वज्रयोगिनी मंदिर की विद्याधारिणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग 2
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । वज्रयोगिनी मंदिर की विद्या धारणी शक्तिशाली प्रियंवदा भाग एक आपने अभी जाना है । और उस कहानी में जहां तक बताया गया है कि किस प्रकार से एक विद्याधारणी यह जो विद्या धर शक्ति जो होती है इनको हम हिमालय में रहने वाले उप देवता के रूप में भी जानते हैं । उन्हीं में एक विद्याधर शक्ति के रूप में शंभू नाथ के यहां जन्म लेने वाली एक लड़की प्रियंवदा होने वाली थी । और उसकी पृष्ठ भूमि लिखी जा चुकी थी । जैसा कि आपने पहले भाग में जाना कि किस प्रकार से वज्र योगिनी देवी की साधना के कारण और उनकी कृपा के कारण शंभू नाथ को पुत्री के रूप में एक कन्या प्राप्त होने वाली थी । उसका एक भाग लिखा जा चुका था लेकिन उसका माध्यम कौन सी मां बनेगी इसकी चेतावनी वज्रयोगिनी ने पहले ही शंभूनाथ को दे दी थी । लेकिन वह उससे विपरीत जैसा कि शंभू नाथ ने सोचा था कि एक सोम्य स्त्री उसकी मां बनेगी लेकिन हुआ उसके विपरीत । एक राक्षसी उसकी मां के रूप में उसका स्थान बन पाया वह राक्षसी अधिकतर रूपांतरण की विद्या जानती थी । और चुकी विद्याधर शक्ति के रूप में प्रियंवदा का जन्म होने वाला था इसलिए उस राक्षसी ने अपनी योग माया के माध्यम से अपने मायाजाल को फैला कर के शंभू नाथ के साथ शारीरिक संबंध बनाएं । जिसकी वजह से वह गर्भवती हो गई शंभूनाथ भी इस बात को नहीं समझ पाए । हालांकि उनको वज्रयोगिनी ने पहले ही सावधान किया था । तो इस प्रकार से जंगल में उसने एक बच्ची को जन्म दिया चुकी राक्षसियो के गर्भ बहुत जल्दी बन जाते हैं । और बहुत ही जल्दी बच्चों की उत्पत्ति वह कर सकती हैं । इस कारण से केवल कुछ ही समय में ही उसका गर्भ इतना बड़ा हो गया कि वह उस बच्चे को उत्पन्न कर सकें । इधर जो पेड़ के नीचे एक स्त्री उसे मिली थी वह भी एक तांत्रिक स्त्री थी । और उसको पहले ही कहीं ना कहीं इस बात का आभास था कि उसका पति शंभूनाथ बन सकता है ।
तो इस प्रकार से वे शंभूनाथ को रोकने की कोशिश उसने की थी । लेकिन शंभू नाथ उसके पास ना जाकर के किसी अन्य स्त्री के पास गया और वह एक राक्षसी थी । जिसके साथ उसके शारीरिक संबंध बने और एक कहानी लिखी गई । प्रियंवदा के जन्म से ही प्रियंवदा विद्याधर थी । और विद्याधरनी शक्ति को उसको प्राप्ति पहले ही हो चुकी थी । उसके जन्म से पहले ही इसके साथ उसमें राक्षसी माया की शक्तियां भी मौजूद थी । इसी वजह से जब उस राक्षसी ने प्रियंवदा को जन्म दिया तो वह उसे पेड़ के नीचे छोड़ करके भाग गई । बच्चे का क्रंदन स्वर सुनकर के आसपास के लोग उस पर आकर्षित होने लगे तभी यह बात शंभू नाथ तक पहुंची । शंभू नाथ भागता हुआ जब उस पेड़ के पास पहुंचा तो उस कन्या को देख कर के और उसके तेज को देख कर के वह समझ गया कि यह कोई साधारण लड़की नहीं है । और क्योंकि सूअर का दांत वहां पर पड़ा हुआ था इस वजह से वह जान गया यह मेरी ही कन्या है । उसने उस लड़की का नाम प्रियंवदा रखा । अब उसे प्रियंवदा को एक मां मिल चुकी थी । क्योंकि शंभू नाथ ने अपनी गलती को सुधारा था क्योंकि वज्रयोगिनी ने कहा ही था कि तुम्हारी जिंदगी में दो स्त्रियों की प्राप्ति तुम्हें होगी । अब यह तुम्हारे चुनाव पर है कि तुम किसे चुनते हो राक्षसी तो अपनी कन्या को छोड़कर भाग गई थी । इसलिए शंभू नाथ ने अब इस अपनी कन्या को पाला पोषा बड़ा किया । और साथ ही साथ अपनी उस मानवीय स्त्री के साथ विवाह कर लिया जो उसे पेड़ के नीचे रोकने की कोशिश कर रही थी । मानवीय स्त्री ने उसे समझाया यद्यपि इसका हम पालन कर रहे हैं और यह मेरी सगी पुत्री नहीं है । इसके बावजूद भी मैं इसे पूरा प्रेम दूंगी हर प्रकार से इसे अच्छा बनाने की कोशिश करूंगी ।
क्योंकि यह अगर गलत दिशा की ओर मुड़ गई तो उसकी शक्ति के आगे कोई नहीं टिक पाएगा । प्रियंवदा बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली होने वाली थी क्योंकि वह वज्रयोगिनी के वरदान से पैदा हुई थी । वज्रयोगिनी पहले से ही जानती थी कि एक विद्याधर शक्ति मानव रूप में जन्म लेने वाली है । क्योंकि प्रियंवदा के अंदर राक्षसी खून भी था क्योंकि उसकी मां राक्षसी थी । इसलिए उसके पास माया और भी चीजें उसके पास उपलब्ध स्वता ही हो गई थी । और जो बात उन्होंने कही थी कि अगर यह कन्या सही गर्भ से जन्म नहीं लेगी तो निश्चित रूप से इसके अंदर एक महान दुर्गुण अवश्य होगा । अब वह महान दुर्गुण कौन था यह समय के साथ प्रकट हो जाने वाला था । सबसे चमत्कारिक बात यह हुई कि 7 दिन बाद ही कन्या 5 वर्ष की हो गई । ऐसी बढ़ोतरी देख कर के शंभू नाथ ने अपनी पत्नी से पूछा कि यह सब क्या हो रहा है तुम भी तंत्र मंत्र जानती हो इसके बारे में बताओ । हमारी यह पुत्री इतनी जल्दी 5 वर्ष की कैसे हो गई । इस पर उसकी पत्नी ने उसे समझाया और कहा कि यह राक्षसी के गर्भ से इसने जन्म लिया है तो राक्षस अपनी उम्र के हिसाब से बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं । उन्हें बिल्कुल भी समय नहीं लगता है वह अपनी इच्छा अनुसार अपनी उम्र को बना सकते हैं । और सदैव जवान रहने वाले होते हैं । इसलिए प्रियंवदा की इच्छा 5 वर्ष की हुई होगी और स्वयं को उसने 5 वर्ष का बनाने की सोची होगी । इसलिए वह 5 वर्ष की कन्या हो गई है यद्यपि उसके अंदर बुद्धि 5 वर्ष की ही है । लेकिन अगर वह बढ़ाएगी अपनी बुद्धि को तो जल्दी से कहीं भी उतनी उम्र में पहुंचा सकती है । प्रियंवदा अत्यंत ही रूपवती होती चली जा रही थी उसके रूप के चर्चे चारों ओर फैलने लगे । एक ऐसी कन्या जो अति श्वेत थी और उसके चेहरे की लालीमा को देख कर के कोई भी व्यक्ति उस पर पूरी तरह से आकर्षित हो जाता था । प्रियंवदा धीरे-धीरे बड़ी होने लगी प्रियंवदा अधिकतर अकेले रहना पसंद करती थी ।
कभी वृक्षों के नीचे तो कभी यूं ही तालाबों के किनारे टहलती रहती थी । तभी एक राक्षस की नजर प्रियंवदा के ऊपर पड़ी उसे देखकर वह विचलित सा हो गया । उसने कहा जब 18 वर्ष की होगी तो यह मेरी पत्नी बननी चाहिए इतनी अधिक सुंदर इस क्षेत्र में कोई भी कन्या नहीं है । क्यों ना इसका मैं अभी से अपहरण कर लूं और 18 वर्ष की होने पर मैं इससे विवाह करूंगा । राक्षस उसके सामने आ गया और उसने शंभू नाथ का रूप ले लिया और कहने लगा चलो मेरे साथ तुम्हें एक नई जगह दिखाता हूं । प्रियंवदा भोली थी इसलिए उसके साथ चली गई । कुछ दूर जाने के बाद उसने उसे कहा कि यह कंगन तुम पहन लो । यह कंगन मै तुम्हें हाथ में पहनाना चाहता हूं । यह सोने का बहुत ही चमत्कारी कंगन है । इसको जब तुम पहनोगी तो तुम बहुत ही प्रसन्न रहोगी । और इस प्रकार वह कंगन प्रियंवदा ने पहन लिया । वशीकरण का वह कंगन अद्भुत रूप से चमत्कारिक था वह वशीकरण विद्या का प्रतीक था । प्रियंवदा ने उस कंगन को पहना ही था कि अचानक से प्रियंवदा की उम्र 18 वर्ष की हो गई । क्योंकि उसके अंदर वशीकरण का प्रयोग किया गया था और यह बात पहले से ही शंभूनाथ और उसकी पत्नी जानते थे । कि वह अपनी इच्छा अनुसार अपनी उम्र को धारण कर सकती है । वशीकरण कंगन के कारण प्रियंवदा की उम्र 18 वर्ष इसलिए हो गई । क्योंकि प्रियंवदा के मन में वशीकरण की भावना पैदा हुई और उसके अंदर एक काम की वासना जागी । जो कि उसकी उम्र के हिसाब से नहीं थी । इसी कारण वह तुरंत ही उसके मन में एक भाव आया कि उसे 18 वर्ष का हो जाना चाहिए । इसी कारण से तुरंत ही प्रियंवदा 18 साल की हो गई । जैसे ही उस राक्षस में प्रियंवदा को देखा वह देखता ही रह गया । उसने सोचा यह कन्या तो अभी केवल 5 वर्ष की थी यह 18 वर्ष की कैसे हो गई है । लेकिन उसने फिर देखा कि वह उसके वशीकरण के प्रभाव में है । जब तक कि वह कंगन नहीं उतारती है तब तक वह उसके वशीकरण में रहने वाली है ।
उसे देख कर मैं बहुत ही ज्यादा खुश हो गया प्रियंवदा उस राक्षस के साथ में थी । राक्षस ने कहा कि मैं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं तुम्हें इस रूप में देख कर के । अब मैं तुम्हारे साथ विवाह करना चाहता हूं । और तुम्हे घूमाना चाहता हूं चलो मैं तुम्हें उड़ने की विद्या सिखाता हूं । पकड़ लो मेरा हाथ और मैं तुम्हें इस पूरे क्षेत्र का भ्रमण कराऊंगा । प्रियंवदा ने उसका हाथ पकड़ लिया और वह उड़ने लगी प्रियंवदा यह नहीं जानती थी यह उसका पिता नहीं है । बल्कि एक राक्षस है । राक्षस इतना अधिक प्रसन्नता था कि उसे इतनी खूबसूरत कन्या मिली है । यद्यपि वह बहुत ही ज्यादा बदसूरत और मानव भक्षी राक्षस था । लेकिन वह उसे लेकर इधर-उधर घूमने लगा आकाश में विचरण करने लगा । प्रियंवदा आकाश में उड़ते हुए अपने आपको बहुत ही ज्यादा प्रसन्न समझ रही थी । वशीकरण कंगन की वजह से वह पूरी तरह से उसकी बातों में आ जाती थी । और वह जो भी कहता उसे वह मान लेती । राक्षस ने कुछ मनुष्य को नीचे खेलते हुए देखा जो अपने विभिन्न प्रकार के खेलों में व्यस्त रहे होंगे । उनको देख कर के उस राक्षस को भूख लग आई । राक्षस प्रियंवदा को नीचे उतारते हुए आया और कहने लगा मुझे भूख लग रही है । मैं भोजन प्राप्त करने के लिए इस क्षेत्र में उतरा हूं । तुम्हें भूख नहीं लगी है । वशीकरण की वजह से प्रियंवदा हां पिताजी मुझे भी भूख लगी हुई है मुझे भोजन चाहिए । क्योंकि वह उसके पूरी तरह वशीकरण मे थी राक्षस इस बात को अच्छी तरह से समझ रहा था । इस बात को जानता था कि मैं जो भी कहूंगा उसके मन में वही भावना आने वाली है । राक्षस चुपके से गया खेलते हुए एक व्यक्ति कि एक वस्त्र को खींचकर बाहर लेकर आ गया । उसका वस्त्र खींचने की वजह से वह झाड़ियों की तरफ मुड़ा वह व्यक्ति देखने गया कि आखिर मेरा वस्त्र कौन ले जा रहा है । वह व्यक्ति पीछा करने लगा राक्षस यही चाहता था कि वह अपने समूह से अलग हो जाए । क्योंकि वह जैसे ही समूह से अलग होगा उसे वह पकड़ लेगा ।
कुछ दूर जाने के बाद वह व्यक्ति उसके पीछे पीछे चलता गया और फिर वह देख कर के चिल्लाने लगे । और कहने लगा कि तू मेरा वस्त्र लेकर क्यों भागा जा रहा है । इस पर राक्षस ने हंसते हुए पेड़ के पास जाकर के पीछे उसके खड़ा हो गया और उसका वस्त्र दिखाकर उसे हिलाने लगा । उसके वस्त्र को हिलता हुआ देख कर के वह व्यक्ति तुरंत उसके पीछे तुरंत भागता हुआ गया । और उस पर पर जाकर के उसने उसका वस्त्र जो उसने हाथ में पकड़ रखा था उसे छीना और बहुत ही जोर से गुस्से से इससे पहले कि वह कुछ बोलता राक्षस पेड़ के पीछे से निकल कर आ गया । और अत्यंत ही भयानक रूप में उसके सामने प्रकट हो गया उसने तुरंत ही उस मानव को पकड़ लिया और उसकी गर्दन पर अपने दांत गड़ा दिए । और उसकी गर्दन से उसे खा गया । आधा शरीर उसका खाने के बाद उसे तभी होश आया की प्रियंवदा भी भूखी होगी । क्यों ना मैं प्रियंवदा को भी यह भोजन अर्पित करूं वह प्रियंवदा के पास गया । और उसे कहने लगा कि सुनो । मैं तुम्हारे लिए भोजन लेकर आया हूं यह मीठे फलों को खाओ इस आम का रस चूसो । प्रियंवदा को वह मनुष्य का शरीर आम की तरह से नजर आ रहा था । और उसे क्योंकि वह वशीकरण के प्रभाव में थी इस प्रकार से उसने उस मनुष्य के शरीर को चूसना शुरू कर दिया । अर्थात उसका रक्त पीने लगी । जबकि वह यह समझ रही थी कि वह आम को खा रही है । आम का रस चूस रही है । प्रियंवदा मानव भक्षी हो गई थी । यह कार्य राक्षस ने कर दिया था ।
तभी वह राक्षस बोला प्रियंवदा तुम बड़ी हो चुकी हो । अब तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए । फिर प्रियंवदा ने कहा मुझको अच्छा पुरुष कहां मिलेगा । तब वह व्यक्ति ने कहा अवश्य मैं यहां से कुछ ही दूर पर जाऊंगा । और फिर उसके बाद मै तुम्हारे लिए एक अच्छा सा लड़का ढूंढ कर के ले आऊंगा । उस लड़के से तुम विवाह कर लेना मैं तुम्हारे लिए उस विशेष लड़के का प्रयोजन लेकर आऊंगा । लेकिन पता है ना कि पिता से बिछड़ना पड़ता है । अगर तुम्हें विवाह करना होगा तो मुझसे बिछड़ ना होगा । इसलिए जब मैं जाऊंगा और उधर से जो भी पुरुष तुम्हारे सामने आए तुम उसी से विवाह कर लेना । और मुझे भूल जाना । वशीकरण के प्रभाव के कारण प्रियंवदा ने उसकी बात को सुना और समझा और मान भी लिया । राक्षस थोड़ी दूर गया और अपना रूप बदलकर के उधर से इस तरफ आने लगा । जैसे ही वह आया उसने सुंदर पुरुष का रूप धर लिया था । प्रियंवदा उसको देखकर मोहित हो गई । क्योंकि वशीकरण कंगन के प्रभाव मे थी । प्रियंवदा ने कहा क्या तुम वही हो जिसका चुनाव मेरे पिता ने मेरे लिए किया है । तो वह मुस्कुराते हुए बोला मैं वही हूं । चलो हम दोनों को विवाह कर लेना चाहिए । इस प्रकार से राक्षस ने उसके गले में एक माला पहना दी । प्रियंवदा ने भी एक माला स्वयं उत्पन्न की और उसके गले में पहना दी । क्योंकि प्रियंवदा के अंदर कुछ कुछ शक्तियां जागृत होने लगी थी । इच्छा अनुसार दोनों ने एक दूसरे से विवाह कर लिया । इसके बाद राक्षस के अंदर कामुक भूख बहुत जागृत हो गई । और उसने कहा कि हमें अवश्य ही एक पुत्र की प्राप्ति करनी चाहिए । इसके लिए मैंने एक कुटिया बना ली है चलो हम वहां चलते हैं । और जैसे ही वह अंदर गए उन्होंने एक अंदर विशालकाय सूअर को देखा । वह सूअर तेजी से प्रियंवदा की ओर दौड़ा । राक्षस ने उस सूअर के दांत पकड़ लिए । आगे क्या हुआ यह जानेंगे हम अगले भाग में ।