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कामरूप मे अनुरागिनी यक्षिणी साधना 3 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। काम रूप में अनुरागिनी यक्षिणी साधना अभी भाग दो आप जान चुके हैं। अब जानते हैं भाग 3 में मनोहर के साथ में घटित हुआ था? मनोहर अपने गुरु से कहता है किस प्रकार से मेरी काम परीक्षा हुई थी? इस पर गुरु कहते हैं कि वहां पर रोज रतिक्रिया होती है। यौवन सुख को जब मनुष्य देखता है तो उसके पीछे उसके लालसा जाती है। यह लालसा उसे पतित कर देती है। इसके अलावा तुम्हें साधना के लिए जो आवश्यक सामग्री चाहिए थी, वह भी केवल ऐसे ही स्थान से मिलती है। इसी कारण से मैंने तुम्हें वहां पर भेजा था।

कामसुख के गढ़ में रहते हुए तुमने यह साबित किया है कि तुम इस साधना के योग्य हो क्योंकि अनुरागिनी काम सुख प्रदान करने वाली सर्वोत्तम देवी मानी जाती हैं। अब तुम्हें इनकी साधना के लिए आगे बढ़ना चाहिए। इस पर? मनोहर कहता है गुरुदेव। साधना को करने के लिए उनसे कोई संबंध बनाना पड़ता है। मैं किस रूप में इस देवी की आराधना करूं? गुरुदेव कहते हैं यद्यपि मां, बहन, पत्नी, प्रेमिका, मित्र। इन सभी रूपों में इन शक्तियों की उपासना होती हैं। किंतु? मित्र पत्नी और प्रेमिका रूप में यह सहज रूप से आपको अपनी सिद्धियां प्रदान करती हैं और आपकी शक्ति किसी अन्य रिश्ते से अत्यधिक महत्वशाली होती है। जब हम किसी के कहे अनुसार चलते हैं तब हमें मातृ रूप में उसकी आराधना करनी चाहिए। सदैव उसकी शरण में रहना चाहिए।

जब हमे संसार की अन्य स्त्रियों को प्राप्त करने की इच्छा हो और भौतिक सुखों को बढ़ाना चाहते हैं तब हमें बहन के रूप में साधनाएं करनी चाहिए। किंतु अगर स्वयं को सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं और उस में लगातार वृद्धि चाहिए तो पत्नी, प्रेमिका या मित्र रूप में ही साधना करनी चाहिए। मेरा यह परामर्श है कि तुम इस शक्ति की उपासना मित्र रूप में करो। इस पर मनोहर कहता है गुरुदेव आपने मेरे लिए मित्र ही क्यों चुना इसके संबंध में भी प्रकाश डालें। गुरुदेव कहते हैं। क्योंकि पत्नी रूप में अगर तुम आराधना करोगे। तुम्हारा उसका संबंध अर्धनारीश्वर जैसा होगा। इसमें सबसे अधिक शक्तियां मनुष्य को प्राप्त होती हैं। किंतु तुम इसकी माया में फंस जाओगे तो अधिक उत्तम लोकों को प्राप्त नहीं कर पाओगे। अगर तुम मुक्त होना चाहते हो तो तुम्हारी आधा अंग होने के कारण, तुम्हारी मुक्ति होना संभव नहीं हो पाएगा।

प्रेमिका रूप में काम से अत्यधिक रूप से प्रभावित हो सकता है। भविष्य में इसके कारण से सफल भी ना हो पाए। किंतु मित्र के रूप में अगर तुम इसकी साधना करते हो तो पत्नी जैसा प्रेम, प्रेमिका जैसा सुख प्राप्त करते हुए भी जब चाहो तब इसे विदा करके अपने मोक्ष के मार्ग को सुसज्जित कर सकते हो। इस जीवन में सब कुछ प्राप्त कर सकते हो और अपने आध्यात्मिक जीवन को भी खराब नहीं करते हो? इसलिए मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि तुम इस शक्ति की उपासना मित्र रूप में करो। जब तुम्हारे अंदर भोग की इच्छा समाप्त हो जाए। उस क्षण! इस शक्ति को विदा कर। केवल मोक्ष के लिए ही साधना करना, तब तक यह तुम्हें अतुलनीय यौवन सुख, भौतिक संपन्नता धन वैभव सब कुछ प्रदान करेगी।

मनोहर अपने गुरु से आज्ञा लेकर। वन में इसकी उपासना शुरू कर देता है। एक विशेष स्थान पर कुटी बनाकर उस कुटी के अंदर वह देवी को पूजने लगता है। एक माह पश्चात अचानक से अर्धरात्रि के समय में एक भीषण शक्तिशाली डरावनी औरत उस कुटिया में प्रवेश करती है। उस वक्त मनोहर अपनी पूजा में व्यस्त था। वह स्त्री! आकर, तुरंत पीछे से उसकी पीठ पर अपने पंजे मार देती है। दर्द से कराह रहा मनोहर अपनी साधना में अडिग रहता है। क्योंकि गुरु के निर्देशानुसार- साधना में और साधना के दिनों में। साधना बीच में किसी भी प्रकार से नहीं छोड़नी चाहिए। चाहे कैसी भी परिस्थितियां आ जाए तभी सिद्धि की प्राप्ति होती है, अन्यथा सिद्धियां साथ छोड़ जाती है।

यहां पर भी मनोहर के साथ अब वह शक्तिशाली स्त्री जो भयंकर राक्षसी थी। उसकी परीक्षा शायद ले रही थी। अबकी बार उसने इसकी गर्दन पर अपने दांत गड़ा दिए और? मनोहर का रक्त बहने लगा। वह मनोहर का रक्त चाटने लगी। डर और भय से कांपता हुआ मनोहर। मन ही मन गुरुदेव को याद करते हुए तीव्रता से मंत्रों का उच्चारण करने लगा। किसी भी प्रकार से उसे अपनी साधना, पूरी करनी थी। भयंकर कष्ट देने वाली शक्ति अब अपने हाथ से उसके सिर पर जोर जोर से वार करने लगी। जब भी वार पड़ता दर्द से मनोहर कराहता।

उसके मुंह से मंत्र निकलने भी मुश्किल हो जाते। लेकिन फिर भी उसने अपनी साधना को नहीं त्यागा! अब वह स्त्री सामने आकर खड़ी हो गई और कहने लगी। अपनी उपासना छोड़ दो। मुझे एक बार देखो! सामने मनोहर अपनी बंद आंखों से उसे देख पा रहा था। वह एक अत्यंत ही रूपवती स्त्री के रूप में नग्न अवस्था में प्रकट हो गई थी। वह कहने लगी क्यों इस भरी जवानी को पूजा-पाठ जैसी बेकार चीजों में व्यर्थ कर रहे हो। आओ काम सुख प्राप्त करो, यह कहते हुए वह उसकी गोद में चढ़ गई।

उसके शरीर के साथ रतिक्रिया करने की कोशिश करने लगी। इस बात से घबराकर! मनोहर अपने आप को नियंत्रित करता है किंतु मंत्र जाप वह नहीं छोड़ता। यह शक्ति उसे कहां से मिल रही थी कि वह काम को परास्त कर रहा था? इसका कारण था गुरुदेव का वैशाली के पास उसे भेजना। उसने अपने हृदय को पूरी तरह से नियंत्रित कर रखा था। प्रेम से होने वाली छेड़छाड़ के बावजूद अपने आप को पूरी तरह से मनोहर नियंत्रित करें बैठा था। धीरे-धीरे करके वह समय भी आ गया जब उसने अपने आखिरी मंत्र का उच्चारण किया। तभी वहां पर तीव्र प्रकाश हुआ। अनुरागिनी साक्षात रुप में वहाँ पर खड़ी थी।

मुस्कुराती हुयी अनुरागिनी ने कहा, मैं तुम्हारी तपस्या से संतुष्ट हूं। मेरे हर प्रकार के प्रलोभन से तुम बच गए। मैं तुम्हें अब प्राप्त करना चाहती हूं। मेरे अंदर तुम्हें प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हो गई है। मनोहर कहता है मैं आपको अपनी मित्र के रूप में स्वीकार करता हूं। इस पर अनुरागिनी ने कहा पर किंतु मैं तो आपको अपना स्वामी और पति ही मानती हूं। सभी सुख मैं आपको प्रदान करूंगी। किंतु मनोहर अपनी बात पर अडिग रहता है। वह कहता है कि किसी भी अवस्था में मैं आपको अपनी पत्नी नहीं बना सकता, किंतु आवश्यक रूप से मैं आपको अपनी मित्र के रूप में स्वीकार करता हूं। अब जैसा आप चाहें वैसा करें, किंतु हृदय से मैं आपसे बहुत ही अधिक प्रेम करता हूं। मेरा प्रेम सत्य है और किसी भी प्रकार से मैं आपका साथ देता रहूंगा। आप मुझे सिद्धियां प्रदान करें।सुख प्रदान करें। हर प्रकार के आनंद को प्रदान करें।

कहते हैं इसके बाद अपने गुरु के पैर छूकर मनोहर अपने घर लौट आया। गुरु ने उसे मौन रहने को कहा था क्योंकि गुरु जान गए थे कि उसे सिद्धि प्राप्त हो चुकी है। इस कारण अपने मुख से उस शक्ति का वर्णन करना और अपनी सिद्धि के समय हुए विभिन्न प्रकार के उपद्रव को बताना उसके लिए अच्छा नहीं था। गुरु सब जानते थे क्योंकि वह भी में दिव्यदृष्टि से सब कुछ देख चुके थे। उन्होंने उसे आशीर्वाद देकर कहा जाओ, आनंदित रहो। अनुरागिनी के साथ अब मनोहर जब तक कि वह बूढ़ा नहीं हो गया। सुख पूर्वक रहता रहा। उसने उसे नगर का सबसे धनवान श्रेष्ठ। और धनी! साथ ही साथ सिद्धियों का अधिपति बना दिया था ।

मनोहर किसी का भी भला कर देता था। रोज नगर में 20 स्वर्ण मुद्राएं वह बांटा करता था। लोग नहीं जानते थे कि उसके पास किसी यक्षिणी की सिद्धि है। किंतु उसने पूरे नगर को एक दिन का भोजन देने का प्रबंध कर रखा था। स्वर्ण मुद्राओं को अनुरागिनी उसे प्रदान करती थी। अनुरागिनी उसे एक विशेष स्थान पर लेकर जाती और वहां से ही उसे धन की प्राप्ति होती थी। अनुरागिनी कहा करती थी कि इस धन को अवश्य ही खर्च कर दो। इसे जमा करने की आवश्यकता नहीं है। मैं तुम्हें देती रहूंगी। मनोहर भी केवल उसका उपभोग दूसरों की भलाई के लिए करता था। बूढ़ा होने पर अनुरागिनी को उसने हवन कर कर अपने लोक की ओर प्रस्थान करने के लिएआज्ञा प्रदान कर दी ।

अनुरागिनी उसके हाथ पर हाथ रखकर। प्रसन्नता पूर्वक अपनी एक लोक को लौट गई। इसके बाद मनोहर ने सन्यास धारण करके। अपने जीवन के अंतिम दिनों में ब्रह्म उपासना की। धीरे-धीरे करके मृत्यु के अंतिम क्षणों में इस प्रकार ईश्वर की उपासना करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर गया। इस प्रकार यह कथा यहां पर समाप्त होती है, जहां पर कामरूप में अनुरागिनी यक्षिणी को सिद्ध कर अद्भुत प्रेमयोग सुख और धन संपदा प्राप्त करने के बाद मनोहर ने मुक्ति भी प्राप्त कर ली। अगर आप इस साधना के विषय में? जानना चाहते हैं तो नीचे पीडीएफ प्राप्त करने का लिंक दिया हुआ है। वहां से क्लिक करके आप इस साधना को खरीद सकते हैं। अगर आपको यह कहानी! पसंद आई है तो लाइक करें, शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

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