नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अघोरी की दुर्गा साधना भाग 1 में अभी तक आपने जाना था कि किस प्रकार एक व्यक्ति के गुरु और उनके भी गुरु एक साधना करते हैं जो माता की एक तामसिक साधना है और उस साधना में उनके साथ क्या घटित होता है वह हमने अभी तक जाना जानने के लिए आगे पढ़ते हैं इनके पत्र को।
प्रणाम मित्र! सबसे पहले मैं आपका धन्यवाद कहना चाहूंगा कि आपने मेरे पत्र को शामिल किया। आगे क्या हुआ, मैं आपको बताता हूं। मेरे गुरु के गुरु जब मगरमच्छ के हमले के लिए अपने आपको तैयार कर रहे थे। तभी मगरमच्छ तेजी से इनके पास आया और उसने!
इनको अपने मुंह में रखने की कोशिश की लेकिन?
अचानक से ही रुक गया और इंसानी भाषा में इनसे बात करने लगा। उसने कहा। तू तो हिला डुला भी नहीं। कुछ भागता। कुछ इधर उधर दौड़ता तक तेरा शिकार करने में अलग ही आनंद प्राप्त होता। पर तू तो जरा भी हिला डुला तक नहीं।
माना कि मैं भूखा हूं लेकिन। जिस शिकार में मजा ना आए। उसको क्या करना इसलिए एक मौका देता हूं?
अगर तू मेरी यह, मेरे शरीर की भूख को किसी और के माध्यम से शांत कर सके तो जरूर मुझे बता और ऐसा कह कर उसने मुझे यानी कि मेरे गुरु को मौका दिया। मेरे गुरु के गुरु ने आंखें खोली और इस प्रकार मगरमच्छ को इंसान की तरह बात करते हुए देखकर आश्चर्य में पड़ गए। लेकिन उन्होंने सोचा कि कुछ भी हो इस मगरमच्छ की बात का जवाब देना। एक अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि इसमें इंसान ही समझ मौजूद है और यह कोई सिद्ध शक्ति अवश्य है। वरना इन जानवरों को कहा। इतनी अकल और साथ ही साथ यह इंसानी भाषा में बात भी कर पा रहा है। तब मेरे गुरु के गुरु ने कहा, मैं आपको भूख में क्या दूं। इस पर उस मगरमच्छ ने कहा, इंसान के बदले इंसान दे यानी कि अगर तू अपनी जान बचाना चाहता है तो किसी और इंसान की बलि मुझे दे दे। मेरे गुरु के गुरु ने कहा, बलि तो दे दो लेकिन मुझे इंसान मिलेगा।
अगर आप कोई इंसान मुझे बता दो तो मैं अवश्य ही उसकी बलि आपको दे दूंगा और इससे मेरी जान भी बच जाएगी। उस मगरमच्छ के इस प्रकार कहने से मेरे गुरु के गुरु अब कुछ शांत पड़ चुके थे क्योंकि वह यह बात समझ रहे थे कि अवश्य ही अगर इसने मुझे मौका दिया है तो मैं अपनी जान अवश्य ही बचा पाऊंगा। मगरमच्छ ने कहा, ठीक है तो तू अपने शिष्य की बलि मुझे दे दे। इस पर मेरे गुरु के गुरु ने कहा, जो मेरे साथ साधना कर रहा था। वह तो कहीं दिख नहीं रहा। फिर मैं इस की बलि कैसे दू? आप मुझे कोई और विकल्प बताइए तभी मगरमच्छ ने हंसते हुए कहा देख तेरे भाई और शिष्य कुछ दूर पर साधना कर रहा है जा। वहीं पर जाकर उसका सिर काट दें और मुझे बुला।
मेरे गुरु के गुरु ने जब यह देखा तो सच में कुछ दूरी पर मेरे ही गुरु साधना करते हुए उसे दिखाई दे। अब उन्होंने सोचा कि क्या यह सही रहेगा कि मैं अपनी ही शिष्य की बलि दे दूं। ऐसा करना कहां तक उचित होगा। पर अब विकल्प भी तो दूसरा कोई नहीं है। अगर मैंने इसकी बलि नहीं दी तो यह मगरमच्छ मुझे ही खा जाएगा। मगरमच्छ ने गुस्से से कहा ज्यादा देर मत कर मुझे भूख बहुत तेज लग रही है या तो मुझे तू खुद को खाने दे या फिर अपने शिष्य को खाने दे जैसा तू सोचता है वैसा कर । सोच कर बता ? इस पर मेरे गुरु के गुरु ने सोचा, अब क्या कर सकते हैं, मुझे लगता है। मुझे अपने शिष्य की बलि दे देनी चाहिए क्योंकि अपने गुरु के लिए अगर कोई शिष्य प्राण दे तो वह भी मोक्ष पाता है और शायद! इसके माध्यम से मेरी जान भी बच जाए। यही सोचकर मेरे गुरु के गुरु। चल दिए मेरे गुरु के पास वहां पर मेरे गुरु बैठे साधना कर रहे थे। उन्होंने पास ही पड़े एक तलवार को उठाया और उससे मेरे! गुरु के पास आकर खड़े होकर उन्होंने माता का नाम लेकर मेरे गुरु का सिर काट दिया।
गुरु का सिर जैसे ही जमीन पर गिरा अचानक से। सारा वातावरण बदल गया। उन्होंने देखा कि उन्होंने! अपने शिष्य की हत्या कर दी है। यह देखकर वह अब अपनी उस माया से जागे। मगरमच्छ अभी वहां पर था, लेकिन ना तो नदी थी ना ही कोई जगह पर जिस स्थान पर वह दोनों बैठकर साधना कर रहे थे। यह वही स्थान था। चारों तरफ का वातावरण कैसे बदल गया था कि वह नदी में पहुंच गए थे पर यहां तो कोई नदी नहीं है। यहां तो घनघोर जंगल है जहां शमशान स्थित है और इसी श्मशान में बैठ साधना कर रहे थे। दिन का पूरा वातावरण कैसे चेंज हो गया, वह यह सोचते रह गए। यह सब कैसे बदल रहा है। उन्होंने मगरमच्छ के हाथ जोड़कर उससे कहा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है मेरे। सारे कर्म दूषित हो गए। मैंने तो अपने ही शिष्य की बलि चढ़ा दी है पर मेरा हृदय पवित्र है। मैंने जो कुछ किया माया के वशीभूत होकर के किया है इसलिए हे मगरमच्छ आप जो भी हैं, मेरी इस बली को स्वीकार कीजिए। इस पर उस मगरमच्छ ने अचानक से ही एक स्त्री का रूप धारण कर लिया और वह एक शक्तिशाली शस्त्र धारी देवी के रूप में दिखाई देने लगी। हंसते हुए वह कहने लगी। तेरी भक्ति और तू दोनों ही अलग-अलग है भय के कारण जो अपनी बलि दे।
और उसकी जगह अपने शिष्य की बलि दे दे तो ऐसी अवस्था में उस साधना का क्या करें। मैं तुझे चेतावनी देती हूं। तूने मेरी सिद्धि गंवा दी है। मेरे दर्शन होने के बावजूद भी तुझे सिद्धि की प्राप्ति नहीं होगी क्योंकि तूने भय के कारण अपने ही शिष्य की बलि दे दी। मेरी माया का प्रभाव ऐसा था कि मैंने तुझे नया वातावरण दिखा दिया। तू इतना निरा मूर्ख है कि अगर बलि ही देनी थी तो स्वयं की दे देता और अगर तू ऐसा करता तो मैं तुझे ऐसी दुर्लभ सिद्धियां प्रदान करती जिसके बारे में तो सोच भी नहीं सकता था मैं। तेरी साधना से तो प्रसन्न थी। इसी वजह से साक्षात माया रूप धर कर सामने आई थी। लेकिन तू निरा मुर्ख निकला तूने अपनी इच्छा और अपने शरीर की रक्षा के लिए अपने हिस्से की बलि दे दी है। यह बहुत ही गलत कार्य है। अपने जीवन के प्राणों की रक्षा के लिए कभी किसी दूसरे के प्राण नहीं लेनी चाहिए।
लेकिन तू ने कई वर्षों तक मेरी साधना और उपासना की है। मैं उससे बहुत प्रसन्न हूं। भविष्य में तुझे सिद्धियां अवश्य प्राप्त होंगी लेकिन? यह सिद्धि तुझे कभी प्राप्त नहीं होगी। मेरी माया का असर अब मैं समाप्त करती हूं। तेरे शिष्य प्राण दान देती हूं और तेरा शिष्य फिर से जी जाएगा क्योंकि यह सब कुछ मेरा ही मायाजाल था और आगे के लिए सावधान करती हूं। मेरे तामसिक रूपों की साधना। जब करने की सामर्थ ना हो तो कभी मत करना, क्योंकि उन रूपों में मैं अवश्य ही दंड दे देती हूं। किंतु तू ने कई वर्षों तक मेरी साधना की है। इसी कारण मैं तुझे क्षमा करती हूं। और भविष्य में तुझे और सिद्धियां प्राप्त होंगी। इसका भी वरदान देती हूं, लेकिन इस साधना की सिद्धि तुझे कभी प्राप्त नहीं होगी और यह पाप भी तुझे हमेशा कष्ट देता रहेगा कि तूने अपने ही शिष्य की हत्या की थी। अब मैं यहां से प्रस्थान करूंगी।
ऐसी बात सुनकर मेरे गुरु के गुरु रोने लगे। उन्होंने गिड़गिड़ा कर उन माता जी से प्रार्थना की कि मां एक अबोध बालक समझकर मुझे क्षमा करो और मेरे लिए मार्ग प्रशस्त करो। मैंने आपके अतिरिक्त पूरे जीवन किसी और की साधना नहीं की है। आप के अतिरिक्त और किसी को नहीं माना है। क्या एक मां अपने इस पुत्र को क्षमा नहीं करेगी। यह बात और दिल की सच्चाई को देखकर देवी ने तुरंत ही सौम्य रूप धारण किया और उन्होंने कहा कि अगर मेरी किसी साधक में मेरे तामसिक रूपों को सिद्ध करने की सामर्थ ना हो तो हमेशा वह सात्विक साधना। हीं करें। मेरे दुर्गा स्वरूप की साधना करने पर उसके जीवन के हर कार्य संपन्न होते रहेंगे। बड़ी सिद्धियों के लालच में पड़कर अपना बेड़ा गर्क ना करें। अगर उसमें सामर्थ नहीं है तो वह ऐसे तामसिक प्रयोगों को ना करें। मैं सौम्य रूप में भी सात्विक सिद्धियां और वरदान देती हूं। जा! मैं तुझे क्षमा करती हूं।
इस प्रकार माता वहां से अदृश्य हो गई। मेरे गुरु अचानक से आंखें खोल देते हैं और कहते हैं क्या हुआ गुरुजी आप खड़े क्यों हैं इस पर मेरे गुरु के गुरु ने उनके साथ घटित हुई। सारी घटना उन्हें बतला दी। इस प्रकार दोनों लोगों ने बाद में केवल मां की तांत्रिक साधना ही जारी रखी तो इसी के साथ में अपना यह पत्र समाप्त करता हूं। गुरु जी और आपसे यही कहना चाहूंगा कि आपको मैंने अंत में गुरु शब्द से इसी संबोधित किया है क्योंकि आप! सभी के लिए गुरु के समान और जीवन में सभी के लिए सच्चे गुरु साबित हो रहे हैं। वैसे नहीं जैसे कि मेरे गुरु के गुरु साबित हुए थे। इसीलिए मित्र से गुरु की यात्रा आपकी जीवन को और भी अधिक प्रभावी बनाए। नमस्कार गुरु जी धन्यवाद
संदेश – इनका और इनके वचनों के बारे मे यहां पर यही कहना चाहूंगा कि जो भी साधना आप करना चाहते हैं, उसके अंतर्गत होने वाले विभिन्न प्रकार के माया जाल से और परीक्षाओं से अगर सामना होता है तो उसमें किसी भी प्रकार से अपने आप को उत्तीर्ण जरूर करा लें। तभी विभिन्न प्रकार की गोपनीय तांत्रिक साधना को करें अन्यथा माता की गुरु मंत्र द्वारा होने वाली सात्विक साधनाएं ही सर्वोत्तम मानी जाती हैं । तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें।आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।