श्री शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम भगवान शिव की साधना से संबंधित एक विशेष स्त्रोत को लेंगे यह एक ऐसा। स्त्रोत है जिसके माध्यम से हम भगवान शिव को उनके एक अवतार के रूप में पा सकते हैं। उनकी साधना और उपासना से विभिन्न प्रकार के कार्य सफल किए जा सकते हैं। इसके अलावा भगवान शिव की विशेष कृपा उस साधक पर हो जाती है और इतना ही नहीं अगर पति और पत्नी। दोनों मिलकर के इस साधना को करते हैं तो इसमें संदेह नहीं कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। इसे हम भगवान शिव के श्री शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र के नाम से जानते हैं। इसके संबंध में जो बताया गया है और यह स्त्रोत कैसा है। आइए चलिए शुरू करते हैं। भगवान शिव है। इनके असंख्य अवतारों में सातवें अवतार ग्रह पति अवतार का बहुत महत्व है। इन्हें अग्नि अवतार भी कहा जाता है। यह अवतार हमें संदेश देता है कि हम जो भी कार्य करें उसके केंद्र में भगवान को रखें। मतलब यह है कि यदि हम सिर्फ भोजन प्राप्ति के लिए भी कोई कार्य कर रहे हैं तो उसका माध्यम पवित्र तथा धर्म अनुसार होना चाहिए। इस कार्य में किसी का अहित नहीं होना चाहिए। तभी वह हमारा कार्य सफल होता है। पुराणों के अनुसार हमारे शरीर में स्थित जठराग्नि। भूख जिसे कहते हैं कि भगवान शिव का ग्रह पति अवतार है। भूख लगने पर हम जो अन्न भोजन ग्रहण करते हैं, उसी से हमारे शरीर का पोषण होता है तथा हमारे शरीर में स्थित सूक्ष्म प्राणों को संतुष्टि प्राप्त होती है। यही इस अवतार का मूल संदेश है कि हम जठराग्नि को शांत करने के लिए जो भी कार्य करें वह धर्म के अनुसार को। इनके? प्रकट्य की कथा बहुत रोचक और शिक्षाप्रद है। प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नगर में विश्वानर नाम के एक शिव भक्त मुनि रहते थे। 1 दिन उनकी पत्नी शुचिष्मति ने उनसे महेश्वर सदस्य पुत्र की कामना की। अर्थात वह चाहते थे कि? माता! अपने पुत्र को वैसा ही प्राप्त करना चाहती थी जैसे भगवान शिव है। मुनि अपनी पत्नी को आश्वासन देकर शिवजी की आराधना करने के लिए काशी की ओर चल पड़े। वहां पहुंच कर उन्होंने वीरेश लिंग की त्रिकाल अर्चना करते हुए घोर तपस्या की 1 वर्ष के बाद उन्हें शिवलिंग के मध्य एक 8 वर्षीय विभूति विभूषित बालक दिखाई दिया। उसका स्वरूप शिवजी के ही समान था। मुनिवर ने उन्हें परमेश्वर शिव जानकर अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र द्वारा उनकी स्तुति की बाल रूपी शिवजी ने कहा कि हे मुनि श्रेष्ठ मैं तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूं। अतः तुम वर मांगो विश्वानर मुनि ने कहा कि आप तो समस्त अंतर्यामी है इसलिए अपनी इच्छा के अनुसार वर प्रदान करें। शिव जी ने कहा कि मैं तुम दोनों पति-पत्नी की अभिलाषा के अनुरूप आपके पुत्र के रूप में प्रकट होऊगा। इसी वरदान के परिणाम स्वरूप शिवजी शुचिष्मति के गर्भ से पुत्र रूप में अवतरित हुए। उस समय उनका नाम ग्रह पति रखा गया। कहते हैं पितामह ब्रह्मा ने ही उस बालक का नाम ग्रहपति रखा था। एक बार ग्रहपति का दर्शन करने के लिए नारद जी आए। उन्होंने ग्रहपति को देखकर बताया कि यह बालक सर्वगुण संपन्न है। किन्तु 12 वर्ष की आयु में इसे बिजली अथवा अग्नि द्वारा भय उत्पन्न होगा। इसे सुनकर विश्वानर मुनि रोने लगे। उस समय गृह पति ने अपने माता पिता को सांत्वना देते हुए कहा कि मैं भगवान मृत्युंजय की आराधना करके महाकाल को भी जीत लूंगा। अतः आप लोग निश्चिंत रहें। इसके बाद गृह पति काशी गए और भगवान विश्वनाथ का दर्शन किया। उसके बाद शुभ मुहूर्त में शिवलिंग की स्थापना करके उनकी आराधना करने लगे। कुछ दिनों बाद देवराज इंद्र प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा। ग्रहपति ने उन्हें दुत्कार ते हुए कहा कि तुम दुराचारी हो। मैं तुमसे याचना नहीं करूंगा। मेरे वर दायक केवल भगवान शिव जी ही है। इसे सुनकर इंद्र बहुत क्रोधित हो गए। उसने वज्र से प्रहार करना चाहा उसी समय शिव जी प्रकट हो गए। उन्होंने बताया कि इंद्र रूप में प्रकट होकर मैं ही तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुम उस परीक्षा में सफल हो गए हो। अब तुम्हारे ऊपर यमराज का भी प्रभाव नहीं पड़ेगा। तुम्हारे द्वारा स्थापित शिवलिंग अग्निश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। इनका दर्शन करने से मनुष्य में बिजली और अग्नि से भयभीत एवं पीड़ित नहीं होगा। यहां पर शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र का वर्णन किया जा रहा है जिसके जप करने से मनुष्य संतान की प्राप्ति कर सकता है। ऋषि विश्वानर ने स्वयं 12 महीने तक फलाहार, जल आहार और वायु के आधार पर। शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र के द्वारा पुत्र रत्न की प्राप्ति की थी। अतः संतान के इच्छुक मनुष्य को विधिवत यम नियमों का पालन करते हुए 8 श्लोकों वाले इस स्त्रोत के नित्य 108 पाठ 1 वर्ष तक करनी चाहिए। माता-पिता दोनों संयुक्त होकर साधना करें तो शीघ्र कार्य सिद्ध होता है। अब इस स्त्रोत को पढ़कर इसका महिमामंडन करते हैं। श्री शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र एकं ब्रह्मैवाद्वितीयं समस्तं
सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किञ्चित्।
एको रुद्रो न द्वितीयोsवतस्थे
तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशम् ॥१॥
एकः कर्ता त्वं हि सर्वस्य शम्भो
नाना रूपेष्वेकरूपोsस्यरूपः ।
यद्वत्प्रत्यस्वर्क एकोsप्यनेकस्
तस्मान्नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये ॥२॥
रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रूप्यं
नीरः पूरस्तन्मृगाख्ये मरीचौ ।
यद्वत्तद्वत् विश्वगेष प्रपञ्चौ,
यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम् ॥३॥
तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्नौ
तापो भानौ शीत भानौ प्रसादः ।
पुष्पे गन्धो दुग्धमध्ये च सर्पिः
यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ॥४॥
शब्दं गृहणास्यश्रवास्त्वं हि जिघ्रेः
घ्राणस्त्वं व्यंघ्रिः आयासि दूरात् ।
व्यक्षः पश्येस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्वः
कस्त्वां सम्यग् वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये ॥५॥
नो वेदस्त्वां ईश साक्षाद्धि वेद
नो वा विष्णुर्नो विधाताखिलस्य ।
नो योगीन्द्रा नेन्द्र मुख्याश्च देवा
भक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये ॥६॥
नो ते गोत्रं नेश जन्मापि नाख्या
नो वा रूपं नैव शीलं न तेजः ।
इत्थं भूतोsपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्याः
सर्वान् कामान् पूरयेस्तद् भजे त्वाम्॥७॥
त्वत्तः सर्वं त्वं हि सर्वं स्मरारे
त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोsतिशान्तः ।
त्वं वै वृद्धः त्वं युवा त्वं च बालः
तत्किं यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोsस्मि ॥८॥
इस प्रकार यह श्री शिव अभिलाषाष्टक स्त्रोत्र संपन्न होता है। इसके पाठ से ग्रह पति जैसे पुत्र की प्राप्ति की जा सकती है और भगवान शिव को प्रसन्न भी किया जा सकता है। तो इसकी |
|