अष्टचक्र भैरवी रहस्य और साधना भाग 3
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अष्ट चक्र भैरवी, रहस्य और साधना यह भाग-3 है। पिछली बार आपने जाना कि देवी मां से भैरवी प्रश्न करती है और पूछती है कि क्या मंत्र शक्ति से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं तो माता इसका उत्तर देते हुए कहती हैं कि हां, यह कार्य मंत्र शक्ति के माध्यम से अवश्य ही किया जा सकता है। तब भैरवी पूछती है। देवी कहती है कि आप यह रहस्य जानना चाहती हो तो इस रहस्य के मूल तत्व को समझना आवश्यक है। आखिर क्या है मूल रहस्य? सबसे पहले किसी भी देवी या देवता का जो भी मंत्र होता है वह एक शब्द के रूप में गुंजायमान होता है और यह गुंजित होता हुआ शब्द ब्रह्मांड में चारों ओर व्याप्त होने लगता है। जब हम माला पर मंत्र का जाप करते हैं तो लगातार बार-बार एक ही शब्द का उच्चारण मंत्र के रूप में करते हैं। यानी एक ही तरह की तरंग लगातार बहने लगती है। उसकी गति और ध्वनि पर ध्यान देना चाहिए। शब्द का उच्चारण जैसे एक बार हो रहा हो। वैसे ही दूसरी और तीसरी बार लगातार बार-बार होना चाहिए क्योंकि जैसी तरंग गति आप उत्पन्न करेंगे। वैसा ही उसका प्रभाव देखने को मिलता है।
पुत्री यह बड़ा ही विशालकाय रहस्य है। हम जिस भी देवी या देवता का मंत्र जाप करते हैं, उस तक वह मंत्र अवश्य पहुंचता है क्योंकि यह जगत एक चक्र की तरह घूम रहा है। समस्त पदार्थ पिंड ग्रह नक्षत्र तारे सब के सब घूम रहे हैं। इसीलिए मनुष्य का किया गया कोई कर्म भी घूमता है जो उसको कर्म फल के रूप में बाद में प्राप्त होता है तो वह कर्म जिसमें वह उस शक्ति की उपासना मंत्र जाप के माध्यम से कर रहा है। वह भी घूमता हुआ उस शक्ति तक अवश्य ही पहुंचता है जिसकी वह साधना कर रहा है जितने बड़े देवी और देवता की साधना वह करेगा उतनी ही देर में वह मंत्र उस तक पहुंचेगा। छोटे देवी-देवताओं तक जल्दी पहुंच जाता है। एक बार मंत्र की उर्जा जब उस देवी या देवता के शरीर से जाकर टकराती है। तब चमत्कार घटित होता है, देवता जागृत अवस्था में आ जाता है क्योंकि वह तो केवल ध्यान में था। अब उसका ध्यान आपकी ओर आपके जुड़े मंत्रों की ओर हो जाता है। इसी मंत्र ऊर्जा से वह शरीर भी धारण कर आपके लोक में आने को तैयार हो जाता है। बड़े देवी देवता इच्छा मात्र से कुछ भी कर सकते हैं, लेकिन छोटे देवी और देवता आपके मंत्र की शक्ति पर ही निर्भर करते हैं। उन्हें? अपना माया रूप बनाने के लिए आपके द्वारा दी गई मंत्र ऊर्जा ही कार्य करती है। इसी कारण वह शरीर धारण कर पाते हैं। मंत्रों की संख्या जितनी ज्यादा होती जाएगी उनका शरीर उतना ही ज्यादा पिंडवान होता चला जाता है। इससे अब उनकी शक्ति बढ़ती जाती है। इसीलिए साधक जितना ज्यादा मंत्र जाप करता है उतना ही ज्यादा वह शक्ति प्रबल होती चली जाती है। तब भैरवी ने कहा, माता मैं समझ गई। क्यों बार-बार ज्यादा से ज्यादा माला फेरने के लिए कहा जाता है लेकिन माता मूल तत्व क्या है और जिसे हम मोक्ष कहते हैं, उसका तांत्रिक रहस्य क्या है। इसके बारे में भी मुझे अवश्य बताइए क्योंकि कहते हैं। इस ज्ञान को लोग जल्दी नहीं समझ पाते हैं। तब देवी मां ने एक मंत्र का उच्चारण कर अर्थ व्याख्या की। उन्होंने कहा- ऊर्ध्वे प्राणो ह्यधो जीवो विसर्गात्मा परोच्चरेत्।
उत्पत्तिद्वितयस्थाने भरणाद् भरिता स्थितिः।। अर्थात परा देवी के स्वरूप को पहचानने के लिए एक बार भगवान भैरव भगवान शिव स्वरूप से मैंने पूछा था तो उन्होंने 112 विद्याओं का निरूपण किया था और कहा था। इससे हम उस पर पराशक्ति परमात्मा स्वरूपा को प्राप्त कर सकते हैं। इसमें हम प्राण और अपान की गति जिस स्थान पर रुक जाती है उसको द्वादशांत कहते हैं। यहां तक ले जाने वाला प्राण और द्वादशांत से हृदय तक आने वाला जीव नामक अपान यह परा देवी का उच्चारण या स्पंदन है। परा देवी ही स्वयं इसका नियंत्रण उच्चारण करती हैं। अर्थात प्राण और अपान के रूप में स्पंदित होती रहती हैं। यह परादेवी विसर्ग स्वरूप है। अर्थात अंतर और बाह्य भागों की सृष्टि करना इनका स्वरूप है। द्वादशांत में प्राण की स्थापना करनी चाहिए जो कि प्राण रूप अर्थात जीव रूप चित्त की एक वृति है। नीचे हृदय में जीव उपाधि वाले अपन को स्थापित करना चाहिए। इसको हम जीव आत्मा है जी इसलिए कहते हैं क्योंकि अपान वायु खाई गई अथवा पी गई वस्तु कोई भी हो उसको नीचे के मार्ग में लेकर जाती है।और इसी उपाधि के कारण इसको हम जीव कहते हैं। अंदर आना बाहर जाना इसका स्वरूप है, स्वभाव है, प्राणवृत्ती है। यह स्वभाविक व्यापार ही यही परंपरा ही पराशक्ति का उच्चारण और स्पंदन है जो शरीर के भीतर निरंतर चल रहे हम चक्कर में अपना स्थान बनाए हुए हैं। उक्त दोनों स्थितियों का जब अलग-अलग चिंतन होता है तभी अहम तत्व प्रकाशित होता है। उत्पन्न होता है। वह द्वादशांत एवं हृदय में स्थित रहता है। इस स्थिति के कारण साधक को संपूर्ण स्वरूप लाभ की स्थिति प्राप्त होती है। कहते हैं सभी तरह की उपाधियों का विस्मरण हो जाने से अहम अर्थात में ही भैरव हूं। इस तरह की प्रतिज्ञा निश्चित स्वरूप को ले लेती है। अर्थात वही भैरव है और वही परमात्मा स्वरुप में विलीन होने योग्य है। तब भैरवी ने कहा, माता आपके कठिन भावों को मैं समझ नहीं पाए। शायद यह ज्ञान मेरी समझ से भी परे है। तब माता कहती हैं यह ज्ञान बहुत सरल है किंतु साधक केवल माता परा शक्ति की उपासना कर उनके परा विज्ञान को समझते हुए ही इस महान रहस्य को जानकर परमात्मा में विलीन हो सकता है। इस प्रकार माता ने अब भैरवी को तंत्र विद्या की दुर्लभ जानकारी देना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया किस प्रकार आसन बनाएं। कैसे पूजन करें। शक्तियों को कैसे पुकारे आने जाने वाली स्वास के माध्यम से मंत्र का स्पष्ट और सटीक उच्चारण कैसे करें। समाज से अलग रहकर क्यों साधना करें? पति और पत्नी कैसे साधना करें? तब भैरवी ने पूछा माता क्या जोड़े में साधना करने से भी उतना ही प्रभाव पड़ता है या कुछ अंतर इसमें देखने को मिलता है? आप इस विषय में भी मुझे स्पस्ष्ट ज्ञान दीजिए तब देवी मां उन्हें कहती है कि सुनो पुत्री पुरुष और स्त्री दोनों प्रकृति और पुरुष का स्वरूप माने जाते हैं। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, लेकिन वह जगत की रचना के लिए एक साथ आ जाते हैं। इसी से एक नई शक्ति उत्पन्न होती है और इस सिद्धि को समागम के माध्यम से प्रकट कर सकते हैं, लेकिन अधिकतर इस आनंद में व्यक्ति विलीन हो जाता है और मूल रहस्य कि क्यों इस क्रिया में आनंद आया है यह कभी नहीं समझ पाता असल में उद्देश्य होता है नए जीवन की उत्पत्ति। इसमें कहीं भी कोई संकट या बाधा उत्पन्न ना हो। इसीलिए ईश्वर ने इसे आनंदमय और उत्तेजना पूर्ण बना दिया ताकि यह कार्य ना रुके और अपने चरम तक पहुंचकर पुरुष का वीर्य स्त्री के शरीर में धारण हो और वहां जीव अपना निर्माण कर सके। तब भैरवी पूछती है माता यह तो हो गई सांसारिक बात किंतु समागम से क्या शक्तियां सिद्धियां प्राप्त की जा सकती है। इसके विषय में भी मुझे बताइए तब देवी मां कहती हैं। यह रहस्य अति गोपनीय है और साधक और साधिका अगर भैरव भैरवी बनकर इस क्रिया को करते हैं तो न सिर्फ सिद्धियां प्राप्त होती हैं बल्कि मोक्ष तक प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष की प्राप्ति का भी यह एक सहज मार्ग है, लेकिन इस ज्ञान को गोपनीय ही रखना चाहिए क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल कर साधक भटक जाता है। इसलिए तुम्हें और अन्य शक्तियों के रूप में आनंद भैरवी स्वरूप में वहां पर स्थापित इस ज्ञान को रोकने और संभालने की शक्ति के रूप में बंधन किया गया है।भैरवी पूछती है माता इस रहस्य को कुछ तो उजागर कीजिए। आप इसके बारे में और अधिक ज्ञान मुझे प्रदान कीजिए। माता ने उन्हें इसके बारे में आगे क्या बताया जानेंगे। अगले भाग में अगर आपको यह कथा और जानकारी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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