प्रणाम गुरुजी
गुरुजी, आगे मेरे साथ क्या क्या घटित हुआ. वो मैं यहा प्रस्तुत कर रहा हू. गुरुजी, सुगंधा के देव लोक चले जाने के बाद मैं भी डोगरा माता के पहाड़ से अपने घर आ गया. मेरे भीतर एक अनजानी सी खुशी थी, एक संतोष था. जैसे किसी रेगिस्तान में भटके हुए ‘प्यासे’ मुसाफिर को मीठे पानी से भरा हुआ तालाब मिल गया हो. मुझे याद है गुरुजी, घर आकर सबसे पहले मैं दादी के कमरे में गया था . और दादी की मैंने ढेर सारी पप्पिया ली थी. और बार बार उनका धन्यवाद किया था. क्युकी दादी के मार्गदर्शन के बिना मैं इतना बड़ा कार्य संपन्न कर ही नहीं सकता था. मेरे भीतर आत्मविश्वास और आत्मबल जगाने वाली मेरी दादी ही थी.
गुरुजी, सुगंधा के जाने के बाद मुझे सच मे सुगंधा की बहुत याद आती थी. खाना खाने के बाद जैसे ही मैं रात को अपने कमरे में जाता. मेरी नजर मेरे बिस्तर के उसी हिस्से पर जाती जहा सुगंधा बैठ कर मेरा इंतजार करती थी. और मैं उसी जगह लेट कर सुगंधा का वो प्यारा सा चेहरा, उसकी नीली आंखे, रेशमी लंबे बाल, और उसकी मीठी आवाज याद करते हुए मैं लेटा रहता. पर मुझे नीद नहीं आती थी. रात भर मन में यही चलता रहता था की “सुगंधा अभी देव लोक मे होगी?” , या “माँ गौरी से मिलने के लिए देव लोक से निकल चुकी होगी?”. और यही सोचते सोचते मैं सो जाता था गुरुजी.
गुरुजी सुगंधा को गए हुए तीन दिन हो गए थे. और मैं वापस अपनी working city चलने की तैयारी करने लगा. और उसी दिन शाम से गुरुजी मेरी दादी की तबीयत थोड़ी खराब हो गई. पहले तो मैंने सोचा कि मौसम में आए परिवर्तन के कारण दादी को viral हुआ होगा. और दो तीन दिन मे दादी ठीक हो जाएगी. इसलिए मैंने अपनी तैयारी दो तीन दिनों के लिए cancel कर दी. लेकिन गुरुजी दादी की तबीयत खराब से खराब होती चली गई. और अब मैं अपनी दादी की हालत देख कर घबरा गया था. और मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करू.
गुरुजी, अब दादी मुझसे वही बात बार बार बोलने लगी कि, “बेटा अब मुझे जाने दे, मेरा समय अब पूर्ण हुआ. माता रानी और कुलदेवी की दी हुई जिम्मेदारी मैं पूर्ण कर चुकी हू”. और गुरुजी अब मुझे भी, दिल के किसी कोने मे ये यकीन होने लगा था. कि “दादी की इस हालत का जिम्मेदार कहीं मैं तो नहीं”. गुरुजी, मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता. अगर दादी को कुछ हो जाता तो. क्युकी गुरुजी, मेरी मम्मी पापा दोनों working थे. बचपन से, मुझे नहलाने से लेकर, मेरे कपड़े धोना, मुझे स्कूल लेकर जाना, स्कूल से मुझे घर वापस लाना. यहा तक कि छुट्टियों में मेरी हर उद्दंडता को झेलना. मेरे साथ खेलना. सब कुछ दादी ने ही किया. मेरी माँ ने माता देवकी की तरह मुझे जन्म तो दिया था. परंतु मेरी दादी, मेरी “यशोदा” माँ थी. जिसने ना सिर्फ मुझे पाल पोस कर बड़ा किया था. बल्कि मेरी शैतानियों को भी बहुत झेला था.
गुरुजी, मैं अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से और भी ज्यादा परेशान हो चुका था. कुछ आकर बोल जाते की बाहर किसी अच्छी hospital, किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ. तो कुछ आकर बोलते की covid की दूसरी लहर आ चुकी है, बाहर लेकर मत जाना. नहीं तो बची कूची उम्मीद भी गंवा दोगे. गुरुजी सुगंधा ने मुझे जब अष्टांग योग समझाया था, तभी यम योग के अंतर्गत आने वाला पहला नियम “अहिंसा” यानी (वाणी और कर्म से कभी किसी को दुख मत देना. ये मुझसे वचन भी मांग लिया था) . अगर मैंने सुगंधा को वो वचन ना दिया होता. तो शायद मैं किसी भी परिजन या पड़ोसी को दादी के 500 मीटर के दायरे में भी नहीं आने देता. क्युकी गुरुजी उनकी उल्टी सीधी बातें सुन कर. दादी और ज्यादा दुखी और परेशान हो जाती थी. हर कोई आकर म्रत्यु का एक नया समाचार मेरे घर में सुनाता था , (कि आज वहां एक death हो गई) , (कल वहां एक death हो गई थी)।- इत्यादि.
गुरुजी सब कुछ देखते हुए, घर में ही उनके इलाज की व्यवस्था की गयी. और अब दादी को और भी समस्याए आने लगी. कभी उनका शुगर बहुत बढ़ जाता तो कभी बहुत कम हो जाता. और धीरे धीरे उन्हें सास लेने मे भी समस्या होने लगी. हालत ये हो गई थी कि बिना oxygen के दादी 2 minute भी बिस्तर पर लेट नहीं पाती थी. और अब मैं समझ चुका था गुरुजी की दादी अब ज्यादा दिनों तक मेरे साथ नहीं रह पाएगी. गुरुजी, मेरे विवाह के सिर्फ 20 दिनों में मेरी दादी की ये हालत हो चुकी थी कि हर दिन उन्हें oxygen के दो cylinder की जरूरत पड़ने लगी. मुझे याद है गुरुजी, छोटा वाला cylinder मैं दोपहर मे लेकर आता था. जिसकी capacity सिर्फ 4 घंटे तक कि होती है. और रात के लिए मैं रोज बड़ा वाला cylinder लेकर आता था जिसकी capacity लगभग 8 घंटे की होती थी. तब जा कर दादी को थोड़ी झपकी आती थी. थोड़ा उन्हें रात और दोपहर मे आराम मिलता था.
गुरुजी, मेडिकल उपचार तो बहुत हो चुका था. अब बारी थी आध्यात्मिक उपचार की. और बिना सुगंधा के ये मुझे अकेले करना था. मैं अपनी दादी को, यु ही मरते हुए नहीं छोड़ सकता था. गुरुजी मैंने योगिनी शक्ति का आव्हान किया. डोगरा माता के पहाड़ पर दोबारा गया. मैंने उस पर्वत पर अपनी कुलदेवी और योगिनी शक्ति दोनों से प्राथना की. गुरुजी मैं 2 दिन तक इंतजार करता रहा. की योगिनी शक्ति मुझे स्वप्न मे दर्शन देगी या जाग्रत अवस्था में दर्शन देगी. परंतु मुझे किसी प्रकार ना तो कोई अनुभव हुआ और ना ही मुझे उनके दर्शन प्राप्त हुए. मैं जानता था गुरुजी, कि इन शक्तियों को मैंने सिद्ध नहीं किया है. जो मेरे एक आव्हान मात्र से योगिनी माता या मेरी कुलदेवी मेरे सामने साक्षात प्रकट हो जाएगी. मुझे ये मालूम था, कि माता रानी के आदेश पर, या सुगंधा की खुशी के प्रयोजन हेतु वो मेरे सामने प्रकट हुआ करती थी. और उस दिन मुझे सिद्धि की महत्वपूर्णता समझ में आयी गुरुजी, कि कभी किसी देवीय शक्ति के सहारे नहीं बैठना चाहिए. हमारे अंदर खुद इतना सामर्थ्य होना चाहिए. की जब जरूरत पड़े, आप अपने योगबल से उस कार्य को कर सके. और उसी दिन मैंने मन में ये संकल्प ले लिया था गुरुजी, कि मैं एक बड़ी साधना करूगा.
गुरुजी, फिर मैंने अन्य कहीं हाथ नहीं फैलाया. और सुगंधा की बतायी हुई. माता रानी की पूजा और भगवान शिव की नैमित्तिक पूजा करना प्रारंभ किया. प्रतिदिन, मैं मिट्टी का शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करता. और महादेव का महाप्रसाद सबसे पहले दादी को खिलाता. और गुरुजी एक दिन मैं हवन करने के पश्चात् दो मंडल बना कर सभी देवताओं के नाम से नारियल फोड़ ही रहा था. तभी जब मैंने वायव्य कोण की तरफ देख कर “ॐ हां नागेभ्यं स्वाहा तेभ्यो अयम् बलिरस्तु” कह कर जैसे ही नारियल फोड़ा. मुझे सर्पों के फूंकने की आवाज आयी. और मेरा ध्यान डोगरा माता की गुफा के द्वार पर पड़े हज़ारों सर्पों पर गया गुरुजी. गुरुजी मैंने जल्दी जल्दी सभी बलि पूर्ण की. और सर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया. उस समय मेरे दिमाग में बस एक ही बात आ रही थी. की कहीं मैंने किसी सर्प का स्पर्श तो नहीं किया. गुरुजी सुगंधा ने मुझको बताया था कि हकीकत मे वो सभी पिशाच एवं ब्रम्हराक्षस है. सिर्फ सर्प का रूप वो अपनी डोगरा माता के सामने रखते है.
गुरुजी, मैं खुद को बैठे बैठे यही समझा रहा था. की नहीं, मैंने किसी भी समय उनको हाथ नहीं लगाया था. योगिनी माता और अंधक ने ही उनका स्पर्श किया था. इतने मे मुझे अचानक याद आया गुरुजी, की मैं गुफा के भीतर अंधेरे मे, हो सकता है, कि किसी के ऊपर, मेरा, पैर पड़ गया हो? और वो पिशाच मुक्ति पाने की जगह, मेरे साथ, मेरा पीछा करते हुए, मेरे घर आ गया हो? मैं इस तरह की ना जाने कितनी बातें वहां बैठे बैठे सोचता रहा गुरुजी. गुरुजी, सुगंधा मेरे साथ तो नहीं थी. परंतु उसकी सिखाई बातें उसका दिया हुआ ग्यान मेरे साथ था. मैंने अपना laptop खोला. और उस folder को खोला जिसमें मैंने सुगंधा के बताये हुए तंत्र संबंधित उत्पातो को काटने के मंत्र लिख रखे थे.
गुरुजी मुझे अभी भी confirm नहीं था, कि हवन करते समय वो सर्प की आवाज वाकई किसी सर्प की थी या किसी पिशाच की?. इसलिए मैंने सबसे पहले सुगंधा के बताये हुए कवच मंत्र निकाले. मैं पहले खुद को आश्वस्त करना चाहता था. गुरुजी मैंने हवन की राख एक पात्र मे निकाली. और सुगंधा द्वारा बतायी हुई विधी से उस राख की पूजा करने के बाद कवच मंत्र से अवगुणित कर दादी के कमरे के द्वार पर, खिड़कियों पर, बिस्तर के चारो ओर और कमरे के भी चारो ओर मैंने उस राख से रेखा खींच दी. गुरुजी मैंने दादी के द्वार पर, महा शक्तिशाली कवच मंत्र सुदर्शन चक्र का ध्यान करते हुए रेखा खींची थी ( ॐ सुदर्शन महा चक्रराज दह दह सर्वदुष्ट भयं कुरु कुरु छिन्द छिन्द विदारय विदारय पर मंत्रान् ग्रस ग्रस भक्षय भक्षय प्रेताऽधी त्रासय त्रासय हुं स्वाहा)। –
गुरुजी सुगंधा ने ये मंत्र मुझे देते हुए कहा था, कि अगर कभी जरूरत पड़े, तो इस मंत्र मे ‘कवच मंत्र हुं’ का ही न्यास करना आप. कभी भी ‘अस्त्र मंत्र फट ‘ का न्यास मत करना अन्यथा उस प्रेत को बहुत पीड़ा होगी. यहा तक कि उसकी सभी शक्तियां छिन्न छिन्न हो जाएगी. वो मात्र एक हवा का झोंका बन कर रह जाएगा. इसलिए वचन दीजिए की आप सिर्फ अपनी रक्षा के लिए इस मंत्र का उपयोग करेगे. किसी को दंड देने के लिए नहीं. और गुरुजी रेखा खींचते समय मेरी आँखों के सामने सुगंधा का वो प्यारा सा, मासूम सा चेहरा बार बार आ रहा था.
इसी प्रकार गुरुजी मैंने महा शक्तिशाली कौमुदकि गदा का ध्यान करके मंत्र पढ़ते हुए दादी की खिड़की और कमरे के चारो तरफ रेखा खिंची, और सुगंधा को दिए हुए वचन के अनुसार यहा भी गुरुजी मैंने अस्त्र मंत्र का विनियोग नहीं किया. बल्कि सिर्फ कवच मंत्र के साथ अपनी दादी की सुरक्षा की. गुरुजी, खिड़कियों में रेखा खींचते समय मम्मी वहाँ आ गई और जोर से डाट कर उन्होंने कहा ये सब क्या कर रहा है तू? गुरुजी मैंने मंत्र पढ़ते पढ़ते मुख पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया. तो मम्मी चुप रहने के जगह, जा कर पापा को बुला लायी. और कहने लगी, कि आपने ठीक कहा था, ये पक्का किसी बाबा के चक्कर मे पड़ चुका है. देखो तो मंत्र कैसे पढ़ रहा है? आप कुछ बोलते क्यु नहीं इसको? गुरुजी मैंने महा कौमुदकि मंत्र पढ़ना जारी रखा और दादी की खिड़कियों में रेखा खींचता रहा. मंत्र था। – (ॐ महाकौमोदकी महाबले सर्वासुरान्तिक सर्वप्रेतस्य प्रेतो दह दह सर्वदुष्ट भयं कुरु कुरु छिन्द छिन्द विदारय विदारय पर मंत्रान् ग्रस ग्रस भक्षय भक्षय प्रेताऽधी त्रासय त्रासय हुं स्वाहा, महाकौमोदक्यै नमः)।-
गुरुजी मम्मी की आंखे फटी की फटी रह गई. और पापा ने मुझसे कहा कि ये क्या तरीका है बेटा? गुरुजी मैंने पापा को कहा, कि पापा मैं इस समय तरीके के बारे में नहीं नतीजे के बारे में सोच रहा हू. और मम्मी हर समय बहस करना कोई जरूरी नहीं है. इस बारे में हम, बाद में भी बात कर सकते है. और गुरुजी, मम्मी इतना सुनते ही पापा से बोलने लगी, “गया ये हाथ से” . और भेजो बाहर।. खिड़की पर रेखा खींचने के बाद, मैं कमरे में रेखा खींचने लगा गुरुजी. और मैंने मम्मी और पापा दोनों को इग्नोर किया. और अपना पूरा ध्यान मन्त्रों के सटीक उच्चारण पर केंद्रित किया.
गुरुजी जैसे ही मैंने कमरे में रेखा खींचना प्रारम्भ किया. दादी ने इशारे से मुझको बुलाया. और बोली. बेटा ये मास्क निकाल दे मेरा. अजीब सा लगता है. गुरुजी मैंने दादी को कहा कि दादी, आप पहने रखो इसे. आपको सास लेने मे problem हो रही है ना?. लेकिन गुरुजी, दादी ने oxygen मास्क उतरवा दिया.
और बोली कि मुझे बैठना है. गुरुजी मैंने दादी को उठा कर, उनके बेड पर ही बैठाया. दादी ने कहा कि मेरा सिर बहुत भारी लग रहा है बेटा. तो मैं bed पर ही बैठ कर उनका सिर दबाने लगा, और थोड़ी देर बैठने के बाद दादी ने कुछ खाने के लिए माँगा. और गुरुजी मैं, मम्मी और पापा. हम तीनों लोग हैरान रह गए, ये सुन कर क्युकी दादी ने पिछले 25 दिनों से भोजन करना लगभग बंद ही कर दिया था. कभी कभी थोड़ा दाल का पानी, या चम्मच दो चम्मच दलिया. इससे ज्यादा दादी कुछ भी नहीं खा पाती थी. लेकिन उस दोपहर दादी ने दो रोटी खायी. और इतना इशारा मेरे लिए काफी था गुरुजी. की ये और कोई नहीं था. उसी पहाड़ का एक पिशाच था.
गुरुजी, दादी खाना खाने के बाद, बेड पर लेटी. और अब उन्हें सास लेने मे भी कोई समस्या नहीं हो रही थी. मैंने फिर भी ऐहतियात के तौर पर. दादी के कमरे मे रेखा खींचने के बाद. सर्वशक्तिशाली “पाशुपात अस्त्र” मंत्र मे कवच बीज़ ‘हुं’ का विनियोग कर दादी के बेड के चारो तरफ भी रेखा खिंची. और गुरुजी, सुगंधा की ही बतायी हुई विधी अनुसार हवन कुंड की राख पर थोड़ा ‘सिंदूर’ और ‘गंगा जल’ डाल कर,
दादी के कमरे के बीचो बीच मैंने पूजा के सफेद कपड़े पर “निग्रह यंत्र” बनाया. सुगंधा के बताये अनुसार 10 रेखा खड़ी खींच कर उनके ऊपर 10 रेखा पडी खींच दे, तो 21 कोष्ठकों का “श्री निग्रह चमत्कारी यंत्र” तैय्यार हो जाता है. गुरुजी मध्यम वर्ग के कोष्ठकों मे मैने संबंधित प्रेत योनी का पद नाम लिखा. गुरुजी मुझे नहीं पता था, कि वो पिशाच है, जिन्न है, या कोई ब्रम्हराक्षस? गुरुजी मैंने इसलिए “ब्रम्हराक्षस” पद नाम लिखा. क्युकी इतनी बड़ी शक्ति के लिए अगर यंत्र बना रहा हू, तो उससे छोटी शक्तियाँ, तो उस यंत्र के सामने नतमस्तक हो ही जायेगी.
गुरुजी सुगंधा के बताये अनुसार ही मैंने दो दो “रं” बीजों के साथ उस प्रेत का पद नाम लिखा था, जैसा सुगंधा ने मुझे सिखाया था. और यंत्र के चारो तरफ “भूृं, क्षूं, छूं, और अंत मे कवच बीज़ हूं” को लिखने के बाद यंत्र के ईशान आदि कोनों में, भीतर की तरफ “कालरात्री मंत्र”, और बाहर की तरफ “यमराज मंत्र” लिख दिया. मेरा यंत्र तय्यार होने के बाद गुरुजी मैंने अपने पूजा के लोटे से “कलश” बना कर, घृत का दीपक जला कर “भूत ग्राम गायत्री मंत्र” यानी. (ॐ भूत ग्रामाय विग्रहे, चतुर्विधाय धीमही। तन्नो ब्रम्ह प्रचोदयात)।- इस मंत्र के द्वारा मैंने अपने ग्राम देवताओ और अपनी ग्राम देवियों की पूजा की. और उनसे विनती भी की, कि मेरे घर और मेरे परिवार को सुरक्षा प्रदान करे. और मैंने अपनी कुलदेवी का ध्यान कर, उनसे भी रक्षा प्रदान करने हेतु विनती की.
गुरुजी, मम्मी पापा ये सब देख कर हैरान और परेशान थे. लेकिन इतने मे मम्मी बोल पडी की “बेटा, मेरे कमरे मे भी बना दे ये सब!”. और गुरुजी मुझे हंसी आ गई थी. मम्मी की बात सुन कर. क्युकी मम्मी थोड़ी देर पहले जहा पापा से भी लड़ने को तैयार थी ंं। वही अब दादी की हालत एक दम सुधरते देख . मम्मी अब मेरी तारीफों के पुल बांधने लग गई थी. और तब मैंने माँ से कहा, कि आप इतनी तारीफ मत कीजिए मेरी. आपके कमरे में भी बना दूँगा. गुरुजी मैं अपनी माँ के सामने हसने का प्रयास तो कर रहा था. मगर भीतर से, मैं बेचैन था. क्युकी मैं जानता था. ये ब्रम्हराक्षस या पिशाच जैसी योनिया, किसी के पीछे एक बार पड़ ना जाए. वर्ना मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते. मैं अपनी दादी के लिए परेशान था गुरुजी.
गुरुजी, सुगंधा को आने मे कितना समय लगेगा, ये मैं उस समय नहीं जानता था. सुगंधा को देव लोक गए हुए 25 दिन हो चुके थे. और फिर मैंने ही उनको आराम से आने के लिए, और सबसे अच्छे से मिल कर आने के लिए कहा था. तो मैंने ये अंदाज मन मे लगा लिया था, कि सुगंधा 6 महीने से पहले नहीं आने वाली. और मैं इतने दिनों तक सुगंधा का इंतजार भी नहीं कर सकता था. इसलिए मैंने फैसला किया कि कल सुबह मैं अपने कुल देवी के मंदिर दोबारा जाऊँगा. और वहाँ के पुजारी जी से मिल कर इस बारे में विचार विमर्श करूंगा. मुझे कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी ही थी गुरुजी. किसी ज्योतिर्लिंग या शक्तिपीठ धाम जाने से पहले मैंने अपने गांव के ही पुजारी से बात करने की सोची. गुरुजी मैं छत पर खड़ा उत्तर दिशा की तरफ ध्रुव तारे को देख रहा था. सुगंधा ने मुझे एक बार बताया था, कि “ध्रुव लोक ही स्वर्ग लोक का द्वार है” . और मन मे यही सोच रहा था. की तुम्हारे बिना एक महीने मे ही मेरा जीवन नर्क बन गया सुगंधा. Please वापस लौट आओ.
गुरुजी, सुगंधा के साथ रहते हुए. मुझे कभी छोटी छोटी समस्याओं का पता ही नहीं चलता था. जैसे पूरी कायनात मेरी मदद करने को तैयार खड़ी हो. फिर चाहे वो योगिनी माता का सानिध्य हो, या मेरी कुल देवी की सहायता की मेरे लिए सहायता हो. बड़े से बड़ा कार्य इतनी आसानी से पूर्ण हो जाता था. जैसे मैं कोई इंसान नहीं, सच मे एक देवता हू. और मैं खुद को कहीं न कहीं एक देवता ही समझने लगा था. लेकिन सुगंधा से ये कुछ दिनों की दूरी ने, मुझे सच्चाई के धरातल पर ला कर पटक दिया था. और मुझे मेरी हैसियत पता चल चुकी थी. की सुगंधा के बिना मैं कुछ भी नहीं हू. उस दिन जिन मन्त्रों के द्वारा मैंने अपनी दादी को थोड़ा बहुत सुरक्षित किया भी था . वो सभी मंत्र सुगंधा के ही बताये हुए मंत्र थे . उस रात मुझे सुगंधा की सच मे बहुत याद आ रही थी गुरुजी. और मुझे याद है, ध्रुव तारे की तरफ देखते हुए मैं रोने लगा था. यहा तक कि इस समय ये पत्र लिखते हुए, भी मेरी आंखे नम हो गई है , उस शाम को याद करके.
गुरुजी, पिछले 25 दिनों से दादी ने कुछ खाया नहीं था. जिस कारण वो बहुत कमजोर हो गयी थी. लेकिन उस दोपहर में दादी ने थोड़ा भोजन किया था. और मेरे मन मे भी एक संतोष व्याप्त था. रात होने पर दादी ने एक रोटी मेरे साथ मेरी थाली मे ही खाई. और आधी ग्लास दुध भी लिया उन्होंने. दादी ने जैसे पिछले 25 दिनों से मौन व्रत धारण किया हुआ था गुरुजी. वो ज्यादा बात नहीं कर पाती थी. लेकिन मेरे रेखा खींचने के बाद उन्होंने बात करना प्रारंभ कर दिया था. गुरुजी, दादी ने मुझसे फिर वही बात बोली . की बेटा अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार तू ही करना. तेरे हाथो अग्नि मुझे मिलेगी तो अवश्य मुझे सद्गति ही मिलेगी. और दादी रोने लगी मुझसे लिपट कर गुरुजी. मैंने किसी तरह उनको शांत कराया. और उनका सिर दबाता रहा. की थोड़ा उनको आराम मिले और वो थोड़ी देर सो सके.
गुरुजी रात को लगभग तीन बजे मम्मी, दादी के कमरे में आयी. और उन्होंने मुझसे कहा बेटा थोड़ी देर तू भी आराम कर ले. मैं बैठती हू अब. गुरुजी मैं दादी के बेड के बगल मे ही दरी बिछा कर लेट गया. मैंने दादी को उस रात सुकून से सोते हुए देखा गुरुजी. पिछले 25 दिनों से दादी ढंग से सोई नहीं थी गुरुजी. लेकिन उस दिन दादी सुकून से सो रही थी. वो भी बिना oxygen support के. और दादी को ही देखते देखते मैं भी सो गया था गुरुजी.
गुरुजी, सुबह जब मेरी नींद खुली, तो सुबह के 8 बज चुके थे. मैंने देखा तो दादी बिस्तर पर नहीं थी. मैं दौड़ कर मम्मी के पास गया. मैंने मम्मी से पूछा दादी कहा है. मम्मी ने जवाब दिया, कि सवेरे से चिल्ला रही हू. की तबीयत और खराब हो जाएगी. पर उन्हें सुनना ही नहीं है. पूजा के कमरे की सफाई कर रही है. उनको पूजा करने दे. और तू भी छोड़ दे नौकरी चाकरी. और यही झाड़ फ़ूक कर. पागल कर दिए हो मुझे, ये दादी और पोता मिल कर. और इतना कह कर गुरुजी मम्मी office के लिए घर से निकल गई. गुरुजी मैं पूजा के कमरे में गया. मैं कुछ बोलता दादी पहले ही बोल उठी. बेटा वो आयी थी रात मे. दादी की आँखों मे आंसू थे गुरुजी. मैंने पूछा दादी से कौन आयी थी दादी? . गुरुजी दादी ने दोनों हाथ जोड़ कर सुगंधा का देव लोक नाम लेकर कहा. की देवी आयी थी. गुरुजी दादी ने बताया कि उन्हें रात एक स्वप्न आया जहा वो एक ऐसे खेत में खाड़ी थी जहा चारो तरफ गुलाब ही गुलाब के पेड़ लगे थे.
यहा तक कि वृक्षो पर भी गुलाब ही गुलाब के फूल थे. परंतु उस पूरे वातावरण मे गुलाब की नहीं बल्कि रात रानी जैसी भीनी खुशबु आ रही थी. जैसी उस माला से आती थी. जो मैंने सुगंधा को पहनाई थी. गुरुजी दादी ने आगे बताया कि जब वो सुबह सो कर उठी तो उनके शरीर का हर दर्द गायब हो चुका था, जैसे वो कभी बीमार पडी ही नहीं. और दादी ने मुझसे रोते हुए कहा गुरुजी, कि मेरे पैरों मे एक अजीब सी शून्यता थी, एक अजीब सा स्पर्श का आभास था. गुरुजी दादी ने मुझसे कहा कि बेटा उसको कह दे तो मुझ अभागन के पैर ना छुए. मैं योग्य नहीं हू बेटा. और दादी मुझसे लिपट कर फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी गुरुजी. गुरुजी मैंने किसी तरह दादी को सम्भाला. और सामने रखी माता की मूर्ति से प्राथना, माँ मेरी मदद कीजिए, दादी रोते रोते ही मर जाएगी. इतनी शक्ति अब इसके भीतर नहीं बची है.
गुरुजी मैंने दादी को कहा कि ,सुगंधा स्वर्ग लोक गई है. और उसके बाद उसे कई संसार पार करके अपनी माँ, यानी माता पार्वतीजी से मिलने जाना है. इतनी जल्दी वो यहा नहीं आ सकती, चुप हो जाइए आप. मैं आपका पूजा का कमरा साफ़ कर दूँगा. आप चलिए आराम कीजिए. किसी तरह गुरुजी, मैं दादी को उनके बेड पर ले गया., कि तभी गुरुजी मुझे सुगंधा की खुशबु आयी और अंधक के भौकने की भी आवाज ऊपर मेरे कमरे से आयी. गुरुजी दादी ने कहा क्या हुआ बेटा. मैंने कहा कुछ नहीं दादी. आप आराम करो. मैं आता हू. मैं अभी आया बस. गुरुजी मैं ऊपर अपने कमरे में गया. जैसे ही मैंने दरवाजा खोला सुगंधा बेड पर बैठी, मेरा इंतजार कर रही थी. और अंधक बेड से कूद कर मुझसे लिपट कर मेरे हाथो को और मेरे सीने मे अपने दोनों अगले पंजे रख कर मेरे गालों को चाटने लगा. गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि मेरे जाते ही ब्रम्ह मुहूर्त में उठना बंद कर दिया आपने?. मैंने गेट बंद किया, और सुगंधा से लिपट कर रोने लगा था गुरुजी. सुगंधा और अंधक ने मुझे शांत कराया गुरुजी. और फिर सुगंधा ने कहा कि मुझे पता है आप रात भर नहीं सोये है. आप थोड़ी देर और आराम कर लीजिए. इस पर मैंने सुगंधा को कहा था गुरुजी, की अब आप आ गए हो, तो आराम ही आराम है.
गुरुजी, मैंने सुगंधा को बताया कि हज़ारों डोगरा सिपाहियों मे से एक सिपाही को मुक्ति अभी भी नहीं मिली है सुगंधा. गुरुजी सुगंधा ने कहा वो डोगरा सिपाही नहीं है. वो कोई और ही है, जो आपका पीछा करता हुआ यहा तक आया था . और आपकी गलती की वज़ह से आया था . गुरुजी मैंने सुगंधा से पूछा मेरी गलती?? तो गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि पहले आप जाइए और अपनी गाड़ी को देख कर आइए. पीछे देखियेगा डिक्की खोल कर. उसमे कुछ रखा हुआ है. गुरुजी मुझे अभी तक कुछ याद नहीं आ रहा था. दरसल मेरा दिमाग पिछले 25 दिनों से थक गया था. और मैं गया और गाड़ी मे front seat, पीछे की सीट मे भी देखा और डिक्की खोल कर भी देखा. जिसमें दो बैग रखे हुए थे, तब मुझे याद आया गुरुजी. की कुल देवी के पर्वत पर पूजा संपन्न होने के बाद, सुगंधा ने कहा था कि पूजित सामाग्री और बची हुई सामाग्री भी प्रवाहित कर देना. गुरुजी पिशाचों की मुक्ति के लिए की गई एक गुप्त पूजा के बाद तो सुगंधा ने यहा तक कहा था, कि ये सब इस जंगल के बाहर लेकर मत जाना. जंगल से ही निकली हुई नदी मे, सुगंधा ने सब कुछ विसर्जित करने के लिए कहा था.
गुरुजी मैं खुशी के मारे ये सब प्रवाहित करना भूल ही गया था. और पिछले 26 दिनों से वो सब मेरे घर के सामने मेरी गाड़ी की डिक्की मे, वो सब अशुद्ध चीजे रखी हुई थी. मेरे घर मे प्रेत नहीं आते तो किसके घर मे आते?. गुरुजी मैं ऊपर अपने कमरे में दोबारा गया और मैंने सुगंधा को sorry बोला. गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि अब कोई गलती मत करना या मैं साथ चलूँ?. गुरुजी मैंने सुगंधा को कहा नहीं. मैं अभी प्रवाहित करके आता हू. अब कोई गलती नहीं होगी. और मैं अपनी hometown से ही बहने वाली एक पवित्र नदी मे उसको प्रवाहित करके आया गुरुजी. और तब सुगंधा से मैंने पूछा कि आप तो कह रहे थे कि 1 महीने से ज्यादा भी लग सकते है?. फिर इतना जल्दी कैसे आ गए आप.?
गुरुजी सुगंधा ने बताया कि माता ने ही भेजा मुझको. आप नित्य प्रतिदिन जगत पिता महादेव और माता की पूजा अराधना करते थे. माता ने योगिनी शक्ति को आपकी सहायता करने के लिए भेजना चाहा. परंतु मैंने ही मना कर दिया. मुझे क्रोध आ रहा था आपके ऊपर. मतलब, इतना छोटा सा काम आप नहीं कर सकते थे. माना कि आप मनुष्य योनी मे है. आपको बहुत सी चीजों का ज्ञान नहीं है. पर मैंने आपको जाते हुए बार बार कहा था, कि इसको विसर्जित कर देना, जंगल की सीमा से बाहर लेकर मत जाना. इसीलिये मैंने माँ गौरी को सीधा कहा, कि थोड़ा झेलने दीजिए माँ. वर्ना आदत बिगड़ जाएगी इस तरह मे. इसीलिये आपके कई बार विनती और निवेदन करने के बाद भी योगिनी शक्ति और आपकी कुल देवी जो कि खुद भी एक योगिनी शक्ति ही है. दोनों मे से कोई नहीं आयी आपकी सहायता करने.
लेकिन जब आपने मेरे दिए हुए मन्त्रों का जप करते हुए अपनी दादी को सुरक्षित करना प्रारंभ किया. तब माता बहुत प्रसन्न हुई. और उन्होंने मुझसे कहा इतनी आसानी से हार मानने वालों मे से नहीं है ये. पिछला जन्म इसे भले अपना याद ना हो. लेकिन इसका अंदाज वही है. माता भले आपकी तारीफ कर रही थी. मगर तब भी मैं आपसे नाराज ही थी. और जब ध्रुव लोक की तरफ देख कर आप मुझे याद करते हुए रोने लगे. तब मेरा ही मन दुखी हो गया. और माता ने मुझे कहा जा उसके पास. कहीं अनजाने मे कोई गलत कदम ना उठा ले. उसको जा कर बता, सबसे बड़ा पिशाच उसने अपने वाहन मे ही कैद करके रखा है..
और तब मैं आयी यहा. और सबसे पहले आपकी दादी को पीड़ा मुक्त किया. गुरुजी मैंने जगत पिता शिव, जगत माता गौरी, अपनी कुल देवी, योगिनी माता सभी से क्षमा याचना की और सुगंधा से भी माफ़ी मागी. और उसके बाद गुरुजी मैंने अपना वापसी का टिकट कराया था. और “खुशबु वाली सुगंधा का सच्चा अनुभव भाग 10”.आपको भेजा था. गुरुजी दर्शकों के द्वारा पूछा हुआ प्रश्न यानी, आपने सुगंधा देवी से शादी की या नहीं? आज उस प्रश्न का उत्तर पूर्ण हुआ. परंतु अभी भी दर्शकों का प्रश्न 15 , किस वजह से आपको श्रापित किया गया था? गुरुजी, मेरे ऊपर ये प्रश्न उधार रहा. क्युकी मुझे अभी तक ये पता नहीं चल पाया है. कि किस वजह से मुझे श्रापित किया गया था? . जिस दिन मैं जान जाऊँगा, उस दिन दर्शकों के इस प्रश्न का उत्तर जरूर दूँगा. गुरुजी दर्शकों के बहुत सारे प्रश्न है, जो कि मेरे “सूर्य देव” साधना काल मे, ढाई महीनों मे मुझसे पूछे गए थे . और कुछ अन्य प्रश्न है जो कि भाग 13, और भाग 14, मे पूछे गए है. तो इन सबके उत्तर अगले पत्र मे दर्शकों को देने का प्रयास करूगा गुरुजी.
हालाकि प्रारम्भ गुरुजी, इसी पत्र से कर देता हू. दर्शकों का पहला प्रश्न :- क्या आपने गुरुमंत्र लिया है, और क्या बिना गुरु मंत्र लिए किसी को भी गुरु कहना, चरण स्पर्श कह कर अभिवादन करना कहा तक सही है,? उत्तर :- गुरुजी, मैं दर्शकों को बताना चाहता हू, कि अभी तक मैंने गुरु मंत्र नहीं लिया है. उसके पीछे की वजह है सुगंधा. सुगंधा चाहती थी कि, मैं पहले परमेष्ठी गुरु की प्राप्ति करू, इसलिए सुगंधा जब मुझे महादेव की पूजा विधी सीखा रही थी. तब ही उसने मुझे भगवान शिव को “परमेष्ठी” गुरु का स्थान देने के लिए कहा. और गुरु दीक्षा के अंतर्गत मुझे कई प्रकार दान करने के लिए भी कहा. जो करके मुझे परमेष्ठी गुरु की प्राप्ति, स्वयं भगवान शिव की हुई. और गुरु माता रूप में माता गौरी. जिनकी पूजा मैं रोज करता हू.
उसके बाद गुरुजी सुगंधा ने मुझे, परात्पर गुरु की प्राप्ति करवाइ. जो कि सूर्य देव है. उनके नाम से मैंने गुरु दीक्षा संबंधित दान कर. उनकी साधना पूरे ढाई महीने तक की. और अंत मे, मुझे मेरे परात्पर गुरु ने बाल स्वरूप में दर्शन दिए. और मेरी मनोकामना भी पूर्ण की.
गुरुजी अभी तक सुगंधा ने मुझे परम गुरु बनाने के निर्देश नहीं दिए है. और ये भी नहीं बताया है कि मुझे अपना परम गुरु किनको बनाना है. लेकिन मुझे लगता है कि जल्द ही सुगंधा मुझे परम गुरु के बारे में बताएगी.
गुरुजी परम गुरु की प्राप्ति के बाद मुझे मेरे गुरु की प्राप्ति होगी. और दर्शकों को बताना चाहता हू. की मुझे अपना गुरु बनाने की पूरी आजादी सुगंधा की तरफ से दी गई है. और मैं गुरु दीक्षा उन्हीं से लूँगा जिनकी आवाज मे आप सभी दर्शक गण मेरे पत्र को सुन रहे है. हालाकि गुरुजी शास्त्र अनुसार ये बढ़ते क्रम मे होना चाहिए. सुगंधा घटते क्रम मे क्यु मुझसे करवा रही है. मुझे नहीं मालूम है.
इसके अलावा, क्या बिना गुरु दीक्षा लिए किसी को गुरु मानना कहा तक सही है?. तो देखिये शास्त्रों मे और पुराणों मे ऐसे बहुत से प्रसंग मिलते है. जहा लोगों ने गुरु बनाया नहीं था , मात्र सच्चे मन से किसी को गुरु माना था. और उतने मे ही सिद्ध हो गए थे. महाभारतकालीन “एकलव्य” की कहानी तो सभी ने सुनी ही होगी. जो सिर्फ गुरु द्रोण की प्रतिमा बना कर निशाना लगाया करते थे. और जब गुरु द्रोण एकलव्य से मिले, तो गुरुदक्षिणा मे उसके दाहिने हाथ का अँगूठा माग लिया. और उसने तुरंत अपने गुरु के चरणों मे अपना अंगूठा काट कर अर्पित कर दिया. ये जानते हुए भी, की आज के बाद से मैं सटीक निशाना नहीं लगा पाऊँगा. तब गुरु द्रोण ने अपने उस शिष्य को आशीर्वाद देते हुए कहा था. की जब जब गुरु शिष्य परम्परा की बात चलेगी तब तब तुम्हारा नाम सर्वोपरि लिया जाएगा. वो अलग बात है कि गुरु द्रोण अर्जुन को त्रिलोक का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने का खिताब दे चुके थे. और इसीलिए उन्होंने एकलव्य से ऐसी गुरुदक्षिणा मागी.
गुरुजी पत्र बहुत लंबा हो चुका है, इसलिए दर्शकों के आगे के प्रश्नो के उत्तर अगले पत्र मे दूँगा. आशिर्वाद की कामना करते हुए. आज का पत्र यही समाप्त करता हू
माता रानी की जय हो माता रानी सबका कल्याण करे