सावन में नीलकंठ स्त्रोत साधना
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम एक बार फिर से भगवान शिव के एक गुप्त स्त्रोत के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे और यह स्त्रोत विशेष रूप से अगर सावन के महीने में किया जाए तो विशेष लाभ हमें देखने को मिलते हैं और यह भी कहा जाता है कि जो भी साधक इस स्त्रोत का प्रतिदिन 7 बार पाठ करता है, उसकी समस्त कामनाएं सिद्ध होने लगती हैं और भगवान शिव की कृपा उस साधक को अवश्य प्राप्त होती है। भगवान का यह स्त्रोत श्री नीलकंठ अघोरास्त्र स्त्रोत के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव को उनके नीलकंठ स्वरूप में। अघोरी साधुओं द्वारा सिद्ध करने का जो प्रयास है, इस स्त्रोत के माध्यम से किया जाता है। यह एक शुद्ध और सात्विक साधना है। हालांकि इसे अघोरी साधकों के द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन यह साधना पूरी तरह सात्विक है और दुर्लभ सिद्धियों को देने वाली है। इतना ही नहीं इसके संबंध में यह कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति प्रतिदिन 7 बार आजीवन इसका पाठ करता है, उसे मृत्यु के पश्चात शिव लोक की प्राप्ति हो जाती है। शिवलोक प्राप्त करना अपने आप में बहुत ही भाग्यशाली बात है और इसे कोई भी साधक कर सकता है। इसे सावन के महीने से शुरू करने में और भी अधिक लाभ प्राप्त होते हैं तो इस स्त्रोत को पढ़कर व्यक्ति भगवान शिव के उनके नीलकंठ स्वरूप का ध्यान करते हुए शिवलिंग पर अगर जल चढ़ाता है तो उसकी मनोकामनाएं सिद्ध होने लगती है। भगवान शिव का यह प्रसिद्ध स्त्रोत श्री नीलकंठ अघोरास्त्र स्त्रोत के नाम से जाना जाता है। चलिए शुरू करते हैं इस स्त्रोत के विषय में। जाना और इसकी विनियोग सहित न्यास को समझते हुए मूल स्त्रोत का पाठ करते हैं। विनियोग इस प्रकार से है। ॐ अस्य श्री भगवान् नीलकण्ठ सदाशिव स्तोत्र मंत्रस्य श्रीब्रह्माऋषिः अनुष्टुपछन्दः श्रीनीलकण्ठ सदाशिवो देवता | ब्रह्मबीजं | पार्वतीशक्तिः | मम समस्त पापक्षयार्थं क्षेमस्थैर्यायुरोग्याभि वृद्ध्यर्थं मोक्षादि चतुर्वर्ग साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। || ऋष्यादिन्यास || श्रीब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि। अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। श्रीनीलकण्ठ सदाशिव देवतायै नमः हृदि | ब्रह्म बीजाय नमः लिङ्गे। पार्वती शक्त्यै नमः नाभौ । मम समस्त पापक्षयार्थं क्षेमस्थैर्यायुरारोग्याभि वृद्ध्यर्थं मोक्षादि चतुर्वर्ग साधनार्थं च श्रीनीलकण्ठ सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥ || मूल स्तोत्रं || ॐ नमो नीलकण्ठाय श्वेतशरीराय सर्पालंकारभूषिताय भुजङ्गपरिकराय नागयज्ञोपवीताय अनेकमृत्यु विनाशाय नमः | युग युगान्त कालप्रलय प्रचण्डाय प्रज्वाल मुखाय नमः | दंष्ट्राकराल घोररूपाय हुम् हुम् फट स्वाहा | ज्वालमुखाय मन्त्र करालाय प्रचण्डार्क सहस्त्रांशुचण्डाय नमः | कर्पूरमोद परिमलाङ्गाय नमः। ॐ ई ई नील महानील वज्र वैलक्ष्य मणि माणिक्य मुकुट भूषणाय हन हन हन दहन दहनाय | || श्रीअघोरास्त्र मूल मंत्रः || ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ हूं स्फुर अघोररूपाय रथ रथ तंत्र तंत्र चट चट कह कह मद मद दहन दाहनाय श्रीअघोरास्त्र मूलमन्त्र जरामरण भय हूं हूं फट स्वाहा | अनन्ताघोर ज्वर मरण भय क्षय कुष्ठ व्याधि विनाशाय शाकिनी डाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय अपस्मार भूत बैताल डाकिनी शाकिनी सर्वग्रह विनाशाय मन्त्रकोटि प्रकटाय पर विद्योच्छेदनाय हूं हूं फट स्वाहा आत्ममन्त्र सरंक्षणाय नमः | ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं नमो भूत डामरी ज्वाल वशभूतानां द्वादशभूतानां त्रयोदश षोडश प्रेतानां पञ्चदश डाकिनी शाकिनीनां हन हन | दहन दारनाथ | एकाहिक व्याहिक त्र्याहिक चातुर्थिक पन्चाहिक व्याघ्र पादांत वातादि वात सरिक कफ पित्तक काश श्वास श्लेष्मादिकं दह दह छिन्धि छिन्धि श्रीमहादेव निर्मितं स्तम्भन मोहन वश्याकर्षणोच्चाटन कीलनोद्वेषण इति षट कर्माणि वृत्य हूँ हूँ फट स्वाहा | वातज्वर मरण भय छिन्न छिन्न नेह नेह भूतज्वर प्रेतज्वर पिशाचज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर तापज्वर बालज्वर कुमारज्वर अमितज्वर दहनज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर रूद्रज्वर मारीज्वर प्रवेशज्वर कामादिविषमज्वर मारीज्वर प्रचण्डघराय प्रमथेश्वर शीघ्रं हूँ हूं फट स्वाहा | ॐ नमो नीलकण्ठाय दक्षज्वर ध्वंसनाय श्रीनीलकण्ठाय नमः | || फलश्रुतिः ॥ सप्तवारं पठेत्स्तोत्रं मनसा चिन्तितं जपेत | तत्सर्वं सफलं प्राप्तं शिवलोकं स गच्छति || ॥ इति श्रीनीलकण्ठ अघोरास्त्र सम्पूर्ण || यह इस प्रकार से आप समझ सकते हैं। इस स्त्रोत का पाठ करने से क्या-क्या हमें प्राप्त होता है? इससे हम भूत प्रेत पिशाच सभी प्रकार की शक्तियों का नाश करने के अलावा विभिन्न प्रकार के रोगों का नाश करने के अलावा षट्कर्म भी सिद्ध करते हैं। यह सब कुछ हम केवल इसके पाठ मात्र से कर सकते हैं। यह बहुत अधिक दुर्लभ और दिव्य शक्तियों से भरा हुआ स्त्रोत माना जाता है इस दुर्लभ स्त्रोत का रोजाना पाठ करने से हमें सिद्धि प्राप्त होती है। ब्रह्मा जी ने इसकी रचना की थी। वहीं इस मंत्र के ऋषि हैं और माता पार्वती की शक्ति की सामर्थ्य के साथ इस पाठ को पढ़ने का विधान किया जाता है। इसमें हम भगवान श्री नीलकंठ सदा शिव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस श्री नीलकंठ अघोरास्त्र स्त्रोत का पाठ करते हैं। इसके पाठ से अनगिनत लाभ है। धीरे-धीरे व्यक्ति सिद्दीकी और भी बढ़ने लगता है। अगर इसका पाठ सावन के महीने से शुरू किया जाए तो भगवान शिव की कृपा होती है और विभिन्न प्रकार की जितने भी समस्याएं हैं, उनका नाश भगवान शिव करते चले जाते हैं। तो इस प्रकार से आपने आज इस शिव अघोरास्त्र स्त्रोत का पाठ किया। अवश्य ही आप इसका पाठ भगवान शिव के मंदिर में जाकर या स्थापित श्री शिव लिंग के आगे करते हैं तो अनगिनत लाभ प्राप्त करते हैं। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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