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रतिप्रिया यक्षिणी और बगलामुखी मठ कथा अंतिम भाग

उसने कुछ दूर जाकर के देखा की एक कन्या पीले वस्त्रों में खेल रही है और  उसके नजदीक एक सिंह बैठा हुआ है उसके पास जाने की कोशिश करने लगी और इसी में इन्होंने अपना बगलामुखी मंत्र पढ़ना शुरू किया कि उस कन्या की रक्षा हो सके क्योंकि सिंह उसका तुरंत ही विनाश कर देगा, इस वजह से रामदास बहुत ही ज्यादा परेशान था अब जो उसने अद्भुत दृश्य आगे देखा उसकी कल्पना से वह परे था, वो कन्या उस सिंह के पास जाकर के उसके कानों को उमेठने लगी कभी वह प्यार से उसके सिर पर हाथ मारती कभी उसकी पीठ पर हाथ मारती और रामदास इस अद्भुत दृश्य को देख कर के भौचक्का रह गया यह सब क्या हो रहा है उसे कुछ समझ में नहीं आया की किस तरह से कोई जंगली शेर किसी लड़की के साथ इतनी आसानी से खेल सकता है l वह भी 7-8 वर्ष की छोटी सी कन्या के साथ मे उसे जब कुछ समझ में नहीं आया तो उसने सोचा की उस कन्या के पास जाया जाए और उस कन्या के पास वो जैसे-जैसे जाने लगा कन्या उसे देखकर के मुस्कुराने लगी और अपनी छोटी-छोटी उंगलियों से  इशारा करके अपने पास बुलाने  का एक आग्रह करने लगी उसने अपनी तलवार निकाली सुरक्षा के लिए की कहीं सिंह उस पर ना हमला कर दे क्योंकि रामदास यह तो जानता था की शायद किसी वजह से सिंह उस कन्या को नहीं मार रहा है लेकिन हो सकता है मुझे मार दे इसलिए चुपचाप उसके पास जाने लगा, जब रामदास  उसके पास पहुंच गया तो सिंह उसी प्रकार से बैठा रहा किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उस शेर ने नहीं की, बड़े प्यार से उसके सिर के ऊपर हाथ फेरती हुई कन्या ने कहा – महाराज आपको शायद पता नहीं है जानवर भी प्यार के भूखे होते हैं लेकिन कुछ जानवर जानवर ही होते हैं  हर जानवर एक जैसे नहीं होते है इसलिए ये शेर प्यारा है और यह  मुझे  नुकसान नहीं पहुंचा रहा है और ऐसा भी नहीं है  दूसरे भी आपको  नुकसान नहीं पहुंचाएंगे आप बडी समस्या से घिरे हुए हैं आपको अपने राज्य की और  प्रजा की रक्षा करनी है मैं सिर्फ इतना बताती हूं की कोई भी जानवर हो चाहे सिंह ही क्यों ना हो, आग से हमेशा डरता है कभी भी अगर आप समस्या में पड़ जाए तो आग का प्रयोग कीजिएगा और साथ ही साथ इन सभी जानवरों को तेज आवाज से डर लगता है तो अगर आपको कभी किसी जानवर को घेरना हो तो अपने साथ बड़ी-बड़ी थालियां ले लीजिए और उन पर डंडे मारते हुए सभी लोग एक साथ एक समूह में एक तरफ चलेंगे तो कोई भी जानवर भयभीत होकर के उस दिशा से भागने लगेगा यह विधि मैंने आपको बता दी है अब आप अपनी आंखें बंद करिए और माता बगलामुखी की जिन मंत्रों का जाप कर रहे थे उसका एक बार फिर से जाप कीजिए और सब कुछ बदल जाएगा l उसकी बातों को बडे ही प्यारे ढंग से सुनने के बाद रामदास को बड़ा ही अचरज हुआ और सोचा की छोटी सी कन्या सिंह के बगल में बैठी हुई है आखिर ये  सब क्या है और यह किन बातों की ओर इशारा कर रही है फिर भी उसकी बात को मान करके उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली और माता बगलामुखी के मंत्र का उच्चारण करने लगे मंत्र के उच्चारण खत्म होते ही जैसे ही उन्होंने आंखें खोली तो उस जगह पर कुछ भी नहीं था न सिंह था ना ही वह कन्या थी, रामदास को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन मन ही मन में भाव आया शायद यह माता बगलामुखी का कोई रूप स्वरूप थी यह कन्या जो मुझे कुछ बता गई है, जिसे मुझे करना चाहिए और साथ ही साथ अपनी रतिप्रिया को वहां से मुक्त करा लेना चाहिए रामदास ने यह सोचा की हां अब मुझे उसकी कही बातों को मानना चाहिए,  तुरंत वह गांव की ओर प्रस्थान कर गया गांव में हड़कंप मचा हुआ था की 10-12 फुट का सिंह जो विशालकाय हाथी के समान दिखने में है वह रोज यहां आकर मनुष्यों की बलि ले रहा है, मनुष्यों को पकड़कर वह उन्हें खा जाता है कभी-कभी एक स्त्री दिखाई देती है जो रोती हुई सी प्रतीत होती है  अगर उसके नजदीक जाओ तो भी वह सिंह मार ही डालता है l तो इस प्रकार से पूरे गांव में हाहाकार मचा हुआ था अपने राजा को देखकर सभी खुश हुए और उन्होंने कहा आप हमारे लिए कोई मार्ग बताइए की हम क्या करें उन्होंने कहा रात्रि आने दो तब तक हम लोग तैयारी कर लेते हैं इस प्रकार से उन्होंने गांव के सभी लोगों को बुलाकर कहा की सभी व्यक्ति अपने अपने घरों से एक-एक थाली लेकर और साथ ही एक डंडा लेकर के आए  इस प्रकार कई लोगों ने अपने घर से एक  थाली और डंडा लेकर आ गए, रात्रि का समय हुआ तो उन्होंने कहा अब सभी लोग अपनी अपनी मशाले जला लें और मशाल को अपने शरीर से इस तरह से बांध लें ताकि ये जलती रहे और अपने बाएं हाथ में थाली और दाहिने हाथ में डंडा लेकर बजाते हुए एक मार्ग की ओर चलना है जैसे ही वह शेर आता हुआ आपको नजर आए यही आप सबको करना है, गांव के लोग एक जगह चौपाल के नीचे एकात्रित हो जाए और सारे लोग बैठकर के इस बात को सोचने लगे की जब भी वह सिंह आएगा उसके लिए हमें किस प्रकार से प्रबंधन करना है उन्होंने आगे कुछ दूर गांव से बाहर एक बकरी बांधी ताकि अगर सिंह आए तो उन्हें पता लग सके और थोडे ही समय बाद रात्रि हुई तो उन्हें आभास हो गया की शेर आ चुका है क्योंकि बकरी आवाज करने लगी वह भी बहुत ही जोर जोर से तो उन्हें तभी पता लग गया की सिंह आ चुका है, एक गोल दायरा बना करके लंबी चौड़ी एक रेखा तैयार की और सब व्यक्ति एक दूसरे के साथ साथ चलते हुए जोर-जोर से थालियां बजाते हुए मशाले ले करके उस ओर चलने लगे इस अप्रत्याशित किए गए कार्य के द्वारा राक्षसी जो सिंह के रुप में थी भौचक्की रह गई उसने सोचा की मैं इस कतार को तोड़ देती हूं और इस पर कूदकर हमला कर देती हूं, लेकिन तभी रामदास ने बगलामुखी के मंत्रों का उच्चारण करना शुरू कर दिया माता बगलामुखी के मंत्रों के उच्चारण की वजह से दुश्मन की बुद्धि नष्ट जाती है बिल्कुल ठीक वैसा ही उस महा राक्षसी के साथ हुआ उसने सोचा आज लगता है मेरा काम नहीं बनेगा मुझे इन से बचना चाहिए, क्योंकि यह 500-600 मनुष्य अगर मै इन पर हमला करती हूं तो कहीं मुझे यह जला ना दे इसलिए मुझे वापस अपनी गुफा की ओर दौड़ना चाहिए उसके पलायन को देखकर गांव वाले तीव्रता से उस पूरी पहाड़ी को चारों तरफ से घेर लेते हैं और धीरे-धीरे करके वह गुफा में चली जाती है गुफा में चले जाने के बाद में चारों तरफ से उस क्षेत्र को आग लगा दी जाती है कहीं पर भी कोई भी स्थान ऐसा नहीं था जहां आग ना लगी हुई हो यह सारी बुद्धि माता बगलामुखी के स्वरूप वाली उस कन्या के माध्यम से बताई गई थी और जलते-जलते राक्षसी अपनी शक्तियों से पता करती की वास्तविकता क्या है तो राक्षसी को पता लगता है की यह सब कुछ माता बगलामुखी का किया हुआ है और रामदास की साधना पूजा की वजह से ही ऐसा हुआ है राक्षसी मरते मरते अपने तंत्र शक्ति का प्रयोग करके एक चुंबक घड़ा फेकती है और चुंबक घड़ा उड़ता हुआ जाता है और रामदास के मुंह में प्रवेश कर जाता है उसी के साथ साथ वह सारी बातें सारी साधनाएं भूल जाता है उसे अब रतिप्रिया यक्षिणी की कोई भी साधना याद नहीं रहती है क्योंकि राक्षसी जानती थी की यह सब कुछ भूल जाएगा तो मेरा बदला पूरा हो जाएगा क्योंकि यह मुझे जलाकर मार देना चाहता है इस प्रकार अग्नि की चपेट में जलती हुई और राक्षसी वही ढेर हो जाती है और उस क्षेत्र में उसकी आत्मा सदैव के लिए भटकती हुई रह जाती है इधर अचानक से रामदास को रतिप्रिया की याद आने पर और सारे कार्यों को संपन्न हो जाने पर लोग सभी सुखी तो हो जाते हैं लेकिन वह मन में बहुत दुखी होता है रामदास  कहता है मैं किस प्रकार से रतिप्रिया को प्राप्त करूंगा वह यही सोचता रहता है क्योंकि राक्षसी ने  मतिभ्रम विद्या का प्रयोग किया था इस वजह से उसकी साधना को वह भूल गया था जो रतिप्रिया ने  उसे बताई थी इधर रतिप्रिया यक्ष लोक में बहुत ही ज्यादा परेशान और दुखी थी सब कुछ  देख करके भी वह कुछ नहीं कर पा रही थी लेकिन तभी उसे याद आता है की माता बगलामुखी की साधना उसने वहां पर की थी जिसका फल उसे भी प्राप्त हुआ था तो वह अपने सच्चे मन से एकाग्र भाव से माता बगलामुखी को याद करती हुई मंत्रों का जाप करते हुए कहती है कि अगर माता मेरी अपने पति के प्रति श्रद्धा और सच्चा विश्वास और सतित्व था तो मैं एक बार एक आयामी द्वार बना करके अपने पति के पास जाना चाहती हूं मेरी मदद कीजिए, माता द्वाराइस प्रकार सच्ची प्रार्थना सुनने पर एक त्रिआयामी द्वार वहां बन जाता है जो की यक्ष लोक से सीधा रामदास के महल में जाकर खुलता है रामदास के सामने यक्षिणी अत्यंत सुंदर रूप में प्रकट होकर के आती है और कहती है की मैं आ चुकी हूं लेकिन मैं कुछ ही पल यहां पर रह पाऊंगी आप मेरी साधना कीजिए और मुझे वापस फिर से प्राप्त कर लीजिए इस पर रामदास बहुत ही प्रसन्न होता है कहता है अवश्य ही मैं तुम्हारी साधना करूंगा और मैं तुम्हें वापस प्राप्त कर लूंगा और फिर दोनों एक दूसरे से गले मिलते हैं रतिप्रिया का शरीर छोटे-छोटे अंगों के रूप में टूटकर बिखर जाता है और फिर से वह यक्ष लोक को वापस चली जाती है इस प्रकार से बहुत दुखी होकर के रामदास उसकी साधना पूजा के विषय मे सोचने की कोशिश करता है लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आता है क्योंकि उसके ऊपर भयंकर मतिभ्रम का प्रयोग किया गया था कारण ऐसा ही मतिभ्रम उस राक्षसी के साथ भी हुआ था इसी उत्तर में उसने ऐसे ही शक्ति का प्रयोग कर दिया था अब उसे कुछ भी याद नहीं आता है वह लोगों से पूछता और पता करता है मंत्र साधना करता है बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों से जाकर मिलता है लेकिन कोई भी उस मंत्र की गोपनीयता को नहीं बता पाता है, अन्तोगत्वा उसे एक ऋषि मिलता है और कहता है मैं तुम्हें रतिप्रिया यक्षिणी की साधना  जो मेरे गुरु ने बताया था वो विद्या को प्रदान करूंगा जाओ उसे करो इस प्रकार से उस साधना को करने लगता है और साधना करने के बाद में जब साधना पूर्ण होती है और दशांश हवन हो जाता है तो एक सुंदर गौरांग नवल नवेली चंद्रबदनी जिसके हाथों की नाजुक कलाई हवा के झोंके की तरह से हिलती दिखती है और मुस्कुराते हुई  एक कन्या के रूप में रतिप्रिया यक्षिणी नाम की यक्षिणी वहां पर प्रकट होती है और उसे उसकी सुंदरता को देख कर के सभी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं लेकिन यह क्या रामदास को बहुत ही भयंकर झटका लगता है वो जिस रतिप्रिया यक्षिणी को पुकार रहा था यह वो नहीं थी  यह तो कोई और है वह उसे देख करके कहता है आप कौन हैं देवी तो वो कहती है मैं रतिप्रिया यक्षिणी हूं और ब्रह्मांड में यक्ष लोक से आई हूं तुमने मेरी पूजा प्रार्थना की थी इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं इस पर रामदास कहता है नहीं मुझे मेरी रतिप्रिया चाहिए तो वो कहती  है की वह किसी और ब्रह्मांड से आई होगी मैं तुम्हारे पास तुम्हारी साधना और जिन मंत्रों से मेरा उच्चारण किया गया मैं उससे आई हूं, इस पर रामदास दुखी होकर कहता है मैंने रतिप्रिया से सच्चा प्रेम किया था मैं उसके अतिरिक्त किसी और दूसरी रतिप्रिया को नहीं चाह सकता हूं आपसे प्रार्थना है देवी आप चली जाइए और मैं फिर से प्रयास करूंगा की वह वापस आ जाए इस पर यह रतिप्रिया यक्षिणी कहती है तुम धन्य हो तुम्हारी नियत और सोच अच्छी है बल्कि तुम अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण तरह समर्पित  रहे हो निश्चित रूप से तुमको कभी ना कभी रतिप्रिया जरूर मिलेगी लेकिन क्योंकि मैं भी रतिप्रिया हूं तो ऐसे उपासक को प्राप्त करने की तो मेरी भी इच्छा है लेकिन  तुम एक ही के प्रति समर्पित हो इसलिए मुझे यहां से जाना होगा, ऐसे ही प्रेमी और पति हर यक्षिणी चाहती हैं जो तुम्हारी तरह हो इस  प्रकार से वह रतिप्रिया वहां से गायब हो गई इधर रतिप्रिया रोती बिलखती रहती है और इधर रामदास भी रोता रहा इस प्रकार से यह कहानी यहां पर समाप्त हो जाती है ।

copywrite@dharamrahasya 22-12-2019

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