कुवगम किन्नर मठ कथा भाग 2
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है । तमिलनाडु के विल्लपुरम जिला है उस जगह पर और उसमे भी कुल्लम दो पेटाई जो है तालुका है वहां का एक गांव है कुवगम गांव । जहां पर किन्नरियो का विशेष रूप से महत्व है । और किन्नरों को वहां पर एक विशेष त्योहार के रूप में जाना जाता है । वह त्यौहार होता है कि जब वह अपने देवता से विवाह करते हैं । जिनको हम अरावन देवता के नाम से जानते हैं । और उस कहानी में जब यह घटना घटित हुई । तो उसके कई सौ वर्षों बाद एक और घटना घटित हुई थी वह थी । चंद्रन मंजू घोष किन्नरी की कहानी । इसमें अभी तक आपने पहले भाग में किस प्रकार से जाना की कुवगम किन्नर मठ कथा आगे चलती गई । और उसमें एक चंद्रन नाम के जो व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर साधना शुरू की थी । वह साधना भी मंजू घोष किन्नरी की और उसमें उन्हें बहुत ही सुंदर कन्या का सहयोग मिला । जो बहुत ही अच्छा नृत्य किया करती थी । अभी तक आपने भाग 1 में यही सब जाना है ।अब आगे जानते हैं कि आगे क्या घटित होता है । तो जैसे कि हम लोग जानते हैं कि चंद्रन जब साधना करता था ।
तो वह कन्या जो अत्यंत ही सुंदर थी केवल 8 वर्ष की उसकी उम्र थी । वहां पर जाकर नृत्य करने लगती थी चंद्रन जब अपनी साधना से उठकर बाहर निकल कर उस कन्या को देखता था तो वह नृत्य करती हुई नजर आती थी । इसी प्रकार चंद्रन एक दिन अपनी साधना में लय था तभी उसे घोड़ों की आवाजें सुनाई दी । और उन घोड़ों की आवाजों को जब उसने सुना तो । अपनी साधना को जैसे ही संपन्न हुई । निकल कर के तीव्रता से बाहर की तरफ गया । तो वहां पर वह प्यारी सी कन्या एक प्यारे से राजकुमार के साथ में बैठी हुई थी । उसके पास चारों तरफ सैनिक ही सैनिक थे सबके हाथों में बड़े बड़े भाले थे और एक घोड़े पर एक बैठा हुआ व्यक्ति था । जो उन दोनों को देख रहा था उसने उस राजकुमारी को प्रेम से बांधकर के पकडा हुआ था । प्रेम का बंधन इस तरह का होता है जिसको हम लोग समझ नहीं पाते । प्रेम के बंधन का अर्थ यहां पर यह था कि उसने उसको अपनी बातों में फंसाकर के चारों तरफ से सैनिकों से घेर लिया था ।
यह देखकर चंदन को कुछ समझ में नहीं आया और वह उस घोड़े पर बैठे हुए इंसान के नजदीक पहुंचा उनको प्रणाम करके पूछा और कहा कि यह कन्या मेरी है । आपने इसको यहां पर क्यों लेकर आ गए हैं । और क्यों घेरा हुआ है । तो उस पर बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए घोड़े पर बैठे हुए उस व्यक्ति ने कहा मैं इस राज्य का महामंत्री हूं । और मुझे तुम्हारी यह कन्या बहुत ही अधिक पसंद आई है । यह पुष्प की तरह सुंदर कन्या कौन है क्या है इसका नाम । तो इस पर कुछ सोचते हुए चंद्रन ने सोचा कि इसका में क्या नाम बताऊ । तो उसने उसका नाम मंजू बता दिया । और कहा कि यह मंजू है और यह मेरी कन्या है । इस पर बहुत ही प्रसन्नता से उस घोड़े पर बैठे हुए महामंत्री ने चंद्रन से कहा सुनो चंद्रन । मुझे तुम्हारी कन्या पसंद आ गई है यह केवल 8 वर्ष की है । लेकिन हमारे राजकुमार 12 वर्ष के हो गए हैं । जो इसके साथ बैठे हुए बातें कर रहे हैं हम चाहते हैं कि तुम यह कन्या हमें दे दो निश्चित रूप से हमारे राजकुमार की रानी बनेगी ।
क्योंकि हम लोग विवाह संपन्न कर देते हैं । इसलिए यहां पर हम इसका विवाह संपन्न करवा कर के अपने राज्य में ले जाना चाहेंगे । ऐसी कन्या ढूंढने पर भी वर्षों में नहीं दिखाई पड़ती है । जितनी यह सुंदर यह कन्या है । क्या तुम इस बात के लिए हमें हमसे मिलकर के इस बात के हेतु आगे की जो भी कहानी है उसको बनाना चाहोगे । यानी कि तुम इस बात के लिए तैयार होगे कि तुम अपनी कन्या विवाह हेतु हमारे राजकुमार को सौंप दो । चंद्रन ने सोचा यह कैसी मुसीबत आ गई ।लेकिन फिर वह सोचने लगा कि इतने बड़े राज्य का महामंत्री अगर स्वयं आया है । और कुछ कह रहा है तो उसे उसकी बात सुननी चाहिए । लेकिन चंद्रन ने उनसे एक बात कही और वह उस अश्व सवार व्यक्ति के पास जाकर उनसे कहने लगा । महामंत्री जी सुनिए मै साधना में लीन हु । यह कन्या मेरे साथ रहती है । तो जब तक कि मेरी साधना संपूर्ण नहीं हो जाती है । तब तक मैं आपको यह कन्या ले जाने नहीं दे सकता हूं ।
और प्रकार के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार भी नहीं कर सकता हूं । इस पर महामंत्री ने एक बार फिर उनसे कहा सोच लो राजा की आज्ञा का अवहेलना करना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है । ना तो तुम हमें किसी भी कार्य में रोक पाओगे और ना ही किसी प्रकार से हम को संभाल सकते हो । हमारी सामर्थ्य तुमसे कई हजार गुना अधिक है । राजा की इच्छा ही सर्वोपरि होती है । और इस वक्त राजकुमार के लिए इससे अधिक सुंदर कन्या भविष्य के पत्नी के रूप में नहीं प्राप्त हो सकती । मैं राज्य में हर घर गया हूं लेकिन इतनी सुंदर कन्या आज तक मुझे कभी नहीं दिखाई दी है । तो यह मेरी तरफ से राजा को एक विशेष उपहार होगा और राजकुमार भी इसके साथ अपने आपको पाकर के बहुत ही ज्यादा धनी समझेंगे । इस पर एक बार फिर से चंद्रन ने कहा आपकी सारी बातें सही है । लेकिन मेरी साधना को संपूर्ण हो जाने दीजिए । उसके बाद आप निश्चित रूप से मंजू को ले जा सकते हैं । मंजू को ले जाने की बात पर दोनों लोगों में फिर बहस होने लगी । चंद्रन किसी भी प्रकार से हार मानने को तैयार नहीं था । तो इसी कारण से उस महामंत्री ने सोचा कि यह कहानी बहुत ही बुरी स्थिति में पहुंच रही हैं ।
इसलिए मुझे ऐसा करना चाहिए कि । अब इस कन्या को जबरदस्ती छीन लेना चाहिए । तो उन्होंने चंद्रन को कहा कि सभी सैनिकों इसे पकड़ लो । और इसकी कन्या को लेकर के चलो राजकुमार के घोड़े पर उसके साथ में इस कन्या को भी बैठाल लो ।और हम लोग यहां से तुरंत ही प्रस्थान करेंगे । चंद्रन गुस्से में आया । उसने कहा मैं तुमसे कहता हूं इसे ना ले जाओ ।अगर तुमने ऐसा कुछ किया तो अपनी इस हरकत के लिए तुम अवश्य ही जिम्मेदार होंगे फिर दौड़ कर मेरे पास मत आना । चंदन की बातों को कोई किसी ने नहीं सुना । और चंदन को सैनिकों ने पकड़ लिया । और मंजू को घोड़े पर बिठा लिया गया । राजकुमार के साथ ही मंजू भी इस बात को समझ गई थी । तो उसने गुस्से से उनको मना किया कि मुझे ना ले जाए । तो इस पर उसकी भी कोई बात नहीं सुनी गई । मंजू जब घोड से उतरने की कोशिश करने लगी । तभी उस पर एक जोर से तमाचा उस घुड़सवार सवार व्यक्ति महामंत्री ने जड़ दिया । उस तमाचे से मंजू बेहोश हो गई । और इस प्रकार से मंजू को लेकर के वह सैनिक समेत बाकी सारे लोग निकल गए । चंद्रन बेचारा वह देखता रह गया और उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था यह सब क्या संपन्न हो गया है । चंद्रन अब अपने मन ही मन सोचता रहा कि मैं उस कन्या की रक्षा भी नहीं कर पाया । जो मेरे भरोसे यहां पर मुझे मिली थी ।
अब वह अपनी साधना कक्ष की तरफ मुड़ गया और अपने दिन की साधना करने के लिए एक बार फिर से तैयार हो गया । थोड़ी देर बाद में अपनी साधना से जैसे ही वह बाहर निकल कर आया । तभी वहां पर एक बार फिर से वही कन्या मंजू उसे दिखाई दी जो कई सारे जानवरों के साथ में खड़ी हुई थी । उसको देखकर के चंदन को बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि जिस मंजू को सब लोग उठा ले गए थे । वह मंजू तो सामने खड़ी हैं और वह भी कई सारे जंगल के जंगली जानवरों से घिरी हुई । उनमें बहुत सारे जानवर थे । लेकिन कोई भी खूंखार जीव नहीं था । जिसमें खरगोश लोमड़ी सियार अन्य इसी प्रकार के बहुत सारे जानवर वहां पर खड़े हुए थे । हीरनो के समूह इत्यादि सब उसे घेरे हुए थे । इन सब जानवरों के बीच में वो खड़ी हुई थी । चंद्रन उसे देखकर बहुत ही खुश हुआ । और जोर से दौड़ता हुआ वहां पर गया । और मंजू को अपने गले से लगा लिया । चंद्रन ने जैसे ही मंजू को अपने गले से लगाया मंजू भी बड़ी खुशी से उनके गले लग गई । चंद्रन ने मंजू से पूछा क्या हुआ किस प्रकार से तुम वहां से आई हो ।और उन्होंने तुम्हें क्यों छोड़ दिया इस पर मंजू ने कहा मुझे छोड़ा नहीं गया ।
पता है जब मैं थोड़ा सा बाहर निकली थी तभी जो राजकुमार है उसने मुझे पीछे से कस के पकड़ लिया । और उसी के साथ उसका शरीर नीला सा पड़ गया वह घोड़े से गिर गया । उसको घोड़े से गिरते देख कर के सारे सैनिक और जो घोड़े पर सवार महामंत्री था ।राजकुमार की तरफ दौड़े तभी मैं वहां से कूदी और जंगल में भागने लगी है । पता है जब मैं जंगल में भाग रही थी तब बहुत सारे जानवरों ने मुझे अपनी शरण में ले लिया । और सब मेरे साथ चलने लगे । इसी वजह से वह लोग मुझे ढूंढ नहीं पाए । और मै उन जानवरों के बीच से होती हुई यहां वापस आ गई हूं । तो बाबा आज की साधना आप की हो गई । चंद्रन ने कहा हां मेरी आज साधना हो गई और मैं तुम्हें पाकर बहुत खुश हूं जाओ आराम करो काफी थक गई होगी । तो मंजू ने कहा हां मैं थक गई हूं मैं सोना चाहती हूं । और जिस तरह से चंद्र ने उसके लिए एक घास फूस का बिछोना बनाया था । उस पर जाकर के मंजू लेट गई । और वहीं पर जाकर सोने लगी ।
इधर उस दिन की साधना पूर्ण होने से चंद्रन काफी खुश था । और उसको उसकी मनोकामना फिर से पूरी हो गई थी । इस बात के लिए प्रश्न था कि मंजू वापस आ गए हैं और सबसे जो अच्छी बात है यह कि वहां पर बहुत सारे जीव जंतु उसकी रक्षा सुरक्षा के लिए खड़े थे ।ऐसा चमत्कार चंद्रन ने नहीं देखा था । सबसे विचित्र बात यह थी कि रात के समय भी उन सभी जानवरों ने वह स्थान नहीं छोड़ा । और वह उस स्थान को घेरे रहे उसके बाद फिर अगले दिन वहां पर एक बार फिर से राजा की सेना के घोड़ों की पंचार सुनाई दी । चंद्रन ने जब अपनी साधना पूरी की और तुरंत बाहर निकलकर देखने गया । जैसे उसने देखा दूर से काफी संख्या में सैनिक चारों तरफ से आ रहे हैं ।उसने एक इशारा मंजू की तरफ किया । मंजू अंदर जाकर के अपने बिस्तर में छुप गई । और उधर से सैनिकों की पूरी सेना आती हुई सी नजर आई । सैनिकों ने वहां पर जानवरों को भगाना शुरू कर दिया । किसी को आग के माध्यम से ओर किसी को अपनी तलवारों और भालों के माध्यम से ।सारे जानवरों को भगाना शुरू कर दिया । जानवरों में भगदड़ मच गई और उस भगदड़ की आवाज पूरे जंगल में सुनाई दे सकती थी ।
एक बार फिर से वहीं महामंत्री अपनी दुगनी सेना के साथ वहां पर आया हुआ था । और आते ही उसने चंदन कि गर्दन पर अपनी तलवार रखते हुए कहा कहां । तेरी बेटी मुझे उसे वापस कर अगर तूने उसे मुझे नहीं दिया तो आज तेरा सिर तेरे धड़ से अलग हो जाएगा । चंद्रन ने कहा एक तो तुम मेरी कन्या को लेकर चले गए । और उसके बाद मुझी से पूछ रहे हो मुझे बताओ कि वह है आखिर कहां पर । महामंत्री ने कहा मैं इतना बड़ा मुर्ख नहीं हूं । अपने घर के अलावा वो कन्या वापस कहां जा सकती है । और जानवरों की ऐसी श्रंखला हमने पहले भी देखी थी । जहां पर बहुत सारे जानवर चलते हुए से नजर आ रहे थे । और उन्हीं के बीच में तेरी बेटी मुझे हल्की सी नजर आई थी । मुझे पक्का यकीन है कि तेरे ही घर में मंजू कहीं ना कहीं छुपी होगी । और मंजू को इसलिए भी अब अवश्यता अधिक हो गई है कि मुझे लग रहा है यह कोई कन्या नहीं है ।
इस को छूते ही उस राजकुमार के बदन का रंग नीला पड़ गया । और उसका अब इलाज चल रहा है अगर तेरी कन्या जादू टोना जानती है तो उसे ठीक करें साथ ही साथ इसका विवाह राजकुमार से अवश्य होगा । तुम लोग अवश्य ही कुछ रहस्यमई विद्याओं को जानते हो । लेकिन हमारे सामने और हमारी तलवारों के सामने तुम्हारी यह चीजे नहीं चल पाएंगी । चंद्रन ने सोचा कि यह कौन सी नई मुसीबत आ गई । इस पर उसने कहा ऐसा कुछ भी नहीं है मुझे मंजू नहीं मिली है । मंजू अगर यहां आई होती तो अवश्य ही मेरे पास होती देखो कहीं भी वो घूमती नजर नहीं आ रही है । लेकिन उसकी बात उस घुड़सवार महामंत्री ने नहीं सुनी । उसने कहा सैनिकों को इस पूरे क्षेत्र को चारों तरफ से घेर लो । और जाकर इसकी कुटी को भी निरीक्षण करो । और पता लगाओ कि क्या वह अंदर है कि नहीं है । चंद्रन ने कहा इस प्रकार तुम मेरी साधना में भंग नहीं डाल सकते हो । मैं यहां पर साधना करता हूं और उस साधना में किसी प्रकार का विघ्न बाधा मैं नहीं चाहता । इस पर महामंत्री ने कहा तेरी साधना से मुझे क्या मतलब मैं तेरी कन्या लेने आया हूं ।
और अवश्य ही तूने उसे कुटी के अंदर ही छुपाया होगा चंद्रन बेचारा अब कर भी क्या सकता था ।उसके सामने एक बहुत बड़ी मुसीबत थी । अंदर जाकर के सैनिक घुसने लगे चंद्रन ने उनको रोकने की बहुत कोशिश की । लेकिन उन सैनिकों के आगे उसकी शक्ति नाकाफी थी । भला उन कई हजार सैनिको को कैसे रोक सकता था ।एक-एक करके सब उसकी कूटी में अंदर जाकर के कुटिया में घुसने लगे । और तभी अंदर से बहुत से जोर से चिल्लाने की आवाज आई उस आवाज को सुनकर के चंद्रन सहित बाहर के जितने भी सैनिक थे । वह सब भयभीत हो गए की अंदर गए हुए उन लोगों की आवाजे इतनी जोर से क्यों आ रही है । ऐसा अंदर क्या घटित हुआ है जहां से यह आवाज आ रही हैं । और सबके मन में एक भय सा व्याप्त हो गया ।उसके आगे क्या हुआ जानेंगे हम लोग अगले भाग में । धन्यवाद आपका दिन मंगलमय हो ।
कूवगम किन्नर मठ कथा भाग 3