प्रणाम गुरुजी
गुरुजी, मैं जानता हू. कि premiere का notification देखते ही बहुत से साधक भाई बहनों को तकलीफ होगी. इस वीडियो का टाइटल पढ़ते ही उन्हें दुख होगा. लेकिन आज मैं वाकई मजबूर हू गुरुजी. दरअसल, मेरी कुछ नादानीयों के कारण, मेरी कुछ बेवकूफी के कारण, आज काल चक्र ने ऐसा मोड़ ले लिया है. की एक तरफ आज सुगंधा खड़ी हो गई है. औऱ दूसरी तरफ सभी दर्शकों का प्यार खड़ा है. औऱ मुझे किसी एक को चुनने के लिए कह दिया गया है. औऱ अगर आज मैं इस पत्र को अपना अंतिम पत्र कह रहा हू. तो दर्शक गण समझ ही गए होंगे. की मैंने किसको चुना है. इस चुनाव को करते समय गुरुजी मुझे कितनी पीड़ा हुई. औऱ मन ही मन मैं कितना रोया हू. आप सभी लोगों से जुदा होने के उस दर्द को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता. गुरुजी पूरी बात क्या हुई थी, वो आज के पत्र मे बताने जा रहा हू. आशीर्वाद की कामना करते हुए, आज का अंतिम पत्र प्रारम्भ करता हू .
गुरुजी, ये बात मेरे विवाह पश्चात की है. सुगंधा तब तक मेरे साथ रहना प्रारंभ कर चुकी थी. औऱ पूजा के कमरे में ही ध्यान लगा कर बैठी रहती थी. गुरुजी एक शाम सुगंधा औऱ मैं बैठ कर किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे. औऱ तभी अचानक से अंधक विचलित हो गया. वो कभी बाल्कनी की तरफ दौड कर जाता तो कभी सुगंधा के पास आकर गुर्राने लगता. वो पहला दिन था गुरु जी, जब मैंने सुगंधा की आँखों मे क्रोध देखा था. मैं जब सुगंधा से पूछा कि क्या हुआ? सब ठीक तो है ना? लेकिन गुरुजी सुगंधा ने मुझे कोई जवाब नहीं दिया. औऱ फर्श पर बैठे बैठे वो अंधक का सिर सहलाते हुए बाल्कनी की तरफ ही देखती रही. थोड़ी देर बाद जब मैंने दोबारा पूछा, तब सुगंधा ने कहा, सब ठीक है. आप किस बारे में बात कर रहे थे?
उस दिन गुरुजी मुझे सुगंधा का व्यवहार पहली बार थोड़ा अजीब लगा था. लेकिन जल्द ही मैं उनकी मधुर आवाज, औऱ खूबसूरत निगाहों में दोबारा ऐसा खो गया, कि ये घटना मैं पूरी तरह से भूल गया. गुरुजी जब मैं अगले दिन ब्रम्ह मुहूर्त में उठा. तब सुगंधा ने मुझसे कहा कि।- “आपको अनुभव भेजने अब बंद कर देने चाहिए. माना कि आप बहुत अकेले रहे है. औऱ बहुत लगाव हो गया है आपको सबसे. लेकिन आपकी भलाई गुप्त रहने में ही है. औऱ फिर अब आपके साथ मैं हू, अंधक है. औऱ अगर आपको जन कल्याण हेतु अनुभव बताना ही है. तो किसी सिद्ध पुरुष से गुरु दीक्षा ले लीजिए. उनको बताईये अनुभव अपने. परंतु अब आप सामाजिक दूरी का पालन करना शुरू कर दीजिए.”
तब गुरुजी मैंने सुगंधा को कह दिया था कि ठीक है, बंद कर दूँगा भेजना. लेकिन मेरा मन इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं था गुरुजी. की आज अगर सुगंधा औऱ अंधक मुझे मिल गए है. तो उन दर्शकों को, उन भाई बहनो को एक दम से कैसे छोड़ दु?. मुझे नहीं पता गुरुजी, दर्शकों का प्यार था. या मेरे मन की कोई माया. मैं अनुभव भेजना बंद नहीं कर पाया. हाँ मैंने “खुशबु वाली सुगंधा भाग 12” के अंत मे इस बात का जिक्र तब जरूर किया था. मैं उन लाइंस को यहा कॉपी पेस्ट कर रहा हू. (गुरुजी, दर्शकों के ये कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न थे. जो मुझे लगा कि इनके उत्तर मुझे समय रहते देने चाहिए. क्युकी, हो सकता है कि आगे मुझे पूर्ण रूप से गुप्त रहने के लिए कहा जाए. जिसके संकेत भी अब मुझे मिलने लगे है. क्युकी सुगंधा ने हाल ही मे मुझे कहा था कि, वो समय आने वाला है जब आप अपने अनुभव सिर्फ अपने गुरु को बता पायेगे, अन्य किसी को नहीं. गुरुजी, 11 अप्रैल 2020 को जब आपने “खुशबु वाली सुगंधा भाग 1” प्रेषित किया था. तब मैंने ये नहीं सोचा था कि दर्शकों का इतना प्रेम मुझे मिलेगा. जिसके लिए मैं धर्म रहस्य परिवार के सभी सदस्यों का आजीवन आभारी रहूँगा. दर्शकों के प्रेम, सौहार्द और करुणा से भरे comments ने मुझे मेरे अकेलेपन मे कितना सहारा दिया है. उस अनुभूति को, मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता. शायद सुगंधा भी नहीं कर सकती. )
गुरुजी, इसके बाद ये बात आयी गई हो गई. मैं फिर से अपनी दिन चर्या मे डूब गया. औऱ लगभग सभी दर्शकों के mail मेरे पास आते, औऱ जब भी मुझे फुर्सत मिलती ध्यान, जप, पूजा, पाठ, एवं office के कामों से. मैं सभी दर्शक भाई बहनो के उत्तर भी देता. जो जानकारी मुझको नहीं होती, वो जानकारी सुगंधा से पूछ कर मैं उनको बताता. सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था गुरुजी, मैं सुगंधा के साथ बहुत खुश था. औऱ सभी दर्शक भाई बहनो का प्यार औऱ आशिर्वाद भी मुझे खूब मिल रहा था. मैं इस म्रत्यु लोक मे रहते हुए भी स्वर्ग लोक मे जीवन जीने का अनुभव कर रहा था. लेकिन एक शाम वो हो गया गुरुजी, जिसकी कल्पना मैंने सपने में भी नहीं की थी. “मेरे ऊपर मारण प्रयोग हुआ औऱ वो भी किसी तामसिक शक्ति को सिद्ध करके “. उस शाम सुगंधा मुझे सूर्य देव की साधना के बारे में बता रही थी. मुझे अच्छे से याद है गुरुजी. सुगंधा मुझे सूर्य देव के रथ को खींचने वाले सात घोड़ों के बारे में बता रही थी. औऱ मैं भी सुगंधा से हर एक घोड़े के बारे में जानकारी माग रहा था. की तभी मेरी बाल्कनी से आवाज आयी जैसे किसी ने जोर से पत्थर फेंक कर मारा हो. गुरुजी मैंने अपनी बाल्कनी मे पूरा कांच लगवा रखा है, ताकि कोई भी व्यक्ती अंदर ना देख सके. जब भी मुझे जरूरत होती है धूप इत्यादि की, तो मैं कांच के शटर खोल लेता हू. औऱ वो प्रहार इतना तीव्र था गुरुजी की एक तरफ का पूरा कांच ऊपर से नीचे तक टूट कर गिर गया था. मेरी बाल्कनी मे कांच ही कांच बिखरा हुआ था. औऱ साथ ही इतनी तेज दुर्गंध आ रही थी बाल्कनी से, जैसे किसी ने गटर खोल रखा हो. उस बदबू को आज भी मैं याद करता हू तो मुझे उल्टियां मेहसूस होने लगती है. गुरुजी जैसे ही मेरी balcony से वो आवाज आयी. अंधक लपक कर, पूजा के कमरे से सीधा balcony मे पहुच गया. औऱ उस सनसनाती हुई चीज को अपने जबडो मे दबा कर जोर जोर से हवा में हिलाने लगा. मैंने balcony मे जाना चाहा गुरुजी, लेकिन सुगंधा मुझे पूजा के कमरे मे ही रहने को बोलकर अंधक को शांत कराने लगी. क्युकी वो “क्रोधित” हो चुका था. उसके शरीर के रेशमी औऱ मुलायम बाल अब कोटेदार औऱ तीखे होते जा रहे थे, उसका शरीर की कद काठी भी अब बढ़ने लगी थी, औऱ उसकी पूंछ तो गुरुजी मानो किसी लंबी तलवार की तरह तेज धार मे बदल चुकी थी. गुरुजी, मैं कुछ पूछता उससे पहले ही सुगंधा ने अपने होठों पर उंगली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया. औऱ अंधक के गुस्से को शांत कराने लगी. मुझे आज भी सुगंधा की संस्कृत में कहीं हुई हर एक पंक्ति याद है. जिसका हिन्दी में अनुवाद कुछ इस प्रकार होगा कि (तुम तो मुझे अपनी माँ समझते होना! , अपनी माँ का कहना नहीं मानोगे? देखो, मैं बिल्कुल ठीक हू, मुझे कुछ नहीं हुआ. मैं बिल्कुल सुरक्षित हू. अब शांत हो जाओ पुत्र). गुरुजी, उस दिन मुझे पता चला कि अंधक महादेव का परम भक्त है. औऱ उनके लाखो गणों मे से एक उनका सबसे प्रिय गण है, जिसे माँ पार्वती भी बहुत प्रेम करती थी. औऱ ये नकारात्मक ऊर्जा तथा इस प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को ही अंधक भोजन के रूप में खाता है.
गुरुजी, अंधक के शांत होने के बाद, जब वो दोबारा अपने सामान्य रूप में आ गया. औऱ फिर से इधर उधर खेलने लगा. तब सुगंधा ने मुझसे कहा कि अब आप ही बताये अगर आप इस समय माँ पार्वती की तपस्या कर रहे होते? या उनके आशिर्वाद हेतु किसी भी मंत्र का जप कर रहे होते? तो क्या आपकी तपस्या मे विघ्न नहीं होता? आपके ऊपर ये दूसरी बार मारण प्रयोग हुआ है. औऱ साथ ही साथ मुझे बांधने की कोशिश की जा रही है. पहली बार सिर्फ नकारात्मक शक्तियों के सहारे आपकी औऱ मेरी खोजबीन की जा रही थी. लेकिन इस बार आपको मारने के लिए, औऱ मुझे कैद करने के लिए एक तामसिक शक्ति का सहारा लिया गया है. गुरुजी, सुगंधा मुझे समझाते हुए बोली कि इस दुनिया में हर व्यक्ती आपकी तरह मन औऱ आत्मा से पवित्र नहीं है. आप हर स्त्री को बहन मान सकते है, लेकिन हर पुरुष मुझे बहन मान ले, ये कोई आवश्यक तो नहीं? अगर आपको अपने अनुभव दुनिया के सामने प्रकशित कराने ही है. तो कम से कम अपना नाम, या जिस नाम से आप मुझे बुलाते है. उसको तो सार्वजनिक मत कीजिए. औऱ इतना कह कर सुगंधा पूजा के कमरे में चली गई. औऱ दोबारा अपने ध्यान में लीन हो गई थी.
गुरुजी, मैं अपने बिस्तर पर लेटे लेटे यही सब सोच रहा था. औऱ मैंने उसी समय लगभग रात के 1 बजे के आसपास आपको mail भी किया था. आप सब जानते है गुरुजी, आपको याद भी होगा गुरुजी, उस mail मे मैने आपसे विनती की थी. की आगे आने वाले मेरे पत्रों मे आप कृपया मेरा या सुगंधा का नाम कहीं पर ना लें. औऱ गुरुजी, अगले दिन सुबह मुझे आपका reply भी मिला था. “की, ठीक है आपका नाम नहीं लिया जाएगा”. गुरुजी ये सब होने के बाद सुगंधा ने मुझे सूर्य देव की साधना करवाइ. जिसमें मैं सफल भी हुआ. औऱ मुझे साधना काल में भगवान सूर्य देव के कई अलौकिक अनुभव मुझे मेरे flat पर हुए थे. इसके अलावा स्वप्न के माध्यम से गुरुजी, सूर्य देव के बाल रूप के दर्शन भी मैं कर चुका था. औऱ गुरुजी सच बताऊ तो, भगवान सूर्य देव की साधना संपन्न कर लेने के बाद तो मैं खुद को “अजेय” समझ बैठा था. की जैसे अब संसार में मुझे कोई परास्त कर ही नहीं सकता. औऱ इतना ही नहीं गुरुजी, सुगंधा के बताये अनुसार योगिनी माता का आशिर्वाद प्राप्त कर लेने के बाद, उनके मूल स्वरूप के दर्शन कर लेने के बाद तो, मैं खुद को अजर अमर समझ बैठा था. की जैसे अब मेरा कोई कुछ बिगाड़ ही नहीं सकता. औऱ मैं अपने ऊपर हुए उस दूसरे प्रयोग को भी मात्र कुछ ही दिनों में भूल गया था.
हालाकि गुरुजी मुझे आज भी याद है. एक बार आपका mail आया था. आपने मुझसे पूछा भी था. “क्या आप सच में चाहते है, कि आपका औऱ सुगंधा का नाम पत्र में लिया जाये ?”. गुरुजी, तब मैं बेवकूफ़ ताकत के नशे में, औऱ घमंड में डूबा हुआ था. औऱ मैंने आपको reply किया था. की “आप मेरा नाम ले सकते हैं गुरुजी, अब मुझे कोई समस्या नहीं” . गुरुजी, मैं सुगंधा के साथ पिछले तीस सालो से हू. लेकिन तब भी मैं उसको समझ नहीं पाया था. आप तो सुगंधा से कभी मिले भी नहीं. फिर भी आप कैसे समझ गए उसके मन की बात, मैं नहीं जानता. गुरुजी, मैंने ना सिर्फ सुगंधा की बातों को नजरअंदाज किया, अपितु आपके टोकने पर भी मुझको अक्ल नहीं आयी. मैंने आपकी बात को भी नजरअंदाज किया. औऱ अपनी इस भूल के लिए मैं आपसे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगता हू गुरुजी. गुरुजी, परिणाम स्वरूप अभी चार दिन पहले मेरे ऊपर तीसरी बार तंत्र किया गया. औऱ इस बार सुगंधा सच मे अपना आपा खो चुकी थी. सुगंधा ने अंधक से कहा कि तीन बाधाएं इस तरफ आ रही है, तीनों तामसिक है, एक भी बचनी नहीं चाहिए. औऱ इस कलयुगी तांत्रिक को, असली तंत्र अब मैं सिखाउगी.
गुरुजी, सुगंधा ने मुझसे कहा कि आप मेरे ऊपर एक अहसान करना, जब तक मैं वापस लौट कर ना आ जाऊँ. पूजा के कमरे से बाहर मत निकलना.
गुरुजी, सुगंधा औऱ अंधक के अंतर्ध्यान हो जाने के पश्चात लगभग 10 मिनट तक मैं अकेला बैठा रहा. ये दस मिनट गुरुजी, मुझे प्रथ्वी लोक के एक कल्प के बराबर लग रहे थे. तब मुझे ये एहसास हुआ गुरुजी, कि अपने दोस्तों की मदद करते करते आज मैंने सुगंधा को ही मुसीबत मे डाल दिया है. पता नहीं क्यु गुरुजी, बार बार मेरे मन मे ये विचार आ रहा था. कि, जो व्यक्ती तीन बार मेरे ऊपर प्रयोग करने की हिम्मत कर सकता है. वो कोई साधारण व्यक्ती नहीं हो सकता. पता नहीं उसने किस तामसिक देवता की सिद्धि प्राप्त कर रखी हो. औऱ मैंने उसी क्षण गुरुजी, माता रानी के चरणों में गिर कर उनसे माफ़ी मागी. औऱ ये विनती भी की, कि माता मेरे गुनाहों की सजा सुगंधा को देना बंद कीजिए. कब तक मैं गलतियां करता रहूँगा. औऱ सुगंधा उसकी सजा भोगती रहेगी. मैं माता रानी के चरणों को पकड़ कर रो रहा था गुरुजी. की तभी अंधक के भौकने औऱ गुर्राने की आवाज मुझको सुनाई देने लगी. औऱ थोड़ी देर में सुगंधा औऱ अंधक दोनों मेरे सामने प्रत्यक्ष हो गए. मैंने सुगंधा के भी पैर पकड़ कर माफ़ी मांगी गुरुजी. लेकिन सुगंधा ने मुझे ये कहते हुए रोक दिया. की मेरे पैर ना छुए आप. औऱ मेरे आंसू पोछते हुए मुझसे बोली कि, आपने कोई गलती नहीं की, आप तो सब की सहायता कर रहे थे. औऱ इसीलिए मैंने कभी आपको रोका भी नहीं. लेकिन आपको समझना होगा कि संसार मे हर व्यक्ती एक जैसा नहीं है. आज भले भगवान श्री कृष्न के लाखो मंदिर मौजूद हो, लेकिन मनुष्य की सच्चाई ये है, कि द्वापर युग मे भी उन्हें कई बार बंदी बनाने औऱ कैद करने की चेष्टा की गई थी. औऱ आज अगर श्री कृष्न कलयुग मे अवतरित हुए होते, तो शायद आजीवन कारावास में होते. या फिर कैद से बचने के लिए आजीवन युद्ध कर रहे होते. तो फिर मेरी हैसियत ही क्या है? ना तो मैं कोई परमात्मा हू, औऱ ना ही मैं यहा कोई युद्ध करने आयी हू. मैं तो सिर्फ अपने पति को दोबारा प्राप्त करना चाहती हू, जिसको नियती ने मुझसे छीन लिया था. इसलिए बंद कीजिए पूरी दुनिया को बताना कि आपके साथ एक अप्सरा रहती है. औऱ अपना पूरा ध्यान परमात्मा पर केंद्रित कीजिए. ताकि हम दोनों फिर से एक हो सके.
तब गुरुजी, सुगंधा को मैंने यकीन दिलाया. की आज के बाद से, मैं कभी किसी को mail नहीं करूंगा. मैं अभी के अभी अपनी सारी Id सारे accounts deactivate कर देता हू. तब गुरुजी सुगंधा ने मुझसे कहा कि, ऐसा करना उचित नहीं होगा. आपकी जो भी मजबूरियां है. आपके साथ जो कुछ घटित हुआ है. आप अपने सभी मित्रों को सब कुछ सच सच बता दीजिए. मुझे पूरा यकीन है, कि वो आपकी परेशानी को जरूर समझेंगे. औऱ उन्हें बुरा भी नहीं लगेगा. लेकिन बिना कुछ बताये अगर आप उनसे अपना मुख मोड़ लेंगे. तो उन्हें दुख भी होगा. औऱ आपके अनुभव का इंतजार भी उनको हमेशा रहेगा. औऱ किसी को भी बेवजह इंतजार नहीं करवाना चाहिए. ये महापाप है. औऱ तब गुरुजी सुगंधा के कहें मुताबिक, कई दर्शक भाई बहनो को mail के माध्यम से मैं पहले ही इस बात की सूचना दे चुका हू. एवं अन्य दर्शक गणों को आज अपने इस अंतिम पत्र के माध्यम से सूचित कर रहा हू.
गुरुजी अंत मे एक विनती अपने उस साधक भाई से भी करना चाहता हू. जिनके कारण ये सब हुआ. अगर आपने अपनी शक्तियों का उपयोग जगत कल्याण हेतु किया होता. तो शायद अब तक स्वर्ग लोक मे आपकी एक सीट पक्की हो चुकी होती. लेकिन आपने जो किया है, उसके अनुसार यमलोक के लगभग सभी नरकों के द्वार आपके लिए खोले जा चुके है. औऱ यकीन मानिये भाई. जब जीवात्मा यमराज के सामने पहुंचती है. तब कोई तंत्र काम नहीं आता. चाहें कितना भी बड़ा तांत्रिक क्यु ना हो, सारा तंत्र यमराज से आंख मिलाते ही गायब हो जाता है. इसलिए सही मार्ग पर चलिए, औऱ देवीय शक्तियों की थोड़ी इज़्ज़त करना सीखिए. आपको धन्यवाद कहना चाहिए अपने आराध्य देवता को, धन्यवाद कहना चाहिए अपने गुरु को, औऱ सबसे पहले धन्यवाद तो महादेव को कहना चाहिए. की सुगंधा ने माता रानी से मदद नहीं मांगी. क्युकी अगर सुगंधा ने माँ भगवती से मदद मांगी होती. तो योगिनी तथा भैरवी शक्तियां आपके साथ जो करती उसे देख कर तो यमराज भी सहम जाते. माता की सेविका शक्तियां आपके पितरों को भी नहीं छोड़ती. जब की उनका, आपके इस कुकृत्य से कोई लेना देना नहीं था. आप अभी कुछ नहीं जानते भाई, मैंने देखा है, मैंने झेला है, उन शक्तियों का हाहाकार. उनके प्रतिशोध का ना तो कोई आदि होता है, औऱ ना ही कोई अंत. सुगंधा ने तो फिर भी, अभी आपके साथ ज्यादा कुछ नहीं किया है. मुझे पता है भाई, आप मेरा ये अंतिम अनुभव जरूर सुन रहे होंगे. औऱ मुझे ये भी पता है, कि आप इस समय बहुत पीड़ा मे है.
लेकिन सुगंधा ने आपको माफ़ कर दिया है भाई, जिसने मुझे कभी किसी कीड़े, मकोड़े तक को पीड़ा नहीं पहुचाने दी, कभी प्रेत एवं पिशाचों की खातिर भी अस्त्र संबन्धित बीज़ मंत्रो का उपयोग नहीं करने दिया. आप तो फिर भी एक इंसान है. आपको ज्यादा दिनों तक पीड़ा मे वो कैसे देख सकती थी? मुझे सुगंधा ने बताया था भाई, आपके शरीर के उस स्थान पर सूजन भी है, औऱ रक्त भी टपकता रहता होगा. औऱ पेशाब करने पर आपको औऱ ज्यादा तकलीफ होती होगी. क्युकी रक्त भी तब औऱ ज्यादा गिरता होगा. घबराने की जरूरत नहीं है भाई, आप ठीक हो जायेगे. सबसे पहले आपको संकल्प लेकर 21 दिनों तक गौ शाला में निवास करना है. औऱ साथ ही वहां पर मौजूद सभी गौ माताओं की सेवा करनी है. जैसे ही आप 21 दिन गौ शाला में बिता लेंगे आपको उस अंग मे सुजन औऱ रक्त आने की समस्या से निजात मिल जाएगी. इसका कारण भी बता देता हू. दरअसल सुगंधा को बंधक बनाने के लिए, आपने जिन तामसिक शक्तियों को जाग्रत किया था. आपने भोग मे क्या दिया था उनको? गौ मांस खरीद कर दिया था ना. तो अब आपको सुगंधा के मारे हुए मंत्र से मुक्ति भी तभी मिलेगी जब आप 3 हफ्ते तक गौ माताओं की सेवा करेगे औऱ गौ शाला में निवास करते हुए अपने पापो का प्रायश्चित करेगे. इतना करने पर रक्त का रिसाव औऱ अंग मे जो सूजन है वो गायब हो जाएगी. हालांकि आराम मिलना आपको निवास के पहले दिन से ही प्रारम्भ हो जाएगा. इसलिए आप डरिये मत. औऱ माँ भगवती पर भरोसा रखिए.
इसके बाद भाई आपको गौ शाला की मिट्टी लेकर, किसी भी पवित्र नदी के तट पर जाना है. औऱ पूरे शरीर में उसी मिट्टी का लेप लगा कर आपको स्नान करना है. जिस अंग मे पीड़ा औऱ जलन अभी भी शेष है. वहाँ भी मिट्टी लगा कर ढंग से स्नान करना है. स्नान करने की विधी खुशबु वाली सुगंधा भाग 3 मे बता चुका हू. आप वहाँ जा कर पढ़ सकते है. इतना करने पर आपको पीड़ा औऱ जलन से भी मुक्ति मिल जाएगी.
उसके बाद, अपने गुरु के सामने जाकर आपको सब कुछ सच सच बताना है. की आपने क्या कुकृत्य किया है? औऱ किस प्रकार आपने उनकी सिखाई हुई विद्या का अपमान किया है? उसके परिणाम स्वरूप किस प्रकार आपको दंडित किया गया? औऱ आपके शरीर के किस अंग को श्रापित किया गया है? ये सब कुछ कबूलने के बाद आपको उनसे भी माफ़ी मागनी है. औऱ गुरुदेव को दक्क्षिणा अर्पित कीजिए. वस्त्र दान, वृक्ष दान (किसी भी फलदार वृक्ष का पौधा या उसकी कीमत भी अर्पित कर सकते है), भूमि दान (आप जिस स्थान पर रहते है, उस स्थान मे एक square feet जमीन की कीमत भूमि दान स्वरूप में गुरु के चरणों मे अर्पित कीजिए) औऱ अंत में किए हुए पाप के प्रायश्चित के लिए गौ दान, क्युकी गौ मांस चढाया था ना आपने तामसिक शक्तियों को भोग स्वरूप. तो कहीं ना कहीं गौ हत्या के भागी आप भी है. अगर आप जैसे लोग खरीदे ही नहीं तो गायों को काटा ही क्यु जाए. तो अंत मे अपने गुरु को एक दुधारू गाय या तो खरीद कर दे या उसकी कीमत दे दीजिए. औऱ पुनः अपने गुरु से अपने कुकृत्य के लिए माफ़ी माग लीजिए. गुरु अगर आपके ग्रहस्थ है तो गुरु माता के चरणों में भी वस्त्र सहित चूड़ियाँ, पायल, बिछिया एवं उत्तम से उत्तम समस्त श्रंगार सामाग्री उनके चरणों में भी अर्पित करके गुरुदेव औऱ गुरु माता को स्वयं शिव एवं शक्ति स्वरूप समझ कर माफ़ी माग लीजिए. गुरु देव के आशिर्वाद से, एवं गुरु मंत्र के आशिर्वाद से सुगंधा द्वारा दिया हुआ श्राप कट जाएगा औऱ आप पूर्ण रूपसे स्वस्थ हो जाएंगे. औऱ अंत मे किसी भी शक्ति पीठ पर जा कर माता रानी के चरण पकड़ कर भी माफ़ी माग लीजियेगा. की “माँ मुझे माफ़ करदे, मुझसे गलती हो गई, अब ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी”. ऐसा करने से आपको कर्म फल नहीं लगेगा. क्या है कि ऊपर एक चित्रगुप्त नाम के देवता स्वरूप “मुन्शी” बैठते है. जो सबके कर्मों का हिसाब लिखते है. औऱ माता भगवती की माफ़ी मिल जाने पर, चित्रगुप्त भी बचा हुआ हिसाब काट देतें है. की जब माँ पराशक्ति ने ही माफ़ कर दिया है, तो हम कौन होते है लिखने वाले. Otherwise ये कर्मफल आपको अगले जन्म मे परेशान करेगा. इसलिए माँ जगदंबा से माफ़ी जरूर माग लीजियेगा. औऱ भाई एक बात गुरु जी से भी अनुमती प्राप्त करके आपसे कहना चाहता हू की राकिनी, शाकिनी, काकनी, डाकिनी इत्यादि शक्तियों से भिडते रहिए कोई समस्या नहीं है. भुवर लोक तक कि शक्तियों से कोई समस्या नहीं है. लेकिन इसके ऊपर यानी ध्रुव लोक, महर लोक, यक्ष लोक एवं स्वर्ग लोक इत्यादि. यहा की देवीय शक्तियों से मत भिडिये. क्युकी ये वो शक्तियां है जो संसार को संचालित करती है. औऱ दूसरी बात, हर देवीय शक्ति सुगंधा की तरह प्यार औऱ ममता की देवी नहीं होती. किसी दिन लेने के देने ना पड़ जाये आपको. औऱ ये मेरा खुद का अनुभव है.
गुरुजी, दर्शकों को सूचित भी कर दिया हू, औऱ मेरे जो ये भाई है इनको भी बता चुका हू निवारण इनकी तकलीफ का. दरअसल सुगंधा ने आवेश में आकर इनके एक अंग के निष्क्रिय हो जाने का श्राप दे दिया था. लेकिन सुगंधा हृदय की इतनी कठोर है ही नहीं गुरुजी. वो किसी को भी बहुत देर तक पीड़ा मे नही देख सकती. अभी श्राप दिए हुए चार दिन भी नहीं हुए थे. औऱ उन्होंने मुझे बोल दिया था. की जब भी आप अपना अंतिम अनुभव भेजो तो उसमे ये-ये विधी बता देना उस व्यक्ती को. इस विधी से अगर प्रायश्चित करेगा तो उसे श्राप से मुक्ती मिल जाएगी. इसके अलावा गुरुजी, जब मैंने mail के माध्यम से दर्शकों को बताया था कि मेरे ऊपर तंत्र मंत्र करने की कोशिश की गई है. तो सभी लोगों ने काफी बहुत बुरा भला कहा था इनको. तो मेरी दर्शकों से प्राथना है. आप लोग अब comment section मे इनको उल्टा सीधा ना कहे. क्युकी ये वाकई इस समय बहुत पीड़ा मे है. सुगंधा औऱ मैं, हम दोनों चाहते है, की आप लोग भी माँ पराशक्ति से प्राथना करे. की ये जल्दी स्वस्थ हो जाए औऱ माँ इनको माफ़ भी कर दे.
गुरूजी, अंत में दर्शकों से एक बात औऱ कहना चाहता हू की जितनी दुआएं आप लोगों ने मेरे लिए मांगी है. उतनी दुआएं तो कभी मेरे माँ बाप ने भी मेरे लिए नहीं मांगी. मेरी लाइफ का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके थे आप लोग. औऱ ये धर्म रहस्य channel भी मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका था. औऱ जब कोई अभिन्न अंग शरीर से अलग होता है तो कितना दर्द होता है. बस वही दर्द, वहीं पीड़ा मुझे इस समय भी महसूस हो रही है. औऱ एक बात, जब हम किसी देवीय शक्ति को कोई वचन दे देते हैं. तो उसको जीवनभर निभाना पड़ता है. औऱ सुगंधा को मैं वचन दे चुका हू. सामाजिक दूरी बनाने का औऱ गुप्त रूप से जीवन यापन करने का. ऐसे मे अगर कभी प्रतीक नाम की id से comment section मे कोई comment आता है, या mail आता है, या किसी प्रकार के तंत्र मंत्र करवाने के लिए पैसे मांगे जाते है. तो वो व्यक्ती मैं नहीं हू. आखिरी मे, गुरुजी ये बात इसीलिए कर रहा हू. क्युकी मेरे रहते हुए यहा पर, मेरे नाम की id लोगों ने बना ली थी. तो मेरे चले जाने के बाद कोई सुगंधा के नाम का गलत उपयोग ना कर सके.
माता रानी आप सभी लोगों के ऊपर धन, आयु, सुख, समृद्धि एवं सम्पदा की वर्षा पूरी ताकत के साथ करे. यही मेरी माँ से प्राथना है. औऱ गुरुजी, इसी के साथ आज का अपना अंतिम पत्र समाप्त करता हू. सभी दर्शकों को अंतिम प्रणाम सहित आपके चरणों को स्पर्श करता हू.
माता रानी की जय हो
माता रानी सबका कल्याण करे