नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। नाग पंचमी आ चुकी है और इस अवसर पर उत्तर भारत में। गुड़िया पीटने की भी एक परंपरा होती है। आज के वीडियो में जानेंगे कि नाग पंचमी की व्रत कथा आखिर क्या है और क्यों गुड़िया पीटी जाती है और उसकी क्या कहानियां प्रचलित है। चलिए शुरू करते हैं आज के इस वीडियो को। नाग पंचमी की कहानी के विषय में सभी लोग जानते हैं। मैं उसका वर्णन यहां पर कर रहा हूं। कहते हैं एक समय की बात है। एक सेठ जी के 7 पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे बड़ा पुत्र की जो पत्नी थी व श्रेष्ठ चरित्र और सुशील थी, परंतु उसका कोई भी भाई नहीं था। 1 दिन बड़ी बहू ने घर लीपने और पीली मिट्टी लाने के लिए बहुओं के साथ चलने को कहा तो सभी दलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सांप निकला जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। तब छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा, मत मारो इसे यह तो बेचारा है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब साँप एक और जा करके बैठ गया। तब छोटी बहू ने उससे कहा, हम अभी लौट कर आते हैं। तुम यहां से मत जाना। यह कहकर वहां सब के साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सांप को जो वादा किया था, उसे भूल गए।
दूसरे दिन उसे यह बात याद आई तो वह सब को लेकर वहां पहुंची और सांप को उसी स्थान पर बैठा देख कर बोली। सर्प भैया नमस्कार सर्प ने कहा, तू भैया कह चुकी है इसलिए तुझे छोड़ देता हूं नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली भैया मुझसे भूल हो गई और उसकी क्षमा मांगती हूं। तब सर्प ने कहा, अच्छा तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ तुझे जो मांगना है, मांग ले। वह बोली भैया मेरा कोई नहीं है। अच्छा हुआ तो तुम मेरे भाई बन गए। कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप धारण कर उसके घर में आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो। सब ने कहा, इसके तो कोई भाई है नहीं तो वह कहता है। मैं दूर के रिश्ते का इसका भाई हूं। बचपन में मैं बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसके बारे में बताया कि मैं वही सर्प हूं। इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हूं, वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना उसके कहे अनुसार ही उसने किया और इस प्रकार व उसके घर नागलोक पहुंच गई। वहां के धन और ऐश्वर्य को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा, मैं एक काम से बाहर जा रही हूं। तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना उसे यह बात ध्यान में ना रहे। उसने गर्म दूध पिला दिया जिससे उसका मुंह जल गया या देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई परंतु सर्प के समझाने पर वह चुप हो गई। तब सर्प ने कहा, बहन को अब उसके घर उसे भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सारा सोना, चांदी, जेवरात, वस्त्र, आभूषण आदि देकर उसे घर पहुंचा दिया।
इतना ढेर सारा धन देख कर बड़ी बहू ईश्या करने लगी। और कहने लगी तेरा भाई तो बड़ा धनवान है। तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दी। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा, झाडू झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाड़ू भी सोने की लाकर रख दी।सर्प छोटी बहू को हीरामणि उसे एक अद्भुत हार दिया। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली ही सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उसे लेकर शीघ्र उपस्थित हो जाए। मंत्री ने सेठ जी से कहा कहा कि महारानी जी छोटी बहू का हार पहनेंगी। वह उसे लेकर मुझे दे दो। सेठ जी ने डर के कारण छोटी बहू से हार माग कर दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर की प्रार्थना की कि भैया रानी ने हार ले लिया है। तुम कुछ ऐसा करो कि वह और उसके गले में रहे तब तक के लिए सर्प बन जाए। जब वह मुझे लौटा दे तब वह हीरो और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया जैसे ही रानी ने वह हार पहना वैसे ही वह सब सर्प बन गया । यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी यह देख कर। राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठ जी डर गए कि राजा ना जाने क्या करेगा। वह स्वयं छोटी बहू के साथ वहां उपस्थित हुए।
राजा ने छोटी बहू से पूछा, तूने क्या जादू किया है। मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली, राजा धृष्टता क्षमा कीजिए यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरो और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। सुनकर राजा ने हार उसे देखकर कहा, अभी पहन कर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे वैसे ही वह हीरो और मणियों का हो गया। यह देकर राजा को उसकी बात पर विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दी। छोटी बहू अपने हार और धन के साथ घर लौट आई। उसके धन को देख कर बड़ी बहू ईश्या के कारण उसके पति को सिखाई की छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है यह सुनकर।उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा ठीक-ठीक बता तुझे कौन देता है तब वह सर्प को याद करने लगी। तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा, यदि कोई मेरी बहन! के आचरण पर संदेह करेगा तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती है तो इस कथा के माध्यम से आप लोगों ने जाना। यह किस प्रकार से सर्प भाई के रूप में इस समय पूजे जाते हैं। लेकिन एक और कथा इसके संबंध में आती है क्योंकि उत्तर भारत यानी उत्तर प्रदेश में।
सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी के दिन सभी लोग। एक ऐसी परंपरा को निभाते हैं जिसे हम गुड़िया पीटना कहते हैं। यह क्यों मनाई जाती है और यह परंपरा क्या है, इसकी कथा के बारे में भी जानते हैं? इसके पीछे कई सारी कहानियां प्रचलित हैं। मैं उन कहानियों को आपको सुनाता हूं। असल में इस संबंध में।यह प्रचलित है कि तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की जब मौत हो गई थी तो कुछ समय बाद तक्षक की चौथी पीढ़ी की बेटी की शादी राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में हुई थी। वह जब शादी करके ससुराल में आई तो उसने यह राज एक सेविका को बता दिया कि वह नागिन है उस ने सेविका से कहा कि वह किसी से ना कहे लेकिन सेविका से यह रहा नहीं गया और उसने यह बात किसी दूसरी महिला को बता दी और इस तरह यह बात फैलते फैलते पूरे नगर में फैल गई। इस बात से तक्षक के राजा को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर उसने नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा होने का आदेश देकर कोडो से पिटवा कर मरवा दिया। कहते हैं तभी से उत्तर प्रदेश में यह परंपरा मनाई जा रही है। इसी तरह एक और कहानी इसके संबंध में मिलती है।
कथा के अनुसार एक बार एक लड़की का भाई भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था और वह प्रतिदिन मंदिर जाता था। उस मंदिर में उसे हर रोज नाग देवता के दर्शन होते थे। वह लड़का हर दिन नाग देवता को दूध पिलाने लगा और धीरे-धीरे दोनों का प्रेम हो गया। नाग देवता को उस लड़के से इतना प्रेम हो गया कि वह उसे देखते ही अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था। इसी तरह एक दिन सावन के महीने में दोनों भाई बहन एक साथ मंदिर गए। मंदिर में जाते ही नाग देवता लड़के को देखते ही उसके पैरों से लिपट गया और बहन ने जब यह नजारा देखा तो उसके मन में भय उत्पन्न हो गया। उसे लगा कि नाग उसके भाई को कहीं काट ना ले तब लड़की ने भाई की जान बचाने के लिए नाग को पीट-पीटकर मार डाला। इसके बाद जब भाई ने पूरी कहानी बहन को सुनाई तो वह रोने लगी। फिर वहां उपस्थित लोगों ने कहा कि नाग एक देवता के रूप होते हैं। इसलिए तुम्हें दंड तो मिलेगा ही। क्योंकि यह पाप अनजाने में हुआ है इसलिए कालांतर में लड़की की जगह गुड़िया को पीटा जाएगा और इसी तरह गुड़िया पीटने की परंपरा उस दिन से शुरू हो गई तो यह थी दो कथाएं जो गुड़िया पीटने की परंपरा को दर्शाती है । इसे नाग पंचमी के दिन पर पीटा जाता है। छोटे बच्चे इसे पीट कर काफी खुश होते हैं और एक मनोरंजन की तरह यह कार्य सभी लोग मिलकर के करते हैं। इस दौरान नाग पंचमी की पूजा और गुड़िया पीटने की जो परंपरा है वह साथ साथ निभाई जाती है। तो यह थी नाग पंचमी से जुड़ी हुई कथा और साथ ही साथ। गुड़िया पीटने की इस कथा को आज आप लोगों ने जाना। अगर आपको यह दोनों कहानियां अच्छी लगी हो तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।