साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 53
१. गुरु मंत्र और तामसिक शक्ति
उत्तर :- आपका प्रश्न है की जब आप गुरु मंत्र का जाप करते है तो कई शक्तिया आपके साथ जुड़ जाती है | तो जब आप किसी के द्वारा प्राप्त गुरु मंत्र का जाप करते है तो उस मंत्र की जो मूल इष्ट होती है, जिस शक्ति का वो मंत्र है वो शक्ति सबसे पहले हमारे साथ जुड़ती है | उस शक्ति के जुड़ने में भी अगर उसका कई भाग किया जाए तो सबसे पहले जो शक्ति होती है वो सबसे पहले जुड़ती है फिर उनसे बढ़ी शक्तिया जुड़ती चली जाती है | उदहारण के लिए जैसे आपने भगवान शिव की साधना भूतेश्वर के रूप में सम्पन करे तो सबसे बड़े भूतेश्वर तो वही है, लेकिन हम इसी शक्ति के कई खण्ड करे तो भूत से ही वो शुरू होगी, यानि शमशान में वास करने वाले भूत प्रेत यही शक्ति सबसे पहले आपसे जुड़ेंगी | इसी तरह माता की साधना करते है तो पहले योगिनी शक्ति आपसे जुड़ेगी |
२. गुरु मंत्र से अगर हम मोक्ष प्राप्त कर लेते है, तो जो हमने अन्य साधना सम्पन्न की उनका क्या होगा ?
उत्तर :- सीधी सी बात है जो जिससे जुड़ता है वैसे ही हो जाता है | एक व्यक्ति थे उन्होंने कर्णपिशाचिनी की साधना की थी और काफी समय तक उसके नियंत्रण में रहे, फिर बाद में उन्होंने देवी माँ काली की उपासना करना प्रारंभ कर दिया | तब भी वह शक्ति उनसे जुड़ी रही और धीरे धीरे करके उसका रूप स्वरुप परिवर्तित हो गया उस पिशाचिनी का स्वरुप ऐसा होगा था उसके ऊपर एक मुकुट आ गया था, पहले वो भिखरे हुए बालो वाली थी और अब वो स्वाभाव से भी शांत रहती थी | तो कहने का अर्थ है आपके साथ कोई भी शक्ति जुड़ी हुई हो चाहे वो बुरी से बुरी है, ख़राब से ख़राब है लेकिन आप गुरु मंत्र के माध्यम से मोक्ष के तरफ बढ़ते है तो वो भी उसी ओर बढ़ने लगती है| क्युकी वो भी उसी नाँव पर सवार है जिस पर आप सवार हो |
३. साधना के बाद जो जल पात्र में जल होता है क्या उसे स्वयं ग्रहण करना होता है ?
उत्तर :- साधना द्वाराण जो जल पात्र रखा जाता है वो विषेशकर न्यास क्रियाओ के लिए होता है, आप उस जल को विसर्जित कर सकते है और कर देना चाहिए | उस जल को आप तुलसी के पौधे पर अर्पित कर सकते है, सूर्य को अर्पित कर सकते है या किसी शिवालय में प्रवाहित कर देना चाहिए उसको स्वयं ग्रहण नहीं करना चाहिए |
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