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अष्टचक्र भैरवी रहस्य और साधना भाग 2

अष्टचक्र भैरवी रहस्य और साधना भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम अष्ट चक्र भैरवी, रहस्य और साधना के विषय में जानेंगे और यह भाग 1 से आगे की कथा है। जब अष्ट चक्र भैरवी देवी मां के सामने प्रकट हुई और वह उन्हें लेकर श्मशान भूमि में पहुंची तो वह पूछती हैं। मां आप यह बताइए कि आपने शमशान भूमि ही क्यों चुनी है तब देवी मां कहती हैं कि यह वह स्थान है जहां पर 2 जीवनों का मिलन होता है। यानी जहां एक तरफ मृत्यु लोक से आत्मा अपने विभिन्न लोकों की ओर जाने का मार्ग बना पाती है। ठीक वैसे ही यहां पर भी होता है। यहां से अब आत्मा विभिन्न लोकों और यमराज इत्यादि के पास पहुंचती है जिससे उसके जीवन में एक अलग ही स्तर का निर्माण होता है। स्थूल शरीर का नाश हो जाता है और इस शरीर के नाश होने पर जीवात्मा एक नए मार्ग की ओर गमन करती है। क्योंकि यहां दो दुनियाओं के बीच की जगह है। इसीलिए यह स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। साधना के लिए यहां पर जीवन का वास्तविक रहस्य उस आत्मा को पता चलता है कि किस प्रकार जीवन नश्वर है और सभी को मृत्यु प्राप्त होनी है। इसीलिए शमशान में जाकर सबसे शुद्ध और शांत होकर साधना की जाती है क्योंकि यहां पर सारे विकार शांत हो जाते हैं। इसीलिए इसे शमशान कहते हैं। यहां शांति छाई रहती है। इसीलिए यह स्थान साधना के सर्वोत्तम माना जाता है। तब अष्ट चक्र भैरवी ने कहा, माता ठीक है। अब आप मुझे इसी स्थान पर भैरव विद्या सिखाइए। अब माता कहती हैं, ठीक है, तुम रुद्राक्ष की माला हाथ में धारण करो और इसी से जाप करो। तब वह पूछती है रुद्राक्ष माला ही क्यूँ तो माता कहती हैं इसे शिव का आंसू कहा जाता है। इस कारण शिव और शक्ति की शक्तियां रुद्राक्ष में विद्यमान है। तब एक और प्रश्न भैरवी पूछती है, वह माला को देखकर कहती है। इसमें तो 108 मालाएं हैं। माता क्या 108 मनके होना किसी माला में यह नियत संख्या या इसका कोई रहस्य है?

तब देवी मां कहती हैं अब इस महत्वपूर्ण रहस्य को समझो क्यों किसी माला में 108 ही मनके होते हैं?

माता ने बताया यह जीवन पूरा ग्रह नक्षत्र और तारों से मिलकर बना हुआ है। नक्षत्र जीवन पर प्रभाव डालता है और इसी के अधीन जीवन है। तब अष्ट चक्र भैरवी पूछती है कि माता आखिर ग्रह नक्षत्र तारों से यह जीवन कैसे बंधा हुआ है? वह बताती हैं कि सुनो हे पुत्री! सारे ग्रह और उन पर पड़ने वाले दूसरे नक्षत्रों का प्रभाव! इसी पांच महाभूतों से इस जगत का निर्माण हुआ है। और यही पांच भूत शरीर में विद्यमान होते हैं आत्मा को छोड़कर! इसीलिए मैं अष्टभुजा धारणी हूं। मेरी 8 भुजा धारण करने के पीछे का मूल शक्ति और प्रकृति का उद्देश्य यह है कि जिस प्रकार यह पांच महाभूत हैं इनमें तीन प्रकार की प्रकृति होती है।

सात्विक राजसिक और तामसिक इन्हीं तीनों गुणों से सारा जगत बंधा हुआ है। कोई सात्विक है तो कोई राजस है, कोई तामसिक है।

लेकिन सभी बंधे हुए हैं। इस प्रकार इन पंचमहाभूत और तीन प्रकार की प्रकृति यानी 8 शक्तियां इस संसार का संचालन करती है। इसीलिए मैं अष्टभुजा धारणी मूल प्रकृति हूं।

अब सुनो मानव के जीवन या प्रत्येक जीव के ऊपर नक्षत्रों और ग्रहों का प्रभाव रहता है। इन नक्षत्रों को हम 27 प्रकार के नक्षत्र जानते हैं। चंद्रमा की कलाओं की तरह यह जीवन पर प्रभाव डालते हैं। आकाश में स्थित तारा समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतया चंद्रमा के पथ से जुड़े होते हैं। जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन राशि तक भ्रमण करता है, उसी तरह चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक 27 नक्षत्रों में विचरण करता है। वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है। इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है। नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं। अश्विनी भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती। नक्षत्रों की कुछ चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। अंध नक्षत्र, मंधलोचन नक्षत्र, मध्यलोचन नक्षत्र और सुलोचन नक्षत्र। इसमें अंध नक्षत्र है- उसके उत्तराफाल्गुनी विशाखा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, रेवती और रोहिणी। मंधलोचन नक्षत्र हैं- अश्लेषा हस्त अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा अश्विनी और मृग शिरा और मध्य लोचन नक्षत्र -मघा, चित्रा, जेष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, भरिणी और आद्रा इसके बाद सुलोचन नक्षत्र है- पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद, कृतिका और पुनर्वसु।

अब ग्रहों का भी असर इन नक्षत्रों पर सुनो इन नक्षत्रों के जो ग्रह स्वामी होते हैं उनके बारे में भी जानो केतू नक्षत्र- अश्विनी, मघा और मूल को नियंत्रित करता है। शुक्र- नक्षत्र भरिणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा को नियंत्रित करता है। रवि यानी सूर्य कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा को नियंत्रित करता है चंद्र ग्रह- रोहिणी, हस्त और श्रवण को नियंत्रित करता है। मंगल ग्रह, मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा को नियंत्रित करता है। राहु आद्रा, स्वाति, शतभिषा को नियंत्रित करता है। बृहस्पति- पुनर्वसु विशाखा और पूर्वाभाद्रपद को नियंत्रित करता है। शनि- पुष्य अनुराधा, उत्तराभाद्रपद को नियंत्रित करता है। बुद्ध- आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती को नियंत्रित करता है जानो क्योंकि एक नक्षत्र कोई भी हो, 4 चरण होते हैं। इस प्रकार 27 से 4 का गुणा करने पर 108 हो जाता है। यानी संपूर्ण जीवन और प्रत्येक ग्रह का संपूर्ण असर हमने अपनी माला से नियंत्रित करना है। ताकि संपूर्ण जीवन से हम मुक्त होकर मोक्ष और सिद्धि की ओर बढ़ सकें। इसके अलावा भावनाएं भी 108 मानी जाती हैं। यानी गंध, स्पर्श, स्वाद, श्रवण, दृष्टि और इंद्रिय चेतना है और इन पर तीन प्रभाव पड़ते हैं। यानी दर्द, सुख और प्राकृतिक कुल मिलाकर यह 18 को जाते हैं। इनके भी दोनों प्रभाव हैं। यानी दर्द, सुख और प्राकृतिक भी दुगने होते हैं। यानी आंतरिक भी और वाह्य भी अर्थात मन के अंदर भी दर्द होता है और मन के बाहर शरीर को भी इसलिये 18* 2 = 36 अब इनमें भी तीन काल इन्हें नियंत्रित करते हैं। वर्तमान काल, भूतकाल और भविष्य काल इसलिए इनकी संख्या 36 गुड़न किया 3 से तो यह संख्या हो गई। 108 इस प्रकार जिस व्यक्ति ने भी खुद को इन सभी प्रकृति भावनाओं से अपने आप को मुक्त कर दिया, वह है 108 इसीलिए 108 की माला का जाप किया जाता है जिससे हम प्रकृति के प्रभावों से अपने जीवन को मुक्त कर के मुक्ति और सिद्धि की ओर अपना कदम बढ़ा ले। इसीलिए एक माला जाप का अर्थ होता है कि मैंने प्रकृति के सारे बंधन और इस जीवन से जुड़ी हुई सारी माया को त्यागकर उस परम शक्ति की प्राप्ति के लिए और इस मंत्र से जुड़े हुए देवता को प्राप्त करने के लिए इस शारीरिक जीवन से जुड़ी हुई समस्त माया को छोड़ता हूं। इसीलिए हम 108 मनके की माला का इस्तेमाल करते हैं। माता से यह वचन सुनकर अब भैरवी प्रसन्न थी। वह कहने लगी। माता आपने मुझे इस दुर्लभ ज्ञान को प्रदान किया है। इसके लिए आपका धन्यवाद मुझे यह भी बताइए कि बार-बार माला को क्यों फेरना चाहिए?

मंत्र शक्ति किस प्रकार से कार्य करती है? क्या मंत्र शक्ति से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं? तब देवी मां ने कहा, अवश्य ही तुम्हारा यह प्रश्न बहुत ही उत्तम है। मैं तुम्हें इसके बारे में बताती हूं। उसके बाद आगे क्या घटित हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में तो अगर यह जानकारी और कथा आपको पसंद आ रहे हैं तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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अष्टचक्र भैरवी रहस्य और साधना भाग 3

 

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