साधकों के प्रश्न और उत्तर बहुत जरूरी जानकारी 120
१. शक्ति पीठ और उनके भैरव का रहस्य
उत्तर:- माता सती के अंग पृथ्वी पर जहाँ जहाँ गिरे थे हम उस स्थान को शक्तिपीठ के नाम से जानते है | माता सती भगवान शिव की पत्नी और प्रजापति दक्ष की पुत्री थी | कथा आती है की एक समय जब दक्ष ने महा यज्ञ किया तो उन्होंने सभी देवी देवताओ को आमंत्रण भेजा था लेकिन भगवान शिव को प्रजापति दक्ष ने आवाहन नहीं किया था, इससे रुष्ट हो कर माता सती दक्ष के यज्ञ में पहुँच गई अपने पिता से इस बात को पूछना के लिए की क्यों उन्होंने सभी देवताओ को निमंत्रण दिया लेकिन भगवान शिव कोनहीं | जब दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया तब देवी सती ने क्रोध वश उस अग्नि खुंड में प्रवेश कर गई और जब भगवान शंकर को जब इस घटना क्रम का पता चला तो उन्होंने दक्ष का यज्ञ ध्वंश कर दिया और मोह वश देवी सती के शरीर को अपने हाथो में लेकर ब्रह्माण्ड में विचरण करने लगे और जब नारायण ने अपने चक्र से देवी सती के शरीर का खंड किया और जो शरीर के अंग जिन जिन स्थानों पर गिरे वह स्थान अपने आप में शक्ति पीठ कहलाई, कुल 52 शक्तिपीठ है | अलग अलग शक्तिपीठ के अलग अलग भैरव है जो भगवती के साथ रहते है जो उस स्थान की रक्षा करते है और जो देवी के उपासक है उनकी भी रक्षा सुरक्षा करते है और भैरव भी कुल 52 है जो विभिन्न विभिन्न नामो से प्रचलित है | शक्तिपीठ और उनके भैरव के विस्तार में जानकारी प्राप्त करने के लिए वीडियो अवश्य देखिये |
२. बार बार संसार की रचना और विनाश क्यों किया जाता है?
उत्तर:- जिस चीज़ का प्रारंभ होता है उसका अंत निश्चित होता है चाहे वो जीवन हो या ब्रह्माण्ड ही क्यों न हो सब चीज़ का अंत निश्चित है | जब आत्मा शरीर को धारण करता है तो इस संसार की मोह माया में अपने आप को लिप्त कर लेता है और वह इस माया में इस कदर भटक जाता है की वह अपना स्वरुप को नहीं जान पाता और अन्तोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | यह संसार जो आप देखते है वो भी समय के अनुसार रचा हुआ है जो अपने में अनंत कोटि आत्माओ को रखता है और उन्हें शरीर प्रदान करता है और यह भी उसी महा माया की एक माया ही है और एक निश्चित समय के बाद इस संसार का भी विनाश होता जाता है क्युकी संसार का भी एक समय में अंत निश्चित होता है और वापस से इस संसार को रचा जाता है और यह संसार अंत में उसी ब्रह्म में ही विलीन हो जाता है |
३. गुरु मंत्र जाप छोड चुके साधको के लिए क्या निर्देश है ?
उत्तर:- अगर कोई व्यक्ति एक महीने तक गुरु मंत्र का जप छोड़ देता है तो यह एक प्रकार से मंत्र के प्रति अश्रद्धा ही कहलाएगी और इस स्थिति में आप अपने इस कर्म के प्रति गुरु से क्षमा प्राथना करे या गुरु से आज्ञा प्राप्त कर के वापस से दीक्षा की प्रक्रिया संपन्न करे और वापस से प्रारंभ से शुरुवात करे |
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