अहि यक्षिणी साधना और कथा भाग 2
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। अहि यक्षिणी साधना अभी तक आपने जाना किस प्रकार से ब्राह्मण व्यक्ति के परामर्श से राजा सोमनाथ उस विशालकाय वृक्ष और उसके पास की एक सर्प की बांबी के नजदीक पहुंच जाता है। अब उस बांबी को देखकर राजा यह सोचता है कि आखिर ब्राम्हण देव ने मुझे इस साधना के लिए क्यों कहा होगा? पर अगर मैंने उन्हें गुरु माना है तो उनकी आज्ञा का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए सोमनाथ बिना कोई देर किये उस बांबी को प्रणाम करते हुए विशेष प्रकार के मंत्रों का जाप करने लगता है कि तभी पूरी बांबी हिलने लगती है। कुछ घंटों के जाप के बाद अचानक से ही उस बांबी से एक सर्प बाहर निकलता है और वह मनुष्य की आवाज में राजा से बात करता है और कहता है राजा तुम यहां पर आकर मंत्रों का जाप कर रहे हो, लेकिन आपको यहां पर आने की आवश्यकता क्यों पड़ी। तब सोमनाथ उस सर्प को नमस्कार करते हुए कहता है कि मैं यहां पर अपने राज्य की प्राप्ति और अपने जीवन की सारी कमियों को दूर करने के लिए एक ब्राह्मण देव की आज्ञा से यहां पर आया हूं।
आप मेरी मदद कीजिए तो तुरंत ही वह सर्प कहने लगता है। सुनो राजा तुम्हें विधान जो ब्राम्हण देव ने बताया है, अधूरा है। आपको भगवान शिव और कुबेर महाराज की कृपा भी अवश्य प्राप्त करनी होगी। इसके बाद मैं जो विधान बताऊंगी, उसे आपको करना होगा तभी मेरा वास्तविक साकार रूप आप देख पाएंगे। सोमनाथ अचरज में पड़ गया क्योंकि सर्प मनुष्य की आवाज में बात करते हुए एक विशेष रहस्य उसे बता रहा था। तब सोमनाथ ने कहा, आपकी आज्ञा शिरोधार्य करता हूं। आप मुझे मार्ग बताइए तो उसने कहा, आप इस बांबी की सारी मिट्टी से मेरे समान एक प्रतिमा बनाइए और यहां पर कुटी स्थापित कीजिए। वही आपको सारी साधना करनी होगी। राजा ने स्वयं अपने हाथों से वहां पर कुटी बनाई सर्प की प्रतिमा स्थापित की। और फिर वह साधना करने में जुट गए। तकरीबन 6 माह तक लगातार साधना करने के पश्चात एक रात्रि जब वह साधना कर रहे थे तब वहां साक्षात सर्प एक बार फिर से प्रकट हो गया। अब उसका स्वरूप विशालकाय था। उसका फन इतना बड़ा था कि वह कई वृक्षों को एक साथ निकल सकता था। ऐसे स्वरूप को देखकर राजा घबरा गया और मंत्र जाप करते हुए सर्प को देखकर प्रणाम करने लगा। तब सर्प ने अपना सर्प स्वरूप त्याग कर मनुष्य का रूप धारण किया। वह एक अति सुंदर स्त्री थी। वह सामने प्रकट होकर कहने लगी। राजन आप की अभी तक की साधना सफल हो चुकी है।
और आपने मुझे अब मनुष्य रूप में प्राप्त कर लिया है। बताइए आप मुझसे क्या चाहते हैं? तब राजा ने कहा देवी मैं अपना राज्य वापस प्राप्त करना चाहता हूं। मेरी सारी रानियां मर चुकी है इसलिए मैं अब फिर से विवाह करना चाहता हूं। और मुझे सारा धन वापस प्राप्त करना है ताकि मैं राज्य को चला पाऊ। तब देवी ने कहा, ठीक है आपको यह सब कुछ प्राप्त हो जाएगा तो फिर मनुष्य रूप में मेरा और आपका संबंध क्या होगा। उनके महान स्वरूप को देखकर राजा कहने लगा देवी आपका तेज अतुलनीय है। आप से मैं प्रेम करने लगा हूं, लेकिन मेरा प्रेम शुद्ध है। मेरे पास माता है। मेरे पास बहुत सारी पत्नियां थी। लेकिन मेरे पास मेरी कोई बड़ी बहन नहीं थी। इसलिए मैं आपको अपनी बड़ी बहन के रूप में रिश्ते के रूप में बांधना चाहता हूं। आप क्या मेरे इस प्रयोजन को पूर्ण करेंगी और हर प्रकार से मेरी सहायता करेंगी तब कहीं यक्षिणी प्रसन्न होकर कहती है। ठीक है। आज से मैं आपके साथ आपकी बड़ी बहन बनकर रहूंगी और आपको सब कुछ प्रदान करूंगी। तब मनुष्य रूप में राजा के साथ ही यक्षिणी उनकी राज्य की ओर चलने लगी। वापस जब वह अपने राज्य में पहुंचा तो वहां पर कोई भी उसे दिखाई नहीं दिया। सारे लोग उसे छोड़ कर चले गए थे। उसका राज्य अस्त-व्यस्त था। कोई भी उसकी सहायता के लिए वहां पर उपस्थित नहीं था। यह देखकर राजा अब और अधिक परेशान हो गया और कहने लगा। दीदी आप देखिए आपने मुझसे वादा किया है। आप मेरे अब कल्याण कीजिए। तब अहि यक्षिणी ने कहा, यह सारे मनुष्य धन के पीछे ही भागते हैं। इसलिए सबसे पहले तुम्हें धन की प्राप्ति करनी होगी। तब अहि यक्षिणी ने वहां पर उपस्थित कई सारे लोगों को अपने वशीकरण में ले लिया और वह सब राजा के पीछे पीछे चलने लगे। अहि ने कहा सोमनाथ अब मैं तुम्हें एक विशेष स्थान पर ले कर जा रही हूं। चलो मेरे साथ तब अहि के साथ में सोमनाथ एक घने जंगल की ओर जाने लगा। अब कुछ दूर जाने के पश्चात एक स्थान पर पेड़ों के झुरमुट को देखकर वह कहने लगी। इस जगह पर अपने इन सेवकों को कहो कि वह खोदें और यहां पर जो भी प्राप्त हो उस का दसवां हिस्सा किसी मंदिर किसी पूजा स्थान या किसी कन्या भोज में इस्तेमाल करें। इतना उन्हें खर्च करना होगा। ताकि धन का सदुपयोग हो सके। वहां पर खोदने पर बहुत अधिक मात्रा में सोना चांदी जवाहरात मिले राजा प्रसन्न हो चुका था क्योंकि उसके पास इतना अधिक धन था कि वह कितना भी खर्च करता उसके पास कमी नहीं होने वाली थी। अहि यक्षिणी ने कहा, अब इसमें से दसवां हिस्सा तुम दान करो तो राजा ने पूछा कि मैं किसे दान करूं और कैसे दान करूं तब उसने कहा, सबसे पहले तुम अपने गुरु को दान दो। उसके बाद यहां पर एक विशालकाय भंडारा करवाओ और उसमें सभी को भोजन करवाओ और एक मंदिर!
यहां पर स्थापित करो जो भगवान शिव का हो और उनके मंदिर में भी दान दो मंदिर का निर्माण कार्य करवाओ। तब राजा ने पूछा, दीदी एक बात बताइए कि हमें तो धन प्राप्त हो चुका है, लेकिन इसका दसवां भाग हमें इन कार्यों में खर्च करने की आवश्यकता क्या है तब अहि यक्षिणी ने कहा कि सुनो कोई भी धन जमीन में रहने से अपवित्र हो जाता है। उस पर बहुत सारी आत्माओं का वास होता है। इसलिए उन सभी की मुक्ति और उस धन को खर्च करने के लिए उसे शुद्ध करना आवश्यक है। इसीलिए इस धन का दसवां भाग तुम जब धार्मिक कार्यों मे खर्च करोगे तो यह धन तुम्हारे खर्च करने लायक शुद्ध हो जाएगा। गुरु को दोगे तो पुण्य की प्राप्ति होगी। जनता को भोजन कराओगे तो जितनी भी अपवित्र आत्माएं हैं, वह सारी पित्र लोक की ओर चली जाएंगी और मंदिर बनवाओगे तो सदैव पुण्य मिलेगा जिससे यह धन तुम आराम से खर्च कर सकते हो। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हो गया। अब उसने कहा आपने मेरी यह इच्छा पूर्ण की इसका विशेष रूप से धन्यवाद अब आप मेरी एक और इच्छा पूर्ण कीजिए। मेरे पास बहुत सारी रानियां थी। लेकिन अब एक भी नहीं रही। सभी मृत्यु को प्राप्त हो चुकी हैं। आप कुछ ऐसा कीजिए कि मुझे कई सारी पत्नियां प्राप्त हो तब अहि यक्षिणी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम्हें मानव रूप में चाहिए या शक्ति रूप में तब राजा ने कहा कि मानव रूप में जो भी इस तरह मुझे प्राप्त होंगी वह भरोसे के लायक मुझे नहीं लगता कि वह है इसलिए आप मुझे शक्ति स्वरूप में प्रदान कीजिए। तब अहि अपने यक्ष लोक से बहुत सारी कन्याओं को वहां लाकर खड़ा कर दिया और कहा, यह सब यक्षिणी है और यह तुम्हारी पत्नियां बनकर रहेंगी और तुम्हारे हर कार्य को यह करती रहेंगी। आज से मेरा कार्य समाप्त हुआ और मैं अपने लोक को वापस जा रही हूँ अगर कभी मेरी आवश्यकता पड़े तो मुझे बुला लेना। इस प्रकार से राजा से आज्ञा लेकर के अहि यक्षिणी वहां से अपने लोक को लौट गई। इस प्रकार राजा ने अपना राज्य फिर से स्थापित किया। लेकिन तभी एक गड़बड़ी फिर से हो गई। उसके राज्य पर दोबारा से उसी आदिवासी राजा ने हमला कर दिया। इस बार उसके साथ बहुत बड़ी सेना थी। राजा को दिख गया कि वह पराजित हो जाएगा।
अब वह क्या करता जानेंगे हम लोग अगले भाग में? इस साधना को अगर आप खरीदना चाहते हैं तो इसका लिंक मैंने इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में नीचे दे दिया है। वहां से क्लिक करके आप इस साधना को इन्स्टामोजो से खरीद सकते हैं। यह था यक्षिणी साधना का दूसरा भाग। अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
अहि यक्षिणी साधना और कथा भाग 3