क्योंकि उनका कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन में हमें एक उपहार या गिफ्ट की तरह मिला हुआ है।
मनुष्य लोक के ऊपर पित्र लोक माना जाता है और पितृलोक के ऊपर सूर्य लोग होता है और इसके ऊपर स्वर्ग माना जाता है। आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर की ओर उठती है तो वह पित्र लोक में जाती है। वहां हमारे पूर्वज मिलते हैं। अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो यह हमारे पूर्वज भी उस को प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं और फिर यह आत्मा आगे सूर्यलोक की तरफ बढ़ जाती है। यहां भी करोड़ों की संख्या में आत्माएं होती हैं सूर्यलोक में भी अगर! किए गए कर्म और मंत्र ऊर्जा के माध्यम से उसकी शक्ति आत्मा की बहुत अधिक है तो फिर वह स्वर्ग लोक की ओर बढ़ जाती है। और इसे भी तभी पार कर सकती है जब किसी ने आजीवन गुरु मंत्र का पाठ किया हो और पाप नहीं किए हो तो स्वर्ग को भी पार कर वह मोक्ष की ओर बढ़ जाती है। लेकिन हमारे परिवार में!
पता नहीं कितनी पीढ़ियों से कोई व्यक्ति या आत्मा?
अकारण ही मृत्यु को प्राप्त हो गया होता है।
जिसमें।
जो अप्राकृतिक मौत हैं।
उन मौतों के कारण कई जीवात्मा जो हमारे पूर्वज हैं, पूरी तरह से मुक्ति को प्राप्त नहीं कर पाते हैं और प्रेत योनि में चले जाते हैं। यही अदृश्य बाधा बनकर। जीवन में हमारे लिए संकट उत्पन्न करते हैं। मानसिक अवसाद, व्यापार में नुकसान, परिश्रम के अनुसार फल ना मिलना, वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याएं, कैरियर की समस्याएं।
यह सारी चीजें पित्र दोष होने के कारण स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। यहां तक कि किसी भी देवी देवता की पूजा का फल भी नहीं प्राप्त होता है।
पित्र दो तरह के होते हैं अधोगति वाले पित्र और उर्ध्व गति वाले पित्र। उर्ध्व गति को मैंने आपको बता दिया है अधोगति में- जो गलत आचरण वाली कई आत्माएं। जायजात के प्रति मोह। प्रिय जनों को कष्ट देना। मुकदमा इत्यादि में फंसा देना। शारीरिक शोषण करना।
इत्यादि कई तरह के गलत कर्म करने वाले और अकारण मृत्यु को प्राप्त हुए जिसे अप्राकृतिक मौत कहते हैं।
के द्वारा भी कई सारी आत्माएं।
पित्र योनि को ना जाकर। प्रेत योनि में चली जाती है। इन्हीं आत्माओं की मुक्ति बहुत आवश्यक हो जाती है।
आपका कोई अगर? पूर्वज गर्भ में ही मर गया या फिर 2-4 साल का होकर जीवन में मर गया था। इसी प्रकार के बहुत सारी आत्माएं हैं जो आपकी वंश परंपरा चली आ रही है। उसके कारण से ऐसा पित्र दोष उत्पन्न हो जाता है।
इसी को रोकने के लिए हम पित्र दोष से मुक्ति प्राप्त करने के प्रयास करते हैं।
क्योंकि हमें नहीं पता हमारे दादा के पिता और उनके पिता और उनके भी दादा और पिता। कितने सारे समय से इस धरती पर मौजूद है? उनमें से कितनी आत्माएं मुक्ति को प्राप्त कर गई और कितनी पितृलोक में है? और कितनी सारी प्रेत योनि में बंधी हुई इस बात का इंतजार कर रही है कि कोई उनके लिए कुछ करें जिसके कारण वह मुक्ति को प्राप्त कर पाए। ऐसा समय पितृपक्ष होता है।
इसके अलावा! यह आत्माएं अधिकतर आपके लिए संकट उत्पन्न करती हैं क्योंकि वह स्वयं शुद्ध नहीं है। अगर वह शुद्ध होती। तो प्रेत योनि में नहीं जाती। इन्हीं के लिए कुछ पित्र शांति के सरल और प्रभावी उपाय करने चाहिए।
तो मै आज उन्हीं उपायों के बारे में बात करता हूं।
आप? सामान्य उपायों में। षोडश पिंडदान, सर्प पूजा, ब्राम्हण को गोदान। कन्या का दान। कुआ बावड़ी, तालाब इत्यादि बनवाना। मंदिर प्रांगण में पीपल या बरगद का वृक्ष लगवाना भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करना। प्रेत बाधा को दूर करने के लिए श्रीमद् भागवत का पाठ करवाना इत्यादि सम्मिलित है। इसके अलावा वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र स्त्रोत और विभिन्न प्रकार के शब्दों का वर्णन आया है जिनके पाठ से पित्र बाधा शांत हो जाती है।
कहते हैं कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या और अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या यानी पितृपक्ष में। यह कार्य अवश्य ही करनी चाहिए जिसकी कुंडली में पित्र दोष हो। उसे पित्र दोष की प्रक्रिया को अवश्य ही अपनाना चाहिए। तभी उसका जीवन सरलता को प्राप्त करता है। भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठकर घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान और इनके गायत्री मंत्र का जाप करने से भी पितृदोष संकट शांत होता है और सुख की प्राप्ति होती है। मंत्र है। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात।
अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन चावल बुरा, एक रोटी गाय इत्यादि को खिलाने से। गाय के माध्यम से पित्र दोष शांत होता है।
अपने माता-पिता, बुजुर्गों का सम्मान सभी स्त्री कुल का आदर सम्मान इत्यादि करने से भी पित्र हमेशा प्रसन्न रहते हैं। संतान कष्ट को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण करना और पाठ करना चाहिए। कहते हैं प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पित्र दोष 2 वर्ष में समाप्त हो जाता है।
कहते हैं सूर्य पिता है अतः तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, लाल चंदन, रोली आदि डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर 11 बार ॐ घृणि सूर्याय नमः मंत्र का जाप करने से भी पितरों की प्रसन्नता और उनकी उर्ध्व गति होती है। अमावस्या वाले दिन अवश्य ही अपने पूर्वजों के नाम दूध, चीनी, सफेद कपड़ा और दक्षिणा किसी मंदिर में या अपने गुरु को दान करना चाहिए।
जो भी गुरु मंत्र का जाप करते हैं। वह स्वता ही।
अपने पितरों को। मुक्ति प्रदान करवाते हैं। क्योंकि उनकी मंत्रों का जाप धीरे-धीरे उनके पितरों तक पहुंचने लगता है।
इसके लिए गुरु को दक्षिणा देकर इसके बाद! एक! वट वृक्ष में।
एक सफेद कपड़ा बांधकर वहां दूध, चीनी रखकर। गुरु मंत्र का 11 बार मंत्र जाप करें और संकल्प लें कि मैं आज से आप के निमित्त 1100 मंत्र जाप। पूरे पित्र पक्ष में करूंगा। और इसका संपूर्ण फल आपको प्रदान करूंगा। कहते हैं। ऐसा कर मंत्र जाप पूरा करने के बाद। उस वृक्ष की परिक्रमा जो भी व्यक्ति 108 बार लगाता है।
पितृपक्ष में की गई इस साधना से पित्र दोष अवश्य ही दूर हो जाता है।
इसके बाद अपने गुरु को दक्षिणा भेंट करें और उनसे प्रार्थना करें कि वह! पितरों को मुक्ति प्रदान करें और उन्हें सद्गति उच्च लोगों की ओर गमन करने की शक्ति प्रदान करें। इससे सभी प्रकार के पित्र मुक्ति को प्राप्त करते हैं।
इसके अलावा जिन लोगों ने गुरु मंत्र नहीं प्राप्त कर रखा है, उनके लिए कुछ उपाय हैं। जो हमेशा करने चाहिए जैसे किसी मंदिर के परिसर में पीपल या? बड़ का वृक्ष लगाएं। रोज उसमें पानी डालें। उसकी देखभाल करें। जैसे जैसे वृक्ष फलता फूलता जाएगा। पित्र दोष धीरे-धीरे दूर होगा। क्योंकि इन वृक्षो पर ही सभी इतर योनि और पित्र आदि निवास करने लगते हैं और धीरे-धीरे वह मुक्ति को प्राप्त होते जाते हैं। यदि आपने किसी का हक छीना है। किसी मजबूर व्यक्ति की संपत्ति को चुराया है या हरण किया है तो उसकी हक की संपत्ति उसे अवश्य लौटा दे। पित्र दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक पीपल वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक जला के गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए। और? गुरु को दक्षिणा भेट करनी चाहिए।
किसी देसी गाय जो कि काले रंग की हो, दूध देने वाली हो। उसका थोड़ा सा गौमूत्र प्राप्त करें। उसे थोड़ा सा उस में जल मिलाकर पीपल के वृक्ष की जड़ों में डाल दे। फिर पीपल वृक्ष के नीचे 5 अगरबत्ती एक नारियल एक शुद्ध घी का दीपक जलाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक कल्याण की कामना करें। घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ ब्रांहणों को
भोजन करा दें और अपने गुरु को गुरु दक्षिणा देकर उनसे प्रार्थना करें तो इससे भी पित्र दोष शांत हो जाता है।
इसके अलावा घर में अगर कुआं हो या पानी रखने की कोई जगह हो तो उस जगह की शुद्धता का विशेष स्थान। और ध्यान रखना है। क्योंकि यह पित्र स्थान माना जाता है। इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाना। पानी की व्यवस्था करवाना आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितरों की शांति प्राप्त होती है। तो यह था पित्र पक्ष में पित्र दोष से संबंधित समस्याओं के निवारण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयोग। अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।