नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आपका एक बार फिर से स्वागत है। साधक की यात्रा अभी चल रही है। और पिछली बार हमने जाना था कि कैसे वह कई लोगों द्वारा घेर लिए जाते हैं। अब आगे जानते हैं। इस सत्य घटना के अगले अध्याय के बारे में।
जब चारों तरफ से घेर लिया गया तो साधक अपनी रक्षा के लिए प्रयास करने हेतु इधर-उधर भागने की कोशिश करने लगा। हाथी भी उन्हीं के साथ इधर उधर भाग रहा था। साधक ने भागते हुए। उस हाथी से पूछा। अब क्या किया जाए? कैसे इन शक्तियों से बचा जाए? हाथी ने कहा, मैं आपकी इसमें कोई सहायता नहीं कर सकता क्योंकि मेरा कार्य आपको सिर्फ दर्शन करवाना है।
साधक ने पूछा, क्या तुम मेरे प्रश्नों के उत्तर दे सकते हो?
उसमें भी तुम्हें कोई समस्या है। हाथी ने कहा, अवश्य आप कुछ भी मुझसे पूछ सकते हैं। साधक ने कहा। इनको रोकने के लिए। क्या किया जा सकता है?
उन्होंने कहा कि अगर आप इन से बचना चाहते हैं तो कोई कवच लगाना होगा। किसी कवच को आपको धारण करना होगा।
साधक ने पूछा, कौन सा कवच मैं लगाऊं?
फिर इस पर उस हाथी ने कहा, यह आपकी अपनी सोच है। मैं इसमें आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता।
साधक ने मां भगवती के कवच को याद करना प्रारंभ कर दिया और अपने शरीर पर। देवी कवच को धारण कर लिया। जैसे ही उन्होंने यह किया उनके अंदर तीव्र ऊर्जा बनने लगी। उस तीव्र ऊर्जा के कारण। अब वह अपने आप को अधिक शक्तिमान और सामर्थ्य वान समझ रहे थे।
लेकिन? जब वह सामने देखते हैं तो उन पर हमला करने वाली शक्तियां अब 3 गुना अधिक बढ़ गई थी।
और वह फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। उनके द्वारा फेंके गए अस्त्र-शस्त्र उन पर लग रहे थे। साधक को समझ में नहीं आया। कि कवच धारण करने के बाद भी इन को रोकना संभव क्यों नहीं हो रहा? ऐसा तो आज तक हुआ ही नहीं है।
स्वयं ब्रह्मा देव ने इस कवच को। बताया था। और इसको धारण करने वाला कभी भी पराजित नहीं हो सकता।
उसके शत्रु अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं लेकिन यहां पर ऐसा क्यों नहीं हो रहा था?
साधक ने एक बार फिर से उस हाथी से पूछा। कोई और मार्ग नहीं है इन शक्तियों को रोकने का। इस पर हाथी ने कहा। है आपको इस चक्र की देवी को याद करना होगा। उन देवी कि अगर आप शरण ले लेते हैं तो अवश्य ही आप! इन शक्तियों से मुक्त हो सकते हैं।
इस पर?
उसे साधक ने पूछा। यहां की देवी कौन है?
क्या वह माता पार्वती है? या माता ब्रह्माणी है? क्योंकि मैं यह तो जानता हूं कि यह लोक
पशुपति भगवान शिव का है। ब्रह्मदेव यहां निवास करते हैं।
इस हिसाब से इन्हीं दोनों माताओं में से कोई एक माता। होनी चाहिए। क्या मैंने सही कहा है?
इस पर हाथी ने। कहा। आप अभी इस के रहस्य को नहीं जानते हो? यहां? तांत्रिक शक्तियों के रूप में माता डाकिनी का निवास है।
साधक ने कहा डाकिनी को तो हम लोग बुरी शक्ति मानते हैं।
यहां कौन सी डाकिनी निवास करती हैं?
इस पर?
हाथी ने कहा। तंत्र में। एक शब्द की एक परिभाषा हो। यह सही बात नहीं है। आपको अभी इस बात का कोई ज्ञान नहीं है। मैं आपको थोड़ा बहुत बता सकता हूं।
यहां पर?
डाकिनी स्वरूप में 16 अक्षर के मंत्रों को धारण करने वाली डाकिनी माता निवास करती हैं। यह डाकिनी माता इस मूलाधार की सभी दुर्बलताओं। और? सभी तरह के सामंजस्य का प्रतीक है।
इसीलिए इनको आप याद कीजिए।
यह अगर आप से प्रसन्न हो जाती हैं तो आप इस मुसीबत से बच सकते हैं।
यह सुनकर के अब साधक ने सोचा कि चलो ठीक है मुझे कुछ ना कुछ करना ही होगा।
लेकिन उन्होंने कहा, ठीक है इनका कोई मंत्र तो होगा। उन्होंने कहा, इनका 16 अक्षर का मंत्र है।
किंतु आपको अपने हृदय से ही इस मंत्र को पुकारना होगा, मैं आपको मंत्र नहीं बता सकता।
साधक के पास समस्या थी। क्योंकि वह यह नहीं जानते थे कि भगवती डाकिनी को प्रसन्न करने का कौन सा मंत्र होता है? देवी।
को कैसे प्रसन्न किया जाए? आखिर अब गुरु मंत्र के प्रयोग का समय आ चुका था। साधक ने गुरु मंत्र का ध्यान करना प्रारंभ कर दिया। और गुरु मंत्र वहां पर उन्हें 16 अक्षरी यंत्र के रूप में दिखाई दिया।
और उन मंत्रों को देखकर साधक ने उन्हें 16 मंत्रों का उच्चारण किया। 16 अक्षर के इस मंत्र को पढ़ने पर।
अचानक से ही वहां पर अत्यंत और बहुत ही अधिक सुंदर।
योवन स्वरूप धारण करने वाली डाकिनी देवी प्रकट हो गई।
वह अत्यंत ही सुंदर आकर्षक और सौम्य रूप धारण करने वाली थी। उनको देखकर साधक ने उन्हें प्रणाम किया। डाकिनी देवी ने कहा। तुम मूलाधार चक्र की यात्रा पर हो।
लेकिन मेरे आवाहन होने से ही।
कई सारी परेशानियां तुम्हारे ऊपर आ जाएंगे।
क्योंकि तुमने कुछ गलतियां कर दी हैं? मैं उनके बारे में तुमको बाद में बताती हूं।
किंतु तुम्हारे लिए सबसे बड़ी समस्या फिलहाल इन शक्तियों को रोकने की है। इसलिए मेरा मंत्र पढ़कर इन शक्तियों को यहीं पर रोक दो।
साधक ने देवी डाकिनी के 16 अक्षर के मंत्र को पढ़कर। उन सभी शक्तियों को वहीं रोक दिया और सारी शक्तियां गायब हो गई जो अस्त्र-शस्त्र लेकर उस साधक पर हमला कर रही थी।
इस पर डाकिनी देवी ने कहा। अब मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करती हूं।
यह स्थान भावनाओं, वासना और पूर्व जन्म के कर्मों का आधार है। यह जितनी भी शक्तियां तुम्हें मारने के लिए आ रही थी यह सारे पूर्व जन्म के किए गए। कर्म है। जो बीमारी रोग या फिर कष्ट के रूप में तुम्हारे सामने उपस्थित हो गए हैं?
इन सभी प्रकार के कष्टों को रोकने के लिए मेरा ध्यान और मेरी पूजा अनिवार्य है।
तुमने गुरु मंत्र के कारण मेरे मंत्र को स्वता ही जान लिया।
इसीलिए तुम इन सब से मुक्ति पा चुके हो।
किंतु एक गलती तुम से हो गई है, तुमने कवच धारण कर लिया।
अब आगे बढ़ो और अपने आप को इस मूलाधार चक्र से मुक्त करो।
यह सारी शक्तियां तुम पर आकर हमला कर चुकी हैं। इसलिए जीवन में तुम्हें रोग और कष्टों को भोगना ही पड़ेगा। जिस प्रकार तुमने मानसिक ब्रम्हचर्य के कारण। पूर्व जन्म में किए गए सभी कामुक कार्यों को रोक लिया था। किंतु तुम इन कार्यों को और इन शक्तियों को नहीं रोक पाए। इसलिए तुम जीवन में कई बार कष्ट भागोगे बीमार पड़ोगे? और? उन दुखों को झेलना पड़ेगा।
और कुछ ही महीनों बाद तुम्हारी तबीयत भी तुरंत ही खराब हो जाएगी।
यह गुजरने पर सरल लगते हैं किंतु इनकी प्रभाव और क्षमता तुरंत ही जीवन पर लागू हो जाती है। और क्योंकि तुम मुक्ति की तरफ बढ़ रहे थे तो इसलिए पूर्व जन्म के समस्त कर्म नष्ट होने आवश्यक हैं। और उन्हें भोग करके ही नष्ट किया जा सकता है। अथवा उनसे लिप्त हुए बिना, तुमने कवच धारण करके गलती कर दी थी। इसी कारण से तुमको इन कष्टों को भोगना पड़ेगा। तुम्हें कई बार बीमारियों का और विभिन्न प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ेगा।
साधक ने कहा माता जैसी आपकी आज्ञा! अब मैं आपके रहस्य को भी जानना चाहता हूं। आप यहां पर डाकिनी स्वरूप में क्यों विराजमान है?
माता ने कहा, मैं यहां पर क्योंकि? द्रव को ठोस बनाते हैं इसी कारण से अपने माया रूप में स्थित हूं। तुम तो जानते ही हो सभी देवी और देवता माता पराशक्ति का ही अंश है। इसी प्रकार मैं भी हूं। इस लोक में वासनाओं विभिन्न प्रकार पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का संचय मैं ही रखती हूं और मैं ही उनसे मुक्त भी करती हूँ । तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों को मैं अभी नष्ट कर रही हूं। इसी के साथ ही तुम्हारा सातवां मूलाधार शरीर नष्ट हो जाएगा और तुम अगले चक्र में प्रवेश कर पाओगे। तुम्हारा अब विभिन्न प्रकार की देवियों से सामना होगा।
जैसे मैं डाकिनी मुझसे ऊपर राकिनी,लाकिनी, काकिनी, शाकिनी,हाकिनी, तुम्हें अन्य चक्रों में मिलेंगी।
और उनको सभी को प्रसन्न करते हुए तुम्हें अपनी यात्रा संपूर्ण करनी है। किंतु अभी थोड़ी ही देर बाद तुम्हारी।
समाधि नष्ट हो जाएगी। तुम्हारी पत्नी जो तुमसे कहेगी वह एक अप्रिय घटना होगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि तुमने यहां कुछ गलतियां कर दी हैं?
तुम आगे की यात्रा शुरू करो। अवश्य ही तुम अन्य महान व्यक्तियों को जान पाओगे और अपने माध्यम से दुनिया भर में सभी को इस दुर्लभ ज्ञान को दे पाओगे।
यहां? द्रव के रूप में बहता हुआ वीर्य ठोस रूप धारण करें, जीव का जन्म रूप बनाता है। इसी कारण से इच्छा, द्रव में बदल जाती है और वही द्रव ठोस में बदलकर धरती का निर्माण करता है या पिंड का निर्माण करता है। यह सारे पिंड विभिन्न प्रकार की प्रक्रिया है।
इन पृथ्वीयों का निर्माण हुआ ताकि जीवात्मा अपना जीवन जी सके।
इच्छाओं से द्रव निर्माण और द्रव ऊर्जा का निर्माण वीर्य के रूप में होता हुआ ठोस पिंड का निर्माण कर देता है।
यही पिंड ब्रह्मांड में बड़े-बड़े गोलों के रूप में घूम रहे हैं।
और इन्हीं पर एक जीवात्मा का जीवन! किसी जीव को जीना पड़ता है।
इसीलिए ब्रह्मदेव का यह सृष्टि उत्पत्ति का केंद्र है।
संभोग के माध्यम से। प्रत्येक नर और मादा आपस में मिलन कर एक नए पिंड का निर्माण करते हैं।
अब जाओ तुम्हारी समाधि भंग होने का समय आ चुका है।
इस प्रकार से अचानक से ही साधक! अपनी आंखें खोल देता है।
सामने उसकी पत्नी रो रही है। देख कर बड़ा आश्चर्य से होता है।
उनकी पत्नी कहती हैं। आपको 18 घंटे हो चुके हैं समाधि लगाए हुए।
ज्यादा देर लगाए रखते तो पता नहीं आप की तबीयत बिगड़ जाती।
मुझे बहुत दुख भरी खबर मिली है, मैं आपको बताना चाहती हूं। आप जल्दी से तैयार हो जाइए। हम लोगों को पापा को देखने जाना होगा। पापा जी का एक्सीडेंट हो गया है।
साधक भौचक्का रह जाता है।
उसे कुछ भी समझ में नहीं आता है कि यह क्या घटित हो चुका है? वह अपनी पत्नी से पूछता है क्या हुआ?
साधक की पत्नी साधक को बताती हैं कि उनके पिताजी बाइक से कहीं जा रहे थे तभी पीछे से बोलेरो नाम की। एक गाड़ी ने। पीछे से टक्कर मार दी। इसकी वजह से उनके
बहुत अधिक चोटें आई हैं और बहुत अधिक खून बह रहा है।
समस्या बहुत अधिक बढ़ गई है। क्योंकि बड़ी देर बाद तो उन्हें होश आया। और लोगों ने तब तक कोई मदद भी नहीं की थी।
किसी प्रकार मेरा भाई। वहां पहुंचा और उन्हें लेकर के हॉस्पिटल गया है। लेकिन हॉस्पिटल में साफ कहा गया है कि जब तक करोना जांच नहीं हो जाएगी तब तक किसी भी मरीज को भर्ती नहीं किया जाएगा। लेकिन करोना जांच में पूरा 1 दिन लगता है।
यह बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है।
साधक ने फोन करके अपने रिश्तेदारों से पूछा।
कई हॉस्पिटल रात में बदले गए। क्योंकि कोई भी हॉस्पिटल उन्हें लेने को तैयार नहीं था, बिना करोना जांच के।
अंततोगत्वा सबसे महंगे अस्पताल में। उन्हें भर्ती करा दिया गया लेकिन? ऑपरेशन वहां भी होना संभव नहीं हो रहा था। कारण था। उस हॉस्पिटल में भी बिना कोरोना के कोई डॉक्टर उन्हें छूने को तैयार नहीं था।
करोना जांच अनिवार्य थी। और तब तक उन्हें उसी प्रकार!
बुरी तरह घायल अवस्था में पड़े रहना था।
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