- दंत कथाएं हमारे देश में बहुत ज्यादा प्रचलित रही हैं और ऐसी बहुत सी कहानियां हैं जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं और वह सच है या मिथ्या हैं यह तो आप लोग तय करेंगे लेकिन मैं उन कहानियों के माध्यम से साधनाओं के गोपनीय रहस्य को बताना चाहता हूं ताकि आप लोग समझ जाएं और साधनाओं की सरलता कठिनता सब कुछ को जान सके l आज मैं आपको बताने की कोशिश कर रहा हूं कि अगर आप परी साधना या अप्सरा साधना करना चाह रहे है उसे इस विशेष स्थान पर करते है तो आपकी सफलता का प्रतिशत 100 बन जाएगा l यह हमें एक पौराणिक कथा के रूप में प्राप्त होता है मैं काफी रिसर्च करता हूं वहीं से मैंने इन चीजों को निकाला है और इस कहानी के माध्यम से यह बताऊंगा अगर आप इस जगह पर साधना करेंगे तो आपकीके सफलता तय है l
- तो चलिए शुरू करता हूं और उस कहानी के माध्यम से रहस्य का उद्घाटन करता हूं कि कैसे अप्सराओं को प्राप्त कर सकते हैं l यह कहानी है 1712 ईस्वी की, उस वक्त एक व्यक्ति थे जिनका नाम केदार सिंह था l केदार सिंह नाम के उस व्यक्ति ने अपने एक गुरु बनाए जो बहुत ही बड़े आध्यात्मिक पुरुष थे और कभी कभी ही व्यक्तिगत रूप से दर्शन दिया करते थे l ज्यादातर साधना में ही लीन रहते थे यह बात काफी समय पहले की है उस जमाने में ना तो लाइट होती थी ना बिजली इस तरह के कोई साधन नहीं हुआ करते थे l
घोड़ों से ही लोग चला करते थे और यह हरिद्वार में ही रहा करते थे उस समय जब उन्होंने अपने गुरु से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त की थी, तब केदार सिह ने बहुत से वर्णन सुने थे कि अप्सराओं की सिद्धि अगर की जाए तो वोना सिर्फ वह प्रेम और सौंदर्य की देवी होती है बल्कि अद्भुत शक्तियां भी प्रदान करती हैं साथ ही साथ यह भी हो सकता है कि वह पत्नी रूप में भी प्राप्त हो जाए l अप्सराओं के बारे में पौराणिक ग्रंथों में लिखा ही हुआ है वह कितनी खूबसूरत होती है l केदार सिंह ने जो गुरु बनाए उन्होंने गुरु से ही दीक्षा लेना चाहा, गुरु ने गुरु मंत्र की दीक्षा दी उसके बाद केदार सिंह ने उनसे पूछा गुरुदेव अगर मैं अप्सरा साधना करूं यानी परियों की सिद्धि करना चाहूं तो कोई मार्ग बताएं कि निश्चित रूप से मुझे सफलता मिले l इस पर गुरु ने कहा ठीक है मैं योग में बैठता हूं और कल शाम तक तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दे दूंगा, इसके बाद वह 1 दिन के लिए चले गए l अगले दिन केदार सिंह के पास गए और उन्होंने उनसे पूछा गुरुवर आप मुझे यह बताएं कि क्या कोई मार्ग है अप्सरा को सिद्ध किया जा सके और मेरी इच्छा है कि मेरी पत्नी बिल्कुल अप्सरा जैसी हो l क्यों ना अप्सरा ही मुझे पत्नी के रूप में प्राप्त हो जाए, कोई ऐसा मार्ग बताएं l आप बताएं मुझे क्या करना है तब उन्होंने कहा- केदार सिंह सुनो जहां पर जन सम्मान लोग घूमते हैं उनकी ऊर्जा का स्तर अलग होता है, देवी ऊर्जा का स्तर अलग होता है, अलग अलग ऊर्जा होने की वजह से दोनों जगह एक चीज संपन्न होना संभव नहीं है अगर जहां पर यांत्रिक कार्य किया जा रहा है वहां चिकित्सकीय कार्य नहीं होते ये दोनों बातें अलग अलग है क्योंकि दोनों के गुण धर्म अलग हैं, इसलिए तुम्हें पर्वतों पर जाकर यहां साधना करनी होगी तभी तुम्हें अप्सरा प्राप्त हो सकती है l मैंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान से एक ऐसी जगह के बारे में देखा है और सुना है अगर तुम वहां जाते हो तो निश्चित रूप से 1 वर्ष से पहले ही तुम्हें अप्सरा पत्नी के रूप में साक्षात प्राप्त होगी l इस पर केदार सिंह बहुत ही प्रसन्न हुए उन्होंने कहा ठीक है गुरुदेव आप जैसा कहते हैं वैसा ही मैं करूंगा l पुराने समय के लोगों के मन में भय नहीं होता था क्योंकि चारों तरफ एक ही जैसा वातावरण था l जंगल होते थे जो बड़े-बड़े उजाड़ स्तर के होते थे, पहाड़ पर लोगों को भय नहीं होता था l जैसे आज कल किसी को कह दिया जाए जंगल में रात बिताकर आए तो लोगों को भय आ जाएगा l हमारे यहां गृहस्थ आश्रम के बाद वानप्रस्थ होने के बाद अंतिम आश्रय जिससे सन्यास कहते थे l उस समय ज्यादातर जितने भी लोग होते थे वह घर बार छोड़कर पर्वत स्थलों पर चले जाया करते थे और तपस्या किया करते थे तब तक किया करते थे जब तक उनकी मृत्यु नहीं होती थी l
इसलिए वह संन्यास आश्रम की तरह जाना चाहता था तो उनके लिए कोई कठिन बात नहीं थी l केदार सिंह ने हां भर दी l हां ठीक है गुरुदेव लेकिन आप स्थान का वर्णन कीजिए कि कौन सा स्थान है और कहां मुझे जाना है l यह जगह उस समय उत्तर प्रदेश में आती थी उत्तराखंड की सारी जगह उत्तर प्रदेश ही थी इसे संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था लेकिन जो पहाड़ी इलाका था जिसे लोग उत्तराखंड या उत्तरांचल के भी नाम से जानते हैं l ऐसा करो तुम यहां एक जिला है टेहरी, उस टेहरी जिले में फेगुल पट्टी नामक स्थान है वहां से लगभग चार-पांच किलोमीटर की दूरी तय के बाद आप पहुंचेंगे खेट खाल और वही जाकर आपको वह साधना करनी है l वहां पर 9 अप्सराएं रहती है जो नौ देवियों के रूप में पूजी जाती है l वहां पर आथरी भराड़ी(आछरियों) यानी कि परियों के नाम से लोग संबोधित करते हैं l यह दिव्य अदृश्य रूप में विद्यमान है l सभी प्रकार की अप्सराएं वहां पर घूमती रहती है चलती रहती है l आप वहां जाइए और साधना करिए इससे आप उन लोगों के संपर्क में आ पाएंगे और निश्चित रूप से अप्सरा सिद्धि में सफलता भी प्राप्त होगी l गुरु देव ने जो स्थान बताया था, यह उसकी खोज करते हुए अपने घोड़े पर बैठ कर चल दिए, धीरे-धीरे करके उस स्थान तक पहुंच गए l काफी बीहड़ इलाका हुआ करता था उस समय वहां दूर-दूर तक जन सामान्य नहीं था l गांव भी उससे काफी दूर पर स्थित था l एक जगह उन्होंने चुनी और धीरे-धीरे करके वहां पर उन्होंने अपनी झोपड़ी बनानी शुरू कर दी l झोपड़ी बनाते-बनाते जब उनको काफी समय हो गया तो धीरे-धीरे करके अब उन्हें लगा कि यह जगह सही है और मैं यहां अकेले रहकर साधना कर सकता हूं l साधना क्षेत्र में भी ऐसा ही होता है अगर आप बिल्कुल अकेले रहकर साधना नहीं करोगे तो आपको सिद्धियाँ मिलने की संभावना बहुत कम हो जाती है, क्योंकि दिन भर आप किसी ना किसी से मिलते रहेंगे उसकी शक्ति आपको मिलती रहेगी और आपकी शक्ति उसके शरीर में प्रवेश करेगी तो जो वह उस लायक के नहीं है, वह शक्ति आपको प्राप्त नहीं होगी l इसलिए भूत प्रेत पिशाच जैसी चीजें श्मशान में दिखती है क्योंकि आदमियों का जाना वहां कम होता है और ऐसे स्थान जहां बहुत ही बीहड़ इलाका हो कोई नजर ना आता हो, वहां अलग तरह की अतृप्त आत्माएं आती है l कोई ऐसी जगह जहां कोई व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो उसी जगह पर वैसी ही आत्माएं दिखाई देती है, यानी कि कहने का मतलब है किउनका स्वयं का अपना एक स्थान होता है जहां पर दूसरों का प्रवेश ना हो l ऐसा ही हमारे लिए होता है, हमारी दुनिया में दूसरी दुनिया वाले ना आ सके और हम भी उनकी दुनिया में ना जा सके l उनके संपर्क नहीं होगा तो यहां जो अप्सरा का क्षेत्र है यह उनका क्षेत्र अप्सरा का है परियों का है कैसे कहलाता l यहां पर बहुत ही ज्यादा चमत्कार घटित होते हैं, वहां के नजदीकी गांव में पहुंचने पर लोगों से जब उन्होंने बात की तो पता चला कि यह बात पूर्णता सत्य है l यहां परियों का क्षेत्र है और वह यहां घूमा करती है l उन्होंने कहा ठीक है वह लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज लेकर गए थे, खुद का चूल्हा और भोजन बनाने की सामग्री रख ली थी l केदार ने यह प्रक्रिया शुरू की तो उन्होंने संकल्प ले लिया कि जब तक मैं इस मंत्र को सिद्ध नहीं कर लेता तब तक नहीं रुकुंगा l तब गुरु से उनको कानों में मंत्र प्राप्त हो गया था l ऐश्वर्या नाम की अप्सरा जो मुख्य अप्सराओं में आती है उनकी साधना का मंत्र इन को दिया गया था उसके मंत्र को ले करके फिर इन्होंने रात्रि के समय जाप करने की सोची और बाकी दिन के समय में अनाज इकट्ठा करते वे कंदमूल फल तोड़ कर रख लिया करते थे ताकि उसको भोजन के रूप में इनके पास उपलब्ध रख सकें l इस प्रकार से वह रोज मंत्र वह रोज़ 91 जाप माला करते थे कुछ दिन बीते इसी प्रकार दिन बीतते चले गए l एक दिन अचानक जब यह रात को जाप कर रहे थे तभी बाहर खिलखिला ने हंसने की आवाजें आने लगी, पहले इन्होंने सोचा कि जाप पूरे कर लूं तभी मैं बाहर निकलूंगा l इन्होंने अपना जाप पूरा किया जब बाहर निकले तो झाड़ियों में सरसराहट बड़ी तेजी से हुई इन्होंने अपनी एक कुल्हाड़ी अपने पास रखी थी उसे उठा लिया कि कहीं कोई जानवर ना हो l अगर जानवर होगा तो मेरे पास अपनी सुरक्षा के लिए कोई ना कोई वस्तु उपलब्ध होनी चाहिए l इस प्रकार से इन्होंने उस कुल्हाड़ी से झाड़ी काटते हुए आगे बढ़े तो उन्होंने देखा कि एक कन्या जो की जमीन पर गिरी हुई है l 16 साल की एक लड़की पड़ी है, उसके कपड़े भी बिल्कुल फटे पुराने मैले से हैं रंग भी काला है, लेकिन पूरी काली होने के बावजूद भी अत्यंत ही सुंदर थी. यानी कि उसका चेहरा और अंग बहुत ही सुंदर थे l इनके मन में भाव आया कि गोरी होती तो कितनी अधिक खूबसूरत लगती, वह उसके पास गए और उसके चेहरे को, हाथ पैरों को हिला कर देखा तो पता चला कि बेहोश है और शायद अभी-अभी गिरी है l इन्हें कुछ समझ में नहीं आया उन्होंने उसे उठाया उसे कुटिया में वापस ले गए l कुटिया में लाने के बाद इन्होंने उसका थोड़ा सा इलाज भी किया और उसे ठीक करने की कोशिश की l अगले दिन तक उसे होश आ गया अब उस कन्या से इन्होंने पूछा कहां रहती हो? क्या करती हो? तो वह गूंगी आवाज में बोल रही थी l कुछ ही देर में उन्हें समझ आ गया कि यह लड़की बोल सकने में असमर्थ है यानी वह बोल नहीं पाती है l अब क्या करें इसे कहीं बाहर भी नहीं छोड़ सकते और इसे कहीं बाहर जाने को भी नहीं कह सकते इनके सामने बड़ी समस्या आ गई थी l इन्होंने सोचा कि अब मैं साधना करूं कि इसे देखूं लेकिन फिर मन में निर्णय किया कि नहीं चलो एक से भले दो l
कुछ कार्य तो वह करेगी क्योंकि वह सभी कार्य करने में सक्षम थी l झाड़ू पोछा से लेकर सारी चीजें वहां पर करने लगी, उसने वहां लाए हुए लकड़ी के बिस्तर को बहुत ही बेहतरीन नक्काशी करके, फूलों को सजा करके अच्छा सा एक बिस्तर बना दिया और एक चूल्हा जोतो मिट्टी का घास फूस से बनाया गयाथा उसको वहां निर्मित किया l भोजन के लिए भी अब इन्हें कुछ सोचना नहीं पड़ रहा था l केदार सोचने लगा मुझे भोजन की आवश्यकता थी जिसे वह स्वयं ही बनाने लग गई है l इनके लिए बहुत बड़ी खुशखबरी की बात थी इन्होंने सोचा कि मुझे एक बहुत बढ़िया कन्या प्राप्त हुई है जो मेरे सारे कार्य कर रही है l 1 दिन बाहर बहुत जोर से हवा और तूफान चल रहा था, उन्होंने देखा और कहा बड़ी समस्या हो गई क्या किया जाए अब पानी कहां से प्राप्त होगा तो इसने अपनी गूंगी आवाज में कहा मैं जाती हूं, तो केदार ने कहा बाहर खतरा है तुम मत जाओ लेकिन इनकी साधना का समय हो गया था इन्हें साधना पर बैठना जरूरी था l यह अपनी साधना में बैठ गए और कन्या पानी भरने चली गई कुछ देर बाद शेर की दहाड़ने की आवाज आई, जो बहुत ही तेज थी और तब तक यह अपनी साधना पूरी कर चुके थे l इनके मन में भय हुआ कि कहीं कन्या को कुछ हो तो नहीं गया l
अभी तक आपने पढ़ा केदार सिंह अपनी साधना करने के लिए टेहरी पर्वत पर चले गए और वहां खैट पर्वत पर एक झोपड़ी बनाकर रहने लग गए थे, उनको वहां एक करने की भी प्राप्ति हुई, वह कन्या उनकी मदद कर रही थी l उस कन्या को पानी भरने के लिए जाना पड़ा और एक शेर की आवाज आई l सिंह की आवाज सुनकर अपनी साधना कंप्लीट करने के बाद अपनी एक कुल्हाड़ी उठाकर उस ओर चल दिए, थोड़ी दूर जाने के बाद इन्होंने थोड़ा सा खून देखा, उनके मन में और भी अधिक भय पैदा हुआ l यह सोचने लगे बेचारी सोलह 17 साल की कन्या मेरा सारा काम करती थी और कितनी अच्छी थी, मुझे लगता है उसे ही कुछ हुआ है, बहुत सारी आशंका उनके मन में आ गई, इस बात को सोचते हुए वह तेजी से आगे बढ़े थोड़ी देर बाद इन्होंने एक झाड़ी के किनारे पर सिंह को मरे हुए देखा l उसकी गर्दन से खून निकल रहा था उसकी गर्दन पर तीन बड़े कांटे घुसे हुए थे, जो गर्दन के पार हो गए थे l किस प्रकार इस सिंह के गर्दन के झाड़ी वाले कांटे, कैसे पार हो हो गए यह सोचने लगे, तभी उनके मन में ख्याल आया, उसे कन्या को मुझे जल्दी से ढूंढना है l अगर सिंह के साथ ऐसा हुआ है तो उस कन्या के साथ क्या हुआ होगा l इधर उधर ढूंढते हुए, तभी वह कन्या एक बार फिर से बरगद के पेड़ के नीचे सिसकती हुई सी मिली l बहुत तेजी से रो रही थी, यह उसके पास दौड़ते हुए गए और उसे अपने गले से लगाकर सांत्वना देने की कोशिश की l उन्होंने उससे पूछा आखिर यहां हुआ क्या था l क्या और किस वजह से ऐसा हुआ? यह सिंह मर कैसे गया l इसने तुम्हें मार क्यों नहीं डाला? तुम बच कैसे गई? तुम तो इसके सामने कुछ भी नहीं हो, उसने रोते गले से बोला कि मैं जब यहां पर आई थी तभी सिंह मेरी तरफ लपका l फिर यहां पर मैंने चार पांच कन्या देखी जिनके हाथों में धनुष और बाण थे l वह धनुष लकड़ी के बने हुए थे, बाण लकड़ियों के झाड़ के बने थे, बड़ा ही रहस्यमई धनुष बाण उनके हाथों में था l सिंह जब मेरी ओर लपका उन कन्याओ ने झाड़ियाँ सिंह के ऊपर फेंक दी इतनी तेजी से वह झाड़ियां उसके गर्दन पर लगी, उसकी गर्दन में छेद हो गए और यही ढेर हो गया l केदार सिंह ने जब जाकर देखा और जब मुआयना किया तब पता चला कि वास्तव में जो झाड़ी थी जिसमें कांटे लगे हुए थे l अत्यंत ही नुकीले बहुत मजबूत , उन्हें तोड़ना संभव ही नहीं था l लेकिन इस तरह की झाड़ी के कांटे देखकर वह बहुत चकित हो गए l वह कौन स्त्रियां या कन्या थी? इस लड़की की रक्षा के लिए यह झाड़ियां सिंह पर फेंक दी l तभी केदार सिंह के मन में एक विचार आया, कन्या तो गूंगी थी आखिर यह बोलने कैसे लगी? वह उस कन्या के पास गए और उससे पूछने लगे कौन हो तुम इतने दिन से मेरे घर में रह रही हो कैसे तुम्हारी आवाज वापस आ गई l मैं डर के मारे बहुत तेजी से चिल्लाई और पता नहीं क्या हुआ मुख से आवाज निकलना शुरू हो गई फिर उसने पूछा तुम कहां की हो यहां कैसे आई हो? उसने कहा मुझे कुछ भी याद नहीं है, मैं जंगल में भटक गई थी और पिछला मुझे अब कुछ भी याद नहीं रह गया है l मुझे बस इतना याद है मेरा सिर एक पत्थर से टकराया और फिर मैं वहीं पर धीरे-धीरे करके बेहोश हो गई l मुझे कुछ भी होश नहीं आया आपने मुझे अपनी गोदी में उठाया तब भी मैं बेहोश अवस्था में थी, मैं जब आप की झोपड़ी में पहुंची तभी मुझे होश आया लेकिन पता नहीं मुझे ऐसा क्या हुआ कि मैं पिछला सब कुछ भूल गई हूं lमुझे यह याद नहीं है मैं किस गांव से हूं और मैं कहां से हूं? मैं कुछ नहीं जानती हूं l केदार सिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ ऐसी स्थिति कैसे हो सकती है कि तुम्हें कुछ भी याद ना हो उन्होंने उससे पूछा, कुछ तो याद करने की कोशिश करो पर वह फिर से रोने लगी और कहने लगी बहुत कोशिश कर रही हूं l रोए जा रही हूं आखिर मैं कौन हूं और मैं यहां क्या कर रही हूं? पर मुझे कुछ याद नहीं आ रहा केदार सिंह ने कहा ठीक है चलो कोई बात नहीं भविष्य मैं तुम्हें कभी ना कभी याद आएगा, जैसे तुम्हारी आवाज वापस आ गई है तुम्हारी स्मरण शक्ति भी जरूर कभी ना कभी वापस आ ही जाएगी l इसलिए चलो अब कुटी पर चल करके भोजन ग्रहण करो तुमने काफी देर से बना कर रखा हुआ है l वह भोजन भी खराब हो जाएगा, तो दोनों एक दूसरे को पकड़कर चलने लगे उसकी पकड़ में केदार सिंह ने अपना हाथ उसकी कमर पर हाथ देकर सहारा दे रखा था, क्योंकि वह पसीने से भीग चुकी थी l उसका पसीना केदार सिंह के हाथों में लगातार लग रहा था l धीरे-धीरे करके जब अपनी कुटिया में वापस आ गया, जैसे ही वह अपने बिस्तर पर लेटने को तैयार हुआ उसका दाहिना हाथ सोने की अवस्था में सर के नीचे आया तभी उसके हाथ में तेज खुशबू आई l चमेली के फूलों की खुशबू उनके दाहिने हाथ में बहुत तेज से महसूस करते हुए केदार सिंह आश्चर्यचकित हो गए l उन्होंने सोचा यह कैसे संभव है मैंने तो किसी फूल को छुआ भी नहीं, चमेली के फूलों की खुशबू मेरे दाहिने हाथ में कैसे आ रही है l फिर थोड़ा ध्यान देकर उन्होंने सोचा कि मैंने कन्या के कमर को पकड़ कर उसे उठाते हुए यहां तक लेकर आया था l इतनी देर में उसके जो कमर में पसीना था वहमेरे हाथ में लगता रहा लेकिन ऐसा कैसे संभव है कि मनुष्य की त्वचा में ऐसी खुशबू मौजूद हो इसके बाद कोतुहल वश सोती हुई उस कन्या के पास चुपके से उन्होंने उसकी कमर को छूने की कोशिश की l देखने पर फिर से आश्चर्य हुआ उस कमर में जो सुगंध है, वह वास्तव में चमेली के फूलों की ही थी l इस बात से उन्हें बड़ा आश्चर्य हो गया आखिर कैसे किसी कन्या के कमर पर चमेली के फूलों की खुशबू आ सकती है l ऐसे अद्भुत नजारे होते हुए भी गुरुदेव ने कहा था जब भी किसी भी प्रकार से अपने मन में भावनात्मक विचार ना लाए l वह चुपचाप अपने बिस्तर पर चले गए और अपने मन को शांत करते हुए ध्यान मग्न होने लगे l इसी प्रकार वह मंत्र का जाप करते रहें जो मंत्र उन्हें गुरु से प्राप्त हुआ था l उसका वर्णन करते हुए वह बताते हैं कि मंत्र इस प्रकार था “क्लीं ऐश्वर्य क्लीं अप्सराएं क्लीं हुम फट स्वाहा” इस मंत्र का उन्हें गुरु के द्वारा जाप करने के लिए कहा गया था l रोज वह 90 से 91 माला जाप करते थे, रात्रि के समय ही ज्यादातर इन मंत्र का जाप करना होता था और वह मंत्र जाप करते रहें l ऐसे ही कुछ दिन और बीत गए, दिन महीना होते आया इधर वह कन्या गृहस्थी का सारा कार्य कर रही थी जिससे वे बड़े संतुष्ट थे l यह कन्या मेरा सारा कार्य कर रही है और मैं इसे कहीं भेज भी नहीं सकता क्योंकि इसकी सुरक्षा मेरे दायित्व में है l यह कुछ भी नहीं जानती है अपने पूर्व जन्म के बारे में अपनी पूर्व स्थिति के बारे में किस प्रकार से कहां से आई है l जब तक मुझे इसका सच्चा ज्ञान नहीं हो जाता इसको किसी गांव में भी नहीं छोड़ सकता l इस प्रकार जब वह 1 दिन साधना कर रहे थे उनके कानों में एक तेज़ आवाज बांसुरी की आई, बांसुरी की ध्वनि सुन कर वह मोहित होते चले गए लेकिन गुरु के कथन की बात उन्हें याद आई के किसी भी बात से तुम्हें भ्रमित नहीं होना है l इसलिए वह उस आवाज पर ध्यान ना लगाते हुए मंत्र में ही ध्यान लगाकर लगातार साधना करते रहे l साधना पूरी हो जाने के बाद अचानक से उन्हें पायलों की छन कार की आवाजें झोपड़ी के पीछे से आई l अपनी साधना को संपूर्ण करने के बाद उठकर बाहर चले गए उन्होंने चारों तरफ देखा उन्हें छन छन छन की आवाजें आ रही थी l वह उस और बढ़ने ही वाले थे कि तभी उस कन्या ने उनका हाथ पकड़ लिया और कहा नहीं उधर मत जाइए मुझे भय लग रहा है lतो उसकी बात से वह ठिठक कर रुक गए तभी उनकी नजर थोड़ी दूर पर पड़ी एक बांसुरी पर गई, वह उस लाल रंग की बांसुरी के पास जाकर उसे उठा लिए और बजाने ही वाले थे कि उस कन्या ने एक बार फिर से उनका हाथ रोक लिया l कहा नहीं इसे मत बजाइए केदार सिंह ने कहा मेरा तो मन हो रहा है इसे बजाने का, इसे मैं बहुत बजाऊँ और इसे बजाते हुए सो जाऊं लेकिन तुम मुझे क्यों रोक रही हो l कन्या ने कहा इसे बजाने से वह आ सकती है और उनके आने पर आपके प्राण भी जा सकते हैं l इसलिए आप इसे ना बजाइए, फिर केदार सिंह ने पूछा वह कौन सी शक्ति है जिसकी वजह से मैं इसे बजाऊं तो वह आ जाएंगी, ऐसा कहने पर कन्या ने उन्हें एक छोटी सी कहानी बताई, एक व्यक्ति था जो अपनी गाय पालन करता था इस जगह आकर के बड़ी सुंदर बांसुरी बजाया करता था, उनकी बांसुरी इतनी सुंदर थी कि लोग सुनने आ जाया करते थे l उनकी गाय भैंसे और अन्य जानवर भी यहां चरा करते थे आज स्थिति यह है कि उसका कोई पता नहीं है l केदार सिंह ने पूछा आखिर क्या हुआ उसके साथ, कन्या ने कहा मधुर बांसुरी सुनकर आक्षरिया आ गई l वह उसे अपने साथ ही ले गई हमेशा हमेशा के लिए क्योंकि उन्हें उसका बांसुरी बजाना बहुत पसंद आया था l ऐसा सुनकर केदार सिंह को बड़ा अचरज हुआ आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई शक्ति मनुष्य को अपने ही लोक में ले जाए l वह साधना क्षेत्र में थे इसलिए विश्वास तो उन्होंने कर लिया था लेकिन पूर्ण विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने मन ही मन सोच लिया मैं इस बांसुरी को बजाकर जरूर देखूंगा कि कौन सी ऐसी शक्ति है जो किसी मनुष्य को उसके लोक से छीन सकती है l वह कन्या उनके भावों को समझ चुकी थी, कन्या ने कहा आप ऐसा कभी भी मत करिएगा मेरी आपसे यह प्रार्थना है l आप यहां जिस कार्य के लिए आए हैं वह करो और इन सब चक्कर में ना पड़ो क्योंकि यह एक बहुत ही भयानक सच है, अगर यह सच हो गया तो आपकी जान चली जाएगी ऐसा कहने पर केदार सिंह एक बार फिर से अपनी साधना में लग गए l उन्होंने सोचा ठीक है अगर यह कह रही है तो इसकी बात मान लेना ही उचित होगा, तभी कुछ देर बाद फिर से उन्हें ऐसा लगा कि कोई छम छम पायलो को करते हुए दाहिने ओर से बाएं और झाड़ियों की तरफ दौड़ा है l एक बार फिर से देखने लगे और कहने लगे इसका पीछा मैं अवश्य ही करूंगा और उन्होंने मन में कुछ ठान लिया था l
केदार सिंह ने सोचा की पायलों की छनकार जहां से आ रही है मुझे इसका पीछा करते हुए जाना है, हालांकि पहले ही उसे लड़की ने उसे मना किया था, ऐसी किसी भी अवस्था या चीजों के पीछे मत जाना लेकिन कोतुहल वश उनके मन में यह भावना आई कि मुझे इन चीजों के बारे में जानना और देखना जरूरी है l वह चुपके-चुपके उस छम छम के पीछे चलता चला गया, थोड़ी दूर चलने के बाद अचानक से सफेद सी रौशनी हुई l एक नग्न कन्या को देखा जो ऊपर से नीचे तक फूलों से ढकी हुई थी स्तन और योनि को ढकने के लिए कुछ फूल ही लगे हुए थे, बाकी उसका पूरा शरीर नग्न और गौरवर्णी था l दूर से देखकर उनके मन में अजीब से भाव आए कौन है जो पुष्प शरीर पर लपेटे हुए घूम रही है l उसने भी पीछे मुड़कर देखा और हल्का सा मुस्कुरा दी और तेज़ी से आगे जाने लगी, ऐसा देखकर केदार सिंह भी उसके पीछे लपका, तभी एक छोटा सा तालाब आ गया और कन्या उसमें धीरे-धीरे प्रवेश करने लगी l ये अद्भुत नजारा था, केदार सिंह ने उसे देखा और हस्तप्रभ होकर सोचा कोई कन्या तालाब के अंदर कैसे प्रवेश कर गयी है l तभी उन्होंने सोचा क्या मैं तालाब में प्रवेश जाऊ, फिर सोचा कि आखिर में सांस कैसे लूंगा l यह कोई दूसरी देवी शक्ति है ऐसा सोचते हुए वह वापस जाने ही लगे थे कि फिर एक बांसुरी पड़ी हुई देखी तालाब के किनारे, और मन में कौतूहल वर्ष फिर वह बांसुरी उन्होंने उठा ली l अब बांसुरी को उठाकर वह घर वापस आ गए l इसके तुरंत बाद उनके मन में एक भाव आया क्यों ना यह बांसुरी बजाकर देखा जाए, लेकिन उन्हें डर था, कन्या ने मुझे मना कर रखा है, जब कन्या बांसुरी के पास होगी तब नहीं बजाऊंगा l उन्होंने कन्या से कहा जाओ तुम पनघट से पानी भर कर ले आओ, ऐसा हो सकता है आज पानी की आवश्यकता ज्यादा पड़ जाए l कन्या ने हाँ करके सर हिला दिया और पानी भरने चली गई l अब यह घर से बाहर निकले और एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर बांसुरी बजाने लगे l थोड़ी ही देर बाद उन्हें फिर से छम-छम की आवाज आने लगी और वहां का वातावरण बदल गया l उन्हें फूलों की तेज खुशबू कभी गुलाब की, कभी गेंदा की, कभी चमेली की, अनेकों तरह के फूलों की खुशबू आने लगी l अलग-अलग फूलों की खुशबू चारों तरफ तेजी आने लगी और कुछ चमचमाहट हर झाड़ियों के पीछे से आने लगी l अब उन्होंने देखा उस नग्न लड़की को जो फूलों से ढकी थी, इन्होंने सोचा कि इसका पीछा करूं या बांसुरी बजाऊ, पीछा करने से क्या लाभ, मैं बांसुरी और तीव्रता से बजाता हूं l अगर मैं ऐसा करूंगा तो वह रहस्य मेरे सामने आ जाएगा कि वह कन्या कौन है ? फिर बांसुरी बजाना और तेज़ी से शुरू कर दी l तभी झाड़ियों में जोर से हलचल होने लगी, इतने में वह कन्या पानी भर कर वापस आ गई उसने अपना मटका रखा और तेज़ी से दौड़ते हुए उनके पास गई, उसने तुरंत ही वह बांसुरी पकड़ कर उनके हाथ से छीन ली और झाड़ियों में फेंक दी l जोर से चिल्लाते हुए बोली मैंने मना किया था ना, फिर भी आप बांसुरी बजा रहे हैं, क्या आपको मृत्यु को प्राप्त होना है l आप इन सब शक्तियों को क्यों नहीं समझते हैं, यहां पर बांसुरी बजाने से वह शक्ति आ सकती है जिसकी कल्पना भी आपने नहीं की है l यह पूरा इलाका खैट पर्वत कहलाता है l यहां वह अद्भुत दिव्य शक्तियां रहती हैं, अगर उन्होंने यह सुन ली, आपके सुर को सुनकर आपके पास आ गई तो फिर वह आपको अपने साथ ले जाएंगी, अपने लोक में छीन ले जाएंगी आपको, मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे आप l यह खैट पर्वत और इनके चारों ओर का इलाका बहुत ही दुर्लभ है l यह क्षेत्र अद्भुत अप्सराओं और परियों से भरा है, क्या यह बात नहीं जानते हो l मैं अच्छी तरह से जानती हूं और मैं यह नहीं चाहती आप अपने जीवन में मृत्यु को प्राप्त हो जाए l चलिए, केदार सिंह का हाथ पकड़ कर तेज़ी से गुफा की ओर चली गई, जाते वक्त उन्हें फिर से एक बार फिर लताड़ा और कहा सुनिए हर वक्त में मौजूद नहीं रहूंगी l लेकिन आप तो मां दुर्गा के भक्त हैं ऐसा करिए मां दुर्गे के मंत्र का जाप करिए, जब कभी विशेष खतरा आए या मुश्किल महसूस हो केदार सिंह बातें सुनकर बड़ा ही आश्चर्य में थे l यह इतना सब कैसे जानती है, गोपनीय बातें मुझे कैसे बता रही है फिर वो मन में ऐसी भावना रखकर रात्रि को सोने लगे l थोड़ी देर तक तो उन्हें नींद नहीं आई मधुरता और आश्चर्य की भावना से, उसके कुछ देर बाद वह सो गए l सोते ही उनके साथ वह दुर्लभ बातें घटित हुई l उन्हें लगा उनके पीछे से कोई कन्या या स्त्री ने आलिंगन किया है और उनकी पीठ और गर्दन पर चुंबन कर रही है l थोड़ी देर तक उन्हें आनंद की प्राप्ति हुई उसके बाद थोड़ा समय और बीता, फिर बहुत सारी कन्या उनके चारों तरफ से आ गई l इसी प्रकार चुंबन करने लगी, हर तरफ से इस तरह के चुंबनो की वजह से उनकी स्थिति बड़ी खराब होती चली गई l कोई उनकी जांघों पर, कोई उनके मुख पर, कोई उनके अंदरूनी अंगों पर, हर जगह चुंबनों की बरसात हो गई l अत्यधिक एवं तेज़ी से चुंबनो की बौछार से उनके मन में काम वासना पैदा होने लगी l उन्हें ऐसा लगा बहुत सारी कन्या उनके साथ ऐसा कर रही हैं l वह इस बात से परेशान हो गए तब उन्हें अपने गुरु की बात याद आई, गुरु ने स्पष्ट कहा था जब तक साधना पूर्ण नहीं हो जाती है, याद रखिएगा आपको आपका किसी भी प्रकार वीर्य क्षरण नहीं होने देना है l अन्यथा साधना टूट जाएगी ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाएगा, ब्रह्मचर्य की रक्षा करना अनिवार्य है l अगर तुम ऐसा करने में असफल रहे तोवर्षों तक भी प्रयास करोगे, तब भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाओगे l उनकी बात याद आते ही वह गुरु मंत्र का प्रयोग करने लगे l मन ही मन जाप से शक्तियों के आगे गुरु मंत्र का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ रहा था l इस पर उन्हें अचानक से उस कन्या की बात याद आई, अगर जब भी तुम किसी मुसीबत में हो तो मां दुर्गा का मंत्र जाप करना, उन्होंने मां दुर्गा को याद करते हुए, मां दुर्गा का मंत्र तेज़ी से उच्चारण किया l उच्चारण होते देख धीरे धीरे बहुत तेजी से उन कन्याओं के शरीर में ज्वाला उत्पन्न होने लगी और चीखते चिल्लाते हुए वह सारी कन्याये वहां से भागने लगी l चारों तरफ अंधकार ही अंधकार छा गया lयह बहुत तेजी से उठे और उठकर देखते हैं, चारों तरफ सब कुछ काला-काला है चारों तरफ देखते हैं, दाईं तरफ, बाई तरफ, ऊपर, नीचे हर तरफ काला ही काला नजर आया l वह इधर-उधर दौड़ते हैं तो भी उन्हें कुछ नजर नहीं आया l चारों तरफ अंधकार छाया हुआ था l ऐसी स्थिति को देख उनका दिमाग फिर से घूम गया वह घबराकर मां मां मां जगदंबे मां कहने लगे l यह स्थिति कुछ क्षण के लिए बनी रही, अचानक से वह कन्या आयी फिर से उनका हाथ पकड़कर उन्हें झकझोरा, उठिए, आप कहां आ गए हैं l आप तो घर में थे, यह आप कहां आ गए हो l उनकी एकदम से निंद्रा टूटी या भ्रम टूटा, उन्होंने देखा वह तालाब के बगल में जमीन पर पड़े है, फिर इन्होंने सोचा ऐसा कैसे हो सकता है इतने भ्रम में आ गए, अपनी कुटिया भूल कर l उनके साथ यह सब घटित हो गया, इस बात की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने स्वयं का निरीक्षण किया l जब निरीक्षण किया तो पता चला यह बात गलत नहीं हो सकती तत्परता से चुम्बन लेने की वजह से त्वचा लाल पड़ जाती है l उनका पूरा शरीर लाल हो गया था, उनके शरीर पर चोटों के निशान महसूस हो रहे थे l अब यह बात उनके लिए बड़ी भयानक प्रतीत हुई, उन्होंने उस स्त्री को धन्यवाद कहा, तुमने सही मार्ग बताया था l तुमने कहा था मैं फिर भी नहीं माना, सोते वक्त भी उन्हीं का ध्यान करता रह गया, आखिर वह कन्याएं कौन थी ? मैं उस भ्रम की अवस्था में यहां तक आ गया पता नहीं कब सो गया हूं और मेरे साथ यह सब घटित हुआ l उन्होंने कहा आप मेरी मदद करते रहिए क्योंकि मुझे अपनी साधना पूर्ण करनी है l कन्या ने हामी भर दी और कहा आगे से इस बात का ध्यान रखिएगा, ऐसा कुछ भी होने ना पाए l जिसकी वजह से आपकी साधना भंग हो जाए, क्योंकि यह मैं खुद नहीं चाहती l मैं स्वयं आप पर बहुत बोझ बनी हुई हूं और मैं नहीं चाहती आपके साथ कोई अनिष्ट हो l यह खैट पर्वत इस समय टिहरी नामक जगह पर स्थित है, बहुत वर्षों से आक्षरियो के कब्जे में है अक्षरियो के नाम से परियां और अप्सराएं आती रहती है l यह उनका क्रीड़ा स्थल बन चुका है, अर्थात खेल का मैदान l जो भी आकर इन को सिद्ध करने की कोशिश करता है, पर यह तो अवश्य मिलती है लेकिन ऐसी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है किअगर आप इस परीक्षा में असफल हो जाओ तो, अप्सराएं आपको खींचकर अपनी दुनिया में ले जाती हैं, आप की मौत हो जाती है l जैसा कि मैंने आपको बताया था, यहां पर एक ग्वाला बांसुरी बजाते हुए यहां पर रहता था अब वह जीवित नहीं है l वे उसे अपने लोक में ले गई हैं आज भी उसकी बांसुरी कहीं ना कहीं पड़ी हुई मिल जाती है किसी ना किसी को l अब केदार सिंह का माथा ठनका और कहा कि हां मैंने भी वह बांसुरी को बजाया था और आपने उसे छीन कर के दूर फेंका था l कन्या ने कहा इसका मतलब वह आपकी बांसुरी नहीं थी, केदार सिंह ने कहा हां, वह मेरी बांसुरी नहीं थी l मुझे वह बांसुरी तालाब के किनारे ही मिली थी l कन्या ने कहा आपको सावधान रहने की आवश्यकता है और आप अब जाइए अपने रक्षा कवच मंत्रों का भी प्रयोग करके चारों तरफ रक्षा घेरा बना करके ही साधना करें क्योंकि अब आपके साथ और भी आप की परीक्षाएं हो सकती है l ऐसा कह कर वह दोनों चल कर घर आ गए l मन ही मन मां दुर्गा को इन्होंने अर्थात केदार सिंह ने प्रणाम किया और कहा मां दुर्गा ने मेरी रक्षा कर दी l मैं इनकी सहायता के बिना साधना संपन्न ही नहीं कर पाऊंगा, अब आपके ही सुरक्षा मंत्रों से साधना करूंगा l इसके बाद जब वह साधना में बैठे उनके मन में फिर से वही दुष्ट विचार आने लगे, जो रात्रि में उनके साथ हुआ था, बार-बार उन्हीं विचारों का ध्यान करते हुए साधना करते रहे l वह जानते थे की मन में इस तरह के श्रृंगार भाव नहीं आने चाहिए, लेकिन उनके साथ जो घटना घटी थी, वह मन से नहीं निकल रही थी l साधना के दौरान उन्हीं भावों को सोचते रहे, फिर धीरे-धीरे जैसे ही साधना पूरी हुई उन्हें तेज ज्वार आ गया l उन्हें बुखार आने पर वह ठिठुरते हुए लेटे थे, जब यह बात उस कन्या को पता लगी तो कन्या ने उसका उपाय उनके लिए प्रस्तुत किया l
केदार सिंह को बुखार आ चुका था और वह रात में ठंड से ठिठुर रहे थे यह बात कन्या को पता चली तो उन्हें दया आई वह दौड़ी दौड़ी जंगल की ओर चली गई और वहां से बहुत सारे फूल इकट्ठा करके ले आई उसके बाद उसने केदार सिंह को एक बिस्तर पर लेटा दिया और फूलों की एक सेज सी तैयार कर दी उनका पूरा का पूरा बदन फूलों से भर कर रख दिया केवल नासिका का भाग थोड़ा खुला रखा ताकि वह सांस लेते रहे इधर इन के तलवों में वह किसी प्रकार का तेल मलने लगी बीच-बीच में उठकर सर पर पट्टी भी कर रही थी रात भर में ही वह ज्वर चला गया अगले दिन वह इस प्रकार उठे की रात को कुछ हुआ ही ना हो इस बात के लिए उन्होंने कन्या को धन्यवाद दिया और कहा यह कैसी विद् याऐ है जो तुमने मुझे सिर्फ फूलों से ठीक कर दिया उस कन्या ने बताया मैं वेद भी जानती हूं मुझे वैद्यय विद्या भी आती है और यह कोई साधारण फूल नहीं है देवीए फूल है इसलिए मैंने आपके चारों तरफ रखा जो विशेष प्रकार का ज्वर था वह ठीक हो गया अब आप अपनी साधना को सावधानीपूर्वक करते रहिए इस प्रकार कहने पर बड़े उत्साह के साथ केदार सिंह ने फिर से अपनी साधना शुरू कर दी अब तक 4 महीने बीत चुके थे उनकी साधना तेजी से होती चली जा रही थी जब भी वह साधना करते थे तो उन्हें पायलों की आवाजें अजीब अजीब से स्वर बांसुरी की आवाजऐ अलग-अलग प्रकार के बाधुरे और अलग-अलग तरह के फूलों की खुशबू आती रहती थी इस बात से विचलित ना होते हुए वह लगातार साधना करते रहे और आगे बढ़ते रहें एक दिन एक बिल्ली आई और पंजा मार कर चली गई पंजा मारने के बावजूद भी वह अपने स्थान पर अडिग रहे क्योंकि वह इस बात को जानते थे साधना में कोई समस्या आए तो डरना नहीं है ऐसे ही कुछ दिन और बीत गए पांच महीने पूरे हो चुके थे छठा महीना शुरु हो चुका था छटा महीना शुरू होते ही उन्हें अपने आसपास एक आभा किरण नजर आने लगी उन्हें लगा मेरे अंदर कुछ शक्तियां जागृत हो रही है वह साधना लगातार करते जा रहे थे एक दिन रात में वह कन्या उनके पास फिर से आई और कहने लगी आप साधना कर रहे हैं तो आपको सुरक्षा घेरा की जरूरत होगी आपको सुरक्षा घेरा का प्रयोग जरूर करना चाहिए साधना के आप अंतिम चरण में है अंतिम चरण में आपके साथ ऐसे असंभव कार्य होंगे जिसके बारे में आप सोच नहीं सकते इसलिए मेरी बात मानिए उनकी बात को समझते हुए केदार सिंह ने कहा आप बिल्कुल सही कह रही है मुझे पहले ही निर्माण मंत्र से अपने चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लेना चाहिए मैं ऐसी भूल करता रहा हूं बार-बार आप मुझे ना बताए तो मैं मूर्खता में गलतियां कर रहा हूं इस बात की गंभीरता सोचते हुए चाकू और लाल सिंदूर से उन्होंने अपने चारों तरफ सुरक्षा घेरा बना लिया और साधना करने लगे रात्रि में 11 या 12 बजे रात साधना कर रहे थे तभी उन्हें तेज शेर की जोर से दहाड़ ने की आवाज आई पर जैसा कि उनके गुरु ने कहा था साधना काल के दौरान बिल्कुल किसी तरह का भय होते हुए साधना करते रहना थोड़ी देर बाद वह गुराहट की आवाज बढ़ती चली गई फिर सिंह ने इनकी झोपड़ी के छप्पर पर हमला कर दिया उसको नोचना शुरु कर दिया बाहर का वातावरण बहुत ही भयानक हो चुका था यह मन ही मन डरने लगे यह शेर हमारे झोपड़ी को तोड़ डालेगा मन में मां पर विश्वास रखते हुए मंत्रों का जाप करते रहे इसके बाद वह सिंह ठीक इनके सामने आकर बैठ गया उसने जोर से इनके मुंह के ऊपर दहाड़ा लेकिन भयंकर भयभीत होने के बाद भी आंखें खुली फिर भी लगातार साधना करते रहे थोड़ी देर बाद उस सिंह ने इनके पैरों पर अपने मुंह को रख दिया इन्हें पूरा अहसास हुआ कि सिंह ने अपने मुंह को मेरे पैरों पर रखा है यह खा भी सकता है मुझे मार भी सकता है इस बात की चिंता किए बिना वे लगातार साधना करते रहे और आंखें बंद करके जो कि वह पसीना पसीना हो चुके थे शरीर से पसीना ऐसे गिर रहा था जैसे झरने से पानी शरीर से पसीना लगातार टप टप टप टप गिर रहा था इतना भयभीत यह हो चुके थे लेकिन सिंह ने इन्हें कुछ भी नहीं किया उसने अपना मुंह उनके पैर से हटाया और वहां से चला गया यह साधना करते रहे रात की गंभीरता को देखने के बाद उन्होंने देखा सुरक्षा घेरा के अंदर सुरक्षित थे फिर वह कन्या के पास जाकर कहा अगर तुम कुछ दिन पहले नहीं बताती कि मैं मां के मंत्रों से सुरक्षा घेरा बना लूं आज शायद वह शेर मुझे जान से ही मार डालता मुझे नहीं पता वह शेर मायावी था या वास्तविक लेकिन उस शेर ने बहुत ही स्थिति बिगाड़ डालीअब दिन में उन्हें छप्पर बनाना था छप्पर बनाने के कार्य में कन्या ने उनकी मदद की दोनों ने मिलकर छप्पर बनाकर कुटी को सही से तैयार कर लिया गया फिर से वह कुटी बनकर तैयार हो गई और उस कुटी में एक लकड़ी का दरवाजा बनाया गया क्योंकि कोई बाहरी जानवर ना आ जाए अंदर कुटी में ना प्रवेश कर सके एक बार फिर से साधना शुरू हो गई सातवां महीना शुरु हो चुका था आज उन्हें ऐसा एहसास हो रहा था उन्हें सिद्धि मिल जाएगी 7 महीने कठिन तपस्या के बाद उन्हें ऐसा लगने लगा चारों और टिमटिमाते बिंदु उनके चारों ओर घूम रहे थे और लड़कियों के खेल खिलौने की आवाजें आ रही है अपनी साधना से निश्चिंत होकर तभी किसी ने जोरदार तमाचा उनके कान पर जड़ दिया उठ यहां से साधना छोड़कर भाग नहीं तो तेरा विनाश हो जाएगा यह स्वर उनसे कहे गए अब तक केदार सिंह को यह बात समझ में आ चुकी थी साधना में इस प्रकार की अनुभूति होते हैं इनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं इस बात को सोचते हुए वह साधना में फिर से लीन क्योंकि वह जानते थे साधना का अब अंतिम चरण चल रहा है किसी भी समय अब मुझे सिद्धि प्राप्त हो सकती है इसी प्रकार वह साधना करते हुए आठवां महीना शुरू हो गया 8 महीने के बाद गुरु ने उन्हें कहा था कि आप हवन भी अवश्य करें हवन करने के बाद उन्होंने दशान हवन किया अब नौवां महीना शुरू हो गया 9 महीने की कठोर साधना के बाद जाप संख्या पूरी हो चुकी थी जितनी गुरु ने बताई सिद्धि प्रत्यक्षीकरण साधना अभी बाकी थी उसी मंत्र के जाप से वह सिद्धि प्रत्यक्षीकरण जो उनके गुरु ने दिया था अब वह अनुष्ठान करने लगे उसी मंत्र का जाप अब अंतिम दौर पर चल पड़ा उन्हें मालूम था अगर यह प्रक्रिया पूर्ण हो गई तो अब अप्सरा को आना ही पड़ेगा साधना के नौवें महीने के आखिरी दिनों में अचानक से एक बहुत तेज तूफान चलने लगा ऐसा लगा उनकी झोपड़ी उड़ी जा रही है चारों तरफ भयंकर तूफान था तूफान ऐसा था जो वास्तविकता में आ गया था वह उसकी वास्तविकता को महसूस भी कर पा रहे थे लेकिन वह साधना नहीं छोड़ सकते थे धीरे-धीरे करके तूफान शांत होने लगा और उनके सामने एक प्रकाशित बिंदु हो गया वह धीरे-धीरे उनकी तरफ आया और गुलाब के खुशबू वह सुगंध काफी तेज काफी मधुर थी वह अपना जाप अनुष्ठान करते रहे अभी एक कन्या बिल्कुल सामने आकर के उनके साथ बैठ गई उस कन्या ने घुटने से घुटना सटा कर के बैठ गई वे समझ गए कि कोई अप्सरा या कोई मायावी शक्ति आई है लेकिन फिर भी वह साधना करते रहें इसके बाद वे कन्या उनके सिर पर अपना सिर रख दी जैसे वे साधना करते जा रहे थे जैसे लोग सोते हैं वैसे ही उस कन्या ने अपना सर उनके सर पर रख दी थोड़ी देर यह होने के बाद जब जाप पूर्ण होने ही वाली थी कन्या ने उन्हें अपनी बाहों में दबोच लिए और होठों पर लगातार चुंबन करने लगी चुंबन इतनी तेजी से उसने किया मंत्र का जाप रुक गया जैसे ही यह मंत्र जाप करते करते रुक गए इनकी आंखों से आंसू आने लगे और उन्होंने अपनी आंखें खोली खोलते ही यह भोचक्के रह गए यह वही कन्या थी जो उनकी सेवा कर रही थी लेकिन वह तो रंग में काली थी यह कन्या तो अत्यंत ही गौर वर्ण इतनी ज्यादा गोरी उसके शरीर से बहुत तेज प्रकाश निकल रहा था उसकी भी आंखों से आंसू आ रहे थे और वह लगातार उनके होठों पर चुंबन किए जा रही थी और अब वह तुम बनो की बरसात रोकते हुए चुपचाप उन्हें लगातार वह घूरने लगी और बड़ी तेजी से मुस्कुराने लगी उस कन्या का इतना रूपवान शरीर उन्होंने आज तक नहीं देखा क्योंकि वह तो यह जानते ही थे कि चेहरा उनका सुंदर है लेकिन यह इतनी गोरी होगी सदा यह मेरे साथ काली बनके रही वह यह सोच भी नहीं सकते थे अब कन्या ने स्वयं ही कहा आपकी साधना पूर्ण हो चुकी है आपने मुझे प्राप्त कर लिया है मैं ऐश्वर्या अप्सरा हूं मैं ही आपकी सहायता के लिए एक ही महीने के अंदर आ गई थी ताकि आपकी साधना पूर्ण करा सकूं आज आपने मुझे सिद्ध कर लिया है और आज से मैं आपकी हो गई हूं आपकी मेहनत और आप के समर्पण को देखकर मेरा दिल पिघल चुका है मेरे आंखों से आंसू आ रहे हैं मैं यह बात नहीं जान सकती थी कि कोई मेरे से इतना प्रेम कर सकता है मेरे लिए ही आपने इतना समय इस जंगल में बिताया इसलिए मैं आपके प्रति समर्पित होती हूं लगातार आपके साथ रही मैं यह सोची कि कहीं आपके साधना भंग ना हो जाए इसीलिए मैंने अपना स्वरूप काला बना लिया था मैं अत्यंत ही काले रूप में आपके साथ रहती थी आपकी सहायता करती थी इसीलिए आप मुझे सिद्ध कर सके मेरी सारी सहेलियां और यहां पर सारी अप्सराएं यह कोशिश करती रही आपके साधना भंग हो और आप को आकर्षित करके अपने लोक में ले जा सके कारण यह है कि उन लोक में पुरुष नहीं होते हैं केवल स्त्रियां और कन्या ही रहती है मैंने उन सब से आप को बचाया इसलिए मैं बार-बार आपसे बांसुरी छीन लेती थी और कोई भी आपको ऐसा कार्य नहीं करने देती थी अन्य अप्सराएं आपके पास आ सके ऐसी विडंबना देखते हुए आज आपने मुझे सिद्ध कर लिया आज से मैं आपकी हुई बोलिए आप क्या चाहते हैं केदार सिंह के भी आंखों में आंसू थे उसके प्रेम और निश्चय स्वभाव को देख करके बहुत ही खुशी महसूस हुई कि कोई अप्सरा स्वयं अपनी साधना सिद्ध करने के लिए इतना प्रयत्न कर सकती है वह ऐश्वर्या के प्रेम में डूब गए ऐश्वर्या से उन्होंने कहा मैं तुम्हें पत्नी के रूप में प्राप्त करना चाहता हूं क्या तुम मेरा पत्नी के रूप में साथ दोगी ऐश्वर्या ने कहा आप तो मुझे पहले ही प्राप्त कर चुके हैं लेकिन फिर भी पत्नी के लिए मुझे साकार रूप में रहना होगा लेकिन आप इस बात की गंभीरता को समझते हुए अगर मैं आपके इस प्रेम स्वरूप में रही तो अन्य अप्सराएं नाराज होंगी और अब अप्सराए कुछ ना कुछ ऐसा करेंगी जिससे आपको हानि हो सकती है केदार सिंह ने कहा जब तुम मेरे साथ हो कोई अन्य अप्सराएं क्या बिगाड़ लेंगी तुम मुझे पत्नी ही रूप में प्राप्त हो ऐसा कहते हुए बड़ी प्रसन्नता के साथ ठीक है मैं वचन देती हूं तुम्हें अब से मैं तुम्हारे साथ साकार रूप में ही रहूंगी मैं जब तक तुम्हारे साथ रहूंगी जब तक तुम्हारी इच्छा होगी और सदैव मैं तुम्हारी पत्नी बनकर ही रहूंगी और मैं हर प्रकार से तुम्हारी रक्षा सुरक्षा भी करूंगी तुमसे मुझे अत्यधिक प्रेम हो चुका है मैं तुम्हें कभी भी नहीं खोना चाहती हूं इसी प्रकार तुम मेरे मंत्रों का जाप करते रहो मैं अपना शरीर पूरा बना सकूं मैं साकार रूप में मानव को प्राप्त करती हूं अभी मुझ में ऐसी शक्ति नहीं आई है साकार रूप में लगातार तुम्हारे साथ रह सकूं अब इसकी बातों को सुनकर के प्रेम विवाह इन्होंने तुरंत कर लिया इस प्रकार पत्नी के रूप में ऐश्वर्या उन्हें प्राप्त हो गई लेकिन एक विडंबना साथ ही साथ शुरू हो गई अप्सराओं को लगा कि उनकी एक अप्सरा गायब हो चुकी है और वह एक मानव के प्रेम में पड़ चुकी है अप्सराए सोचने लगी किसी भी प्रकार से हमें अपनी अप्सरा को प्राप्त करना ही होगा और एक नया खेल वहां से शुरू हुआ
ऐश्वर्या अप्सरा को पत्नी के रूप में प्राप्त करके केदार सिंह बहुत खुश थे उनकी साधना भी संपन्न हो चुकी थी और ऐश्वर्य भी उन्हें पति रूप में प्राप्त करके खुश थी दोनों की मेहनत 9 महीने की मेहनत सफल हुई क्योंकि केदार सिंह ने साधना की और ऐश्वर्य अप्सरा ने उनका इंतजार किया लेकिन इस विचित्र दुनिया के भी कुछ नियम है अप्सराओं के भी कुछ ऐसे रहस्य हैं जो हमारी दुनिया से अलग होते हैं इसीलिए ऐश्वर्या अप्सरा ने केदार के पास जाकर उनको एक बात बताएं सुनो हमारी दुनिया के कुछ नियम है मैं तुम्हें किसी वस्तु के माध्यम से जुड़ सकती हूं और किसी अन्य माध्यम से नहीं इसलिए मैं अपने लोक की एक अंगूठी तुम्हें देती हूं तुम पहन लो यह जब तक तुम्हारे पास रहेगी मेरा और तुम्हारा नाता जुड़ा रहेगा ना ही यह खोने पाए और ना ही यह नष्ट होने पाए दोनों ही स्थितियों में तुम्हें छोड़कर मुझे जाना होगा क्योंकि यही ऐसा नियम है जो हमें भी निभाना पड़ता है इसलिए इसे मेरे प्राण समझ कर इसे अपने पास रख लो अंगूठी देने पर केदार ने उसे अपनी उंगली में पहन ली और इसके बाद दोनों प्रेम में जीवन बिताने लगे दोनों घंटो घंटो एक दूसरे को देखा करते और मुस्कुराते रहते शाम होते वक्त दोनों एक दूसरे के बाहों में हाथ डाल दूर शहर के लिए निकल जाते पहाड़ों की वादियों में उन्हें बड़ा ही आनंद प्राप्त हो रहा था वह खुशी दोनों के चेहरे पर छलकती थी दोनों एक दूसरे के प्रेम में डूबे रहते हैं इन सब बातों को देखते हुए अन्य अप्सराओं को उनसे अत्यधिक जलन होने लगी अप्सराओं का सोचना था क्या पुरुष सिर्फ एक अप्सरा के लिए ही है क्या ऐसा कोई पुरुष प्राप्त हो सकता है सभी अप्सराओ का अधिकार नही हो सकता है हम तो हर एक चीज बांटती हैं इसलिए सब ने संगोष्ठी बनाई ऐश्वर्या से मिलने के लिए पहुंच गई ऐश्वर्य अप्सरा अपनी सखियों को देखकर बहुत खुश हुई और बोलिए आइए आप सब का स्वागत है तो बताइए किस कारण वर्ष आप सबका यहां आ ना हुआ अप्सराओं ने उससे कहा क्यों हम तो हर एक चीज बाटकर कर चलते थे आज भी तुम कुछ बाट नहीं रही हो स्वार्थी बनी जा रही हो ऐश्वर्य ने कहा ऐसी कौन सी अवस्था आ गई जिसकी वजह से आप ऐसा कह रही है अप्सराओं ने कहा केदार तुम्हारा जो इस वक्त सासरिए पति बना है क्या उ से हमारे साथ नही बटोगी इस पर ऐश्वर्या को अत्यधिक क्रोध आया ऐश्वर्या अप्सरा ने कहा मेरी प्राप्ति के लिए उन्होंने बहुत प्रयत्न किया बहुत कोशिश करने के बाद आप लोगों ने उसे रोकने की भी कोशिश की उन्होंने मुझे प्राप्त किया है मानव शरीर का एक नियम है पत्नी पति वरता के रूप में रहती है इसलिए मेरे जीवन में केदार के अतिरिक्त कोई पुरुष नहीं है भला मैं क्यों उसे बाटूंगी आप लोग ऐसे विचार मन में भी ना लाए ऐश्वर्य की बात सुनकर अप्सराओं ने कहा ऐसा नहीं है क्या तुम अपने लोक के नियम भूल गई हो क्या तुम नहीं चाहती कि सभी लोग अन्य रूप से आनंद प्राप्त करें जब भी कोई पुरुष इस क्षेत्र में आया हमें प्रदर्शित किया और सभी ने समान आनंद प्राप्त किया क्या तुम यह सब बातें भूल गई हो इस पर ऐश्वर्य ने कहा नहीं मैं कुछ भी नहीं भूली हूं मानव जीवन की कुछ मर्यादा होती है यहां पर शरीर पंच तत्वों का बना होता है इसलिए वह किसी से बांटने योग्य नहीं है ऐसा करने पर भयंकर बीमारियां और ईश्वर की तरफ से दंड मिलता है इसलिए मैं अपने पति को ना छोड़ने वाली हूं ना बांटने वाली हूं आप लोग कृपया करके चली जाइए इसके बाद सारी अप्सराएं वहां से चली गई उन्हें मन में बड़ा क्रोध और लोभ था उन्हें केदार को प्राप्त करना था जिस प्रकार केदार ऐश्वर्य के साथ आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा है उन्हें भी वही चाहिए था भला कौन पुरुष जानता था उनकी साधना करके और फिर उन्हें प्राप्त करें ना और किसी पुरुष ना मंत्र मालूम है ना तंत्र मालूम है इस व्यक्ति को मालूम है एक अप्सरा पाकर संतुष्ट हो गया यह बात सोच कर के उन्होंने मन ही मन एक निर्णय लिया कि क्यों ना इन दोनों का वीक्षो करा दिया जाए इसके बाद हम केदार को आसानी से प्राप्त कर लेंगे यही सोच कर के अन्य अप्सराओं ने एक रणनीति बनाई केदार और ऐश्वर्या अप्सरा का संबंध 18 घंटों का है यह नियम है कि अप्साराए 24 घंटे में केवल 18 घंटे ही शरीर धारण कर सकती है यानी 6 घंटे के लिए हमारे लोक में आना पड़ता है पृथ्वी को छोड़ना पड़ता है यही वह समय होगा जब हम कुछ कर सकती हैं उसकी अंगूठी ही वह वास्तविक राज है जिससे वह उससे जुड़ी हुई है यही सोचते हुए उन्होंने कोई गोपनीय रणनीति बनाई और हंस पड़ी इधर दोनों एक दूसरे के प्रेम में डूबे हुए थे ऐश्वर्या अप्सरा का 18 घंटे का शरीर उनके साथ था और अप्सरा 6 घंटे के लिए गायब हो जाती थी ऐसे समय में अप्सरा हर प्रकार के भोजन अपने लोक से लाकर उन्हें खिलाया करती थी इस वजह से बहुत ही संतुष्ट जीवन बीत रहा था लेकिन एक दिन अचानक इन्हें मन में विशेष तरह के अनाजों खाने महसूस हुआ उन्होंने ऐश्वर्य से कहा चाहे तो तुम बना सकती हो लेकिन मैं चाहता हूं कि मैं पास के गांव में जाकर ले आऊ और तुम्हें अपने हाथों से बना भोज्य पदार्थ खिलाओ इसलिए जब तुम यहां से जाओगी मैं भी गांव की तरफ चला जाऊंगा वहां से मैं भोज्य पदार्थ ले आऊंगा प्रसन्नता के साथ हा मि दिखाते हुए ऐश्वर्य अप्सरा वहां से चली गई अर्थात 6 घंटे के लिए अपने लोक में क्योंकि हर दिन के लिए एक नियम होता है 24 घंटे में 6 घंटे उन्हें अपने लोग में देने होते हैं अप्सरा के जाने के बाद यह भी चल दिए गांव की तरफ गांव में पहुंचकर विद्वान के यहां पानी मांगने लगे तभी अचानक उनकी अंगूठी उंगली से निकल गई सामने अंगूठी को गिरते देख उनको भयंकर भय की उत्पत्ति हुई उन्होंने सोचा यह अंगूठी ऐसे ही कहीं गिर गई मेरे हाथ से तो मेरी अप्सरा ही निकल जाएगी मेरी पत्नी मुझे छोड़ देगी इसलिए सुनार से इस अंगूठी को मैं कसवा लेता हूं अब इसके बाद केदार वहां से चले गए गांव के एक सुनार के पास पहुंचे और सुनार से कहने लगे यह अंगूठी मेरी उंगली में थोड़ी ढीली आती है इसलिए आप इसे कस दीजिए सुनार ने कहा ठीक है अभी करता हूं जैसे ही सुनार अंगूठी कसने अंदर कमरे में गया अचानक से डाकूओ ने हमला कर दिया सारा सोना और अंगूठी भी छीन कर ले गए इस प्रत्याशित हमले से सभी लोग भगदड़ में आ गए और जब तक मामला सुलझा तब तक वह अंगूठी और सोना गायब हो चुका था अत्यंत दुखी अवस्था में केदार सुनार के पास गया और कहा तुमने तो मेरी जान ही ले ली किसी भी तरह तुम उस अंगूठी का पता बताओ सुनार ने कहा वह मेरे बस की बात नहीं है डाकू उस पहाड़ की तरफ गए हैं उन पहाड़ों मे जहां से तुम आए हो उसी तरफ वह डाकू भागते हुए गए हैं उनके पीछे-पीछे केदार भी भागता चला गया लेकिन डाकुओं का कोई पता नहीं था इधर अत्यंत हर्ष से डाकू जंगल में पहुंचे स्त्री रूप में बदल गए और हंसने लगे और उन्होंने वह अंगूठी दूर फेंक दी और कहने लगी हमारी चाल कामयाब रही अब ऐश्वर्या स्वर्ग में ही रह जाएगी और यह भी धरती पर ही रह जाएगा यह कहते हुए सब अप्सराएं गायब हो गई और इधर ढूंढते ढूंढते केदार के मन में मन में भयंकर पीड़ा उत्पत्ति हो गई ऐश्वर्य ऐश्वर्य पुकारता रहापुकारता रहा पर ऐश्वर्या नहीं आने वाली थी इसका कारण कि वह मार्ग बंद हो गया था जो स्वर्ग से और पृथ्वी की तरफ खुलता था और जिस माध्यम से अंगूठी से जुड़ी हुई थी इधर ऐश्वर्या 6 घंटे बाद आयामी द्वार में प्रवेश करने की कोई आया भी द्वार प्रकट ही नहीं हुआ उसने देखा जब कोई आयामी द्वार प्रकट नहीं हो रहा वह एकदम घबरा गई कोशिश करने लग गई कोई भी मार कोई भी रास्ता जिससे मैं केदार तक पहुंच सकूं पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बहुत देर प्रयास करने के बाद अब भयंकर विषाद उसे भी उत्पन्न हो गया और रोने चीखने चिल्लाने लगी अप्सराओं से गिड़गिड़ा कर विनती करने लगी कोई ऐसा रास्ता बना दो मेरे लिए मैं अपने पति के पास वापस जा सकूं मैं उसके बिना जीवित नहीं रह पाऊंगी और तेजी से आंसुओं की धारा उसकी आंखों से बहने लगे इधर ऐश्वर्य को ना पा के पागल से हो गए केदार ने पर्वत पर्वत जाकर के ऐश्वर्य ऐश्वर्य चिल्लाना शुरू कर दिया लेकिन ऐश्वर्य कहां आने वाली थी ऐसी विषम परिस्थिति देखते हुए कुछ दिन बीत गए दोनों अपनी आंखों से आंसुओं की धारा बहाए जा रहे थे इधर बेचैन हुआ केदार और उधर बेचैन हुई ऐश्वर्य अप्सरा लगातार रोए जा रहे थे तभी अप्सराओं ने एक षड्यंत्र फिर से रचा और वह केदार के पास उपस्थित हो गई उनमें से एक ने ऐश्वर्य का रूप बना लिया और बांसुरी लेकर उसके पास पहुंच गई कहां से बजाओ मैं फिर से आ गई हूं और उसके गले मिल गई उसने बांसुरी बजाई और सारी अप्सराए कर नृत्य करने लगी लेकिन सम्मोहन का असर ना होते देख सभी अप्सराओं ने वहां उपस्थित अपने आप को निर्वस्त्र कर लिया ताकि काम भाव उत्पन्न हो जाए एक बार फिर से इसके ऊपर वशीकरण का प्रभाव पड़े ऐसा करने पर भी उसके मन में कोई भी वासना उत्पन्न नहीं हुई उसके बाद उसने बांसुरी उठाकर फेंक दी और जोर जोर से रोने लगा फिर एक बार फिर से कहने लगा ऐश्वर्य ऐश्वर्य कहां हो तुम अर्थात दोनों का मन जुड़ चुका था एक दूसरे को अच्छी तरह पहचानते थे अब कोई भी रूप बंधन उन्हें बेवकूफ नहीं बना सकता था कोशिश करने पर भी उन्हें ऐश्वर्य नहीं दिख रही थी तो बड़ा ही दुखी होकर उन्होंने अप्सराओं से कहा तुम तो स्वर्ग की अप्सराऐ हो क्या मेरी ऐश्वर्य को मुझे लौटा सकती हो मैंने अपनी अंगूठी खो दी है क्या कोई मार्ग है अप्सराऐ वहां से लज्जित होकर चली गई कोई कुछ नहीं बोला इन्हीं में से एक सबसे छोटी अप्सरा जिसका नाम रती था वह जब ऐश्वर्या के पास पहुंची लगातार रोते और सिसकते हुए देखा उससे उसकी यह दशा देखी नहीं गई उसने ऐश्वर्या से कहा ऐश्वर्या मैं जाकर तुम्हारा संदेश तुम्हारे पति को सुना सकती हूं तुम चाहो तो ऐश्वर्या ने कहा ठीक है तुम मेरी मदद करोगी इस एहसान को मैं कदा भी नहीं भूलूंगी जाओ और मेरे पति को यह बातें कहना रात के समय बिस्तर पर लेटे हुए आंसू बहाते हुए अप्सरा रति प्रकट हुई और उसने बताया कि तुम्हारी ऐश्वर्या अप्सरा स्वर्ग में फंस चुकी है धरती पर नहीं आ पा रही है लेकिन एक मार्ग है अगर तुम 21 दिन की अखंड तपस्या मां दुर्गा की इस पर्वत पर अगर करोगे तो शायद कोई मार्ग निकल जाए मां दुर्गा ही कोई मार्ग बना सकती है जिसके माध्यम से तुम फिर ऐश्वर्या को पा सकते हो उसकी बात को सुनकर के मन में एक संकल्प लेकर उस पर्वत पर अखंड तपस्या करने लगातार 21 दिन बिना जल ग्रहण किए और बिना भोजन किए तपस्या करते हुए केदार बर्फबारी इन सब को चलता हुआ तपस्या करता रहा 21 वे दिन माता जगदंबा ने उसे दर्शन दिए और पूछा क्या है किस कारण से हे पुत्र मुझे याद किया है इतनी भीषण तपस्या क्यों कर रहे हो सारी बात उसने माता जगदंबा को बताई मां दुर्गा ने यह कहा ठीक है तुम्हारी समस्या में अभी हल कर देती हूं माता ने क्रोध से हुंकार भरी स्वर्ग तक के सभी जितना भी लोग था त्राराही मान हो गया सभी अप्सराएं टूटे हुए पत्ते की तरह धरती पर आ गिरी सारी अप्सराएं और साथ में ऐश्वर्य भी सब आकर वहां गिर पड़ी जमीन में उनके मुंह पर धूल लगी उनको महसूस हुआ मां के क्रोध के कारण ही ऐसा हुआ है माता ने क्रोध में होकरअप्सराओं को कहा क्यों ना मैं तुम सब का एक ही क्षण में संहार कर दु तुमने एक बेचारे निष्पाप व्यक्ति को इतना घोर कष्ट दिया है उसकी सफल अप्सरा साधना को भी नष्ट कर दिया बोलो क्या करूं मैं तुम्हारे साथ अक्षरिया चरणों में गिर गई माता के और क्षमा याचना करने लगी माता ने कहा सबसे पहले ऐश्वर्य और केदार को पति पत्नी के रूप में स्वीकार करो इनको अपने आशीर्वाद प्रदान करो सभी ने अपनी बातों के लिए क्षमा मांगी ऐश्वर्या से कहा यह सब हमारा ही करा धरा था अब तुम इस बात से मुक्त हो चुकी हो इसलिए अब तुम अपने पति को पा सकती हो अब मां ने केदार से पूछा पुत्र तेरी वास्तविक इच्छा क्या है क्या चाहता है तू केदार ने कहा मां मैं इसके बिना नहीं जीवित रह सकता हूं मेरा और इसका संबंध अटूट हो चुका है मुझे यह हर जन्म में हर प्रकार से मुझे यही पत्नी के रूप में मिले मैं इसके बिना जीवित नहीं रह पाऊंगा माता ने कहा लेकिन यदि पृथ्वी लोक में रहा तो यह कुछ समय में बूढ़ी हो जाएगी इस माया से तुझे भी छूटना पड़ेगा मृत्यु भी होगी बिक्षओ तो होगा ही होगा तो केदार ने कहा मुझे ऐसा मार्ग बता दीजिए जिससे कि यह हमेशा ही मेरे साथ रहे इसी प्रकार नौजवान और मैं भी नौजवान इसके साथ हमेशा रहता रहूं मां ने कहा ठीक है पुत्र अगर तेरी यही इच्छा है तो मैं तुम्हें गंधर्व का रूप प्रदान करती हूं तू गंधर्व हो जाएगा और यह तेरी पत्नी होगी तुम दोनों का निवास स्वर्ग में होगा लेकिन इसके लिए तुझे अपना शरीर त्यागना होगा बांके यू कहने पर उसने कहा मैं यह कर सकता हूं इसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं क्योंकि मैं मानव जीवन को जीना चाहता है इसमें बहुत ही रढ़ लब्ता होती है कुछ ही समय सुखिया देखने को मिलता है हर बात पर दुख ही दुख है पर हर समय समय बदलता चला जाता है हम बूढ़े होते हैं बीमार होते हैं यह सब से बचने के लिए मुझे अगर मृत्यु आ जाए और मैं ऐसा जीवन प्राप्त कर सकूं जिसमें सदा मैं जवान तो मुझे वही जीवन प्रदान करें माता ने यू कह के तथास्तु कहा और दोनों एक दूसरे के साथ हाथ में हाथ पकड़े चले गए इधर आक्षरियों ने माता आप हमसे रुष्ट ना होइए हम आपको वचन देते हैं प्रतिदिन आप की पूजा करने इस स्थान पर आती रहेंगी इस प्रकार माता अंतर्ध्यान हो गई अक्षरिया इसके बाद प्रतिदिन पूजा करने के लिए आती रहे लगातार पूजा करने से 1 दिन मां प्रसन्न हो गई मां 1 दिन फिर से प्रकट हुई और मैंने पूछा बताओ क्या इच्छा है तुम्हारी तुम इतने समय से मेरी पूजा और तपस्या कर रही हो परियों ने कहा माता यह स्थान परीलोक के नाम से प्रसिद्ध हो जाए सभी लोग जान जाए कि हम सभी अक्षरिया रहते हैं और हमारी इच्छा के विरुद्ध कोई भी ऐसा कार्य ना हो माता ने कहा ठीक है अक्षरियों ने कहा माता अगर कोई पुरुष यहां आकर 1 वर्ष की साधना करें तो वह हमसे सिद्ध भी हो जाए और अनुवांशित तथ्यों को हम यहां से हटा भी सके मैंने कहा ठीक है तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी आज से यह जगह परियों के नाम से जानी जाएगी बाद में भी जो भी कोई पुरुष अगर 1 वर्ष तक इसी प्रकार आराधना करेगा जिस प्रकार से केदार सिंह ने की तो तुम्हें यहां पर उनकी सिद्धि प्राप्त होगी तुम्हें वह अपने रूप स्वरूप में प्राप्त कर सकें आक्षरियों ने कहा आज से हमारा यहां पूरा वर्चस्व कायम रहे ऐसी व्यवस्था कर दीजिए मैंने कहा ठीक है अगर तुम्हारी यही इच्छा है तुम्हारा हाथ से यहां पर वर्चस्व होगा लेकिन याद रखना कभी कोई गलत काम मत करना क्योंकि उसके बाद भी तुम्हें मेरे ही प्रकोप का भागी होना पड़ेगा जिस प्रकार पहले तुमने की थी अगर तुमने इस बार गलती की तो मैं तुम्हें क्षमा नहीं करूंगी क्योंकि मनुष्य लोग के सारे बच्चे मेरे ही है किसी को भी मैं कष्ट में नहीं देख सकती आक्षरियों ने कहा ठीक है माता आज से हम भी यहां रहेंगे और आते जाते रहेंगे हर प्रकार से आपकी आज्ञा का पालन करते रहेंगे हर रोज इसी प्रकार पूजा के लिए आते रहेंगे इस प्रकार से यह कथा यहां पर समाप्त होती है उत्तराखंड में वास्तव में टेहरी गढ़वाल में जहां पर माता जगदंबा की पूजा के लिए मंदिर भी बना हुआ है इस घटना से वहां पर आज भी कहा जाता है अक्षरिया आज भी आती है और उस पूरे पर्वत में परियों का निवास है वहां आती जाती रहती है वहां के स्थानीय लोग आज भी डरते हैं कहीं उन्हें आक्षरिया उठा कर ना ले जाए कोई उनके साथ गलत ना करते हैं इस वजह से यह स्थान प्रसिद्ध हो गया है और यही नहीं गवर्नमेंट ऑफ इंडिया सरकार ने वहां की परियों के देश के नाम से भी बोर्ड लगा रखे हैं