नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज बात करेंगे हनुमान जी की एक विशेष प्रकार की साधना इसको हम वायु गमन सिद्धि साधना के नाम से जानते हैं। चलिए पढ़ते हैं पत्र को और जानते हैं कि इस साधना को किस प्रकार से किया जा सकता है।
हेलो दोस्तों नमस्कार गुरु जी… मैं रोमिनराज एक बार फिर से एक नई साधना लेकर आया हूं। गुरुजी सूरज प्रताप को और धर्म रहस्य देखने वाले सभी दर्शकों को मेरा प्रणाम! यह जो साधना है यह मैं रोमिन राज बजराचार्य धर्म रहस्य को। 23 जून 2020 को भेज रहा हूं और धर्म रहस्य चैनल को ही भेज रहा हूं। यह साधना यूट्यूब को हिला कर रखने वाली साधना है क्योंकि यह जो साधना है, पूरी तरह से यूट्यूब में कहीं भी प्रकाशित नहीं है। मैं इस बात की गारंटी लेता हूं कि इसे कहीं और पब्लिश नहीं किया गया है और इस साधना को अब तक किसी भी चैनल पर नहीं दिखाया गया है। यह साधना पहली बार मेरी तरफ से यूट्यूब को दी जा रही है और सिर्फ और सिर्फ धर्म रहस्य चैनल पर ही इसे प्रकाशित किया जा रहा है। किसी और साइट पर इसे पब्लिश नहीं किया गया है और ना ही किया जाएगा। इसकी गारंटी मैं लेता हूं। मैं विराट नगर सिटी नेपाल से बोल रहा हूं।
गुरु जी आज फिर से बहुत दिनों के बाद मैंने एक पोस्ट भेजा है। गुरु जी आज का जो पोस्ट है, वह बहुत ही ज्यादा लाजवाब है और अत्यंत ही आश्चर्यजनक है। क्योंकि आज मैं जो साधना देने जा रहा हूं वह है हनुमान वायु गमन सिद्धि साधना।
कहा जाता है कि इस साधना को करने से साधक में बहुत सारी अलौकिक सिद्धियां दिव्य शक्तियां आ जाती हैं, लेकिन इस साधना को विशेष रूप से वायु गमन सिद्धि प्राप्ति करने के लिए किया जाता है। इस साधना में हनुमान जी के विचित्र वीर! स्वरूप की पूजा की जाती है जो पंचमुखी हनुमान जी हैं। यह एक बहुत ही दुर्लभ और लुप्त प्राय साधना की श्रेणी में आती है। क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ और लुप्तप्राय साधना है। इस साधना को सफलतापूर्वक कर लेने वाला साधक बहुत ही अधिक शक्तिशाली हो जाता है। इस हनुमान वायु गमन, सिद्धि के नियम और विधि के बारे में आपको बताता हूं। इस साधना के नियम और विधि कुछ इस प्रकार से हैं।
हनुमान साधना सिर्फ और सिर्फ हनुमान जयंती, रामनवमी, सीता जयंती, नरसिंह जयंती और दिवाली के दिन से शुरू की जा सकती है। इस साधना को हनुमान! जी के शक्ति पीठ पर या फिर बहुत ही पुराने और बड़ी महत्व रखने वाले विशेष हनुमान मंदिर में किया जाता है। इस साधना को घर पर नहीं किया जा सकता इस साधना को सिर्फ! गुरु के निर्देश में रहकर ही किया जाता है। सबसे पहले इसी प्रकार के हनुमान शक्तिपीठ या ऐसे ही किसी पुराने बड़े महत्त्व रखने वाले हनुमान मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में ऊपर दिए गए शुभ दिन का चयन करके वहां जाना चाहिए और सर्वप्रथम गुरु, पूजन और गणेश पूजन करना होता है। उसके बाद त्रिदेव की पूजा करनी है और फिर अंत में सूर्य देव की पूजा करनी है। यह सब करते समय साधक का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
इतना हो जाने के बाद साधक को रुद्राभिषेक करना है और हनुमान मूल मंत्र, हनुमान, मूल मंत्र माला या फिर रुद्र सूक्त का पाठ करते हुए साधक को एक पीतल से बनी हुई प्राण प्रतिष्ठित हनुमान जी की मूर्ति का अभिषेक करना है। उसके बाद साधक को भगवान शिव, हनुमान जी से सफलता के लिए आशीर्वाद मांगना है। साधक को इस साधना में सिर्फ और सिर्फ लाल, सफेद और पीले रंग के वस्त्र ही पहनने हैं और इसके अतिरिक्त किसी अन्य रंग का प्रयोग वर्जित है। लेकिन लाल रंग का वस्त्र साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। यह सब हो जाने के बाद साधक को रात के समय लाल वस्त्र पहन कर फिर से उसी स्थान पर जाना है और ब्रम्हचर्य का पूर्ण रुप से पालन करना आवश्यक है। अब साधक को उत्तर पूर्व की ओर मुख करके बैठना है और अपने हाथ में एक संस्कारित रक्त चंदन की माला लेकर इस विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र का पांच माला जाप करना है और इस साधना को लगातार 41 दिनों तक करना होता है।
साधक को प्रतिदिन कम से कम 4 घंटे या उससे ज्यादा मंत्र जाप करना अनिवार्य होता है क्योंकि इस मंत्र की एक माला करने में साधक को लगभग एक घंटा लग जाता है। जो भी संकल्प इस साधना में लिया जाता है वह पूर्ण रुप से संस्कृत में होना चाहिए। अगर किसी को संकल्प लेना नहीं आता है तो वह मंदिर के पुजारी से संपर्क कर सकता है। विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र इस प्रकार से है।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय अञ्जनीगर्भसम्भूताय प्रकटविक्रमवीरदैत्य- दानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय भूतग्रह- प्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह- काकिनीग्रहकामिनीग्रहब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह- चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ- आवेशयावेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥
इस प्रकार इस मंत्र को आपको पूरा पढ़ना है इस पूरे मंत्र को पढ़ने के बाद में। अब इस साधना को करते समय साधक को ऐसा लग सकता है कि वह हवा में उड़ रहा है या उसका शरीर बहुत ही हल्का हो गया है। इस तरह से बहुत सारे अनोखे एवं असाधारण अनुभव होने लगते हैं। अगर ऐसा होता है तो साधक को डरना नहीं चाहिए और पूर्ण एकाग्रता के साथ मंत्र जाप करते रहना चाहिए। साधक को 41 दिन तक केवल केला, अनार, सेब, कच्चा दूध के अलावा कुछ नहीं खाना है। इस साधना से साधक को चित्र अभिज्ञान सिद्धि, अपरा जय सिद्धि,दूरदर्शन सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, जल गमन सिद्धि, वायु गमन सिद्धि, दूर दर्शन सिद्धि एवं अन्य अलौकिक सिद्धियां और दिव्य शक्तियां प्राप्त होने लगती हैं। इस साधना को करते वक्त सदैव आध्यात्मिक स्तर ऊंचा होना चाहिए। हनुमान जी पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास भी होना चाहिए। अगर साधक को एक बार में सफलता ना मिले तो साधक हो बार-बार इस साधना को प्रत्यक्ष करते रहना चाहिए।
साधना में सफलता मिलना यानी कि हमारी तरफ से सफल होना सिर्फ और सिर्फ हनुमान जी के हाथ में ही होता है जो नए साधक हैं। वह अगर इस साधना को करते हैं तो उन्हें हनुमान जी के सपने मे दर्शन होते हैं और अनेक प्रकार के अनुभव भी होते हैं। लेकिन जिन साधकों का आध्यात्मिक स्तर अत्यंत ऊंचा होता है, उन्हें इस दिव्य साधना के माध्यम से निश्चित रूप से वायु गमन सिद्धि की प्राप्ति होती है। इस प्रकार मैं यहां पर अपनी पोस्ट समाप्त करता हूं और आशा करता हूं कि आपको यह पोस्ट बहुत ही ज्यादा पसंद आई होगी। अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगे तो इसे जरूर प्रकाशित करें। जय गुरुजी जय श्री राम जय महावीर हनुमान।
संदेश – यहां पर इन्होंने हनुमान वायु गमन सिद्धि के बारे में बताया है। जब भी इस तरह की कोई साधना करें तो पूरी तरह से एकाग्र चित्त होकर। भगवान हनुमान में पूरा विश्वास रखते हुए अपने अंतरात्मा में किसी अन्य वस्तु का विचार ना करते हुए ही करनी चाहिए और ऐसी साधनाओ में अगर आपको क्रोध आता है तो अपने क्रोध को काबू करने के लिए सभी प्रकार के प्रयोजन करने आवश्यक होते हैं। क्योंकि जब भी आप हनुमान साधना करते हैं, आपके अंदर क्रोध का भाव बढ़ जाता है। इससे मुक्त होना अति आवश्यक है अन्यथा आपकी साधना में आपको सफलता प्राप्त नहीं होती है।
इसके अलावा हनुमान जी की साधना विषयक जितने भी नियम है उन सब का आपको पालन करना अनिवार्य होता है और साथ ही साथ हवन अवश्य करें। तभी आपकी साधना का फल आपको प्राप्त होगा। वरना आपकी साधना मे सिद्धि प्राप्ति नहीं होती है और भौतिक! जितने भी सुख होते हैं, वह नहीं मिलते। इसलिए जब भी साधना करें उसका दशांश हवन अनिवार्य रूप से करें। यहां पर भी हनुमान जी की साधना में आपको एकांत शुचिता और ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना अनिवार्य है। यह थी हनुमान साधना वायु गमन सिद्धि। अगर आपको यह साधना पसंद आई है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद!