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भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण की देवी भगवती पराशक्ति दुर्गा की आराधना का रहस्य

यह स्तोत्र देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करता है और इसे करने से व्यक्ति को ज्ञान, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भी इस स्तोत्र का एकांत में नियमित पाठ करता है, वह देवी की कृपा से हर प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाता है।

**Title: भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण की देवी भगवती पराशक्ति दुर्गा की आराधना का रहस्य**

नमस्कार दोस्तों! धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। आज के धर्म रहस्य वीडियो में, मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण, जो कि भगवान विष्णु के ही अवतार हैं, उन्होंने कैसे मां भगवती आदि पराशक्ति दुर्गा की आराधना की थी। और आप भी किस प्रकार से उसी स्रोत के माध्यम से लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जैसा कि इन दोनों अवतारों ने किया।

सबसे पहले, हम भगवान श्री राम से शुरुआत करेंगे। हम सभी जानते हैं कि दशहरा अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, जिसमें भगवान श्री राम ने लंका के रावण को पराजित किया था। हालांकि, भगवान राम की दशहरा साधना का विस्तृत वर्णन नहीं मिलता, लेकिन भगवान श्री कृष्ण के रूप में हमें इस स्रोत का स्पष्ट विवरण मिलता है, जो नवरात्रि के दिनों की साधना से जुड़ा है।

**भगवान राम की नवरात्रि साधना:**
भगवान राम ने नवरात्रि के दिनों में मां पराशक्ति दुर्गा की उपासना की थी। उन्होंने 9 दिन तक अन्न-जल का त्याग कर देवी की आराधना की। दसवें दिन, देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान राम ने रावण को परास्त किया। यही विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है।

**भगवान श्री कृष्ण की देवी स्तुति:**
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले अर्जुन को बताया था कि देवी की कृपा के बिना युद्ध में विजय प्राप्त करना संभव नहीं है। इसके बाद उन्होंने स्वयं देवी स्तोत्र का पाठ किया, जिसे हम ‘श्री कृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र’ के नाम से जानते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण को अद्भुत शक्तियों और ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, जिससे अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की।

श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम्/Srikrishna Krit Durga Stotram

त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥

तेज:स्वरूपा परमा भक्त ानुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥

सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥

सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी॥

त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी॥

निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥

श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥

प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥

देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥

योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥

माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥

ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥

महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥

वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥

विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥

राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥

तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥

दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्। यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥

इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्िछता॥

वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥

कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥

यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥

पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥

राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥

गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥

महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

**श्री कृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र का महत्व:**
इस स्तोत्र का पाठ करने से अद्वितीय लाभ मिलते हैं। यह स्तोत्र देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करता है और इसे करने से व्यक्ति को ज्ञान, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भी इस स्तोत्र का एकांत में नियमित पाठ करता है, वह देवी की कृपा से हर प्रकार के संकटों से मुक्त हो जाता है।

**उपसंहार:**
इस प्रकार भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण, दोनों ने देवी पराशक्ति दुर्गा की आराधना करके अद्वितीय विजय प्राप्त की। भगवान राम ने रावण का वध किया और भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत में विजय दिलाई। यह स्तोत्र आज भी शक्तियों का स्रोत माना जाता है और इसका नियमित पाठ करने से जीवन में शुभता, विजय और कल्याण प्राप्त होता है।

आशा है कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। आप सभी का दिन मंगलमय हो!

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