लालटेन वाली आत्मा और चमत्कारिक साधू महाराज
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम जो अनुभव लेने जा रहे हैं, पहले अनुभव में हम एक लालटेन वाली आत्मा के विषय में जानेंगे और दूसरे अनुभव ने हम एक ऐसे साधु के विषय में जानेंगे जो कि विशेष प्रकार के सिद्धियों से संबन्धित थे और उन्होंने उसका प्रदर्शन किया था। चलिए पढ़ते हैं इन दोनों पत्रों को और जानते हैं। इन अनुभवों के विषय में ॥
गुरु जी नमस्कार। मैं यूपी के अयोध्या का रहने वाला हूं। मैं आपको अनुभव बताना चाहता हूं क्योंकि आप मुझ पर भरोसा करोगे। अगर मैं किसी को भूत की कहानी बताता हूं तो लोग मुझ पर हंसते हैं और विश्वास नहीं करते हैं। यह बात मुझे जाननी है। आज तक मैंने किसी दूसरे को कहानी नहीं बताई। ना ही अपने दोस्त को ना किसी को नहीं बताया क्योंकि मैं किसी के ऊपर भरोसा नहीं कर सकता। इसलिए मैं आपको यह भेजा हूं क्योंकि मैं आपका धर्म रहस्य चैनल यूट्यूब पर देखता हूं। मुझे बहुत अच्छा लगता है मैं आपके चैनल को देखते हुए मुझे 1 साल हो गए हैं और मुझे जानकारी प्राप्त हुई है। यह सब अप्सरा यक्षिणी का बहुत अनुभव बताते हैं। इस यूट्यूब में मुझे काफी अच्छा लगता है। आप बहुत अच्छा कर रहे हैं और हमेशा सही बताते हो। इसलिए मैं आपको अनुभव भेज रहा हूं ताकि आप लोगों को बता सकें। इसलिए प्लीज मेरी कहानी को आप यूट्यूब में दिखाएं और मेरा ईमेल किसी को ना बताएं। यह झूठ नहीं है। यह सच्चाई है। मेरे दादाजी ने मुझे बताया था। मतलब दादाजी का अनुभव था। मेरा अनुभव नहीं है तो चलिए आगे बताता हूं। इस सन 1937 की बात है। मेरे दादाजी हाई स्कूल में थे। उस समय अंग्रेज का जमाना था और मेरे दादाजी! अंग्रेज सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। उस सरकारी स्कूल में अंग्रेज प्रिंसिपल होता था। बाकी सब भारतीय टीचर थे। उस समय हाई स्कूल में बोर्ड का पेपर आने वाला था। जब बोर्ड पेपर का नोटिस आ गया तो अंग्रेज प्रिंसिपल ने सभी भारतीय टीचरों को चेतावनी दिया था कि अगर कोई बच्चा बोर्ड में फेल हो जाता है तो टीचर को सस्पेंड कर दिया जाएगा। इसलिए टीचर सभी क्लास के स्टूडेंट्स का ध्यान रखते थे। टीचर कमजोर स्टूडेंट के ट्यूशन लेते थे। मतलब टीचर अपने घर में ट्यूशन करवाते थे तो मेरे दादाजी के क्लास में दो लड़कों को ट्यूशन में बुलाया गया, क्योंकि वह मैथ में कमजोर थे। मेरे दादाजी तो मैथ्स से ठीक है और कोई ट्यूशन नहीं लेते थे। पढ़ाई में ठीक है। दो लड़के मेरे गांव के थे। मेरे दादा जी के साथ पढ़ने जाते थे। दो लड़कों के नाम राम तेज और अमर बहादुर थे। वह सुबह 7:00 बजे घर से निकल जाते थे। स्कूल 9:00 बजे खुलता था। हमारे गांव के सरकारी स्कूल तक 7 किलोमीटर की दूरी को लोग पैदल जाते थे। पहले साइकिल नहीं थी ना कार जंगल के रास्ते से होकर कच्चे रास्ते से जाते थे। और? बैलगाड़ी इत्यादि से जाया करते थे। स्कूल की छुट्टी 4:00 बजे होती थी। फिर टीचर के घर जाते थे और 9:00 बजे रात को घर पहुंच जाते थे। एक दिन क्या हुआ? टीचर ने ट्यूशन का ज्यादा समय दिया तो दो लड़के काफी देर तक घर पहुंचने में उन्हें समय लग गया। मतलब रात के 10:00 या 11:00 बज गए थे। ट्यूशन खत्म होने के बाद दोनों लड़के घर जा रहे थे। बहुत अंधेरा था। जंगल के बीच का कच्चा रास्ता था। उसी पर से उन्हें जाना था। थोड़ी दूर पर एक लाइट मतलब उजाला दिख रहा था। दोनों लड़कों ने ध्यान नहीं दिया और आगे चलने लग गए। जब थोड़ा पास पहुंचने लगे, तभी रोशनी दिखने लगी। ऊपर से मतलब पेड़ से उजाला की रोशनी आ रही थी। दोनों लड़के समझ नहीं पा रहे थे कि रोशनी कहां से आ रही है। फिर जब ध्यान दिया और पास में पहुंचे तो पता चला कि सामने एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ है और उसी से रोशनी आ रही है। जब देखा कि पीपल के पेड़ के सबसे ऊंचे पर दो-तीन लालटेने जल रही थी। लालटेन पर रोशनी बार बार बदल रही थी। बस अब कभी ज्यादा और कभी कम हो जाती थी। तो दोनों में से एक लड़के का नाम जिसका नाम अमर बहादुर था। वह समझ गया कि यहां पर कोई खतरा है तो उसने अपने दोस्त रामतेज को बोला, रुक जाओ। यहां पर कोई खतरा है। रामतेज बोला, क्या हुआ अमर बहादुर देखो पीपल के पेड़ पर कोई बैठा है। लेकिन पीपल पर कुछ दिखाई नहीं दे रहा सिर्फ लालटेन दिख रही है। रामतेज बोला कि पेड़ पर कोई आदमी होगा तो रामबहादुर गुस्से में बोला कि मूरख यह पीपल का पेड़ है। पीपल के पेड़ पर भूत प्रेत का निवास होता है और यह बहुत बड़ा और ऊंचा पेड़ है। इस पेड़ पर कोई आदमी चल नहीं सकता और अगर जाएगा तो रात में क्यों बैठेगा। फिर दोनों को डर लगा। मन में हनुमान चालीसा पढ़ने लगे। अमर बहादुर ने बोला की आवाज मत करना। धीरे-धीरे यहां से चलना। वहीं पर भगवान शिव का मंदिर है। कम से कम आधा किलो मीटर के पास फिर दोनों लड़कों ने पीछे। नहीं मुड़ के धीरे-धीरे चलने लगे तभी पीपल के पेड़ से आवाज आई जैसे कि कोई आदमी बोल रहा हो। रुक जाओ रुक जाओ। मैं आ रहा हूं। मैं नीचे उतर रहा हूं। दोनों लड़के तेजी से भागे और भागते भागते उस मंदिर पर पहुंच गए। मंदिर में वहीं पर रुके रहे। दोनों लड़के जानते थे कि कोई भी भूत मंदिर में नहीं आ सकता। तब वह सुबह तक वहीं रहे। सुबह मंदिर में पुजारी आया तो उसको उन्होंने सारी बात बता दी। तब पुजारी हंसकर कहा, तुम सब तो यहां पर बच गए हो। यह जो पीपल का पेड़ है उस पर एक भूत हमेशा रहता है और वह लालटेन जला सकता है। लालटेन को कभी कम और कभी तेज करता है और रास्ते में आने वाले आदमियों को परेशान करता है। इतनी रात में कोई उस रास्ते से नहीं जाता। घर जाकर पूरे गांव वालों को उन्होंने बताया। उसमें दादाजी को भी बताया था और दादाजी ने मुझे बताया है। क्या यह बात में कोई सच्चाई है? 11 साल पहले अमर बहादुर से मिले थे। अब वह बुड्ढा हो चुका है। जब मैं उससे पूछा कि बोलो सच है तो उसने कहा, अब रेलवे में वह लोको पायलट है और अब रिटायर हो चुका है। बस यही कहानी है। पता चलता है कि जहां बड़ा पीपल पेड़ था। पुराना पेड़ था। उस जगह पर भूत प्रेत आत्मा निवास करती हैं और वही आत्माओं का घर होता है। धन्यवाद नमस्कार गुरु जी संदेश-निश्चित रूप से पुराने समय में ऐसे बहुत सारे अनुभव लोगों को होते थे जो वास्तविकता से पूरी तरह जुड़े हुए थे, लेकिन आज के युग में इन अनुभवों का होना बहुत कम हो गया है क्योंकि जिस प्रकार मनुष्य समूह में रहते हैं और अलग रहना पसंद करते हैं। दूसरे अन्य जीवों से, वैसे ही आत्माएं भी अलग अकेले रहना पसंद करती हैं। इसलिए अब भूत-प्रेतों का दिखना बहुत कम हो गया है और केवल अत्यंत सुनसान जगहों पर ही भूत प्रेत आत्मा है, रहती है। इसी प्रकार का। एक अनुभव चमत्कारी साधु का आया है तो चलिए इस अनुभव के विषय में भी जानते हैं।
गुरु जी नमस्कार यह पत्र केवल धर्म रहस्य चैनल के लिए है और किसी भी चैनल पर प्रकाशित ना हो। इसकी मैं जिम्मेदारी लेता हूं। गुरु जी आप मेरा आईडी और नाम गुप्त रखें। मैं उत्तर प्रदेश से हूं यह अनुभव मुझे मेरे पिताजी ने स्वयं बताया था। बताते हैं कि आज से लगभग 30 से 35 साल पहले हमारे गांव में एक महात्मा जी आए थे। उनसे मेरे पिताजी की बात हुई थी। वह साधु महाराज बता रहे थे कि उनकी शिक्षा-दीक्षा हरिद्वार में बाबाओं के मध्य हुई। वहां पर उन्होंने 12 वर्ष बिताए थे। 12 वर्ष के पश्चात वहां से धर्म के लिए। इधर-उधर घूमते रहे । घूमते इधर-उधर वन पहुंच गए थे तभी उन्होंने देखा कि दो और साधु लोग वहां पर खिचड़ी बना रहे हैं। फिर इन साधु महाराज ने उनसे कहा, आप यहाँ कैसे हो तो उन दो साधु महाराज ने कहा, हम यहां पर भ्रमण करने आए हैं तो उन्होंने कहा ठीक है। फिर इन साधु महाराज ने कहा, हम इस जंगल में अर्थात वन में घूमने के लिए आगे जाना चाहते हैं। उन दोनों साधु महाराज ने कहा, आप इस वन में जरा सावधानी से जाइएगा क्योंकि इस वन में अत्यंत भयानक जानवर शेर चीते इत्यादि रहते हैं। फिर इन साधु महाराज ने कहा ठीक है और इतना बोल कर साधु महाराज उस जंगल में अंदर की तरफ चल दिए। चलते चलते उन्हें उस जंगल में जानवर ही जानवर दिखाई पड़ रहे थे और अचरज! बात यह थी कि उन जानवरों के बीच एक बकरी भी इन्हें आगे मालूम पड़ी। इन साधु महाराज ने सोचा कि किसी चरवाहे की है। बकरी इस जंगल में रह गई है और इन्होंने सोचा कि मैं इस बकरी के पीछे पीछे चलता हूं और यह बकरी के पीछे पीछे चल दिए। काफी देर चलने के बाद उन्होंने देखा कि सामने बहुत बड़ी झाड़ी है। उस के आसपास काफी झाड़ियां मालूम पड़ रही थी। घर बकरी उन्हें झाड़ियों के पास जाते ही गायब हो गई। वहां झाड़ी के पास साधु महाराज को पहुंचते ही दिखता है कि वहां पर एक खिड़की मालूम पड़ी। उस खिड़की के पास पहुंचते ही इन साधु महाराज ने आवाज लगाई तो अंदर से आवाज आई गेट खुला है। आप अंदर आ जाइए और यह साधु महाराज अंदर पहुंच गए। अंदर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि एक बहुत ही प्राचीन साधु उस जगह तपस्या कर रहे थे। उनका धुना जल रहा था। साधु तपस्या कर रहे थे। उन्होंने कहा, आप यहां हमारे पास बैठ जाइए और संसार के हाल-चाल पूछे तब इन साधु महाराज ने कहा, सब कुछ ठीक है जब उन साधु महाराज ने अपना स्तर ऊपर किया तो साधु महाराज उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि उनकी आंखों के पलक जमीन से लग रहे थे। उन्होंने अपने हाथों से अपनी पलकों को ऊपर किया। फिर इन साधु महाराज ने कहा, आपको भूख भी लगी होगी। उन्होंने इन साधु महाराज से कहा कि आप जंगल से किसी भी पेड़ से एक लकड़ी तोड़कर ले कर आइए और यह लकड़ी लेकर महाराज के पास ले आए। उन साधु महाराज ने कहा, आप इस लकड़ी को खाइए और थोड़ी मुझे भी दे दीजिए। फिर यह साधु महाराज बताते हैं। क्या हुआ लकड़ी जैसे ही हमने खाई तो वह बहुत ही स्वादिष्ट लग रही थी जैसे कोई पकवान खा रहे हैं। उनमें से थोड़ी उन साधु महाराज को भी दी। साधु महाराज ने कहा कि अब आपको प्यास भी लग रही होगी। महाराज ने अपना कमंडल उठा कर दे दिया। इन साधु महाराज ने उस में से जल पिया और स्नान भी किया। कमंडल का जल भरा का भरा ही रहा। वह कमंडल खाली ही नहीं हो रहा था। फिर यह दोनों साधु महाराज बैठकर रात भर बातें कर रहे थे और सुबह होते ही इन साधु महाराज ने कहा कि महाराज इस जंगल में भ्रमण करना चाहते हैं तो उन साधु महाराज ने कहा, आप निश्चिंत होकर भ्रमण कीजिए क्योंकि इस जंगल में सब अपना ही परिवार रहता है। यह साधु महाराज उन से आज्ञा लेकर उस जंगल में भ्रमण के लिए निकल पड़े जहां-जहां वह उस जंगल में भ्रमण करते वहां उन्हें बाबा लोगों की धूनी जलती नजर आती और उनकी हड्डियों के ढेर नजर आते। जैसे ही यह महात्मा जी वहां पहुंचते तो उन्हीं में से उन हड्डियों में से महात्मा अपना शरीर धारण कर क्षण मात्र में इन से भेंट और वार्ता करते और उनसे पूछते हैं कि संसार के क्या हाल-चाल हैं तब वह बताते कि सब कुछ कुशल मंगल है। फिर वह साधु महाराज सब कुछ पूछते कि कुछ खाने की इच्छा हो तो आप बताइए। इन साधु महाराज ने कहा कि हमें फल खाने की इच्छा है तो उन्होंने इन साधु महाराज को सब एक ही जगह पर ले गए। जहां चारों तरफ फल ही फल के पेड़ लगे हुए थे। फिर वहां पर इन्होंने फल खाने के बाद कहा, महाराज अब वापस चलिए तब यह वापस महात्मा जी के साथ आ गए जहां से यह गए थे। इन्होंने बहुत से महात्मा जी के दर्शन भी किए जो तपस्या करते करते अपना शरीर नष्ट कर चुके थे। जब यह जिस भी साधु के पास जाते वही महाराज अपने शरीर को पुनः धारण कर उनसे भेंट वार्ता करते थे। ऐसा वह हमारे पापा जी को बताते थे और जब यह उन्हीं साधु महाराज के पास वापस लौट आए थे, जहां से जंगल का भ्रमण किए थे, तब उन्होंने कहा, अब आप कुछ और खाएंगे। तब इन साधु महाराज ने कहा कि हम दूध का आहार करेंगे तब उन्होंने इन्हें उसी कमंडल को दे दिया और कहा आप जितना चाहे उतना दूध इसमें से पी सकते हैं। तब इन्होंने दूध पिया और कमंडल वापस दे दिया। लेकिन यह साधु महाराज बताते हैं कि कमंडल भरा का भरा ही रहा। खाली ना हुआ और यह बात बताते हैं कि उन महाराज ने भी दूध का आहार किया था। यह बताते हैं कि उन्होंने हाथको आगे किया जैसे पानी पीते हैं। वैसे और दूध की धार थोड़ी ऊपर से उनके हाथ पर गिरने लगी। उन्होंने दुग्ध का आहार किया। तकरीबन 100 किलो के आसपास उन महाराज ने एक बार में दूध का आहार किया होगा। गुरु जी यही अनुभव साधु महाराज हमारे गांव में आज से लगभग 30 से 35 साल पहले घूमने आते थे। उन्होंने हमारे पापा को बताया था और उन्होंने यह सब चीजें अपनी आंखों से स्वयं देखी थी और उन महाराज के पास हमारे पापा बैठने जाते थे। उन्होंने यह घटना बताई थी जो यह घटना मुझे मेरे पिता ने बताई थी जो मैंने गुरु जी आपको बताइ है जो बिल्कुल प्रमाणिक और सत्य हैं। इसमें कोई भी झूठ नहीं है। गुरु जी आप इसे अपने चैनल पर प्रकाशित करने की कृपा करें। धन्यवाद। संदेश- |