नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है।
आज हम लोग जानेंगे कि साधक के जीवन में जो आगे कहानी घटित होती है और किस प्रकार से लोक माया माता उन्हें जीवन के अन्य शक्तियों से अवगत कराती हैं। पिछले भाग में हम लोगों ने इस बारे में जाना था कि? कैसे साधक को नाड़ी तंत्र का ज्ञान माता लोक माया ने प्रदान किया था। अब उसी के आगे माता ने अब बताने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि पुत्र! जो सबसे अधिक! और सबसे पहला माना जाता है उसे हम मूलाधार चक्र के नाम से जाना है।
मूलाधार का मतलब होता है जो वास्तविक आधार है जीवन का।
यह ऐसा स्थान है पुत्र कि जिस वजह से। जीव की उत्पत्ति का कारण तक बनता है।
अगर आपने? संभोग के दौरान देखा होगा। यही वह स्थान होता है जहां पर पुरुष और स्त्री आपस में मिलन के द्वारा चोट करते हैं। इस चोट की वजह से। वह कुंडली की गुप्त ऊर्जा प्रकट होती है। वीर्य में मिलकर के अचानक से ही। किसी एक? शुक्राणु को। ऊर्जावान और।
शक्तिमान बना देती है। सारे शुक्राणु गर्भ तक पहुंचते-पहुंचते नष्ट होने लगते हैं किंतु वह एक ऐसा होता है। जो उस दिन ऊर्जा से भर जाता है। और वही गर्भ में जाकर के। अंडे में प्रवेश कर जाता है और इस प्रकार से निषेचन की क्रिया द्वारा नए जीव की उत्पत्ति होती है।
अगर किसी प्रकार से उस वीर्य में वह चोट या उस कुंडली शक्ति पर वार ना किया जाता। तो शायद आसानी से यह कार्य संपन्न नहीं हो पाता।
वीर्य के अंदर रहती है। लेकिन लगातार संभोग के दौरान पढ़ने वाली चोटों से। दोनों के अंदर एक ऊर्जा शक्ति जागृत हो जाती है और वह किसी एक शुक्राणु में प्रवेश कर जाती है।
यह स्थान मलद्वार और अंडकोष के बीच में मेरुदंड के बगल में। सुषुम्ना नाड़ी से मिला हुआ होता है।
रूप में अगर इसे देखा जाए तो यह चार दल का एक कमल है।
और इस पर ब्रह्मा जी विराजमान रहते हैं।
यहां पर भगवान शिव का। पशुपति स्वरूप भी।
पूजन योग्य माना जाता है।
यह मूल स्थान होता है।
मनुष्य के शरीर में। पृथ्वी तत्व को यही दर्शाता है।
यह एक विशेष स्थान है जो कुंडली की जगह भी कहलाता है।
मूलाधार चक्र में ही कमल के नीचे काले नाग के आकार में गोल 3 लपेटा लगाकर अनेक जन्मों के। कर्म और संस्कारों को मुख में रखकर। अपनी पूछ को भी मुंह में रखकर गहरी नींद में कुंडली महाशक्ति यहां पर सोई हुई रहती है।
पूर्व जन्मो के कर्म फल भोगने के लिए बाकी हैं। वे सभी कर्म संस्कार तथा उस योनि के सभी जीवो के सूक्ष्म स्वरूप भी उस कुंडली शक्ति के अंदर संचित रहते हैं। कुंडली में जिन साधकों के सतोगुण संस्कार अधिक होते हैं। वरना जो है वह उतना ही अधिक मोटा और बलवान दिखाई पड़ता है। जिनका सतोगुण संस्कार कम होता है, वह अंदर दिखने वाला नाग अधिकतर पतला ही दिखाई पड़ता है। तो जो संत लोग इसे देखे हैं उन सभी ने इसे काले नाग की ही संज्ञा कहकर पुकारा है।
यह बहुत अधिक शक्तिशाली सकती है इसकी सामर्थ्य और इसके प्रमाण। अनंत।
अगर इस का पूजन किया जाए और प्रवेश किया जाए तो? इसका मूल मंत्र लं। होता है।
यहीं पर ध्यान को सबसे पहले लगाकर के ऊपर। कुंडलिनी को उठाने की कोशिश करनी चाहिए।
यह ब्रह्मांड ऊर्जा का केंद्र भी होता है।
सोई हुई शक्ति यहीं पर विराजमान है। और पूरे विश्व का मूल यहीं से उत्पन्न हो रहा है।
इसका जो रंग है वह लाल होता है। और चार पंखुड़ियों वाली कमल के रूप में यह पृथ्वी तत्व का बोधक है।
यहां पर विभिन्न प्रकार की चार पंखुड़ियां होती है। जो चार धनिया बीज मंत्रों के रूप में उत्पन्न करती हैं, और यहीं से कंपन पैदा होता है। शरीर में कंपन संबंधी जो भी असर व्यक्ति के अंदर नजर आते हैं।
वह सारे इसी तत्वों के कारण होते हैं।
यही तत्व! स्वास्थ्य संबंधित सभी प्रकार की। परेशानियां और ज्ञान।
स्वास्थ्य और अन्य तत्वों को देता रहता है। मूलाधार चक्र रस रूप, गंध स्पर्श भाव इनका सम्मिलित रूप होता है।
यह स्थान अपान वायु से संबंधित माना जाता है। यह जगह मल मूत्र वीर्य प्रसव इन सभी के अधीन रहती है।
मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास तभी संभव है जब यह तत्व जागृत हो। अन्यथा नहीं हो सकता।
तो फिर क्या कहते हो क्या तुम इसमें प्रवेश करना चाहते हो?
साधक ने कहा, माता ऐसा अद्भुत वर्णन आपने तत्व का किया है कि अब मेरी इच्छा इसमें प्रवेश करने की है। क्या मैं इस? चक्र में प्रवेश कर सकता हूं। माता ने कहा, मैं तुम्हें अंतिम बार एक बार फिर से सावधान कर देती हूं।
इसलिए क्योंकि? एक बार अगर तुम इस में प्रवेश कर गए।
तो यहां से कुछ आगे लेकर मत जाना।
अगर तुमने?
ऐसा किया। तो अभी तक का किया गया सारा प्रयास और तब नष्ट हो जाएगा। और? सभी मार्गो में जाने पर। पीछे और आगे कुछ लेकर नहीं जाना है।
साधक इस बात के लिए तैयार था। माता से उसने कहा। मां लोक माया। आप प्रसन्न हुई है, मैं आपकी वंदना करता हूं। मुझे अंदर जाने का मार्ग दिखाइए।
मां की कृपा से वहां पर ब्रह्मांड ऊर्जा का एक प्रकाशीय स्रोत उत्पन्न हो गया।
उसके अंदर साधक को प्रवेश करने के लिए कहा गया।
और साधक जैसे ही उस के अंदर जाने लगा। उसके सिर पर एक बड़ी ही तेज चोट पड़ी।
उसे चोट की वजह से। वह घबराकर द्वार पर ही रुक गया।
और जब उसने चारों तरफ देखा।
तो वहां पर उसके जैसे 6 लोग अन्य खड़े थे।
यह देखकर साधक आश्चर्य में पड़ गया।
उसे कुछ समझ में नहीं आया तो उसने एक बार फिर से माता से पूछा, मां यह क्या हो गया?
मेरे ७ रूप कैसे हो गए हैं?
तब माता ने कहा।
जो! भाव जैसा होता है। और जितना छोड़ना पड़ता है उतना तुमने छोड़ दिया है अपने गुरु मंत्र की ऊर्जा के कारण तुम अब 7 भाग में।
बट चुके हो?
प्रत्येक भाग प्रत्येक लोक में प्रवेश कर सकेगा।
इसे इस तरह समझो! की?
जैसे जीवात्मा अपने ऊपर आवरण पर आवरण चढ़ाती, चली जाती है। इसी वजह से वह!
पृथ्वी तत्व को पूरी तरह से ग्रहण कर लेती है। और हाड मास का शरीर बन जाता है।
यानी कि जैसे जीवात्मा उसके ऊपर हड्डी का स्थान उसके ऊपर।
मजा मांस रक्त। त्वचा इत्यादि की कई परतें चढ़ी हुई है।
ठीक ऐसे ही तुम्हारे शरीर पर भी। जो भिन्न-भिन्न परते पड़ी हैं, वह सारी यहां मुक्त हो गई हैं। आप केवल एक शरीर से ही तुम इस मूलाधार चक्र में प्रवेश कर सकोगे जो तुम्हारे शरीर का सबसे बाहरी भाग है।
साधक के लिए इस रहस्य को समझना आसान नहीं था। और यह सारे जगत को समझना तो और भी अधिक कठिन है। लेकिन वह यह समझ चुका था कि अपने शरीर के आवरण उतारने पर ही। हम उस परम शक्ति के लोक की ओर गमन कर सकते हैं परमात्मा की तरफ बढ़ सकते हैं। हमने अपने अंदर इतने अधिक! आवरण तक रखे हैं जिसकी वजह से हम उस परमात्मा में प्रवेश कर ही नहीं पाते।
हमने अपने अंदर रूप गंध स्पर्श शब्द।
विभिन्न प्रकार की भावनाएं।
काम क्रोध, मद, लोभ, इत्यादि कई शरीर अपने ऊपर चढ़ा रखे हैं परत दर परत! चीजों को रोकें बिना अंदर प्रवेश करना कठिन है।
लं बीज मंत्र का उच्चारण कर। उनका सातवां शरीर। पूजा में केंद्र के अंदर प्रवेश कर गया। अंदर सामने उन्हें जो दिखाई दिया वह आश्चर्य मय था। उन्हें क्या दिखाई दिया जानेंगे अगले भाग में तो अगर आपको यह जानकारी पसंद आ रही है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। चैनल को आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
भक्त साधक की प्रेम और विवाह कथा सच्ची घटना भाग 8