साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 144
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज लेंगे। दर्शकों के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को चलिए शुरू करते हैं। आज के साधकों के प्रश्न और उत्तर श्रृंखला का 144 वां भाग तो कुछ प्रश्न पूछे गए हैं। मैं उन्हीं प्रश्नों को आपको एक बार पढ़ कर बता देता हूं, जैसे कि आप थंबनेल के माध्यम से जान रहे हैं। प्रश्न पूछा गया है कि क्या पशु बलि से माता काली प्रसन्न होती हैं। गुरु जी क्या ब्रह्मा विष्णु महेश हर ब्रह्मांड में अलग-अलग होते हैं? मूल शक्ति कौन है अजपा गायत्री मंत्र से क्या उन? शक्ति में मिल सकते हैं। भक्ति से किसी स्वार्थ के बिना किसी देवी और देवता की उपासना करते हैं तो क्या उसमें कोई दोष का प्रभाव पड़ता है? अप्सरा यक्षिणी योगिनी की पूजा करके सिद्ध कर सकते हैं। बिना सिद्धि साधना किए अप्सरा यक्षिणी योगिनी अगर संभोग करें तो ऊर्जा नष्ट हो जाती है। लेकिन भैरवी अगर वही कार्य करें तो ऊर्जा बढ़ती क्यों है?
तो यह आज के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न है तो चलिए शुरू करते हैं आज के दिन महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर। तो सबसे पहला प्रश्न पूछा गया है कि क्या पशु बलि से माता काली प्रसन्न होती हैं? क्योंकि अघोरी पशु बलि देते हैं। गुरु जी क्या यह सही है या गलत जबकि पूरा ब्रह्मांड माता का है तो वह पशु भी उनका बच्चा ही हुआ तो फिर माता अपने बच्चे की बलि क्यों लेती हैं?
तो देखिए इसका स्पष्ट उत्तर मैं आपको बताता हूं। माता काली स्वरूप जब माँ ने धारण किया तो राक्षसों के वध के लिए उन्होंने अपना भयंकर स्वरूप धारण किया था और इस स्वरूप की रचना काल या मृत्यु देने के लिए उन राक्षसों को हुई थी, तो सिर्फ माता बड़े असुरों का संहार कर रही थी बल्कि उनकी योगिनी शक्तियां उनकी पिशाचिनी शक्तियां इत्यादि बहुत सारी शक्तियां ऐसी थी जो उनके ही ऑर्डर पर या आदेश पर वहां सभी तरह के राक्षसों और आसुरी बुरी शक्तियों का विनाश कर रही थी तब जब यह कार्य पूर्ण हुआ तो तांत्रिक लोगों ने माता को प्रसन्न करने के लिए उनको बलि देना आवश्यक समझा ताकि जब बलि लेकर उन्होंने उन राक्षसों को खा लिया था और अपने अंदर उस ऊर्जा को समाहित कर लिया तो अगर उन्हें बलि दी जाएगी। तो निश्चित रूप से वह प्रसन्न होंगी पर तांत्रिक लोग यह बात गहराई से नहीं जान पाए कि वास्तव में माता को एक बलि से प्रसन्न नहीं किया जा सकता बल्कि उनकी पिशाचिनी शक्तियां योगिनी शक्तियां उन्हीं को ही प्रसन्न किया जा सकता है। लेकिन जब उनके नाम से बलि दी जाती है तो उनकी जो सेविका शक्तियाँ है उन तक वह ऊर्जा और पूजा पहुंचती है और वही शक्तियां सिद्ध भी हो जाती हैं क्योंकि सभी एक मां से ही निकली हुई शक्तियां है इसलिए साधक समझता है कि मुझे माता काली की सिद्धि हो गई, किंतु उसे उनकी पिशाचिनी और आसुरी शक्तियां और आसुरी स्वभाव रखने वाली जोगिनिया इत्यादि शक्तियां सिद्ध होती हैं। तो बली स्वीकार करती हैं और अधिक बलि भी प्राप्त करना चाहती हैं। इससे साधक और अधिक बलि देने की कोशिश करने लगता है और इस प्रकार उस साधक को सिद्धियां भी मिलने लगती है। लेकिन वह व्यक्ति यह नहीं जान पाता कि जो ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली देवी मां है, वह क्यों छोटी सी बली लेकर उस बली को प्राप्त करने की इच्छा रखेंगी। यह केवल एक भ्रम है और इसी भ्रम में पड़कर अधिकतर लोग बलि देते हैं। हालांकि उन्हें सिद्धि तो अवश्य ही प्राप्त होती है क्योंकि उनकी कई तरह की शक्तियां जिनका मैंने अभी उल्लेख किया वह सिद्ध हो जाती है। पर क्या इतनी अधिक क्षमता में शक्ति होती है कि वह? बड़े से बड़े देवी-देवताओं के सामने टिक सके, ऐसा नहीं होता है जबकि उन्होंने तो काली माता की ही पूजा की होती है। इससे अनुमान लगता है कि माता काली उनसे सिद्ध नहीं हुई बल्कि उनकी ही सेविका शक्तियां और आसुरी स्वभाव वाली उनकी योगिनी शक्तियां पिशाच शक्तियां उनसे सिद्ध हुई है तो यह एक गलत धारणा है कि माता काली बली स्वीकार करती हैं।
अब अगला प्रश्न पूछा है कि ब्रह्मा विष्णु महेश हर ब्रह्मांड में अलग-अलग होते हैं तो मूल ब्रह्मा विष्णु महेश क्या उनका संचालन करते होंगे। निश्चित रूप से इस प्रश्न का अगर आप को जवाब चाहिए और इसके बाद के अगले प्रश्न का भी तो आप मेरी श्री दुर्गा सप्तशती टीका भाग 1 पढ़िए और खास तौर से उसमें जो पराशक्ति दर्शन है, उसे अवश्य ही पढ़ेंगे तो यह दोनों ही प्रश्नों का जवाब आपको स्पष्ट रूप से मिल जाएगा कि आखिर ब्रह्मा विष्णु महेश और उन पर मूल महा ब्रह्मा महा विष्णु और महा महेश कौन है? इसी तरह आपने अगला प्रश्न पूछा है कि मूल शक्ति कौन है और अजपा गायत्री मंत्र से क्या उन मूल शक्ति में मिला जा सकता है या उन्हें प्राप्त किया जा सकता है तो मैंने पहले ही स्पष्ट बताया है कि माता पराशक्ति ही मूल परमात्मा की शक्ति हैं और उन्हीं का दर्शन मेरी उस पुस्तक में वर्णित है। उसे अवश्य पढ़ें जहां तक बात है। गायत्री मंत्र के अजपा के जाप से क्या उन्हें प्राप्त किया जा सकता है तो निश्चित रूप से किसी भी महामंत्र से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है लेकिन? मार्ग इतना सरल नहीं है कि सिर्फ आप पाठ करेंगे और उन्हें प्राप्त कर लेंगे। जब तक आपके अंदर उनके जैसे गुण नहीं आने लगेंगे। तब तक परमात्मा में मिलना संभव नहीं होगा। जैसे अगर शुद्ध पानी है और उसमें कोई भी आप रंग डालेंगे तो पानी कर रंग बदल जाएगा। पानी अपनी पवित्रता खो देगा। इसी तरह अगर आपको परमात्मा में या माता पराशक्ति में मिलना है तो आपको भी उतना ही शुद्ध और पवित्र होना पड़ेगा। तभी आप उनमें मिल सकते हैं अन्यथा आप उनमें अलग नजर आएंगे और जैसे ही आप उनमें अलग नजर आएंगे। आपको वहां से अलग भेज दिया जाएगा। इसी लिए आवश्यक है कि परमात्मा बनने के लिए परमात्मा जैसी सोच और वैसे ही कार्य व्यक्ति के होने चाहिए और वह भी मंत्रों के माध्यम से शुद्ध होता हुआ जब पूर्ण पवित्र मन से हृदय से आत्मा से हो जाता है। रूप से वह परमात्मा में मिल जाता है।
अगर अगले प्रश्न की बात की जाए तो यह पूछा गया है कि की भक्ति से किसी स्वार्थ के बिना किसी देवी देवता की उपासना करते हैं तो क्या उसमें कोई दोष का प्रभाव पड़ता है? लेकिन भक्ति से कोई भी कार्य किया जाता है तो वह सर्वोत्तम माना जाता है। उस साधना को देवता और देवी बहुत ही कोमल स्वभाव से सात्विक तरीके से स्वीकार करता है और इसमें कोई दोष भी नहीं लगता है लेकिन? जब तक आपने गुरु नहीं किया होगा तो आपकी मंत्र जाप और उपासना का फल स्थान, भैरव या इत्यादि अन्य शक्तियां चुरा सकती हैं और आप का जाप आपकी देवी या देवता तक नहीं पहुंच पाता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखते हुए ही आपको गुरु मंत्र लेकर ही किसी भी देवी अथवा देवता की उपासना करनी चाहिए। अगला प्रश्न है कि अप्सरा यक्षिणी और योगिनी की पूजा करके सिद्ध कर सकते हैं। बिना सिद्धि साधना के क्या ? निश्चित रूप से यह किया जा सकता है, लेकिन पूजा और सिद्धि में ऐसी सिद्धि वाली साधना में बहुत बड़ा अंतर होता है और वह होता है संकल्प शक्ति का, जब हम पूजा करते हैं। तो हम बहुत अधिक समय तक नहीं करते और उसमें कोई नियमावली भी नहीं होती। लेकिन जब हम कोई साधना करते हैं तो उसमें पूर्ण नियमावली होती है और इस नियम को आप छोड़ नहीं सकते। इसमें कठोरता होती है। इसी कारण से शक्ति को मजबूर होकर सिद्ध होना पड़ता है तो आप पूजा करके भी इन शक्तियों को सिद्ध कर सकते हैं, लेकिन उसमें समय बहुत अधिक लग सकता है। 10 वर्ष 15 वर्ष 20 वर्ष यह समय पर निर्भर करेगा कि आप उनकी कितनी पूजा कितने मन से कर रहे हैं, लेकिन इसमें एक लाभ यह है कि आपको कठिन परीक्षाओं से नहीं गुजरना पड़ेगा औरआपके साथ उस शक्ति का स्वभाव भी सौम्य रहेगा। शांत रहेगा और निश्चित रूप से आपका वह शक्ति भला करती रहेगी क्योंकि वह यह जानती है कि आप उसके साथ। किसी विशेष इच्छा के कारण नहीं जुड़े बल्कि प्रेम के साथ जुड़े हुए हैं। इसीलिए बड़े देवी देवताओं की पूजा सर्वोत्तम मानी जाती है और उन प्रेम संबंधों के आधार पर आपको सिद्धि वह अपनी इच्छा अनुसार प्रदान भी करते हैं।
अगल प्रश्न यह पूछा गया है कि अप्सरा यक्षिणी योगिनी इत्यादि शक्तियां अगर संभोग करती हैं तो ऊर्जा नष्ट हो जाती है। लेकिन अगर यही कार्य भैरवी करती है तो ऊर्जा बढ़ती क्यों है? यह प्रश्न निश्चित रूप से बहुत ही गहरा है लेकिन साधारण अर्थों में अगर मैं से समझाता हूं तो आपको यह समझना होगा कि यह शक्तियां आपकी उर्जा लेकर अपनी शक्तियां बढ़ाती हैं और अपनी शक्तियां बढ़ाकर फिर आपके कार्यों को सिद्ध करती हैं। इसलिए साधारण रूप से आपकी ऊर्जा अवश्य ही नष्ट होती है। लेकिन भैरवी आपकी सहभागी होती है और यह कहा गया है कि भैरव स्वयं उसका पति होता है। इसलिए पति और पत्नी जब एक साथ जुड़ेंगे तो ऊर्जा बढ़ती है। ना की घटती है और चाहे वह जीवित भैरवी हो। या देवी भैरवी हो। दोनों ही स्थितियों में साधक को वह भैरव बना देती है। इसीलिए जब वह संभोग करती है, तब मूलाधार चक्र पर चोट होने के कारण वहां से कुंडली शक्ति तीव्रता से ऊपर की ओर उठती है और अन्य चक्रों का भेदन करती है। इसी कारण से भैरवी जब संभोग करती है तो वह संभोग नहीं बल्कि एक साधना होती है। और यह एक अत्यंत ही गोपनीय और स्पष्ट रूप से ना बताया जाने वाला रहस्य है। इसमें जो मूल बातें हैं कि उन चक्रों का भेदन संभोग के माध्यम से किया जाता है। इसीलिए भैरवी के साथ संभोग करना, आपके सिद्धि शक्ति और सामर्थ्य को बढ़ाने वाला होता है। भैरवी जब संभोग करती है तो वीर्य नहीं निकलता है, लेकिन वही जब अप्सरा यक्षिणी और योगिनी संभोग करती हैं तो वीर्य तुरंत निकल कर आपकी ऊर्जा को प्राप्त करती हैं तो यह बहुत बड़ा एक अंतर है। दोनों की साधना में और जब भैरवी के साथ में वीर्य निकलता भी है तो वह ऊर्जा में बदल कर सिद्धियां प्रदान करता है। यह एक गूढ़ विषय है और इसे सर्वजन के लिए पूरी तरह से बताना श्रेष्ठ नहीं माना जाता। इसे गोपनीय तरीके से ही अपने गुरु से जानना चाहिए और उसके सानिध्य में बैठकर सीखना चाहिए तो यह थे आज के कुछ प्रश्न और जानकारी अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
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