नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। लोगों के अनुभव हमें प्राप्त होते रहते हैं। इसी में आज एक अनुभव लिया जा रहा है और यह व्यक्ति विशेष प्रकार का एक विचित्र अनुभव है तो चलिए पढ़ते इनके पत्र को और जानते हैं कि वह कौन सी कथा अनुभव बता रहे हैं।
नमस्कार गुरु जी, मैं मुंबई का रहने वाला हूं और अभी हाल ही में जब मैं अपने गांव गया था। यानी कि यह लॉकडाउन से पहले की बात है। उस दौरान! मैंने अपने गांव में बहुत सारी बातें सुनी। मेरा एक दोस्त जो कि प्रधान के बेटे का भी दोस्त था, उस से मुझे मिलवाया। मैं और वह और यह यानी कि 3 लोग मिलकर के बीयर पीने लगे। हम लोग गांव से बाहर आकर बियर पी रहे थे। बीयर पीते पीते शाम हो गई। जब हम अपने घर की ओर लौटने लगे तभी। मेरे दोस्त ने कहा। यह तालाब बड़ा ही पुराना और खतरनाक है। यहां से जुड़ी बहुत सारी कहानियां है। इसलिए यहां से गुजरते वक्त हंसी मजाक मत करना।
मैंने उससे कहा, यह बातें मैं नहीं मानता। यह सब झूठ होता है। किसी तालाब से डरने की क्या जरूरत है? इस पर प्रधान के उस लड़के ने कहा, ऐसा नहीं है। बाबू !आप गांव में कम रहते हैं इसलिए यहां की कुछ कहानियां नहीं जानते। यही तालाब किसी जमाने में बहुत ही बड़ा शापित तालाब था। इसे श्राप मिला हुआ है। मैंने उससे पूछा कि ऐसा क्या श्राप है इस तालाब का? तब उसने मुझे जो कहानी सुनाई, वही मैं आपको अनुभव भेज रहा हूं। अगर आपको सच लगे तो मुझे अपनी राय दीजिएगा और साथ ही साथ धर्म रहस्य चैनल के बाकी लोग भी इस पर अपनी राय दें। तो मैं फिर आगे आपको बताता हूं। उस प्रधान के लड़के ने मुझसे कहा कि उसी के वंश में यानी कि उसके पिता जी के दादाजी के साथ में यह घटना घटी थी।
मैंने पूछा ऐसा है क्या तो चल तू बता, क्योंकि हम लोग बाइक से उस स्थान से गुजर रहे थे। उसने कहा, मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी सुनाता हूं जो हमारे ही परदादा की है। उसी की वजह से आज हम लोग गांव के प्रधान भी हैं क्योंकि अगर बहुत धन-संपत्ति हमें नहीं मिलती तो शायद हमारा गांव में वर्चस्व नहीं होता। मैंने उससे कहा, ठीक है भाई तू सुना कहानी। इस पर उसने मुझे अपनी कहानी सुनानी शुरू की। उसने कहा। बहुत ही पीढ़ियों पहले यह गांव बस चुका था। गांव में बहुत सारे लोग हुआ करते थे। उसमें से मेरे परदादा जिन्हे में दादाजी ही कहूंगा। उनका बहुत वर्चस्व था। उनके कई सारे दोस्त हैं लेकिन सब के सब दारू पियक्कड़ किस्म के थे। यह लोग गांव से बाहर जाकर के अक्सर शराब पिया करते थे और बैठकर मटर गस्ती किया करते थे। आप तो जानते ही हैं कि? जवानी में लोगों को जोश बहुत होता है। सारे सुखों की कामना उनके मन में बहुत ज्यादा रहती है।
शायद मेरे दादाजी के मन में भी रही होगी। वह अपने दोस्तों के साथ में एक रात को शराब पीने के लिए तालाब के किनारे चले गए थे। उस तालाब के किनारे बैठे बैठे काफी देर वह लोग शराब पीने की और मटर गस्ती करने की कोशिश करते रहे। फिर अचानक से ही मेरे दाता जी के एक दोस्त ने उन्हें बताया कि क्यों ना हम लोग किसी जानवर को मारकर खा जाए। इस बार मेरे दादा ने कहा, यहां कौन सा जानवर मिलेगा जिसको हम शराब के साथ में खाएं? तभी उन्होंने कहा कि कुछ ही दूर पर हिरन घूमते रहते हैं। अगर हम लोग किसी हिरण को मार डाले तो उसको हम पका करके खा सकते हैं। इस पर सब ने विचार किया कि हां बात तो सही है, रात का समय भी हो रहा है। हमको ऐसा ही करना चाहिए। कोई हिरण ढूंढते हैं और उसको मार डालते हैं और फिर उसको यहीं पर पका कर खा जाएंगे।
वह दौर ही ऐसा था जब लोग इस तरह ही भोजन किया करते थे। पशु और पक्षियों को खाया जाता था। तो सब की सब निकल पड़े मशालें लेकर कि कोई हिरण दूर तक दिख जाए तभी उन्हें बहुत ही जल्दी एक हिरण दिख गया। वह हिरण बहुत ही सुंदर था। उसको देखकर सबके मन में आया। इसे ही मार डालना है, लेकिन मारेंगे कैसे? तो सब ने सोचा कि चारों तरफ से इसे घेर लो और बीच में कहीं पर जाल बांधा जाए जिससे उसमें यह फंस जाए, उन लोगों ने एक अच्छा प्लान बनाया था। उस एक हिरण को चारों ओर से घेर लिया गया और शोर मचा कर उसे भागने पर मजबूर किया गया और उसी रास्ते पर उन्होंने एक जाल बिछा दिया कि अगर इधर से निकलेगा तो फंस जरूर जाएगा।
थोड़ी ही देर बाद वही सब कुछ घटित भी हो गया। वहां पर कुछ ही देर बाद वह हिरण उस जाल में फंस गया। अब हिरण के फंसते ही सभी जोर-जोर से उछल पड़े। सब काफी खुश थे कि उन्होंने एक जिंदा हिरण को पकड़ लिया है। सब के सब हिरण को पकड़ के उस तालाब के किनारे ले आए। अब बारी थी हिरण को काटने की। तो सब ने मिलकर यह सोचा कि क्यों ना इस हिरण को यहीं पर काट लिया जाए और लकड़ियों की व्यवस्था कर ली जाए। वहां पर जितनी भी सूखी लकड़ियां उन लोगों को मिली। उन्होंने सब इकट्ठा कर ली।जिस तरह से जानवरों को बांधकर लटकाया जाता है उसी तरह बांधकर लटका देने की व्यवस्था कर दी गई। उसके बाद फिर उन्होंने उसी समय यानि मेरे दादाजी ने उसकी गर्दन काट दी।
पर कहते हैं न आदमी हंसी मजाक में बड़ी-बड़ी गलतियां कर देता है। गलती क्या हुई, मैं वह आपको बताता हूं। असल में उस तालाब में लोगों का ऐसा कहना था कि पिशाचिनी रहती है। इसी कारण से सब लोग उस तालाब से थोड़ा डरते भी थे। लेकिन जांबाज लोग इन चीजों की फिक्र नहीं करते और ना ही वह ऐसी चीजों से डरा करते हैं। इसी कारण से तालाब पर लोग जाया करते थे क्योंकि वह काफी सुंदर और मनोरम तालाब था। उस तालाब के किनारे जब उन्होंने। वह हिरन पकड़ लिया था। उसी दौरान सब लोग कहने लगे कि इसमें पिशाचिनी रहती है। क्या उसे हम कुछ नहीं देंगे? तो बाकी सब हंसते हुए शराब पीते हुए कहने लगे। हां-हां उसका भाग तो हम लोग उसे देंगे ही पर क्या वह हमको भी कुछ देगी और ऐसा कहते हुए सभी हंसने लगे। मेरे दादा भी जोश में आ गए।
उन्होंने उसी वक्त उस गर्दन! जब उड़ाया यानी कि जब उन्होंने उस हिरण की गर्दन को काटा, उसी दौरान उन्होंने गर्दन काटते हुए गलती से यह कह दिया ले पिशाचिनी मैं इसकी गर्दन तुझे देता हूं। और हंसते हुए उन्होंने। उन दोस्तों के साथ में वहां पर ऐसा काम कर दिया। उसकी गर्दन काट कर एक कोने पर फेंक दी गई। बाकी हिस्से को आग में डालकर के भून दिया गया। सभी ने मिल बांट के उसे खूब खाया। हंसी मजाक यहां तक ही नहीं रोका। इसके बाद काफी खा लेने के बाद कुछ हिस्सा जो भुना हुआ बच गया था। कुछ शराब भी बची हुई थी। उसके बारे में मेरे दादा और उनके दोस्त लोग कहने लगे कि अब इसका क्या करें? उन्होंने कहा, चलो इस पिशाचिनी को दे दो और हंसते हुए उन्होंने उसी तालाब के किनारे उस मांस के टुकड़े को। और साथ ही साथ शराब की बोतलें फेंकते हुए तोड़ दी
हंसते हुए वहां से सब लोग चले गए। इस प्रकार से उस दिन का अंत हुआ। लेकिन उस दिन जो गलत बात हो गई थी उसका पछतावा अब आगे आने वाले समय में भुगतना था। अब आगे क्या हुआ, यह मैं आपको बताता हूं। मैं उसकी बात सुनकर बहुत ही ज्यादा अचरज में था क्योंकि उसकी कहानी बड़ी ही मजेदार मुझे लग रही थी। मैंने उससे कहा कि चलो भाई ठीक है तू अगर कह रहा है तो मान लेता हूं। लेकिन जल्दी से अब आगे बताओ। तेरे दादा के साथ आगे क्या हुआ? अगले दिन मेरे दादाजी और उनके कुछ दोस्त फिर उसी स्थान पर आए। क्योंकि ज्यादातर मटरगश्ती करने के लिए वही स्थान सबसे अच्छा होता था। तो लोग स्थान पर एक बार फिर से गए। पर वहां पर उन्होंने देखा कि बाकी सब चीजें तो हैं लेकिन उस हिरण का सिर दिखाई नहीं दे रहा।
हिरण का सिर आखिर गया, कहां सब ही सोचने लगे। तभी मेरे दादाजी ने कहा, क्यों तुम लोग हिरण के सिर के पीछे पड़े हो। अरे वह हिरण का सिर कोई जानवर उठाकर ले गया होगा। तुम लोग खा म खा परेशान हो जाते हो। कभी-कभी ऐसा होता है कि बचा हुआ मांस खाने के लिए दूसरे जानवर आ जाते हैं तो भला इसके लिए तुम्हें परेशान होने की क्या जरूरत है? सब ने कहा, चलो ठीक है पर उस जमाने में अधिकतर लोग जानवरों के आगे का हिस्सा फिर का हिस्सा अपने पास रख लिया करते थे और उसे घर के बाहर टांग पर थे अथवा घर में किसी को पीस की तरह सजाकर रखते थे। इसी कारण से सब ने यह सोचा था कि उसका कोई शोब पीस के रूप में अपने गांव ले जाकर लोगों को बताएंगे कि हमने कल यहां पर एक हिरण मारा था।
लेकिन उन्हें हिरण का सिर तो मिला नहीं था। इसी वजह से वह सभी हिरण के सिर को ढूंढ रहे थे। किस्मत साथ नहीं दे रही थी। पर कुछ लोगों ने कहा कि क्यों ना थोड़ा सा घूम लिया जाए और पता किया जाए। क्या आखिर हिरण का सर कोई जानवर आ कर ले गया होगा तो उसने क्यों उसका मांस ही तो खाया होगा। उसका कंकाल और छिलके शायद मिल जाए। इसी वजह से वह लोग उस स्थान पर काफी देर तक घूमते रहे। उन्होंने पूरे स्थान का भ्रमण किया। चारों तरफ घूम घूम कर देखा, लेकिन कहीं पर भी हिरन का सींग और उसका सिर नहीं मिला। सब लोग फिर उसी स्थान पर आ गए। जिस स्थान पर उन्होंने कल रात को हिरन मारा था और उसे पकाया गया था। उसी स्थान पर आकर एक बार फिर से सभी लोग शराब पीने लगे और अपनी अपनी मौज लेने लगे। हंसी मजाक का वह दौर रात भर चलता रहा।
सब के सब बिल्कुल टुल्ल हो गए थे। यानी कि जिसे हम कहते हैं पूरी तरह से नशे में आ जाना। मैंने फिर अपने नए दोस्त प्रधान के लड़के से पूछा। कि अभी तक कुछ भी चमत्कार नहीं हुआ क्या जो तुम बताना चाहते हो? इस पर उसने कहा। शंका मत करो अब मैं तुम्हें बताता हूं कि अब कहानी कैसे पलटती है? उसकी बात सुनकर मुझे कुछ अचरज हुआ कि शायद कुछ नई बात सुनने को मिलेगी। मैंने उससे कहा ठीक है जल्दी बताओ आगे क्या हुआ? रात जैसे ही गहराने लगी, सब अपने अपने घर के लिए निकलने लगे। उस वक्त केवल मेरे दादा जी वहां पर अकेले रह गए। क्योंकि उन्होंने कुछ ज्यादा ही पी ली थी। सभी साथी कहने लगे चलो हमारे साथ और जल्दी ही हमें घर जाना है। तू क्या चलना नहीं चाहता? इस पर मेरे दादा ने कहा, थोड़ी देर और आराम कर लेने दे खा पीकर बहुत उदासी आ जाती है। इस उदासी की वजह से ही मैं थोड़ी देर में आऊंगा।
पता नहीं उस दिन क्या हुआ था? जिसकी वजह से मेरे दादाजी ऐसा व्यवहार कर रहे थे। इसके बाद! सारे लोग वहां से चले गए। रात गहरा गई थी। शायद रात के 12:00 बज गए हो। अब दादा ने सोचा कि अब उन्हें भी घर जाना चाहिए क्योंकि अब नशा कुछ-कुछ उतरने लगा था। वह जैसे ही उठे तभी उन्होंने । एक! सुंदर सी स्त्री को बैठे हुए देखा। उसे देख कर के उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वह उसके पास गए और उसे कहने लगे। तुम कौन हो किस गांव की हो और इतनी रात को यहां पर क्या कर रही हो? इस पर वह रोने लगी। मेरे दादा ने कहा, तुम रोती क्यों हो? उसने कहा मुझे घर ले चलो। मेरे दादा ने कहा, क्या हुआ तू यहां कोई रास्ता आकर भटक गई है क्या ?किस गांव की तू रहने वाली है? तुझे देखकर लगता है कि तू तो किसी राजा महाराजा की लड़की है। क्योंकि तू बहुत अधिक सुंदर है। तू यहां पर क्यों बैठी है? इस पर उस स्त्री ने कहा, मैं अपना रास्ता भटक गई हूं।
जो मुझे दिया गया था वह मैं लेकर बैठी हुई हूं। अब लेकर जाऊं कहां? मेरे दादा को उसकी कोई बात समझ में नहीं आई। वह कहने लगे इतनी रात को इस प्रकार इतनी सुंदर स्त्री का यहां बैठना अच्छा नहीं है। ऐसा कर तू मेरे घर चल वरना कहीं तेरी इज्जत से कोई खिलवाड़ हो गया तो फिर कौन तुझे बचाएगा? वो कहने लगी। मैं भी यही चाहती हूं कि आप मुझे घर तक ले चले। लेकिन मुझे वचन दीजिए कि आप मुझे अपने घर पर रखेंगे जब तक कि मेरी कहीं और व्यवस्था ना हो जाए। मेरे दादा ने कहा, ठीक है! पर नहीं, ऐसे नहीं मेरे हाथ पर हाथ रखकर वचन दो। कि आप मुझे अपने घर में स्थान देंगे? मेरे दादाजी ने कहा, ठीक है भाई मैं तेरे हाथ पर हाथ रखकर यह कहता हूं कि जब तक तेरी खुद की अच्छी व्यवस्था नहीं हो जाएगी। तुझे कोई लेने नहीं आएगा। तू मेरे घर में रह सकती है और मैं तुझे अपने मेहमान की तरह ही रखूंगा।
बस! यही थी वह गलती जो उस दिन हो गई थी। आगे क्या हुआ यह मैं आपको? आगे बताऊंगा गुरुजी। नमस्कार गुरु जी!
संदेश – देखे यहां पर इन्होंने उनके दादा के साथ में घटित हुई एक घटना के विषय में जो गांव में जाकर सुनी। उसके विषय में बताया है । अगले भाग में हम लोग जानेंगे कि इस कहानी में आगे क्या घटित हुआ था। अगर आपको यह अनुभव पसंद आ रहा है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।