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कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 1

कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । कहानियों की श्रृंखलाओ में एक ऐसी कहानी आज मैं आपके लिए ले लेकर आया हूं । जो मुझे एक नागा बाबा जी हैं उनसे प्राप्त हुई है और वह नागा बाबा उनके जो गुरु थे । वह सिद्ध बाबा कहलाते थे नागा बाबा के तो वह गुरु परंपरा में उनकी काफी पीढ़ियों पहले लगभग हजार बारह सौ या पंद्रह सौ साल पहले की कहानी रही होगी । तो वो कुंभ में आकर मिले और कुंभ में ही उनकी सिद्धि हुई थी । उस जमाने में जो कुंभ का मेला लगता था जिस प्रकार आज लगा करता है । उसी तरह का है तो यह कथा कुंभ मानी जा सकती है कि यह कुंभ से रिलेटेड है । इसलिए आप लोगों के मनोरंजन को भी करेगी । साथ ही साथ प्राचीन सिद्धियों के बारे में भी बताएगी और एक अद्भुत कहानी आपको कुंभ कथा के रूप में जानने को मिलेगी । तो सबसे पहले जो नागा बाबा से मिला गया तो उन्होंने कहा कि मैं आपको एक गोपनीय बात अपने गुरु के बारे में बताऊंगा  उनकी कहानी बताऊंगा । तो मैंने कहा जरूर क्योंकि मुझे ऐसी चीजों पर बहुत ज्यादा विश्वास रहता है कि हा ऐसी कोई भी कहानी या इस तरह की कोई भी घटना अगर आपके साथ घटित हुई हो तो मुझे इस तरह की चीजों को आप लोगों को बताना या प्रकाशित करना बहुत पसंद है ।

क्योंकि मैं अभी इलाहाबाद गया हुआ था और वापस आ गया काम की वजह से । तो वहां से आने पर मुझे जब उनके साथ मेरी मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि इन संबंध में । मैं आपको कई बातें बताऊंगा । तो इसीलिए इस कहानी का जो शीर्षक है वह कुंभ कथा प्रयागराज नागा साधु और उनका चिमटा यह पहला भाग है । तो सबसे पहले फिर मैं नागा बाबा से मिला तो उनसे साथ कई बातें हुई । वह चाय नाश्ता वगैरह वह करते हैं तो वह कर रहे थे अपना जो भी किया जाता है भोजन वगैरह कर रहे थे । और क्योंकि यह लोग ज्यादातर जो है ऐसी अवस्था में रहते हैं जो सामान्य जन नहीं रह सकता है । ठंड वगैरह इनके लिए कोई मायने नहीं रखती है इस वजह से उनके साथ बातचीत होने लगी । और फिर बातचीत में उन्होंने कई सारी बातें बताई । तो सबसे पहले मैंने कहा कि आप कुंभ में आए हैं तो कुंभ के बारे में क्या जानते है । तो उन्होंने कहा की इस संबंध में दो कहानियां आती हैं तो उन्हें जो कहानियां बताई हालांकि सब जानते हैं लेकिन फिर भी मैं उनके ही शब्दों में उनकी बातों को बताता हूं । कि उन्होंने क्या-क्या मुझसे कहा था तो वह कहते हैं । कि जो प्रजापति कश्यप जो थे उनकी दो पत्नियां थी जो सतीया डार से संबंधित थी

। तो उन दोनों का किसी बात पर विवाद हो गया था की जो सूर्य के जो अश्व है वह काले या सफेद यह पूछते है आपस में दोनों ने । प्रजापति कश्यप की जो पत्नियां है कहने लगे कि सूर्य के जो अश्व है काले हैं कि सफेद है । जब उनकी आपस में भिड़ंत हो गई तो उस बात पर यह कहा गया कि जिसकी बात झूठी निकलेगी यानी कि जो हारेगा वो दूसरे की दासी  बन जाएगी । तो जो कतरू थी उनके पुत्र थे नागराज वासु । और विनीता के जो पुत्र थे वह गरुड़ थे । एक तो नागराज वासुकी थे और एक गरुड़ थे । तो वासुकी ने अपने नागवंश को प्रेरित करके उनके कालेपन से सूर्य के अश्व को ढक दिया यानी कि सूर्य के अश्व को काले कर दिए । अपनी शक्तियों का प्रयोग करके इसके कारण विनीता जो हार गई । और दासी के रूप में अपने को असहाय संकट से छुड़ाने के लिए उन्होंने विनीत दास से अपने पुत्र गरुण से कहा तो उन्होंने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है । तो कद्दू ने शर्त रखी थी कि नाग लोक से वासुकी रक्षित अमृत कुंभ जब भी कोई लाके देगा तो मैं उसे दशुत्त से मुक्ति दे दूंगी । विनीता ने अपने पुत्र को इस बात के लिए सौंपा कि तुम जाओ और वह धीरे धीरे करके वहां से सफल भी हो गया । जो गरुड़ थे अमृत कलश को लेकर के भू लोग के लिए आए । और पिता जो है उनके कश्यप मुनि जो है उस समय आज कल का जो उत्तराखंड है उसके गंधमादन पर्वत पर स्थित जो है आश्रम की तरफ चल पड़े थे ।

तो उधर जब वासुकी ने इंद्र को इस बात की सूचना दी तो इंद्र ने गरुड़ पर चार बार उस समय शक्ति प्रयास किया । और उन पर हमला किए तो चारों प्रसिद्ध स्थानों पर कुंभ का जो अमृत छलका जिसकी वजह से कुंभ की धारणा प्रकट हुई । इसी प्रकार की एक कहानी उन्होंने कहा कि एक कहानी यह आती है । इसी तरह की एक और कहानी आती है । और उसमें सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके असुरों को छल से पराजित किया था । और इसी के कारण से ही समुद्र मंथन संभव हुआ था और इस समुद्र मंथन के कारण ही जब मोहिनी उनको लेकर के यह राक्षस  वगैरह जो छीन रहे थे उनका अमृत तो उसमें जो इस काफी मात्रा में जो है । वह उसकी बूंदे अमृत की बूंदें गिर गई उन जगहों पर जिन जिन जगहों पर गिरी उन्हीं जगहों पर आज कुंभ का मेला लगता है । तो कुंभ के मेले में 12 साल में लगता है अर्ध कुंभ 6 साल में लगता है । तो यह शक्ति ऐसे स्थान हैं कि जहां पर आपको अमृत की प्राप्ति स्नान के माध्यम से होती है । और आप के करोड़ों जन्मों के जो पाप है वह नष्ट होते है । तो इसीलिए कुंभ को अच्छा माना जाता है और इस अवसर पर लगभग सभी प्रकार की जितने भी हमारे यहां परंपराएं हैं । और उन को मानने वाले हैं चाहे नागा हो चाहे अन्य प्रकार के साधु हो या कोई भी हो वो जा करके कुंभ पर्व में जहां वहां स्नान करना होता है स्नान करने के लिए जरूर जाते हैं । इसके कारण से यह घटना को बहुत ही ज्यादा महत्व दिया जाता है । 12 साल में अमृत कलश खुल जाता है उसकी बूंदें गिरती हैं और उन बूंदों के गिरने से वह जल स्थान बहुत ही पवित्र हो जाता है ।

उसमें जब स्नान करता है कोई व्यक्ति तो उसके पाप नष्ट हो जाते है । फिर मैंने पूछा कि आप लोगों का अभिवादन मंत्र क्या होता है तो कहते हैं कि ओम नमो नारायण हम लोग आपस में दूसरे को बोलते हैं और हमारा जो ईश्वर होता है भगवान शिव होते हैं । और हम नागा साधु भगवान शिव के अलावा किसी को नहीं मानते हैं । मैंने पूछा आप लोग क्या क्या वस्तुए इस्तेमाल करते हो उन्होंने कहा त्रिशूल डमरू रुद्राक्ष तलवार शंख कुंडल कमंडल कड़ा होता है चिमटा होता है कमरबंद होता है कोपीन होता है चिलम वह लोग धारण करते हैं धूनी के अलावा भभूत वगैरह लगाते हैं । तो इनके कार्य संपन्न किस प्रकार से होते हैं । तो कहते कि गुरु की सेवा हम करते है आश्रम का कार्य करते है प्रार्थना करते है तपस्या और योग क्रियाएं करना इनका कार्य होता है । और मैंने पूछा क्या आप सुबह से शाम तक क्या-क्या करते हैं तो उन्होंने कहा नागा साधु सुबह 4:00 बजे ही लगभग अपना बिस्तरा छोड़ देते हैं यानी कि वह सुबह उठ जाते हैं । नित्य क्रिया और स्नान के बाद श्रृंगार करते हैं । फिर इसके बाद हवन ध्यान फिर वज्रोली  क्रिया फिर प्राणायाम फिर कपाल क्रिया फिर मूली क्रिया वगैरा किया करते हैं । तो पूरे एक बार शाम को भोजन करने के बाद फिर से बिस्तर के ऊपर अपना आराम करने के लिए चले जाते हैं । मैंने कहा अखाड़ा वगैरा के बारे में कुछ बताएं । तो उन्होंने कहा कि संतो के तेरह अखाड़ों में सात सन्यासी अखाड़े हैं जिनमें नागा साधु बनाए जाते है । और यह है जूना अखाड़ा है महानिर्वाणी अखाड़ा है एक निरंजनी अखाड़ा है एक अटल अखाड़ा है एक अग्नि है एक आनंद है और एक आवाहन अखाड़ा है । मैंने पूछा कि आप लोगों का इतिहास के बारे में कुछ जानते हो ।

तो उन्होंने कहा कि वेदवव्यास जी ने जो है संगति ग्रुप से वनवासी सन्यासी परंपरा शुरू की थी उसके बाद सुखदेव ने फिर अनेक ऋषि परंपरा में शामिल होते गए  । धीरे-धीरे करके इस चीज को नया आकार दिया गया बड़ा आकार दिया गया । बाद में जो शंकराचार्य जी है उन्होंने चार मठों की स्थापना की और दस नामी संप्रदाय का उन्होंने गठन किया बाद में अखाड़ों की परंपरा शुरू की गई और पहला अखंड अखाड़ा जो बनाया गया वह अखंड आवाहन अखाड़ा 547 ईसवी के करीब कहते हैं कि बना था यानी कि आज से लगभग 15 सौ साल पहले । तो नाथ परंपरा में भी इनकी चीजें जुड़ी थी और सिद्धों की परंपरा में भी जुड़े गुरु मस्से नाथ हुए गुरुनाथ साईं नाथ बाबा हुए गजानन महाराज हुए कपिल नाथ हुए बाबा रामदेव हुए और तेजाजी महाराज हुए चौरंगीनाथ हुए गोपी नाथ हुए और चौकड़ धार हुए बृहद हरि हुए और जालंधरी पाव आदि नाथ यह सब बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध वगैरा रहे थे । तो चार जगहो मे होने कुंभ में जिसमें नागा उज्जैन में कूली नागा हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में उपाधि वाले खिचड़ीया नागा अलग-अलग तरह के बहुत सारे नागा वगैरा यहां पर आते हैं  । और इनमें भी पूछा मैंने की कैसे-कैसे पद होते हैं । तो उन्होंने कहा कि इसमें कोतवाल होते हैं पुजारी होता है बड़ा कोतवाल होता है भंडारी होता है कोठारी होता है बड़ा कोठारी होता है महंत होता है उसके सचिव के पद होते हैं तो यह सब चीजें उनके साथ होती है । तो मैंने कहा यह बहुत अच्छी बात है तो फिर मैंने कहा कोई ऐसी कहानी है आपकी । तो उन्होंने कहा कई हजार साल पहले गुरु सिद्धा बाबा हुए थे । उनकी कहानी में आपको बताऊंगा । मैंने कहा चलिए आप बताइए कि क्या कहानी है । गुरु सिद्धा बाबा की उसके बारे में आप हमें वर्णन बताइए ।

उन्होंने कहा ठीक है मैं आपको कहानी सुनाता हूं । उनके जो सिद्धा बाबा थे उनका चिमटा बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध था । और उनको बहुत ही कम लोग जानते हैं उनका वर्णन भी कहीं नहीं आता है । तो एक नई कहानी मुझे मिली इस बारे में तो सिद्धा बाबा की कहानी इस तरह शुरू होती है कि सिद्धा बाबा ने जब वे नागा साधु बने । तो उसके बाद जब सबसे पहले उनको यहां प्रयागराज में यानी कि जो प्रयाग की नगरी है इस जगह पर आकर के कुंभ का स्नान पर्व देने की जो है कोशिश करते हैं । जैसे उस समय नहाते थे नहाने के लिए जब वह वहां पर आए तो उन्होंने साथ ही साथ सिद्धि के लिए कोशिश की थी । तो सिद्धि के लिए उन्होंने यहां पर एक विशेष प्रकार के एक साधना की कोशिश की । क्योंकि लगभग एक डेढ़ या दो महीने जो कुंभ का पर्व है उस समय में उसका इस्तेमाल करना चाहते थे । पर उस जमाने में ऐसी स्थिति नहीं थी कि करोड़ों लोगों की संख्या हो उस समय साधारण से लोग होते थे । नदी का किनारा होता था जंगल हुआ करते थे और उन भीषण जंगलों में बड़े-बड़े जानवर रहा करते थे । तो कुटिया बनाकर के नदियों के किनारे लोग रहा करते थे । तो सिद्धा बाबा ने भी अपने शिष्यों के साथ में उनके दो और शिष्य थे उन दो शिष्यों को उन्होंने कहा कि तुम लोग मेरे लिए कुटिया का निर्माण करो । तो सिद्ध बाबा के लिए कुटिया का निर्माण होने लगा मिट्टी गोबर वगैरह से जैसे बनाई जाती है । कुटिया और छप्पर से उन्हें ढका जाता है इसी प्रकार उन्होंने सिद्धा बाबा के लिए नदी के किनारे स्थान पर बना दिया । लेकिन जैसे ही सुबह हुई और वह बन के तैयार हुआ जैसे वह वहां पर जाकर के उन्होंने रहने की कोशिश की । बात सोची जब वहां पहुंचे सुबह सुबह-सुबह तो पूरी की पूरी जो  झोपड़ी थी जो बनाई गई थी ढह गई थी यानी खत्म हो गई थी । उनके सामने संकट यह आ गया कि क्या ऐसा कारण है । जिसके कारण गुरु सिद्धा बाबा जो है । उनका जो बनाया गया झोपड़ी है वह नष्ट हो गई है उन्होंने कोशिश किया कि ऐसी क्या बात है ।

उन्होंने वहां पर जल छिड़का तो जल छिड़कने से जल पूरा का पूरा काला पड़ गया । जल के काले पड़ने से उन्होंने सोचा कि ऐसा क्या कारण है कि जल यहां पर छिड़का हूं काला पड़ गया । तो यहां पर अवश्य ही कोई अलग तरह की शक्ति का विवाह है । वह शक्ति क्या है क्या करना चाहती है वह शक्ति कैसी है । तो उसके बारे में उन्होंने वहां पर बैठकर के ध्यान शुरू किया ध्यान में उन्हें एक काला सा एक अंधकार में चीज दिखाई दी । और जिस स्थान पर वह बैठे हुए थे उसी के नीचे उन्हें नजर आया की जमीन में कुछ फिट नीचे कोई चीज है । उस चीज को जानने के लिए उन्होंने अपने शिष्य को कहा कि तुम लोग ऐसा करो कि इसके नीचे यहां पर खुदाई करो और इस खुदाई में जा कर के देखो की क्या चीज निकल कर के आती है । तो उन्होंने वहां पर खुदाई करना शुरू कर दी खुदाई करने पर थोड़ी दूर में वहां पर एक काले रंग का एक बहुत ही बड़ा चिमटा निकलता हुआ सा दिखाई पड़ा । तो उस चिमटे में जब उन्होंने देखा तब वह चिमटा काफी काले रंग का था बड़ा सा था । उस चिमटे को जब उन्होंने हाथ में पकड़ा तो छज्जन आ गए उनके हाथ और उन्होंने सोचा यह ऐसी कैसी शक्ति है । यह क्या चीज है जरूर यह कोई सिद्ध शक्ति है । ऐसी कोई शक्ति है जो अद्भुत है और इसके सामर्थ क्या है इसको जानने के लिए उन्होंने स्वप्नेश्वरी देवी का आवाहन किया ।

और इसके लिए वह जब रात को सो गए तो उन्होंने अपने सिर के नीचे तकिए के नीचे उन्होंने प्रश्न को लिखा । और उसको भावनात्मक रूप में लिखकर के किसी प्रकार से उन्होंने यह किया अपने सिरहाने रख कर के वह सो गए । स्वप्न में स्वप्नेश्वरी देवी जी ने उन्हें दर्शन दिए और स्वप्नेश्वरी देवी ने उनसे पूछा की क्या बात है किस कारण से तुमने मुझे याद किया है । ऐसा कौन सा कार्य आन पड़ा तो उन्होंने कहा माता मुझे यह जानना है कि जो यह चिमटा यहां पर निकला है यह चिमटा आखिर है क्या इसमें इसकी शक्तियां क्या है  । तो उन्होंने कहा इस चिमटे में अद्भुत अद्भुत प्रकार की शक्तियां हैं इस चिमटे से बहुत सारी सिद्धियों को तुम प्राप्त कर सकते हो और इसके लिए तुम्हें खप्पर को ढूंढना होगा वह खप्पर मैं तुमको बता दूंगी वह किस जगह पर गड़ा हुआ है उस खप्पर को भी निकालो और उस खप्पर को सामने रखकर उसकी आराधना करो । उस खप्पर की जब तुम आराधना करोगे और उस चिमटे को उससे छूआओगे 21 दिन की साधना के बाद में चिमटा जागृत हो जाएगा । और चिमटे में बड़ी बड़ी शक्तियां चमत्कारिक शक्तियां है । इन सब शक्तियों से तुम संसार में कुछ भी कर सकते हो और यह अद्भुत चिमटा किसी महानतम संत का था और उसने अनेक प्रकार की सिद्धियां इस चिमटे में आ गई थी । क्योंकि वह शक्तियां उनके साथ ही रहा करती थी और वह एक एक बार में एक 1 महीने की समाधि लगाया करते थे ।इसके कारण से उनके चिमटे में बहुत सारी शक्तियां थी इसी स्थान पर वह रहा करते थे ।

और यहां पर उनके मरने के बाद यह चिमटा अंदर गढ़ गया और ऐसी कुछ बुरी शक्तियां भी थी जिन्होंने इस चिमटे को लेने की कोशिश की और आज भी वह शक्तियां एक बार फिर से यह चिमटा तुमसे छीनने की कोशिश करेंगी । लेकिन तुम्हें सावधान रहना है अपनी साधना भी पूरी करनी होगी और यह सब चीजें खुद ही जानी होगी । मैं इससे ज्यादा तुम्हें नहीं बता सकती इस कार्य के लिए तुम तैयार हो जाओ और अद्भुत अपनी ताकतों को इस्तेमाल करने के बारे में सोचो । अगर तुम यह सब कर ले गए तो तुम्हारे पास बहुत सारी शक्तियां सामर्थ आ जाएगी । तो सिद्धा बाबा ने सोचा कि ऐसा अगर है तब क्यों ना इस प्रयोग को किया जाए इस संबंध में उन्होंने सबसे पहले अपने गुरु गोरखनाथ जी जो है उनकी साधना उपासना वगैरा की । जो विधियां उस समय जो होंगी वह की होगी और उन साधना और उपासना जो तांत्रिक विधियां वगैरा थी । उनको करने के बाद में उन्होंने उन सिद्धियों को प्रकट किया और उन सिद्धियों से इस बारे में पूछा । उन शक्तियों ने बताया कि इस चिमटे को धारण कीजिए और इसी स्थान बैठ कर के उपासना को कीजिए । इसके लिए सबसे पहले आपको काला बकरा ले आइए और उस काले बकरे की जो है खाल के ऊपर बैठ करके आपको इसकी साधना करनी होगी । इसकी साधना करने के लिए उन्होंने एक काले बकरे को मंगवाया जो मृत हो चुका था यानी कि मरा हुआ था और उसकी खाल को फिर किसी से कटवा कर उन्होंने अपने पास खाल को रख लिया । और उसके ऊपर बैठकर के साधना करने के लिए बैठे ही थे तभी वहां पर काले  रंग के धुए चारों तरफ से फैलने लगे । और धुएं की वजह से उनका सांस लेना भी मुश्किल हो गया । आगे क्या हुआ यह हम जानेंगे अगले भाग में । आपका दिन मंगलमय हो धन्यवाद ।

कुम्भ कथा प्रयागराज नागा साधू और उसका चिमटा भाग 2

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