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साधुओ का जिन्नों से युद्ध भाग 2

साधुओ का जिन्नों से युद्ध भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। साधुओं का जिन्नो से युद्ध यह भाग 2 है। अभी तक आपने जाना कि अहमद शाह अब्दाली की सेना अब मथुरा में प्रवेश कर चुकी थी और वहां मारकाट मचाने के लिए तैयार थी। क्योंकि यह क्षेत्र हिंदू सनातन धर्मी व्यक्तियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था और यहां धन की भी कोई कमी नहीं थी। अहमद शाह अब्दाली की सेना मथुरा की तरफ बढ़ चली थी। मथुरा से लगभग 8 दिन पहले चौमुहाँ पर एक जाट सेना ने इन्हें रोकने की कोशिश की। जाट सेना काफी छोटी थी और उसने चारों तरफ से इनकी सेना पर हमला शुरू कर दिया था। लेकिन दुश्मनों की संख्या अत्यधिक थी जाट काफी देर तक सारे दिन इन से युद्ध करते रहे लेकिन धीरे-धीरे जाटों की मृत्यु होने लगी और उनकी हार हो गई। अब इस जीत के बाद।

अफगानी सेना बहुत ही तीव्रता के साथ खुश होती हुई मथुरा में प्रवेश की, मथुरा में पठान, भरतपुर दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से अंदर घुसने लगे। वह सामने पड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु अपनी तलवार से काट कर कर देते थे और लूटपाट का धन अपने पास रखते जाते थे। सबसे बड़ी जो विडंबना थी, उस वक्त की वह यह थी कि उस समय फाल्गुन का महीना था और होली का त्यौहार बस आने ही वाला था। जैसे कि हम यह बात जानते हैं कि ब्रज की होली विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसलिए होली से पहले ही लोग उसका उत्सव यहां मनाने लगते थे। उस वक्त पुरुष लोग गलियों में सड़कों पर हर जगह ढोल, नगाड़े इत्यादि के साथ नाच रहे थे और उनके परिवार की औरतें छत पर बैठकर उस नाच गाने को देख कर खुश हो रही थी। उन्हें यह नहीं पता था कि कितनी बड़ी मौत की सवारी उनके लिए आ रही है। इस दौरान सभी नृत्य गायन मौज मस्ती में डूबे हुए होली के त्यौहार का आनंद ले रहे थे कि तभी अचानक से अब्दाली की पूरी सेना मथुरा में प्रवेश कर जाती है और सामने पड़ने वाले हर पुरुष को मार कर उसका वध करने लगती है। वहां दिनदहाड़े भयंकर लूटपाट शुरू हो जाती है। यह प्रक्रिया लगातार तीन दिन तक चलती रहती है। इस दौरान 3 दिनों तक हर तरफ पुरुषों के शव बढ़ते ही जाते हैं। जहां कहीं भी कोई भी पुरुष इस सेना को दिखाई देता है। उसको मार दिया जाता है। चारों तरफ अत्याचार का सबसे बड़ा उत्सव मनाया जा रहा था। सैनिक दिन में लूटपाट करते थे। रात

के समय में घरों को जलाने के लिए दौड़ पड़ते थे? इस प्रकार चारों तरफ चाहे वह गली हो, सड़क हो चौराहे हो। मकानों के ऊपर हो या नीचे नर मुंडो के ढेर लगते चले गए। होली का त्यौहार रंग से भरा होता है। लेकिन केवल एक रंग जिसे हम खूनी रंग कहते हैं, उसकी होली अफगानी सेना के द्वारा मनाई जा रही थी। इतनी बुरी स्थिति थी कि हर घर अपनी रक्षा करने के लिए अपने आप को बंद रखे हुआ था। लेकिन फिर भी इस शक्तिशाली सेना के आगे दरवाजे कहां टिकने वाले थे।

जहां कहीं भी इस सेना को पुरुष दिखाई पड़ते उनको मार कर उनका सिर काट कर फेंक दिया जाता था। भरतपुर दरवाजे के समीप शीतला माता घाटी की एक गली में मथुरा देवी के मंदिर के अंदर एक गुफा थी। कहते हैं जब सारे क्षेत्र में हाहाकार मचा हुआ था तब बहुत सारे लोग। उस गुफा की ओर भाग कर अपनी रक्षा के लिए उसी में जाकर बसने की कोशिश करने लगे। और क्योंकि जनसमूह बहुत बड़ी संख्या में उस गुफा की ओर दौड़ता हुआ जा रहा था। इसीलिए जब ब्राह्मणों को पकड़ा गया तो उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए सैनिकों को उसका भी पता बता दिया और यह बहुत ही बुरी अवस्था थी। फिर उस जगह भी सैनिक पहुंच गए और वहां पर बहुत बड़ी मात्रा में नरसंहार हुआ। उस नरसंहार में बौद्ध मातावलंबी चौबे और जाने-माने उस समय के माथुरों का वध हुआ था। कहते हैं उनके वंशज अब तक फाल्गुन शुक्ल की 11वीं 12वीं और 13वीं को उनकी स्मृति में श्राद्ध आज भी करते हैं।

मथुरा के छत्ता बाजार की नागर गली के सिरे पर बड़े चौबों के पुराने मकानों में अनेक नर नारी और बाल बच्चे एकत्रित वहां पर उन सब को घेर कर मार डाला गया। मकानों को तोड़ कर उसमें आग लगा दी गई। उस नष्ट भवन के अवशेष लाल पत्थर के कलात्मक बुर्ज के रूप में आज भी मौजूद है। अब्दाली की सैनिकों की बर्बरता की कहानी आज भी प्रसिद्ध है। अब्दाली के सैनिकों ने मथुरा में खून की होली खेली और एक पूरे बड़े भाग को होली की तरह ही जला दिया था। एक मुस्लिम लेखक के अनुसार सड़कों और बाजारों में सर्वत्र हलाल किए गए लोगों के धड़ पड़े हुए थे सर अलग थे सारा शहर जल रहा था। कितनी इमारतें धराशाई कर दी गई थी। यमुना नदी का पानी नरसंहार के बाद 7 दिनों तक लाल रंग का बहता रहा। नदी के किनारे पर वैराग्य और सन्यासियों की बहुत सी झोपड़िया थी उनमें से हर झोपड़ी में साधु सिर के मुंह से लगा कर रखा हुआ गाय का कटा सिर दिखाई पड़ता था क्योंकि हिंदू लोग गाय को पवित्र मानते हैं और उसका भोजन नहीं करते। इसीलिए उनके मुंह पर ऐसा बुरा कर्म करके रखा गया था। सैनिक लगातार तीन दिन मथुरा में मारकाट और लूटपाट करते रहे। उन्होंने मंदिरों को नष्ट किया। मूर्तियों को तोड़ा पण्डे और पुजारियों का कत्ल किया। सैनिक निवासियों को गड़ा हुआ धन देने के लिए तक मजबूर थे। सैनिक जिस भी घर में प्रवेश करते वहां की सभी स्त्रियों की इज्जत लूटी जाती।

सैनिकों के अत्याचारों से बचने के लिए नारियाँ कुवों में यमुना नदी में डूब कर मर गई जो ज्यादातर बच्चे उनको सैनिक पकड़ कर अपने साथ ले गए। मथुरा में लूट के बाद अब्दाली के सैनिक अब आगे बढ़ते जा रहे थे। अब उनकी अगली नजर थी वृंदावन उन्होंने वहां पर भी प्रवेश करते ही मारकाट मचानी शुरू कर दी। मंदिरों और घरों को लूटा गया ऐसी कोई स्त्री नहीं थी जिसकी इज्जत ना लूटी जा रही हो। 12 वर्ष की एक कन्या भागते हुए वहां से गुजर रही थी क्योंकि उसके पीछे। एक अफगानी सैनिक पड़ गया था। वह उसकी इज्जत लूटना चाहता था।

लेखकों के अनुसार उस वक्त इतना बड़ा विध्वंस हो रहा था, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वृंदावन में जिधर नजर जाती, वहां भी मुर्दों के ढेर के ढेर दिखाई पड़ते थे। सड़कों से निकलना तक मुश्किल हो गया था। लाशों से ऐसी दुर्गंध आती थी कि सांस लेना भी दूभर हो रहा था। इसी समय वृंदावन पर अब्दाली के सैनिकों का आक्रमण ब्रज के एक भक्त कवि चाचा वृंदावन दास भी थे जो कि अपनी जान को बचाकर वृंदावन से भरतपुर की ओर भागे थे। उन्होंने जाट राजा सूरजमल के नए दुर्ग में ही एक काव्य रचना हरि कला बेली की रचना की थी। उसमें उन्होंने वृंदावन पर यवनों के आक्रमण और अफगानी सेना द्वारा की गई मारकाट का बहुत ही मन स्पर्शी वर्णन किया है। उन्होंने एक पंक्ति में ऐसा लिखा था”अठारह सौ तेरह बरस, हरि ऐसी करी।

जमन विगोयौ देस, विपत्ति, गाढ़ी परी।”

इस वक्त श्री राधा वल्लभ जी मंदिर के साथ प्रसिद्ध मंदिर और देवालय भी तोड़ दिए गए और लगभग प्रमुख वृंदावन के सारे वैष्णव भक्त मार दिए गए थे।

इस कथा में सबसे रोमांचक मोड़ इसके बाद आता है। क्योंकि जिस कन्या के पीछे वह सैनिक पड़े थे, वह दिखने में 12 वर्ष की एक अत्यंत सुंदर कन्या थी और भागती हुई वह वृंदावन से गोकुल की तरफ जा रही थी। यह बात धीरे-धीरे और भी ज्यादा प्रसिद्ध हुई और अब्दाली के सैनिकों तक पहुंची की गोकुल की स्त्रियां सबसे ज्यादा सुंदर है और काफी सारी कन्याओं गोकुल की तरफ दौड़ कर गई हैं। अब सैनिकों के मन में मथुरा और वृंदावन की लूट के बाद गोकुल पर हमला करके वहां से स्त्रियां प्राप्त करना मूल उद्देश्य था। वह उस और दौड़ते जा रहे थे। वह कन्या भगवान शिव और माता के साथ भगवान श्री कृष्ण की भी भक्त थी। इस दौरान जब वह भागती जा रही थी तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण बोलते हुए भगवान शिव और माता से भी प्रार्थना कर रही थी कि उसकी रक्षा हो जाए। और भागते भागते वह एक स्थान पर पहुंची। यह वही स्थान था जहां पर नागा रूद्र भैरव अपने साथियों के साथ साधना कर रहा था। कन्या भागते हुए उनके पास पहुंचती है और डरते डरते कांपते हुए रूद्र भैरव के पास गिर जाती है। रूद्र भैरव अपनी साधना छोड़कर उस कन्या की ओर देखता है और उस कन्या से पूछता है। पुत्री क्या हुआ ? तो वह कहने लगती है। एक बहुत बड़ी सेना ने पूरे मथुरा वृंदावन को नष्ट कर दिया है और वह इसी और आ रहे हैं। मेरी रक्षा कीजिए और यह कहकर वह कन्या बेहोश हो जाती है। इसी के बाद अचानक से। एक और दृश्य नागा रूद्र भैरव को देखने के लिए मिलता है। वहां पर कम से कम 500 और कन्याए भागते हुए आ रही थी।

क्योंकि सभी मथुरा और वृंदावन से भागकर गोकुल में शरण लेना चाहती थी। उनकी रक्षा कोई नहीं करने वाला था। यह देखकर नागा रूद्र भैरव बहुत क्रोधित होता है। वह सारी कन्याए आकर नागाओं के पास शरण लेती हैं और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।

इसके बाद आगे क्या घटित होता है। अगले भाग में हम लोग जानेंगे। आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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