अष्ट चक्र भैरवी रहस्य और साधना 4 अंतिम भाग
इस रसायन की विशेषता यह होती है। इससे स्त्री भैरवी शक्ति से संपुटित हो जाती है। पुरुष और स्त्री दोनों नींद भूख मल मूत्र त्याग इच्छा इंद्रिय चेतना! यह सारी चीजें रूकती है और शरीर से वीर्य स्खलन पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाता है।
तब केवल काम प्रयोग के माध्यम से प्रथम चरण की साधना की जाती है। 36 घंटे तक माता के स्वरूप में साधक उस शक्ति को पूजता है जो उसकी भैरवी बनती है। इस दौरान पूरी तरह से अपने मन में वासना लाना।
घोर अपराध है और वह साधना कभी संपूर्ण ही नहीं कर सकता जिसके अंदर क्रोध पाप और कामवासना भरी हो।
इस साधना के दौरान कामुक विचार आना साधना भंग कर देता है क्योंकि इस समय भैरवी देवी का अंश मानकर उसकी पूजा की जाती है और यही ध्यान लगाया जाता है। बिना गुरु के सामिप्य और विशिष्ट प्रकार से अगर आपने ध्यान नहीं किया तो यह साधना भंग हो जाती है।
यह सारी साधना है। केवल एकांत में जन से दूर करनी चाहिए क्योंकि इनको सामान्य मनुष्य कभी समझ नहीं सकते। इसे मकर तंत्र के रूप में हम जानते हैं।
अधिकतर साधकों ने इसका प्रयोग केवल कामवासना के लिए करना शुरू कर दिया और उनका नाश हो गया, लेकिन यह एक अलग ही मार्ग है जैसे मेरा कामाख्या प्रदेश इसके लिए मुक्त था और केवल रहस्यों को उत्पन्न करने वाला था।
यहां पर निवास करने वाली भैरवी सामान्य स्त्री साधिका से हजार गुना अधिक शक्तिशाली होती थी और इसी कारण से यहां की भैरवी शक्तियां मनुष्य को पशु बनाकर अपने अधीन रखने की सामर्थ्य रखती थी।
जो भी स्त्री जो इस साधना के लिए उपयुक्त है और वह तपस्विनी है। पुरुष को काम भाव के रूप में ना देखती है, वहीं इसमें योग्य हो सकती है। ऐसी सिद्ध भैरवी के साथ जब पुरुष भैरव बनकर साधना करता है और उसका वीर्य स्खलन हो गया तो वह पशु बनकर रह जाता है। इसीलिए भैरवी उसे अपनी इच्छा अनुसार जीव बनाकर अपने पास रख लेती है।
जैसे बकरा मुर्गा इत्यादि। यह आकर्षण और विकर्षण का एक शक्तिशाली खेल होता है। तंत्र में काम को जीते बिना आप विजयी नहीं हो सकते। सहवाग का उद्देश्य आनंद के साथ कुंडलिनी ऊर्जा को ऊपर के चक्रों की ओर लेकर जाना होता है। लेकिन वीर्य जो शक्ति ओज के रूप में शरीर में विद्यमान रहती है उसे स्खलन से बचाना अनिवार्य आवश्यकता है। इसीलिए दूसरा चरण बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है। जब साधक अपनी भैरवी के साथ समागम करता है और सिद्धि को सहस्त्रार तक पहुंचाने की कोशिश करता है। लेकिन यह प्रथम चरण से विपरीत है। यहां पूर्ण आनंद लेते हुए उत्तेजना को चरम तक पहुंचाना है लेकिन?
आप अपने वीर्य को नष्ट नहीं होने देते। यही कार्य स्त्री को भी करना होता है और वह भी अपना रज नष्ट नहीं होने दे सकती। अन्यथा दोनों की ही साधना भंग हो जाएगी। इससे स्त्री अपूर्व सुंदरी बन जाती है। कहते हैं ऐसी स्त्रियों की बराबरी न स्वर्ग की अप्सराए कर सकती हैं और ना ही कोई सुंदर से सुंदर जगत की महारानी क्योंकि वह तो काम ऊर्जा की महाशक्ति बन चुकी होती है। वह ऊर्जा शरीर का रूपांतरण करने लगती है। साधक भैरव समान हो जाता है लेकिन इसका समय 3 दिन 7 दिन तक का हो सकता है। तब तक आप को भोग करते हुए अपने वीर्य को रोकना होता है। यह कोई सहज कार्य नहीं है?
बिना योग्य गुरु के निर्देशन में इसे करना एक स्त्री और पुरुष के लिए संभव ही नहीं है क्योंकि संसार तो कामी और भोगी है। अलग-अलग केंद्रों से गुजरती हुई कुंडलिनी ऊर्जा अलग-अलग सिद्धियां प्रदान करते हैं। मणिपुर चक्र भेदने मात्र से साधक उस वक्त सोना चांदी की वर्षा कर सकता है जिसके लिए भौतिक जीवन में वह यूं ही परेशान होता रहता है। यह कोई साधारण सिद्धि प्रयास नहीं है। लाखों-करोड़ों नरों में कोई ही विजय भैरवी को प्राप्त कर सकता है। यह आनंद भैरवी स्वरूप बनने के लिए किसी भी स्त्री का परम योग्यवान होना आवश्यक होता है। भूख प्यास रोग यह सारी चीजें उस साधिका स्त्री की नष्ट हो जाती हैं। वह केवल सुख की प्राप्ति के लिए या संतान प्राप्ति के लिए नहीं किया जाता बल्कि सिद्धि चक्र को जागृत करने के लिए किया जाता है। वहां पर काम पुरुष भैरव समान हो जाता है और यह सिद्धि भैरव तंत्र सिद्धि कहलाती है। जहां स्त्री साधिका भैरवी के रूप में बदल जाती है। वहीं पुरुष भैरव बन जाता है। ऐसा सहवास है जो मुक्त करता है, बांधता नहीं है।
यह सब सुनकर अष्ट चक्र भैरवी ने पूछा, माता यह विद्या मुझे भी प्रदान कीजिए। तब माता ने कहा, तुम अगर सुयोग्य वर अपने लिए चुन सकें तो तुम्हें इस विद्या का प्रयोग स्वयं आ जाएगा और इसके माध्यम से तुम अपने पति को भैरव स्वरूप बनाकर स्वयं उसकी महाशक्ति बनकर उसका कल्याण कर सकती हो। कहते हैं तभी से देवी केवल अपने पति के रूप में जो भी साधक इनकी साधना करता है जो इन्हें प्राप्त कर लेता है। उसे आनंद, भैरवी, विद्या शक्ति प्रदान करने लायक ज्ञान और सिद्धियां देती है और स्वयं अपनी शक्तियों को अपने साधक के माध्यम से ही जागृत कर पाती हैं। हर भैरवी महाशक्तिशाली होती है और यह तो आठ भैरव शक्तियों की सम्मिलित स्वरूपा है। इसीलिए जो भी साधक इन्हें प्राप्त करना चाहता है इनकी कड़ी साधना करके वर्षों की मेहनत के बाद इन्हें प्राप्त करता है और जो भी इन्हें प्राप्त कर सकता है, वह ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों को भी प्राप्त कर सकता है।
इसके अलावा आनंद भैरवी साधना रहस्य क्या है? इसके विषय में भी मैं आप लोगों को कभी अवश्य ही बताऊंगा और कैसे वह साधना की जाती है? उसके विषय में भी ज्ञान दूंगा तो यह थी वास्तविक कथा।
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