। हाथ नहीं जाता था फोटो पर। तो उन दोनों फोटो पर हार पहनाया गया था। गुरुजी रात जब हो गई, हम सब सो गए पर जब मेरे पापा। सुबह उठकर उधर गए तो इन्हें देखा कि रूम में गुलाब के फूल बिखरे हैं ।
दादा जी के फोटो दादी गले से लगाकर पड़ी हैं। और बाद में पूछा तो वह बोली कि वह बोल रहे हैं कि अब चलो! …..ऐसा ही फिर नवंबर मे उन्होने खाना पीना। उन्होंने छोड़ दिया था और वह बिस्तर पर ही पड़ गई थी। कान भी उनके मुड़ गए थे। मैंने शिव पुराण में पढा था कि जब इंसान की मृत्यु होने पर आती है तो उसके कान वगैरह सब इस तरह से हो जाते हैं। वहां, बिल्कुल सही लिखा है। मतलब साफ बात थी। उनको कुछ कुछ दिखता था और वह चिल्लाती रहती।
मेरे घर वालों ने तुलसी के पत्ते का पानी डालकर रख दिया। वह उसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करती थी। बस थोड़ा ही उसका इस्तेमाल करती थी । मतलब ऐसा लगता था कि यह निर्दयी यमदूत परेशान करते हैं। शायद इनको यही एक सीधी सी बात थी और जुलाई से ही दिखने लगी होंगी उनको यह बातें उसके बाद उनकी डेथ हो गयी ।
गुरु जी यही बात में नाना जी के साथ भी हो गई थी 2011 में । मै उनके बारे में बताती हूं जब उनका टाइम आने वाला था तो कोई उनके सर पर मार देता था और वह जब बैठे रहते थे तब ऐसा होता था, तो वह सोचते थे कि घर के बच्चों ने कोई हरकत की होगी। यह बात मेरे मामा ने बाद में बताई । तब वह बच्चों की करतूत समझकर उन्हें डांट दिया करते थे, लेकिन उन्हें ऐसा बार-बार लगता था कि उनके सिर पर आ कर के कोई मार कर चला जाता है।
अब मेरे कुछ सवाल है! पहला सवाल यह है कि गुरु जी मेरी दादी के हाथ पर भगवान श्री कृष्ण बने हुए थे। पुराने जमाने में लोग भगवान कृष्ण बगैरा को गुदवाया करते थे। गुरुजी यमराज के दूत की हिम्मत कैसे हुई पास आने की उनके सामने, दूसरा ये है कि गीता में बड़ी-बड़ी बातें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कही है जो मेरी भक्ति करता है, उसको कष्ट नहीं होता है। तो अगर यह बात सच है तो मेरी दादी गीता पढ़ती थी। फिर यह सब क्यों हो गया?
अब मैं अपने दिल की बात कहती हूं। जब भी यह अनुभव याद आता है। यह सवाल जो है, मेरे दिमाग में आते रहते हैं तो एक नफरत सी हो जाती है यमराज से। कई बार अक्सर मन में यही सोचती हूं। सूर्य देव के दोनों ही पुत्र अच्छे न निकले। भगवान सच में एक जीना मुश्किल करते हैं तो दूसरा मारने के बाद बहुत नाक में दम करते हैं। दो पुत्र हुए भगवान के । इनको किसी ने इतनी बड़ी रिस्पांसिबिलिटी कैसे दी। बहुत क्रोध आता है ।मुझे गीता में लिखा हुआ सब बकवास सा लगने लगा।
यहां पर इनका अनुभव समाप्त होता है और साथ मे दो बड़े प्रश्न आते हैं। मतलब यहां पर प्रश्न है कि क्यों इनकी दादी जी जो कि गीता का पाठ भी करती थी। भगवान कृष्ण शरीर पर गुदवाए हुए थे इसके बावजूद उन्हें यमदूत लेने के लिए आए ?
पहली बात तो कोई भी अपने कर्मों से नहीं बच सकता है जिसकी जैसी मृत्यु लिखी है, उसकी मृत्यु उसी अनुसार होती है। लेकिन हम जब किसी देवता की शरण लेते हैं। हमारे दुख कम हो जाते हैं और हमारी जो दुख दर्द है, वह मिटने लगते हैं लेकिन समाप्त नहीं होते।
दूसरी बात! जब भी हम खुद से साधना करते हैं तो उसमें बहुत सारी कमियां होती हैं। इसीलिए गुरु परंपरा भगवान शिव ने स्थापित की है। भगवान शिव ने कहा है कि गुरु करना चाहिए। गुरु से जो हमें गुरु मंत्र मिलता है उसका हम जब लोग रोज पाठ करते हैं, अनवरत जाप करते हैं तो हमारे अंदर ही ऊर्जा बनने लगती है यह उर्जा हमारी मृत्यु के समय हमारी रक्षा करती है। और निश्चित रूप से यमदूत हमे नहीं ले जा सकते।
स्वर्ग के दूत ही उस व्यक्ति को लेकर जाते हैं। वह व्यक्ति डरता नहीं है। शांत रहता है और मुक्ति को प्राप्त करता है। भगवान कृष्ण का भी अगर मंत्र, गुरु मंत्र के रूप में मिलेगा तो उसे ऐसा ही अनुभव होगा क्योंकि हम लोग जब किताबें पढ़ते हैं, सिर्फ किताबों को पढ़ने और उसको हृदय में उतारने में अंतर होता है, गीता का पाठ करना। एक प्रकार से आपको वास्तविकता का ज्ञान कराता है। लेकिन ज्ञान को लोग धारण करते हैं कि नहीं यह अलग प्रश्न है।
दूसरी बात भगवान कृष्ण का भी अगर गुरु मंत्र के रूप में आपको मिले तो वह कहीं ज्यादा उत्तम है। किसी भी गुरु परंपरा से, क्योंकि उसके साथ गुरु की उर्जा जुड़ी हैं और साथ-साथ आपका प्रतिदिन का संकल्प जुड़ा है। जो हर रोज हम करते चल रहे हैं। आपने अपने प्रत्येक दिन को गुरु मंत्र से जब जोड़ कर रखा है तो आपका कोई बुरा कर्म आपका प्रारब्ध बनकर आपके लिए संकट पैदा नहीं कर सकता।
प्रारब्ध से निर्मित कर्मों से तो भगवान भी नहीं बच सकते। उदाहरण – हिंदू भगवान राम के रूप में भगवान कृष्ण ने पूर्व जन्म में बालि का वध छुपकर किया था। उसी कर्म का प्रभाव था कि अगले जन्म में को बहेलियां के बाण से उनको मृत्यु आई थी, जो उनके पैर में जाकर लगा था। इसके अलावा उन्होंने अपने शिष्य के रूप में अभिमन्यु को स्वीकार किया था, लेकिन वह अभिमन्यु के प्राणों की रक्षा महाभारत में नहीं कर सके।
यही नहीं। उन्होने पांडव के अतिरिक्त किसी की भी रक्षा उन्होंने नहीं किया, ना यार नहीं कर पाए। कारण क्या था पूरी तरह नहीं आती है किसी देवता के प्रति समर्पण न हो तब तक उसकी रक्षा नहीं हो सकती। अर्जुन की रक्षा उन्होंने स्वयं खड़े होकर की थी तभी अर्जुन की रक्षा हुई, अन्यथा अर्जुन भी निश्चित रूप से मारे जाते ।
मृत्यु बाद यमदूत का आना कोई बड़ी बात नहीं है। सभी के पास यमदूत जाते हैं क्यूंकी उनका वह नित्य कर्म है। जिसका जो कर्म होता है वह वही कर्म करता है तो अगर यमराज का कर्म सबके प्राण लेना है तो वह तो आएंगे। भगवान राम के पास भी वह उनसे यही कहने आए थे। उनकी मृत्यु के समय कि अब आप का समय हो चुका है। आप चलिए ,उसी वार्तालाप के कारण से लक्ष्मण जी की मृत्यु हुई थी।
इसीलिए बार-बार यही कहा जाता है कि गुरु मंत्र ले लेना चाहिए और गुरु मंत्र को हमेशा प्रतिदिन जाप करना चाहिए। ऐसे नहीं कि मैंने गुरु मंत्र ले लिया और उसके बाद फिर उसे छोड़ दिया। मैं तो गुरु मंत्र ले चुका हूं। अब मुझे क्या होगा, यह धारणा भी गलत है। इसलिए भक्ति भी प्रतिदिन की करनी चाहिए। ऊर्जा से आपको फायदा हो साथ ही आपको वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति हो। इसीलिए परंपरा स्थापित की गई है।
क्योंकि इसके बिना जब आप स्वयं को ही सब कुछ मान लेते हो और स्वयं सब कुछ करने लगते हो तो कहीं ना कहीं आप से कमियां रह जाती हैं और इसी वजह से मुक्ति पर नहीं हो पाती। यही परेशानी वाली बात है। अगर कोई भी व्यक्ति उनकी वंश परंपरा में अगर गुरु मंत्र का जाप करता है और उसका फल पूर्वजों को अर्पित करता है तो वह पूर्वज किसी भी प्रकार से लोक में हैं तो उनकी मुक्ति संभव होगी ही । यह कार्य श्राद्ध दिनों में करना चाहिए। उनके निमित्त नियमित पूजा करनी चाहिए और अगर उनके निमित्त गुरु मंत्र अथवा किस मंत्र का उच्चारण किया जाए और फिर उसका फल उन्हें अर्पित किया जाए तो निश्चित रूप से अगर वह, किसी छोटे लोक में हैं तो निश्चित रूप से स्वर्ग जा सकते हैं और उनको उत्तम लोकों की प्राप्ति हो जाएगी ।अगर आपको जानकारी पसंद आई है तो पोस्ट शेयर करें । धन्यवाद।