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कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 2

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कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 2

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। कैलाश पर्वत की अप्सराएं आज के दूसरे भाग में हम पिछली कहानी को आगे बढ़ाते हैं। जैसे ही उस दैवीय अप्सरा जैसी दिखने वाली सुंदर कन्या ने इस प्रकार का प्रस्ताव उस व्यक्ति से रखा। व्यक्ति ने कहा, ठीक है आप जैसा कहती हैं, मैं वैसा ही करूंगा। लेकिन तभी लड़की ने एक बात और कहीं मेरी दूसरी शर्त तो सुन लो। तुमने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा है। ठीक है, मैं समझ सकती हूं। तुम्हारे अंदर प्रेम और वासना बहुत तीव्रता से आ गई है। लेकिन तुम मेरे साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाओगे। यह मेरी दूसरी शर्त है, लेकिन मैं तुम्हें छोड़कर भी नहीं जाऊंगी जब? तक तुम मुझे पकड़ के रखोगे उस व्यक्ति ने कहा, ठीक है। आवेश में आकर उसने दोनों शर्तें मान ली थी। लेकिन जब वह उस कन्या को देखता तो सारी बातें भूल जाता था। पर इसी प्रकार वह उसे पानी से बाहर निकल कर आ गए। वह लड़की उसकी बांहों में ही तब तक रही। लेकिन अभी तक जो चीज आनंद प्रदान कर रही थी, अब बीच की अवस्था में वह पुरुष लटक गया था।

एक तरफ तो वह उसे प्रेम करना चाहता था। उसके शरीर का पूरा आनंद लेना चाहता था, लेकिन एक शर्त की वजह से वह ऐसा नहीं कर सकता था। और दूसरी तरफ उसे भूख भी लग रही थी तो अगर उसने उस कन्या को अपनी बाहों से छोड़ दिया तो फिर कैसे वह भोजन को प्राप्त करेगा। इधर कन्या उसके हाथ से हमेशा के लिए गायब हो जाएगी और अगर! वह खाता है तो भी उसके लिए बड़ी समस्या है। वह सोचता है। चलो इसका कोई हल निकाला जाए और यह केवल यह लड़की ही मेरी मदद कर सकती है तो उसने उससे कहा, सबसे पहले मैं आपके बारे में जानना चाहता। आप मुझे बताइए आपका नाम क्या है, आप कौन हैं और इतनी सारी कन्याओं के साथ आप यहां पर क्या कर रही थी तब आप मुस्कुराते हुए बोली हे मेरे प्रिय सुनो हम सभी स्वर्ग की अप्सराएं हैं। किंतु जब भगवान शिव की आराधना।

विशेष पर्व स्वर्ग में मनाया जाता है तब हम लोग कैलाश पर्वत श्रेणी पर आ जाती हैं और यहां! कुछ माह तक रहकर भगवान शिव की आराधना करती है। तभी हम लोग इस पूरे हिमालय प्रदेश में इधर-उधर घूमती रहती हैं। मैं अपनी सखियों के साथ यहां पर आई थी और तभी हम सब ने विचार किया कि यह नीचे पानी में उतर कर देख आ जाए। धरती का आनंद लेना बड़ा ही अच्छा लगता है। यह सुख तो स्वर्ग में भी मौजूद नहीं है। यहां पर आते ही हमारे आवरण शरीर पर विभिन्न प्रकार की तत्वों का हल्का प्रभाव पड़ने लगता है। इसीलिए ज्यादा समय तक हम पृथ्वी पर वास नहीं कर सकते। लेकिन फिर भी यहां का आनंदित बहने वाली हवा, शुद्ध होकर बहने वाला जल, स्थाई भूमि और यहां के पुरुषों को देखकर भी प्रेम की भावना हमारे अंदर आती है। तुमने चाहे जिस भी भावना से मुझे अपनी बाहों में जकड़ा हो लेकिन फिर भी तुम्हारे अंदर प्रेम है। इस प्रेम की तपस्या की परीक्षा लेना भी आवश्यक है तब उस व्यक्ति ने कहा, वह तो मैं देख ही रहा हूं। आपने विचित्र सी शर्त रखी है। अगर मैंने आपको अपनी बाहों से अलग किया तो आप हवा में उड़ जाएंगे और अगर मैंने ऐसा नहीं किया। तो मुझे बहुत भूख लग रही है। कब तक मैं आपको पकड़े रख सकता हूं और आपको देखकर तीव्र भावना भी जागृत होती है। मैं स्पष्ट कहूंगा। आप से कुछ छिपाना नहीं चाहता। मैं आपसे शारीरिक रूप से प्रेम करना चाहता हूं, किंतु वह भी आप ने मना कर रखा है। आपकी इज्जत करता हूं इसलिए मैं ऐसी ही अवस्था में रहूंगा। अप्सरा प्रेम पूर्वक उस पुरुष को देखती रही तब उसने कहा, अच्छा चलो ठीक है। तुम्हारी वास्तविक इच्छा क्या है और तुम्हारा प्रेम कितनी क्षमता रखता है। यह तो जानना आवश्यक ही है। क्या तुम मुझसे विवाह करके आजीवन मेरे साथ रहना चाहते हो या फिर मेरे शरीर का उपभोग करना चाहते हो और उसके बाद मुझे जाने देने की आज्ञा प्रदान करोगे।

तब उस पुरुष ने कहा। कि आपके जैसी सुंदर स्त्री सिर्फ भोगने योग्य नहीं है। आप तो सदैव के लिए मेरे जीवन में आ जाइए। अगर मैं इतना भाग्यशाली हूं कि आप मेरी पत्नी बन सकती हैं तो मैं अवश्य ही परीक्षा देने के लिए तैयार हूं। तब उस अप्सरा ने कहा, ठीक है हम सभी कैलाश पर्वत की अप्सराएं।

कुछ दिनों बाद यहां फिर से आएंगी।

और मैं स्वयं आकर तुम्हारी परीक्षा लूंगी। देखती हूं कि तुम इस में कितने सफल रहते हो लेकिन हमें प्राप्त करने के लिए तुम्हें। अप्सरा विद्या लेना आवश्यक है। यह विद्या जिसे भी आती है वही अप्सराओं को अपने वश में कर सकता है। इसलिए सुनो मैं तुम्हारे कान में मंत्र बोलती हूं। यह पहला चरण होगा। इसमें तुम मुझे प्राप्त करने की विद्या प्राप्त करोगे। दूसरे चरण में तुम साक्षात मेरी ही साधना करोगे तभी मैं तुम्हारे मानव जीवन में प्रवेश कर पाऊंगी।

अन्यथा तुम मुझे खो दोगे। यह सुनकर वह व्यक्ति कहने लगा। अवश्य मैं इसे प्राप्त करना चाहता हूं और आपको प्राप्त करने के लिए अपने प्राणों तक पर खेल जाऊंगा। इसलिए आप मुझे मार्ग बताइए तक अप्सरा ने प्रेम पूर्वक उसके गले लगते हुए उसके कान में कुछ विशेष प्रकार के मंत्रों को बोला और कहा ध्यान पूर्वक इस विधि का प्रयोग एक मास तक करो। 1 मास के अंदर मैं दोबारा यहां आऊंगी। तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए दूसरे चरण में अगर तुम सफल रहते हो तो? अवश्य ही यह हो सकता है, तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो जाए और मैं तुम्हें अपना स्वामी बना दूं इस प्रकार। यह कहते हुए तक उस पुरुष ने कहा ठीक है। मैं आपके बताए गए इस मार्ग को अवश्य ही पूर्ण करूंगा। इसलिए आप मुझे भी मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर वचन दीजिए। तब अप्सरा ने उस पुरुष के हाथ पर अपना हाथ रखा और कहा, मैं तो तुम्हें वचन देती हूं और अभी के इन दोनों वचनों से मुक्त करती हूं। तब उस पुरुष ने अप्सरा को अपनी बाहों से।

अलग किया तब अप्सरा ने कहा। तुम बहुत देर से भूखे हो लो यह कुछ स्वादिष्ट फल लो। उसने अपने हाथ में चमत्कार पूर्ण तरीके से फलों से भरा हुआ एक पूरा बर्तन उसे प्रदान किया और कहा मेरा दर्शन किसी भी प्रकार से। खाली नहीं जा सकता है। इसीलिए मैं तुम्हें यह दिव्य बर्तन प्रदान कर रही हूं। तुम्हें जिस भी भोजन या फल फूल इत्यादि की आवश्यकता हो, इस बर्तन से मांग लेना और जो मैंने तुम्हारे कान में कहा है उस मंत्र का उच्चारण करना ताकि। यह बर्तन तुम्हें वह चीज है, प्रदान कर देगा। यह सुनकर वह व्यक्ति और भी ज्यादा प्रसन्न हो गया। तक। वह अप्सरा धीरे-धीरे आकाश की ओर उड़कर जाने लगी यह पुरुष उसे। दर्शाई हुई नजरों से देखते हुए।

दिल में बसी एक घबराहट से उसे विदा कर रहा था। वह चाहता तो नहीं था कि यह कहीं और जाए किंतु। कैलाश पर्वत की उन अप्सराओ को भगवान शिव की आराधना के लिए जाना आवश्यक था। इसीलिए वह सब की सब जाने लगी क्योंकि उसकी समस्त सहेलियां कुछ दूर आकाश में यह सारा दृश्य देख रही थी उन सब ने अपनी सहेली को वापस बुला लिया और सभी एकटक होकर उस पुरुष को देखती रही। इस प्रकार वहां सारी अप्सराएं अब मूल कैलाश पर्वत की ओर उड़ चली।

यह देखकर यह पुरुष नीचे बैठ गया। उसके दिल में भयंकर बेचैनी थी। ऐसी सुंदर अप्सरा को अगर वह पत्नी के रूप में प्राप्त कर पाए तो शायद इस संसार का सबसे ज्यादा सौभाग्यवान बन सकता था। उसके पास एक ही विकल्प था। उस अप्सरा द्वारा बताई गई विधि से वह साधना करना जो अप्सरा उसके कान में बता कर चली गई थी। इसलिए अब उसने सबसे पहले उस बर्तन से कहा, आप मुझे दूध और फल प्रदान कीजिए। तब बर्तन ने तुरंत ही दूध और फल अपने अंदर उत्पन्न कर दिए।

उन दोनों का भक्षण करने के बाद वह व्यक्ति पर्वत शिखर पर जाकर बैठ गया और अप्सरा के बताए गए मंत्रों का जाप करना शुरू कर दिया।

इस प्रकार से लगभग 1 महीने तक वह मंत्रों का दुर्लभ तरीके से जाप करता रहा। प्रति रात्रि उस साधना को शुरू करता और सूर्य के प्रकाश निकलने तक उस साधना को करता रहता था। इस दौरान वहां भयंकर ठंडक होती थी क्योंकि यह एक पर्वतीय क्षेत्र था। लेकिन फिर भी वह अपनी अखंड साधना करता चला गया। एक बात उसने स्वयं बहुत अधिक अनुभव की थी कि जब भी वह साधना करता है उसे ठंड नहीं लगती है शायद उस पात्र के जो। व्यंजन है चाहे वह दूध हो या फल हो उसमें एक विशेष प्रकार की शक्ति होती है जो शरीर को इतनी ज्यादा ऊर्जा प्रदान कर देते हैं कि फिर प्राकृतिक रूप से लगने वाली कोई भी ठंडक उसे नहीं लग पाती है। शरीर को इतना ज्यादा गर्म और शक्तिशाली अंदर से बना देते हैं। इस बात से वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से यह तो समझ चुका था कि यह पृथ्वी का कोई भी पदार्थ नहीं था यह स्वर्ग से ही संबंधित था तभी उसके शरीर में इतनी शक्ति रहती थी एक दिन जब वह साधना कर रहा था तभी वह सामने से एक व्याघ्र को आते हुए देखा है जो बहुत क्रोध में था आगे क्या घटित हुआ जानेंगे अगले भाग में अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आ रही है तो लाइक करें शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति

कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 3

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