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खूबसूरत छलावा और योगिनी सिद्धि अनुभव

 

खूबसूरत छलावा और योगिनी सिद्धि अनुभव

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज का जो अनुभव है, यह छलावे को लेकर है। छलावा एक ऐसी भूत की किस्में होती है जो कि आपको अपनी माया जाल में फंसा कर आपसे अपनी इच्छा की पूर्ति करवाती है।

इस शक्ति का एक व्यक्ति से जब सामना होता है तो क्या होता है आज के इस अनुभव के माध्यम से हम लोग जानेंगे तो चलिए पढ़ते हैं। इनके ईमेल पत्र को और जानते हैं के विषय में

नमस्कार गुरु जी मेरा नाम श्याम गडकरी है और कृपया मेरी जानकारी और बाकी ईमेल आईडी को गुप्त रखें। गुरुजी मेरा यह अनुभव भेजने का उद्देश्य यह है कि मैंने जो यह राज की बात कभी सुनी थी। उसी को मैं आपको भेज रहा हूं। हालांकि मेरा सामना कभी इन चीजों से नहीं हुआ है, लेकिन इनके विषय में जानकारी रखना, ऐसी बातों के रहस्य को समझना मेरी हमेशा से इच्छा रही है। गुरुजी देर न करते हुए मैं अपने इस कथा पर आता हूं। गुरु जी आज से करीबन डेढ़ सौ साल पहले हमारे गांव में एक साधु रहा करता था। वह! दुर्गा माता का भक्त था और अधिकतर पूजा-पाठ साधनाएं किया करता था। कहते हैं उसके पास एक व्यक्ति। कुछ तांत्रिक विद्या को सीखने के लिए गया था।

और जब वह उसके पास पहुंचा तो साधु ने उसे। एक अलग तरह की विद्या को करने के लिए कहा। उन्होंने कहा नदी के पास!

एक गुप्त योगिनी आज भी विचारती है। और वह इस प्रकार घूमा करती है कि अगर कोई व्यक्ति उसे साथ ले तो फिर उसके लिए। जीवन में सब कुछ करना संभव हो जाएगा। मैंने बहुत पहले कोशिश की थी पर उसकी सेना में कई तरह के छलावे भी मौजूद है जो कि उसके सेवक शक्तियों जैसे ही है, अगर तुम उनसे पार पा सके तो वह! तुमसे सिद्ध हो जाएगी।

मैं तुम्हारे कान में उसका एक गोपनीय मंत्र देता हूं। और गुरुजी तब उस साधु ने उस व्यक्ति को एक गोपनीय मंत्र दिया। इस साधना का तरीका यह था कि रात्रि 12:00 बजे। आपको सर्वथा। निर्वस्त्र होकर। नदी तक जाना नदी को प्रणाम करना।

नदी के किनारे पर खड़े होकर जहां तक आपके कमर तक पानी हो जाए। वहां पर जाकर 11 माला मंत्र का जाप करना।

और उसके बाद फिर वापस आना। और तभी कपड़े पहनना। तब तक आप कपड़े नहीं पहन सकते। यह एक अलग तरह की कोई विद्या रही होगी जो उस योगिनी को सिद्ध करने के लिए की जाती होगी। यह साधना 21 दिन की बताई जाती थी तो वह व्यक्ति गुरु रूपी उस साधु से मंत्र को प्राप्त करके।

12 बजते ही रात्रि के सर्वथा निर्वस्त्र होकर पहुंचता है नदी के किनारे के तभी वहां पर एक खूबसूरत स्त्री बैठी हुई दिखाई देती है और वह दूर से ही इसे देखकर जोर-जोर से हंसने लगती है।

यह व्यक्ति बहुत ज्यादा शरमा जाता है। क्योंकि एक तो यह पूरी तरह निर्वस्त्र था और कोई पागल व्यक्ति वह नहीं था। इसीलिए वह अपने गुप्त अंग को अपने हाथों से ढक कर दूसरी ओर जाने की कोशिश करने लगता है। थोड़ी देर बाद चलने के। क्योंकि नदी काफी लंबी और दूर तक थी इसलिए वह किसी भी स्थान पर जाकर साधना शुरू कर सकता था। लेकिन जैसे ही वह कुछ दूर जाने के बाद एक नदी के किनारे पर पहुंचा। फिर उसे एक स्त्री दिखाई दी। और वह उसे देखकर अचरज से कहने लगी। अरे कैसे निरे मूर्ख व्यक्ति हो कम से कम कपड़े पहन कर तो नहाने आते। यह सुनकर वह व्यक्ति फिर से शर्म ही शर्म से पानी पानी हो गया। उसने फिर से अपने हाथों से अपने गुप्त अंग को ढका और वहां से भागने लगा।

इसके बाद वह एक और दूसरी दिशा की ओर नदी के किनारे पर गया। और वह नदी के जल में जाकर खड़ा हो गया।

कि तभी

वहां पर एक और स्त्री उसे दिखाई दी।

और वह कहने लगी। अरे मूर्ख यहां पर नहाने के लिए रात्रि में आना बहुत खतरनाक है।

तुम जहां पानी में खड़े हो? वहीं पर एक मगरमच्छ रहता है। अगर तुम जल्दी बाहर नहीं निकले और? उसे पता चल गया तो तुम्हें तो पानी के अंदर ही खींच लेगा।

यह! बात सुनकर व्यक्ति थोड़ा घबराया लेकिन। उसने इस बार यह सोच लिया था कि कोई ना कोई स्त्री यहां पर आ ही जाती है और इस वक्त मैं पानी के अंदर हूं इसलिए मुझे। शर्माने की कोई जरूरत नहीं है। इसे कहने दो मैं अपनी साधना शुरू करता हूं। कि तभी पानी में उसने हलचल देखी। और पानी की उस हलचल से।

अद्भुत रूप से घबरा गया, क्योंकि उसने पानी में कुछ तैरते हुए। बड़ी आकृति अपनी ओर आते हुए दिखी।

और जल्दी ही उसे समझने में।

कोई देरी नहीं हुई कि यह तो कोई बड़ा मगरमच्छ ही है।

अब अपनी साधना को बीच में छोड़कर? बहुत तेजी के साथ पानी से बाहर निकला। वह स्त्री कहने लगी, कितना बेवकूफ है तू? अभी समझाया था ना कि अंदर मगरमच्छ है। फिर भी तू उसके अंदर गया।

सुन इधर आ जा एक तो तू बिना वस्त्रों के घूम रहा है। तुझे इतनी भी शर्म नहीं है कि जहां औरतें या स्त्रियां हों। वहां! कपड़े पहन कर ही जाना चाहिए। सुन मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा ले मेरी साड़ी ले ले। और फिर उसने अपनी साड़ी खोलनी शुरू कर दी और उस व्यक्ति को पकड़ा दी। व्यक्ति भी अचरज में था। वह सारी बातें भूल चुका था। इसलिए इस बात को नहीं समझ पा रहा था। उसने उसकी साड़ी को खींचना शुरू कर दिया। अब साड़ी लंबी और लंबी होती जा रही थी। यह देखकर व्यक्ति घबरा गया। क्योंकि किसी भी स्त्री की साड़ी!

1 मीटर 2 मीटर 3 मीटर 5 मीटर। 10 मीटर तक की हो सकती है, इससे ज्यादा नहीं हो सकती।

और यहां पर तो यह खींचता ही जा रहा है। तब भी यह कम नहीं पड़ रही है।

इसलिए व्यक्ति इस माया को देखकर घबरा गया। अचानक से उसने उस स्त्री के पैरों की तरफ देखा।

उसके पैर जमीन पर दिखाई नहीं दे रहे थे। केवल उसकी साडी ही जमीन को लगती थी। यह बात उसके लिए काफी विचित्र थी।

तब उसने उस स्त्री से पूछा। आपको शर्म नहीं आई।

बल्कि मुझे आ रही है। मुझे आपसे कपड़ा मांगना पड़ रहा है। आज मैं जहां भी जा रहा हूं, वहां कोई ना कोई स्त्री दिखाई दे रही है।

ऐसा क्यों है तब वह कहने लगी, अरे रात्रि होते ही। यहां पर कई स्त्रियां पूजा करने के लिए आती है।

ऐसे में तुम इतने मूर्ख हो कि बिना वस्त्रों के यहां तक चले आए। और यहां पर आकर यह भी नहीं देखा कि पानी में मगरमच्छ है।

इसलिए!

तुम्हारी मदद करने हेतु ही मैं साड़ी। तुम्हें दे रही हूं। इस साड़ी को अपने शरीर पर लपेट लो।

तब उस व्यक्ति ने कहा, आप जो भी हो, मुझे मायावी नजर आती हो। क्योंकि आपकी साड़ी तो खत्म ही नहीं हो रही।

तब वह कहने लगी कि तुझे इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है।

सुन मेरे पास एक बड़ी सी कैंची है। इस कैची की सहायता से तू मेरी साड़ी को काट दे। और इस साड़ी को लपेट कर!

जो भी तुझे करना है वह कर ले।

यह कहकर उस स्त्री ने एक बड़ी सी कैची उस व्यक्ति को पकड़ा दी उस व्यक्ति ने। उस औरत के कहे अनुसार।

इस कैची से स्त्री की साड़ी काट दी और उस साड़ी को स्वयं को लपेट लिया। और फिर? वह देखता है कि पानी में जो मगरमच्छ उसकी ओर आ गया था, तेजी से डरकर नदी के दूसरे कोने की ओर भागने लगा।

और? तब तक उसने देखा वही स्त्रियां।

बार-बार उस स्थान पर पहुंच जा रही थी जहां पर वह साधना करने जाता उसके पास आ गई। उन सभी का चेहरा। पूरी तरह गायब हो गया।

शरीर पर केवल वस्त्र ही वस्त्र नजर आते थे। चेहरा दिखाई नहीं देता था। यह देखकर व्यक्ति स्पष्ट रूप से समझ गया। कोई प्रेत आत्माएं हैं।

और? स्त्रियों तेजी से इसकी और आयी लेकिन? जैसे ही उन्होंने इस व्यक्ति को छुआ।

डर कर और चिल्ला कर वहां से गायब हो गई। यह सुनकर! और देखकर वह व्यक्ति अचरज में आ गया। उसे कुछ समझ में नहीं आया।

वह सोचने लगा उस साधु ने कहा था पानी में।

जाकर के मंत्रों का जाप करना है वह भी बिना वस्त्रों के। लेकिन अब मैं क्या करूं? व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया। वह उसी साड़ी को पहनकर पानी के बीच चला गया। और कमर भर पानी में खड़े होकर।

मंत्रों का जाप करने लगा।

कि तभी उसने देखा नदी के दूसरे किनारे पर एक और स्त्री खड़ी है। जो की अद्भुत रूप से सुंदर थी।

इशारा देकर बुलाने लगी।

और कहने लगी ओ प्यारे। सुनो इधर आ जाओ! तुम जिसको पुकार रहे हो मैं वही हूं।

यह सुनकर वह व्यक्ति।

एक बार फिर से अचरज में आ गया।

उसके जीवन में एक ही दिन में इतने सारे चमत्कार हो रहे थे कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

स्त्री की ओर बढ़ने लगा। और चमत्कार तो तब हुआ कि जब वह नदी के बीच से जा रहा था तब भी नदी की गहराई कहीं भी कमर से ज्यादा या कमर से कम नहीं थी।

यह बात उसके लिए और भी ज्यादा आश्चर्यजनक थी। नजर आ रही थी।

कि थोड़ी दूर चलने पर उसके पास पहुंच गया, तब उस स्त्री ने कहा।

इस वस्त्र को उतार दो। इस वस्त्र को जब तक तुम पहने रहोगे, मुझे प्राप्त नहीं कर पाओगे। तुम इस साड़ी को फेंक दो।

तब उस व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया। और उसने कहा, क्या तुम अपनी साड़ी मुझे दे सकती हो? तब वो कहने लगी, ठीक है लेकिन इससे तो मैं भी निर्वस्त्र हो जाऊंगी। तब वह कहने लगा क्या तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती हो? तब उस स्त्री ने कहा, ठीक है! और? उसने अपनी साडी उस व्यक्ति को पकड़ा दी। उस व्यक्ति के पास जो कैंची पहले से मौजूद थी उसने उस कैची से उस स्त्री के कपड़े को काटा। और जैसे ही उसने ऐसा किया, वह स्त्री वहां से गायब हो गई। उसके बाद वह व्यक्ति! साधना पूरी करने के बाद अपने गुरु के पास लौट आया तब उसके गुरु ने कहा, यही वस्त्र तुम्हारे लिए सिद्धि का रूप रहेगा। इसके माध्यम से तुम!

योगिनी को अपने पास बुला सकोगे। लेकिन कल तुम्हारे प्राण तीन बार जिस व्यक्ति ने बचाए जानना चाहोगे, वह कौन हैं?

तब उस व्यक्ति ने पूछा तो उस साधु ने बताया वह कोई और नहीं साक्षात माता तारा थी।

वही माता तारा। जो अपने हाथ में कैंची को धारण करती हैं। कैची की सहायता से तुमने उसे योगिनी के जितने भी चलावे थे, उन सभी का नाश कर दिया और अगर तुम उस साड़ी को नहीं पहनते तो तुम्हारी रक्षा कोई नहीं कर पाता। वह रक्षा कवच के रूप में। सदैव तुम्हारे साथ विद्यमान थी तब वह व्यक्ति कहने लगा। मैंने तो माता की साधना बहुत पहले की थी। तब माता ने आज मेरी रक्षा कैसे की? तब वह कहने लगा कि हम जैसा सोचते हैं उससे कहीं आगे। देवी को पता होता है कि कब और कैसे अपने भक्तों की सहायता करनी है। तुमने बचपन से माता तारा की साधना की है। आज बह समय था जब वह इस सिद्धि के समय तुम्हारे प्राणों की रक्षा करें। अन्यथा उस योगिनी के तीन छलावे जो उसके सेवक थे। तुम्हारे प्राण ले लेते। इस वस्त्र को संभाल कर रखो और जो भी इच्छा हो, इस वस्त्र से कह देना। यह तुम्हारे कार्य रहेगा बताते हैं गुरु जी की वह लोगों की बीमारियां लोगों पर विभिन्न प्रकार के तांत्रिक प्रयोगों इत्यादि को नष्ट करने की सिद्धि उसके पास सदैव बनी रहे।

हालांकि यह एक कहानी है और आज इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन गुरु जी मुझे लगता है कि यह उसे छलावे और उस देवी। का एक स्पष्ट उदाहरण है कि तंत्र विद्या से और तंत्र साधना से क्या क्या नहीं हो सकता है

गुरु जी को प्रणाम! मेरे शब्दों को अगर अच्छा लगे तो अवश्य ही प्रकाशित कीजिएगा आपका धन्यवाद ।

सन्देश- तो देखिए यहां पर माता तारा ने ही सिद्धि साधना के दौरान उस व्यक्ति की रक्षा की और छलावो से उसके प्राणों की भी रक्षा की थी।

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