साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 117
१. जीवन का उद्देश्य क्या है ? उत्तर:- इस प्रश्न के उत्तर को बहुत गहनता से समझने की आवश्यकता है की जीवन की पूर्णता तब ही संभव हो सकती है की जब हमें पता हो की आखिर हमारा लक्ष क्या है और कहाँ है और उस तक पहुंचने का रास्ता क्या है| लेकिन जब यही नहीं पता की हमें किस पथ पर गतिशील होना है तो जीवन के अंतिम पड़ाव तक भी आप अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंच सकते और इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति भटका हुआ है क्युकी उसे यह ज्ञान ही नहीं है की आखिर हमें जाना कहाँ है हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है शास्त्रो में जीवन के उद्देश्य को लेकर कहाँ है की जीवन के चार पुरुषार्थ है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जो इन को अपने जीवन में प्राप्त कर लेता है उसका जीवन पूर्णता की और अग्रसर हो जाता है| धर्म से तात्पर्य अगर आप यह सोचते है की हम केवल धर्मात्मा बने रहे और भगवे वस्त्र धारण करके हिमालय के किसी कंदरा में जा कर बैठ जाए जहाँ हम केवल अपना ही स्वार्थ सिद्ध कर सके तो फिर ऐसे जीवन का कोई मूल या महत्त्व भी नहीं है | धर्म से तात्पर्य यह की हम धर्म पूर्वक अपने जीवन को व्यतीत करें और साथ ही साथ समाज में रहते हुए सबका मार्गदर्शन कर सके, उनका पथ प्रदर्शित कर सके और सबसे महत्वपूर्ण यह है मै और यह मेरा जीवन किसी के कार्य आ सके, हम किसी की सहायता कर सके, हम किसी के आँसू पोछ सके उसे प्रसन्नता दे सके और अगर जीवन में यह है तब धर्म पुरुषार्थ की सार्थकता है | दूसरा ‘अर्थ’ है और इसका तात्पर्य जीवन के अंतिम क्षण तक केवल धन एकत्रित करना ही नहीं है और धन की दृष्टि से महत्पूर्ण व्यक्ति बने रहना जीवन की पूर्णता नहीं है | अगर आप केवल धनवान ही है और जीवन के बाकी सभी स्थितियों में अनाड़ी है तो यह अर्थ पुरुषार्थ की सर्थिकता नहीं है | मै ऐसा भी नहीं कह रहा की जीवन में धन अर्जित ही नहीं करे| जीवन में धन अर्जित करना आवश्यक है महत्वपूर्ण है, हमारे सनातन इतिहास में कही भी दरिद्रता को स्थान नहीं दिया है हमारे पूर्वजो ने लक्ष्मी की स्तुति की है, उनका स्तवन किया है ऐसा कोई ऋषि नहीं हुआ जिसने दरिद्रता को जीवन में स्थान दिया हो सब अर्थ सम्पन थे लेकिन वो केवल धनवान ही नहीं थे इस बात को समझने की आवश्यकता है | तीसरा पुरुषार्थ “काम” है जिसके माध्यम से परिवार की सृष्टि होती है गृहस्त जीवन का प्रारंभ होता है और यह हमारा स्वभाग्य है की हम ग्रहस्त है लेकिन केवल गृहस्त ही बने रह जाए यह हमारा दुर्भाग्य है | हम गृहस्त में रहते हुए अगर उस ज्ञान को प्राप्त कर पाने में सफल रह सके और शिष्य बन पाए तो गृहस्त जीवन का मूल्य है उसकी सर्थिकता है और ज्ञान उसे कहते है जो हमें मुक्त करे, जो स्वयं को जानने में सहयोग दे सके और यह ज्ञान गृहस्त में रहते हुए भी प्राप्त की जा सकती है | लेकिन केवल हम चौबीसो घंटे भौतिक पदार्थ में लिप्त रहे तो तब यह सही नहीं है, हम गृहस्त रहते हुए भी अगर निर्लिप्त रह सके तो इस पुरुषार्थ का महत्त्व है सर्थिकता है और अगर हम उन ऋषियों के जीवन को देखे जिनको हमने विश्वामित्र कहा है वसिष्ठ कहा अत्रि कहाँ है तो हमें यह पता चलता है प्रत्येक ऋषि अपने आप में गृहस्त थे उनकी भी पत्नी थी, पुत्र थे और आश्रम थे और उन्होंने गृहस्त में रहते हुए सबका मार्ग दर्शन किया है उनका पथ प्रदर्शित किया है| लेकिन वो गृहस्त होते हुए भी निर्लिप्त थे किसी के प्रति मोह नहीं था | और अंतिम पुरुषार्थ “मोक्ष” है | ब्रह्माण्ड में स्थित सभी व्यक्तियों का सभी सन्यासियों का और सभी योगियों का यही अंतिम लक्ष्य है की हम उस अनंत ब्रम्हांड में अपने आप को लीन कर सके और उस असीम आनंद को प्राप्त कर सके और उस ब्रह्म को प्राप्त हो सके और ब्रह्ममैं बन सके जहां हम ब्रह्मानंद की अनुभूति कर सके और यह स्थिति प्राप्त कर जाए तो जीवन की पूर्णता है और इन सभी बिंदुओं को जीवन में जो प्राप्त कर लेता है उसका उद्देश्य स्वतः पूर्ण हो जाता है| क्युकी जीवन का केवल यही उद्देश्य नहीं है की हम दो चार संतान पैदा करे या जीवन भर धन अर्जित करे आवश्यकता इस बात की है की हम भौतिकता में भी सफलता प्राप्त करते हुए आध्यात्मिकता को प्राप्त कर सके और इन दोनों का सामंजस्य कर सके तो जीवन की पूर्णता है, जीवन का उद्देश्य है | २. मोक्ष का तात्पर्य क्या है ? उत्तर:- मोक्ष का तात्पर्य जो हमें मुक्त करे सभी प्रकार के बंधनो से और हम अपने आप को उस ब्रह्म में उस सच्चिदानंद शक्ति में लीन कर सके और उस स्थिति को ही प्राप्त हो जाए यह इसका मूल चिंतन है | जहा केवल असीम आनंद की अनुभूति है, सुख की अनुभूति नहीं क्युकी सुख तो बाहर से प्राप्त होता है | हम सुखी है क्युकी हमने अपना खुद का घर बनवाया है, हम सुखी है क्युकी हम आज अपने कार्य में सफल रहे, हम सुखी है क्युकी हमने अपने व्यापर में वृद्धि की है लेकिन सुख केवल बाहरी वृत्ति है लेकिन आनंद तो स्वतः अंदर से प्रस्फुटित चीज़ है, जहा किसी प्रकार का दुःख व्याप्त नहीं होता | सुख आ सकता है और आ सकता है तो जा भी सकता है लेकिन आनंद तो स्वतः अंदर से निकली हुई एक वृत्ति है जो कभी समाप्त नहीं होती और शास्त्रों में इस आनंद को स्पष्ट करते हुए कहा है की “ब्रह्मनंदम परम सुखदं केवलं ज्ञान मूर्ति ” परम सुख क्या है? ब्रह्मानंद है | और यह ब्रह्मानंद केवल ज्ञान के माध्यम से ही प्राप्त होता है और इसी आनंद को ब्रह्म की स्थिति भी कहा गया है जहाँ किसी प्रकार द्वंद नहीं है और मोक्ष का भी तात्पर्य यही की हम अपने जीवन में ही अपने प्रयत्नों से उस सच्चिदानंद में लीन हो सके और ब्रह्मानंद प्राप्त कर सके | ३. जन्म और मरण के बन्धन से कैसे मुक्त हो सकते है ? उत्तर:- जब हम अपने अहम् को समाप्त कर लेते है और स्वयं को जान लेते है या किसी विशेष साधना द्वारा हम अपने स्थिति को ऊंचे उठा लेते है, जहा हमें यह ज्ञान हो जाता है की वास्तविकता क्या है तो इस स्थिति में हम इस चक्र से मुक्त हो जाते है| |
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साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 117
Dharam Rahasya
धर्म रहस्य -छुपे रहस्यों को उजागर करता है लेकिन इन्हें विज्ञान की कसौटी पर कसना भी जरूरी है हमारा देश विविध धर्मो की जन्म और कर्म स्थली है वैबसाइट का प्रयास होगा रहस्यों का उद्घाटन करना और उसमे सत्य के अंश को प्रगट करना l इसमें हम तंत्र ,विज्ञान, खोजें,मानव की क्षमता,गोपनीय शक्तियों इत्यादि का पता लगायेंगे l मै स्वयं भी प्राचीन इतिहास विषय में PH.D (J.R.F रिसर्च स्कॉलर) हूँ इसलिए प्राचीन रहस्यों का उद्घाटन करना मेरी हॉबी भी है l आप लोग भी अपने अनुभव जो दूसरी दुनिया से सम्बन्ध दिखाते हो भेजें और यहाँ पर साझा करें अपने अनुभवों को प्रकाशित करवाने के लिए धर्म रहस्य को संबोधित और कहीं भी अन्य इसे प्रकाशित नही करवाया गया है date के साथ अवश्य लिखकर ईमेल - [email protected] पर भेजे आशा है ये पोस्ट आपको पसंद आयेंगे l पसंद आने पर ,शेयर और सब्सक्राइब जरूर करें l धन्यवाद