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गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि 4 अंतिम भाग

गोरखपुर भैरवी और त्रिकाल सिद्धि अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है । जो गोरखपुर के आसपास में जिसका क्षेत्र था और परंपरा के हिसाब से वह राजा उस समय का था वह थारू राजा कहलाता था । तो मदन सिंह के राज्य में उनके भाई थे जिनको एक रियासत दी गई थी । वह राजा की हैसियत से भी राज्य करते थे उनकी एक कन्या थी यह कन्या ही वह भैरवी थी । और यह वह इलाका था जहां पर समय कपालीको और वाम मार्गी साधकों का बहुत बड़ा एक केंद्र था । उसी में यह  महा भयानक कापालिक था । जो सिद्धि प्राप्त करना चाह रहा था वह नरबलि वगैरह दिया भी करता था । इस वजह से उसने नरबलि की इच्छा की और उस लड़की का अपहरण कर लिया । वह जानता था कि एक दैवी शक्तियों से युक्त हो जाएगी किसी दिन और इसकी सहायता से वह लगभग सभी प्रकार की सिद्धियां और सफलताएं प्राप्त कर लेगा । इस वजह से वह उसको ले आया और उसे रखा । मैंने पूछा आखिर आपको सारी बात तो पता चल ही चुकी है मुझे यह बताइए आखिर कैसे  वह कन्या और उसका बाद में क्या हुआ बाद में । जो कुछ भी हुआ मुझे सारी बातें बताइए ।

तो उन्होंने कहा कि उसके बाद जानते हो क्या हुआ था तुम्हें उसने भविष्य में फिर से भेज दिया उसके बाद उस कन्या ने अपना भी सिर काटते हुए माता को चढ़ा दिया । और कहा हे माता मुझसे अपराध हुआ है मैंने अपने गुरु की हत्या की है उसके शिष्य की भी हत्या की है इसलिए मेरे भी जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है । इस वजह से आप मुझे मुक्त करिए और मेरे जीवन के लक्ष्यो को आगे अगले जन्म में उसको प्राप्त करने हेतु सहायता करिएगा । और इस प्रकार मैं अपनी भी बलि देती हूं । यह कहकर उसने अपनी गर्दन काट दी और मां को चढ़ा दी । जानते हो तब क्या हुआ मैंने कहा हां कुछ बताइए  उसके बाद फिर क्या हुआ । कि वह जिसकी उसने गर्दन काटी थी क्योंकि नर या पशु की इच्छा के विरुद्ध अगर उसकी बलि दी जाती है तो यह तांत्रिक कार्य सफल नहीं होते हैं । यह परिणाम विरुद्ध हो जाते हैं और मां महामायान की कोख का भाजन बनना पड़ता है इसीलिए स्वयं इच्छा से दी हुई नरबलि ही कामयाब होती है ।

बिना स्वयं इच्छा से नरबलि दी जाएगी तो मां क्रोधित हो जाती है इस वजह से उसकी मुक्ति नहीं हुई महाकपालिक की । और उसे प्रेत योनि मिली आज तक वह भटक रहा है उसी ने वह तुम्हे सारी क्रियाए की क्योंकि वह वही स्थान था जहां वह हजारों साल पहले तो वह प्रेत लीला स्वयं तुमको दिखाई । और वह लगातार उसी प्रेत लीला में फंसा हुआ है और वह लगातार दिखाता रहता है । अगर कोई भूले भटके उधर पहुंच जाए उस जगह उस क्षेत्र में तो उसको वही सब चीजें नजर आती है । वही तुम्हारे साथ भी हुआ तो मैंने कहा यह तो बड़ी बुरी हालत है उस महा कापालिक तांत्रिक की । आखिर प्रेत योनि में उस महा कपालीक आज भी है तो मैंने कहा हां वह कपाली की आत्मा आज भी है उसी तरह उसी योनि में सड़े गले मांस खाकर के जीवित है । और वही उसी योनि में लगातार बनी हुई है जब तक कि कोई स्वयं ऐसी कन्या या वही कन्या दोबारा वापिस आकर उसे मुक्ति प्रदान ना करें ।

चाहे हजार साल या 5000 साल कितना भी समय बीत जाए यह अद्भुत बात थी मेरे लिए । मैंने सोचा यह सब क्या है फिर मैंने कहा यह सब तो ठीक है लेकिन अब यह बताइए कि उस कन्या ने इतना सब कुछ कैसे कर लिया था । तुमने जब माता को मातृ स्वर में पुकारा था तो मां की शक्ति ही उस कन्या के भीतर उस समय आ गई थी इसीलिए उसने तुम्हारी बली की जगह उस और अघोर कपाली की बलि ले ली । और उसके शिष्य की बलि ले ली थी । तुम बहुत ही बड़े भाग्यशाली हो और यह तुम्हारा भी अगला जन्म है इसलिए तुम्हारे साथ उस समय ऐसा घटित हुआ होगा । इस प्रकार से यह कहानी और क्रिया आगे बढ़ी थी मैंने कहा आखिर उस कन्या का क्या हुआ क्या वह जन्म ले रही है या फिर वह भी किसी योनि में भटक रही है । उन्होंने कहा हां उसने अब तक 3 बार जन्म ले लिया है और ब्राह्मण कुल में वह अब किसी जगह पैदा हुई है और इधर उधर भटक रही है ।

आज जाओ तुम्हें मंदिर में बैठी एक कन्या दिखेगी उसके पास जाना और तुम समझ जाओगे कि शायद यह वही है । फिर शाम हुई और मैं अपनी पत्नी के पास गया वह रो रही थी कहती है कल आप कहां थे पूरी रात नजर नहीं आए । हम लोगों ने सब जगह ढूंढवाया तुम मिले ही नहीं । तो मैंने बताया कि हां मैं मंदिर में ही रह गया था इस वजह से । अब कोई समस्या नहीं है तुम परेशान मत हो । और शाम होते रात होते ही मैं फिर उसी जगह निकल गया मंदिर की तरफ तभी मुझे एक लड़की बैठी दिखाई पड़ी । जिसे देखकर मुझे लगा यह तो वही है जिसे मैंने कल सपने में जहां मैंने देखा था यह वही कन्या है । यह वही भैरवी है जो फिर मैं उसके पास गया और उससे थोड़ी देर बातचीत शुरू की । मैंने उसको धीरे-धीरे करके सारी बात बताई । वह बड़ी गंभीर स्वर में मुझे देखती भी बोली और कहने लगी रत्नावली के माध्यम से उस मां ने तुम्हें भौतिक बताया था ।

रत्नों की मणि से बनी हुई है उनकी शक्तियां जीवन रत्नों की तरह बोया गया है गुथा गया है एक मणि माला तैयार होती है जीवन की । इसी प्रकार जीवन में सुख दुख की अनेक मणिया रत्नों के रूप में उपस्थित है । शायद तुम जानते नहीं हो और बताना भूल गए हो की जो आशीर्वाद तुम्हें मां ने दिया था वह भी बात तो बता। तो वह बात अब मुझे याद आया मां ने कहा था यह सब तो चलेगा ही और यह सब जीवन भर तेरे साथ घटित होता रहेगा और इसलिए मैं चुपचाप उसके मुंह को देख करके उसकी बातों को सुनकर के मैं वहां से उठा और चला गया । और वापस अपने घर की ओर चल दिया मैं सब कुछ समझ चुका था मां मेरे साथ में है । और यह जीवन नइया और यह कहानी चलती ही रहेगी और इसमें अद्भुत चमत्कार अद्भुत दुर्लभ बातें मां मुझे दर्शन कराती रहेगी । दुख और भय का संस्कार मेरे जीवन में आता रहेगा । लेकिन मुझे जीवन पथ पर लगातार आगे बढ़ना है लगातार चलते रहना है । और जिससे मैं आगे भक्ति को प्राप्त कर सकूं इस प्रकार से यह मेरे जीवन की सबसे रहस्यमई घटना घटित हुई थी ।

इस जीवन में उसने सिखाया कि किस प्रकार से बचा जाता है और कैसे वह सब किया जाता है । हां एक बात मैं आपको बताना भूल गया हूं कि उस समय जब वह मंत्र जाप कर रहा था वह मंत्र कुछ इस प्रकार से था इस मंत्र का जाप करके उस त्रिकाल सिद्धि की प्राप्ति हो रही थी । ओम स्त्री स्त्री त्रिकाल सिद्धि हुम हुम फट स्वाहा । इस मंत्र का जाप करते हुए उस कापालिक ने उस सिद्धि को प्राप्त करने की चेष्टा की थी । तो यह मंत्र मैंने आपको इसलिए बता दिया है ताकि किसी का योग गुरु हो तो वह भी इस त्रिकाल सिद्धि को प्राप्त कर सकता है । लेकिन ध्यान रखिए जो गलती उस कपालीक ने की वह गलती आप ना करें । क्योंकि अगर आप ऐसा करेंगे तो शायद आप कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे ।तो यह थी वह दुर्लभ अध्यतिक कहानी । और इसके आगे क्या हुआ वह भी मैं आपको धीरे-धीरे बताता रहूंगा और इस प्रकार की दुर्लभ कथा पर बताता रहूंगा