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दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना भाग 1

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है आज एक बार फिर से मैं आपके लिए मठ और मंदिरों की कहानियां लेकर के उपस्थित हुआ हूं आज की कहानी में हम एक ऐसे मंदिर की जो मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन उससे जुड़ी हुई उसी स्थान पर घटित बहुत ही पुराने समय में एक कहानी है जिसके बारे में मैं आपको बताने जा रहा हूं तो सबसे पहले यह जानते हैं कि यह मंदिर है कहां पर और इसकी मान्यता फिलहाल इस समय क्या है और पुराने समय में यहां पर जो मठ स्थापित था या यूं कहिए कि वहां पर पूजा पाठ या तांत्रिक पूजा की गई उसका असर इस तरह से देखने को कैसे मिला है ।

आप लोग जानते ही होंगे कि कोई भी भारत में मंदिर अगर कोई मंदिर है तो यू ही नहीं बन जाता है उसके पीछे कोई ना कोई कहानी होती है कोई भी मंदिर या मठ यूं ही स्थापित नहीं होते हैं उसके पीछे एक पूरी की पूरी कथा होती है किसी के जीवन की घटना होती है यहां पर मैं आज इस मंदिर के बारे में बता रहा हूं इसे भूतों के मंदिर से भी जाना जाता है और कहते हैं कि भूतों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था यह मंदिर इसी तरह है जैसे मैंने पहले आपको मैंने भूतों के निर्माण वाला बताया था उसी से मिला जुला सा समझ में आता है इसका जो श्रेय है वह भूतों को दिया जाता है कहा जाता है कि इसे मंदिर को भूतों ने निर्माण किया था यह मंदिर है ।

आपके उत्तर प्रदेश के मेरठ में उत्तर प्रदेश में एक जगह है मेरठ जिला है उसमें सिंभावली के दतियाना गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर है यहां के लोगों का यह मानना है कि यह मंदिर जो है वह भूतों के द्वारा निर्मित किया गया है यानी कि जो भगवान शिव के गढ़ माने जाते हैं भूत प्रेत उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया स्थानीय लोग इसे भूतों वाला मंदिर के नाम से भी जानते हैं लोगों का ऐसा सोचना और मानना है कि इसे भूतों ने एक ही रात में बनाया था कहते हैं लाल रंग की ईंटों से बने हुए इस मंदिर में सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया है लोगों का कहना है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है लेकिन यह आज तक यह मंदिर वैसा का वैसा ही खड़ा हुआ है ।

चाहे इस पर कई तरह की प्राकृतिक आपदा वगैरा भी आई है लेकिन मंदिर को कोई समस्या नहीं आई है कहते हैं कि इतने सालों में केवल इस मंदिर के शिखर पर ही नुकसान थोड़ा सा पहुंचा है जो शिखर है उसे बाद में उसका निर्माण कराया गया है लोगों का कहना है कि यह शिखर भूतों ने नहीं बनाया है बाकी सब चीजें भूतों ने निर्मित कराई है यहां जो पुजारी हैं उनका कहना है कि पूरे मंदिर का निर्माण जो है लाल पत्थरों से किया गया है पूरा मंदिर बनने से पहले ही सूरज निकल आया थायाने की मंदिर बनने से पहले ही सूरज निकल आया था ।

जिसकी वजह से शिखर का निर्माण पूरी तरह से संभव नहीं हो पाया था बाद में जो गांव वालों ने उस मंदिर के शिखर को बनवाया था इसीलिए वह बाद में टूटा भी था वरना यह टूटता भी नहीं कहते हैं यह गुप्त काल के दौरान का मंदिर है अब जानते हैं कहानी के बारे में कहते हैं यहां पर कई सौ साल पहले शायद यह गुप्त काल की ही बात हो या उससे भी पहले की बात रही हो यहां पर जगतपाल नाम का एक व्यक्ति रहा करते थे और वह इस स्थान पर आकर के एक शिवलिंग की जो पिंडी स्थापित होती है जैसे शिवलिंग स्थापित किया जाता है ।

जो आप्रकृतिक होता है जो बनाया जाता है मनुष्य के द्वारा चाहे वह मिट्टी से बनाते या पत्थर को ही स्थापित करके वहां पर पूजा करने लग जाए तो वहां पर जगतपाल जी नाम के व्यक्ति थे वहां पर वह पूजा किया करते थे उस स्थान पर उसको रख कर के जहां पर आज यह मंदिर स्थापित है तो वहां पर पूजा करने की वजह से धीरे-धीरे करके क्योंकि कोई भी शिवलिंग या कोई भी प्रतिमा जब उसकी बहुत ज्यादा पूजा की जाती है तो वह स्वता ही प्राण प्रतिष्ठित हो जाती है अगर उसमें कई वर्षों तक पूजा की गई हो चाहे उसे प्राण प्रतिष्ठित नहीं किया गया हो क्योंकि देवता का सानिध्य उसमें स्थापित होने लगता है उसके अंदर देवता की ऊर्जा आने लगती है इसलिए वह स्थान धीरे-धीरे करके सिद्ध होने लगा और धीरे-धीरे करके उसमें से सिद्धियां प्रकट होने लगी ।

सिद्धियों के प्रकट होने के कारण से वहां पर धीरे-धीरे करके शिवलोक के विभिन्न प्रकार के जो भूत प्रेत हैं और इस तरह की जुड़ी हुई शक्तियां है वह वहां पर आकर के गमन करने लगी यानी कि वह आती थी और वहां विचरण करती थी क्योंकि जो भी शक्तियां हैं वह जिस भी देवता से जुड़ी हुई होती है उनकी जो सेविका शक्तियां होती है वह उस स्थान पर अवश्य ही आते हैं उनके आने के कारण से वह स्थान पवित्र होता चला जाता है और इसीलिए वह दिव्य मई और चमत्कारिक भी धीरे-धीरे बनता चला जाता है जैसे कि कोई मां भगवती का मंदिर है और उनकी योगिनी या वहां पर आती है और भैरव जी आते ही हैं ।

इसी तरह जैसे भगवान विष्णु का मंदिर है उनकी सात्विक शक्तियां वहां आती ही है उनके लोको की और विभिन्न प्रकार के साधु संतों की शक्तियां वहां पर आया करती है इसी तरह से हनुमान जी से संबंधित हो या फिर अन्य कोई देवी देवता हो उस स्थान पर उनसे जुड़ी जो गोपनीय शक्तियां होती है और उनकी जो सेविका शक्तियां होती है उस देवता से आने से पहले अवश्य ही आती है इसी कारण से इस स्थान पर भी भूत प्रेतों का एक डेरा सा बन गया भूत प्रेत यहां पर आते और अपना इस स्थान पर भ्रमण किया करते थे ।

धीरे-धीरे करके यह स्थान चमत्कारिक होने लगा कहते हैं सुबह-सुबह जो भी आ करके इस छोटे से शिवलिंग को नमस्कार करता था उसके बाद वहां से वह चला जाता था जो भी दिन का कार्य होता था वह संपन्न हो जाता था इस कारण से लोगों ने सोचा कि यह स्थान अत्यंत ही पवित्र है और चमत्कारिक है और भगवान शिव की कृपा यहां पर स्थापित है इस वजह से वहां पर लोग लाल रंग का फूल रखने लग गए लाल रंग के फूल लोग यहां पर भगवान शिव को अर्पित करने लगेभगवान शिव को जब भी लाल फूल अर्पित किया जाता था ।

भगवान शिव को प्रसन्नता होती होगी या फिर उनकी शक्तियों को प्रसन्नता होती होगी इस कारण से यहां पर परंपरा चल पड़ी इस वजह से लोग यहां पर लाल फूल चलाना शुरु कर दिया भगवान के चरणों में रखने की वजह से की यह परंपरा बन गई कि कोई व्यक्ति फूल चढ़ाए और कोई दूसरा व्यक्ति उस फूल को ले जाए और उस फूल को अपने मंदिर में रखें और प्रार्थना करें कि मेरा यह कार्य संपन्न करो जिससे वह कार्य संपन्न होने लगा यानी कि जो लाल रंग के फूल थे उसके अंदर भूत प्रेत शक्तियों का जो शिवलोक की है उन का वास होने लगा धीरे-धीरे करके सभी लोगों के कार्य बनने लगे और यह स्थान पवित्र होने लगा जगतपाल जी बहुत ही ज्यादा खुश हो गए ।

इसी दौर में यहां पर एक गुरु प्रदीप आए उन्होंने यहां आ कर के उस शिवलिंग की पूजा पाठ का जो कार्य है सुबह शाम का उन्होंने देखना शुरू कर दिया उन्होंने एक छोटी सी कुटिया बनाई और आ करके सुबह सुबह जो भी भक्त आते थे उनको प्रसाद वगैरह देना और पूजा पाठ का एक विशेष प्रकार का प्रबंधन करना शुरू कर दिया इसके बाद धीरे-धीरे करके समय बीतता चला गया और अचानक से गुरु प्रदीप रात को टहल रहे थे तभी उन्होंने कुछ दूर पर पेड़ पर किसी के चलने की आवाज सुनी वह वहां पर गए और उन्होंने छन छन करती हुई पायलों की आवाज आई ।

वह पायलो की आवाज पेड़ पर चढ़ने की थी यानी कि कोई पेड़ पर चढ़ा रहा हो और उसने पैर में पायल पहनी हो इसकी वजह से जो शब्द उत्पन्न होता है ठीक उसी तरह का शब्द उन्होंने सुना उन्होंने ध्यान लगा करके देखा तो पता चला कि कोई भी दिखाई नहीं दे रहा है लेकिन कोई तो अवश्य है ऐसा संभव नहीं है क्योंकि पेड़ पर चढ़ने पर पेड़ हिलता है उस तरह से पेड़ हिलता था और कोई पेड़ पर चढ़कर के चलता चला जाता था जिसके पैरों की झंकार भी साफ सुनाई पड़ती थी ऐसा कई बार हुआ इसके बाद गुरु प्रदीप ने अपने ध्यान में बैठ कर के भगवान शिव के मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान लगाने की कोशिश की उस पेड़ के ऊपर और कोशिश की कि जानने की कि आखिर कौन और यह है आखिर क्या है ?

यहां पर तो उन्होंने ध्यान में एक सुंदर स्त्री के पैर दिखाई पड़े उस पैर में इतनी अधिक दिव्यता थी कि जिन को देख कर के आकर्षण पैदा हो जाए बड़े-बड़े और सुंदर चांदी के घुंघरू पहने हुए थे और कोई स्त्री पेड़ पर चल रही थी जिसके सिर्फ पैर दिखाई पड़ते थे इसके अलावा और कुछ नजर नहीं आता था गुरु प्रदीप ने पूरी कोशिश की जानने की लेकिन वह जान नहीं पाए फिर उन्होंने अपने ध्यान के माध्यम से पता लगाने की कोशिश की तो उन्हें यह पता लगा कि अवश्य ही यह शिवलोक से कोई शक्तियां आती है और उनमें से यह कोई स्त्री शक्ति है जो आकर के इस पेड़ पर चढ़कर बैठ जाती है और रात भर यहां पर पहरा देती है ।

और देखती है भगवान शिव के शिवलिंग को ऐसा होता भी है जो भी भगवान शिव के मंदिर होते हैं वहां पर ऐसी शक्तियां अवश्य ही निवास करती है इसलिए कभी भी भगवान शिव के मंदिरों में गलतियां नहीं करनी चाहिए और दुष्कर्म और या इस तरह की गलत भावनाएं नहीं रखनी चाहिए वरना आपका नुकसान अवश्य हो सकता है जैसा कि हम लोग जानते हैं कि आखिर केदारनाथ का विनाश आखिर क्यों हुआ जो कि उसे वह टूरिस्ट प्लेस की तरह से इस्तेमाल कर लिया गया और वहां पर कपल यानी कि नए जोड़ें जो होते हैं वहां पर हनीमून तक मनाने लगे यही कारण था कि कहीं ना कहीं उन शक्तियों का क्रोध जागृत हो गया जिसका परिणाम सभी लोगों को देखने को मिला ऐसे स्थानों पर केवल और केवल तपस्या पूजा करने के लिए ही जाया जाता है ना कि मनोरंजन के लिए ठीक इसी तरह से यहां पर भी इस शक्ति का यहां पर वास हो गया था ।

वह शक्ति पेड़ पर चलती थी और उतर जाती थी सुबह के समय वह स्पष्ट शब्दों को सुन सकते थे कि कोई पायल की झंकार वाली स्त्री पेड़ पर चढ़ती है और उसके बाद नीचे उतर आती है जिसके सिर्फ पैर ही दिखाई पड़ते थे बड़े ध्यान लगाने पर और इसके अलावा और कुछ भी नजर नहीं आता था खुली आंखों से वह कभी नजर नहीं आती थी कुछ विशेष तरह के ग्रंथों का अध्ययन करने पर गुरु प्रदीप को पता चला कि यह कोई भूतनी सकती हो सकती है और अगर इस भूतनी शक्ति को सिद्ध कर लिया जाए तो विशेष तरह के कार्यों को संपादित किया जा सकता है गुरु प्रदीप सुबह-सुबह टहल रहे थे और उसी के बारे में सोच रहे थे तभी वहां पर जगतपाल जी आ गए और उन्होंने गुरु प्रदीप को प्रणाम किया और उस स्थापित शिवलिंग को प्रणाम करते हुए भगवान शिव के मंत्रों का उच्चारण किया और फिर गुरु प्रदीप से बातें करने लगे और कहने लगे कि ।

क्या यहां के हाल चाल हैं कैसा सब कुछ यहां पर चल रहा है गुरु प्रदीप बातें करते रहे और अचानक से बोल पड़े कि मुझे यहां पर कुछ विचित्र तरह के अनुभव हो रहे हैं जगतपाल ने उनसे पूछा कि गुरु जी आपको यहां पर किस तरह के अनुभव हो रहे हैं इस पर गुरु प्रदीप ने कहा कि मुझे यहां पर ऐसा लगता है कि कोई शक्ति आती है और उस शक्ति के कारण विशेष तरह के माहौल होते हैं और विभिन्न प्रकार के दृश्यों का मुझे पता चलता है मुझे ध्यान लगाने पर पता चला है कि यह कोई भूतनी है और ग्रंथों का अध्ययन करने पर मुझे पता चला है कि शायद इसका नाम कुल सुंदरी है जगत पाल ने आश्चर्य से पूछा गुरुजी इसके बारे में मुझे बताइए कि आप क्या कहना चाह रहे हैं ।

इस पर जगतपाल की बात को सुनकर गुरु प्रदीप ने कहा मैं तुम्हें बताता हूं कि कुछ शक्तियां भगवान शिव की सेविका शक्तियां होती है दासिया शक्तियां होती हैं और उनके लोक में निवास करती हैं जिनमें से कई सारी भूतनिया भी है और इन्हीं में से एक कुल सुंदरी भूतनी भी है अगर इसे किसी प्रकार से साध लिया जाए तो जगत में सारे कार्य को सिद्ध किया जा सकता है मुझे लगता है कि मुझे या तुम्हें किसी एक को इस संकल्प को लेना होगा जगतपाल ने तुरंत ही गुरु प्रदीप को प्रणाम करते हुए कहा कि मुझे तो सिर्फ करना है ।

आप मुझे बताइए कि अवश्य यह मैं करना चाहूंगा क्योंकि अगर आप करेंगे तो मंदिर की देखभाल कौन करेगा और बाकी की बातें भी सामने आ जाएगी गुरु प्रदीप में भी मुस्कुराते हुए कहा ठीक है प्रयास करना है तो सबसे पहले तुम ही करो और इसके अलावा इस कार्य में मैं तुम्हारी मदद भी कर लूंगा मैं मंत्रों और अन्य विद्याओं के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहा था मैंने सब कुछ पता लगा लिया है और अब तुम इस साधना को करो इस पर जगतपाल ने गुरु प्रदीप को प्रणाम करते हुए गुरु प्रदीप से कहा कि ठीक है इस साधना के लिए मैं आपको ही अपना गुरु मानता हूं और महा गुरु साक्षात सदाशिव को प्रणाम करता हूं और उनसे आज्ञा लेता हूं ।

इस कार्य को संपादित करने की पूरी कोशिश करूंगा गुरु प्रदीप से आज्ञा लेने के बाद जगतपाल को गुरु प्रदीप ने इस साधना के बारे में और इस विद्या को सिखाना शुरू कर दिया उन्होंने कहा ठीक है अब आपको यह साधना करनी होगी इसके बाद जगतपाल ने साधना को शुरू करने का संकल्प ले लिया और अपने घर वालों को छोड़ कर के आ गए क्योंकि जितने दिन भी उनको साधना करनी थी उसके लिए अपना घर बार छोड़ना पड़ता है और उन्होंने घर बार छोड़ दिया और इस साधना को शुरू करने की आगे क्या हुआ हम लोग जानेंगे अगले भाग में

दातियाना शिव मंदिर की कुलसुंदरी भूतनी साधना भाग 2

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