कैलाश पर्वत की अप्सराएं भाग 4 अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। कैलाश पर्वत की अप्सराये, अभी तक आपने जाना कैसे एक व्याघ्र उस कन्या को खाने के लिए उसकी ओर बढ़ रहा था। अब दोबारा से उस व्यक्ति को इस बात के लिए बहुत जोर से चिंता होने लगी। इसलिए उसने फिर से साधना को। वह बीच में ही रोककर तेजी से उस कन्या की ओर बढ़ गया। उसने चुपचाप वहां पर रखे हुए उसी साधु के त्रिशूल को उठाया और उस व्याघ्र के सामने जाकर खड़ा हो गया। लेकिन अचरज की बात तो तब हुई जब व्याघ्र ने मनुष्य की आवाज में बोलते हुए कहा। तुम इसे बचाने के लिए आए हो, तुम इसे बचा नहीं पाओगे। मैं बहुत शक्तिशाली हूं और मुझे कई प्रकार की सिद्धियां भी प्राप्त है। यह कन्या मेरा भोजन है इसलिए मैं इसे जरूर खाऊंगा। उस दिन साधु के वार से मैंने स्वयं को नहीं बचाया क्योंकि मैं जानना चाहता था कि तुम सब में कितनी शक्ति है आज मैं। तैयार होकर के आया हूं। व्याघ्र के मुंह से इस प्रकार की बातें सुनकर वह व्यक्ति बड़ा अचरज में आ गया।
उसने कहा, आप तो कोई सिद्धिवान व्यक्तित्व लगते हैं। आप फिर ऐसा नीच कार्य क्यों कर रहे हैं, इस कन्या की क्या गलती है? तब उस व्याघ्र में कहा, मुझे 1 वर्ष में दो बार भोजन की आवश्यकता पड़ती है। मुझे बहुत सारी सिद्धियां मिली हुई है और भोजन में भी मनुष्य का मांस मुझे सर्वप्रिय है और सबसे बड़ी बात अगर वह कुंवारी कन्या का हो तो मैं किसी भी हालत में उसे मारकर खाना चाहता हूं। इसीलिए मैं यही सोच रहा था कि तुम पुरुषों के अलावा अगर यहां किसी कन्या का शरीर मिल जाए तो मैं अपनी तृप्ति को प्राप्त करता हूं। लेकिन तुम सभी पुरुष थे। आज पहली बार मुझे यह कन्या दिखाई दी है। इसलिए मैं अब इसे तुरंत ही मार कर खा जाऊंगा। तब उस व्यक्ति ने कहा, आपको मांस ही चाहिए तो मैं आपके लिए किसी भी पशु का मांस लेकर आता हूं। लेकिन आप ऐसा ना कीजिए तब उस व्याघ्र ने कहा, क्या तुम इसके लिए अपने प्राण दे सकते हो तब व्यक्ति ने कहा, क्या ऐसा करना मेरे लिए जरूरी है, कोई और मार्ग नहीं है तब उसने कहा, तुम पहले व्यक्ति हो जो।
अपनी साधना छोड़कर इस कन्या की रक्षा के लिए आए हो। चलो तुम्हें मैं मौका देता हूं। देखो तुम सबसे ज्यादा जिसे प्रेम करते हो उसके लिए इस पर्वत श्रृंखला से जोर जोर से चिल्लाओ अगर वह आ जाती है तो मैं मान लूंगा कि तुम्हें उससे सच्चा प्रेम है और अगर वह नहीं आती है तो फिर मैं इस कन्या को खा जाऊंगा। तब व्यक्ति ने कहा, यह कैसी शर्त है तब उसने कहा, मैं सच्चे प्रेम को मानता हूं क्योंकि मेरी भी पत्नी थी। इसलिए मैं तुम्हारे सच्चे प्रेम को देखना चाहता हूं। अगर तुम किसी से प्रेम करते हो तो चिल्लाओ और उसे पुकारो अगर तुम्हारा प्रेम सच्चा होगा तो वह जरूर आएगी। चाहे वह कहीं भी क्यों ना हो? तब उस व्यक्ति ने कहा, मनुष्य कोई भी इतनी दूर इतनी जल्दी नहीं आ सकता है। फिर यह कैसे संभव होगा तब व्याघ्र ने कहा, मेरे पास समय नहीं है। इसलिए मुझे भूख लग रही है। जल्दी करो तब उस व्यक्ति ने पहाड़ की चोटी से जोर-जोर से उसी के मंत्रों को बोलना शुरू कर दिया क्योंकि उसे उस लड़की का नाम तो मालूम नहीं था। आखिर वह अप्सरा का वास्तविक नाम क्या है? सिर्फ इतना पता है कि वह एक खूबसूरत? स्त्री है और उसका दिया गया मंत्र है।
लेकिन तभी व्याघ्र ने कहा, कितने बड़े मूर्ख हो, तुम्हें इसके बारे में नहीं मालूम है क्या कि मंत्रों को सबके सामने जोर-जोर से नहीं बोलते। मैं भी सिद्धि प्राप्त था। इसलिए तुम उसे पुकारो और हां मंत्र नहीं बोलना है। व्यक्ति पूरी तरह असमंजस में आ गया। अब अगर उसका नाम मुझे नहीं मालूम है तो मैं उसे कैसे पुकारू और पुकार भी सच्ची होनी चाहिए। अन्यथा यह इस कन्या को मार डालेगा। अब क्या करूं? कुछ देर सोचने के बाद फिर उसे उस कन्या की कही हुई बात याद आई क्योंकि उसने कहा था कि हर प्रश्न का उत्तर हमारे सामने ही होता है। हर समस्या का हल उसी समस्या में मौजूद होता है। ध्यान पूर्वक सोचने पर उसने उस कन्या की कही हुई सारी बातों को याद किया। उसने कहा था कि वह और बाकी अन्य अप्सराएं स्वर्ग से कैलाश भगवान शिव की आराधना करने आती हैं और कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव के लिए पूजन करती हैं। इसलिए अब वह सोच चुका था कि उसे क्या पुकारना है वह सच्चे हृदय से अपने आप को आत्मसात करता हुआ आंखें बंद करके जोर-जोर से।
कैलाशी कैलाशी कैलाशी सब ओर चिल्लाने लगा।
उसका इस प्रकार चिल्लाने से थोड़ी ही देर में वहां पर पृथ्वी पर कंपन होने लगा।
और उसने जब देखा तो सच में वहां पर आकाश मार्ग से बहुत सारी अप्सराएं उसकी तरफ आ रही थी। यह एक चमत्कार था जो उसके साथ उस वक्त घटित हो रहा था। सबसे आगे एक कलश चल रहा था। वह दिव्य कलश था और सभी स्त्रियां अपने सिर पर कलश लेकर ही चल रही थी जो सब कुछ अद्भुत था और सभी वहां पर आकर खड़ी हो गई। उन सब ने कहा, हमें क्यों पुकारा है। हम सभी आपकी मन की स्थिति को समझ गई है। आप हम में से किसी से भी विवाह कर सकते हैं अथवा। हम सभी आप से विवाह कर सकती हैं तब उस व्यक्ति ने कहा, मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि आप सभी लोग यहां पर आ चुकी हैं। आप लोग अपने सिर पर यह कलश लेकर क्यों चल रही है तब उन्होंने कहा, हम सभी भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए सिर पर कलश लेकर चलती है और भगवान महादेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना में स्वर्ग से लाया गया यह जल कलश में भरकर भगवान महादेव को अर्पित करती है। आप सभी ने हमको पुकारा है इसीलिए हम यहां आ गए हैं। व्यक्ति फिर से असमंजस में आ गया क्योंकि जिसको उसने पुकारा था, वह तो कहीं मौजूद नहीं थी तब उसकी आंखों में आंसू आने लगे। उसने सोचा कि वह उस कन्या की रक्षा नहीं कर पाएगा। तब उसने उन सभी अप्सराओ को कहा, आप लोग इस व्याघ्र से। इस कन्या की रक्षा करें तब।
पीछे से किसी का हल्का सा स्पर्श उसे महसूस हुआ। जब उस व्यक्ति ने पीछे पलट कर देखा तो वही कन्या पीछे खड़ी थी।
वह मुस्कुराते हुए कहने लगी। आप मेरी परीक्षा में पूरी तरह सफल हो गए हैं। और सबसे पहले मैं और आप सबसे पहले इन व्याघ्र महाराज को प्रणाम करते है आइए सभी लोग इन के चरण छुए। यह बात उस व्यक्ति को समझ में नहीं आ रही थी। लेकिन जैसे ही सभी ने उसे को प्रणाम किया, वह सामने प्रकट हो गया और एक हाथ में वज्र और दूसरे दूर खड़ा हुआ एक हाथी यह स्पष्ट रूप से दर्शाने के लिए काफी था कि यह देवराज इंद्र है। देवराज इंद्र ने कहा तुम्हारी तपस्या सफल रही तुम्हें? अपनी प्रिय अप्सरा प्रदान करता हूं। तुमने कैलाशी कैलाशी नाम से इसे पुकारा है इसीलिए इस अप्सरा का नाम कलाशी ही होगा।
और इस कैलाश क्षेत्र में चारों तरफ वास करने वाले सभी सिद्ध और गणों को मैं यहां पर तुम्हारा विवाह करने के लिए आमंत्रित करता हूं। इस प्रकार वहां पर सारे लोगों ने मिलकर उस अप्सरा से इस व्यक्ति का विवाह करवाया। तब अप्सरा ने बताया कि मैं ही साधु के रूप में यहां पर आई थी। मैंने ही सारी माया रची, लेकिन किसी मनुष्य से विवाह करने के लिए उसका प्रेम सच्चा होना आवश्यक है। इसीलिए मैंने तुम्हारी परीक्षा ली और स्वयं देवराज से आज्ञा लेना आवश्यक था। इसीलिए देवराज इंद्र को मैंने व्याघ्र के रूप में अपनी सहायता के लिए यहां बुलाया था। उन्होंने मेरी हर प्रकार से सहायता की है। इस प्रकार से उस व्यक्ति और कलाशी नाम की अप्सरा का विवाह संपन्न हो गया कहते हैं। इसी कलाशी और इस मनुष्य के सहयोग से जिस प्रजाति का जन्म हुआ उसे हम आज की कलाशी जनजाति, कलश लोग के नाम से जानते हैं। इस विषय में खुद कलाशी लोग इस गोपनीय रहस्य को नहीं जानते हैं। यही कारण है कि इनके यहां की स्त्रियां बहुत ही ज्यादा सुंदर होती हैं और उन्हें किसी मेकप की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा सिर पर बांधा जाने वाला एक पोशाक।
उसी रूप का प्रदर्शन करता है जिसके माध्यम से भगवान शिव के ऊपर कलश ले जाने के लिए अप्सराएं पुराने समय में महादेव की पूजा करती थी। यह चिन्ह अभी भी आपको इनके सिर पर दिखाई पड़ता है। इसके अलावा अपनी सारी परंपराएं खो चुके हैं। यह लोग इस्लामीकरण के कारण अपनी पूरी चीजें भूल चुके हैं, लेकिन अभी भी भगवान महादेव और इंद्र की पूजा आंशिक रूप से किया करते हैं क्योंकि समय के बीतने के साथ उन्होंने अपनी सारी चीजों को धीरे-धीरे खो दिया। कहते हैं इनकी स्त्रियां उस अप्सरा की वंशज।
होने के कारण बहुत ज्यादा खूबसूरत थी। इसीलिए यहां के लोगों ने इनके वास स्थान को नूर का प्रदेश यानी नूरिस्तान नाम भी दिया। नूर माने की चमक और मूल शब्द अपने आप में सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कलश लोगों की जनसंख्या अब बहुत कम रह गई है और अफगानिस्तान के अमीर अब्दुल रहमान खान ने इन्हें पराजित करके मुसलमान बनाना शुरू कर दिया था। आज हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में बचा हुआ एकमात्र वैदिक हिंदू सनातनी धर्म का एक हिस्सा हमें कलश जनजाति के रूप में दिखाई पड़ता है तो यह थी कहानी! कलश जनजाति के प्राचीन इतिहास की जो लगभग खो चुकी है।
इसी कारण से कहते हैं। इनकी स्त्रियों में स्वच्छंद विवाह की परंपरा है क्योंकि जिस प्रकार अप्सराएं अपनी मर्जी से अपने। जीवनसाथी का चयन करती थी और कैलाशी नाम की अप्सरा में स्वयं ही परीक्षा लेकर अपने लिए एक पुरुष का चयन किया था। ठीक उसी प्रकार से आज भी यह परंपरा इनके अंदर हम त्योहारों के रूप में देखते हैं।
यह थी जानकारी और कहानी कलश जनजाति के लोगों की। इसके अलावा इस अप्सरा की साधना का विवरण भविष्य में अवश्य आप लोगों के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा। आप सभी का दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।
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