नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज लेंगे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों को और जिनकी वजह से ज्यादातर लोग सत्य को नहीं देख पाते हैं तो चलिए पढ़ते हैं महत्वपूर्ण प्रश्नों को और सभी के लिए किस प्रकार से उपयोग होने वाले हैं? जानते हैं इस रहस्य को।
प्रणाम गुरु जी, यह कुछ मेरे प्रश्न है जिनके बारे में हमें आपसे पूछना चाहता हूं।
भगवान श्री सदाशिव कौन है और उनकी शक्ति कौन है? क्या यह भगवान श्री शिव से अलग हैं। अगर अलग हैं तो जिस प्रकार भगवान श्री शिव की शक्ति भगवती श्री माता पार्वती हैं तो भगवान श्री सदाशिव जी कौन है?
उत्तर – भगवान शिव और सदाशिव में कोई अंतर नहीं है। सिर्फ हमारे यहां जो समाज में प्रचलित परंपराएं हैं और किसी को किस नाम से पुकारा जाता है, इस पर यह तथ्य बने हुए हैं। सिर्फ सदाशिव जब हम उच्चारण करते हैं तो इसका अर्थ होता है। वह शिव जो सदैव रहने वाला है वह शिव जो परम शिव है, वह शिव जो ज्ञान का मूल स्रोत है और परब्रह्म स्वरूप है। इसीलिए दोनों में थोड़ा सा अंतर आ जाता है। समझ का फेर है लेकिन जो लोग शिव को ही परमात्मा मानते हैं उनके में और सदाशिव में कोई भेद नहीं है। समझ का फेर है क्योंकि लोग हर चीज को उसके उच्चारण से उसके पीछे लौकिक मान्यताओं के आधार पर उस को अलग-अलग रूपों में देखते हैं और समझते हैं। ऐसा ही भगवान शिव के साथ में भी है। कुछ लोग शिव को और शंकर को अलग करके देखते हैं।
कोई महादेव और शिव को भी अलग करके देख लेता है। पर इससे सत्य नहीं बदलता है। ऊर्जा परमात्मा की एक ही है और वही पूर्ण ब्रह्म स्वरूपा है और उसके साथ जैसे तपस्या और जैसा ज्ञान होता है, उसकी शक्ति भी वैसे ही होती है। शक्ति में और शिव में अंतर नहीं होता है। इसलिए इन पर प्रपंचों में कभी भी नहीं फंसना चाहिए और सीधा सीधा अर्थ यह समझना चाहिए कि अगर हम परमात्मा को नारायण के नाम से पुकारते हैं या शिव के नाम से पुकारते हैं या ब्रह्मा के नाम से पुकारते हैं या किसी दिन विशेष भगवान गणेश के नाम से पुकारते हैं। मां पार्वती मां दुर्गा के रूप में पुकारते हैं। मां के भिन्न-भिन्न शुरू कर पुकारते हैं। भगवान श्री कृष्ण के रूप में पुकारते हैं। उससे कुछ भी बदलने वाला नहीं है। एक सूरज जिस प्रकार समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है और उसकी ओर से चंद्रमा सारे कार्यों को संपादित करता है और रोशनी फैलाता है। इसी तरह देवी देवता भी हैं। इन्हीं सभी देवी देवताओं के कारण से समस्त शक्तियां ईश्वर कि हम लोगों को प्राप्त होती हैं, इसलिए इसमें कभी फसना नहीं चाहिए। जो महान रहस्य है उसमें कभी भी भ्रमित नहीं होना चाहिए।
कुल मिलाकर के आप जैसा जिसके बारे में सोचेंगे उसी तरह की ऊर्जा प्राप्त होगी। अगर आप भगवान शिव को भगवान विष्णु का भक्त सोचते हैं तो भक्ति! अगर राम भगवान शिव की उपासना करते हैं तो वह राम भगवान शिव के भक्त हैं। क्योंकि हमने जिस रूप में उस ऊर्जा को सोचा जैसी भावना बनाई उसी के अनुसार उसके कर्म भी होते हैं। और उसी अनुसार! लोक परंपरा में पूजा होती आई है इसीलिए भगवान शिव को पूजने वाला मुक्ति भी प्राप्त कर सकता है और शिवलोक तक भी जा सकता है। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप क्या सोचते हैं,
भगवती श्री मां तारा का संबंध भगवान श्रीराम से किस प्रकार जुड़ा हुआ है?
भगवती माता तारा जो है, तारने वाली हैं।राम तारण मंत्र हैं उनका और जो तारक मंत्र होता है वही भगवान राम का भी मंत्र होता है। शक्ति की सिद्धि के रूप में भगवान जब पुरुष रूप में जन्म लेते हैं तो राम कहलाते हैं और स्त्री रूप में होते हैं वही तारा कहलाते हैं। यह बहुत ही गहरा संबंध है जिसको आप बहुत गहरी साधना के द्वारा ही जान सकते हैं। साधारण अर्थ में इन चीजों को समझना बहुत ही कठिन है और लोग इस चीज को नहीं समझ पाते हैं या यूं कहिए मां तारा भगवान राम का अवतार स्वरूप है या भगवान राम मा तारा के रूप स्वरूप में धरती पर जन्म लेते हैं। शक्तियां एक दूसरे से संबंधित हैं। एक ही परमात्मा से विभिन्न प्रकार की शक्तियां जुड़ी हुई है और आकर के उनके कार्यों का संपादन करती हैं। इसलिए इन रहस्यों को जानने के लिए आपको गहन तपस्या करनी होगी तभी यह रहस्य खुलते हैं और पूरी तरह समझ में आते हैं।
श्री मां त्रिपुर भैरवी भगवान श्री शिव की शक्ति हैं तो क्या बाबा श्री काल भैरव मां के सेवक हैं एवं 10 महाविद्या के भैरव बताए गए हैं। वह माताओं के सेवक हैं। क्योंकि काल भैरव और बाकी भैरव भी भगवान शिव के अवतार से है और जैसे भगवान श्री हनुमान
उत्तर-बिल्कुल! भगवान भिन्न-भिन्न रूप में शिव होते हैं। उनके साथ उनकी शक्तियां भी भिन्न-भिन्न रूप में होती हैं। भगवान शिवको जब माता सती रोकने लगे कि आप दक्ष के यहां ना जाइए क्योंकि मैं देख चुका हूं कि अब इसकी वजह से आपको अपना शरीर त्यागना होगा। उसी दौरान माता सती ने क्योंकि निर्णय ले लिया था कि वह जाएंगी। उन्होंने अपने 10 महाविध्या रूपो मे भगवान शिव को रोक दिया था अपने बल से और अपनी बात मनवा ली थी। वही दसमहाविद्या स्वरूप भिन्न-भिन्न रूपों में आए। लेकिन जितनी भी शक्तियां हैं, उनकी उतने ही भैरव है। जब हम! 10 महाविद्या की उपासना करते हैं तो उनके साथ उनके भैरव साथ ही में रहते हैं। लेकिन वहां पर वह जो भैरव होते हैं वह ऋषि रूप में उन्हीं की शक्ति होती है वह भैरवी। यहां पर समझने में थोड़ा भ्रम है पर हम मूल रूप से हम भगवान शिव को ही पूज रहे होते हैं उस भैरव स्वरूप में।
लेकिन जब बात काल भैरव की और दसमहाविद्या में आती है तो 10 महाविद्या से जो आप का विग्रह रूप है, वह काल भैरव हैं इसलिए वे मां के सेवक हैं। पुत्र समान है और उनके साथ में रहते हैं। लेकिन यही काल भैरव जब हम 10 महाविद्या त्रिपुर भैरवी की साधना करते हैं तो वह वहां पर भगवान शिव हैं । वह काल भैरव स्वरूप में है इसलिए आपको संदेह होता है। यहीं पर समझने में थोड़ी सी समस्या आ जाती है। इसलिए यह चीजों को समझने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि आप किन को पूज रहे हैं। कालभैरव को पूज रहे हैं अथवा भगवान शिव को पूज रहे हैं। जब भगवान शिव रूपी काल भैरव को पूजा जाता है तो हम भगवान शिव को ही संबोधित कर रहे होते हैं। लेकिन जब काल भैरव को पूज रहे होते हैं तो वह उनका भी विग्रह रूप होता है। इसलिए वह मां के सेवक होते हैं।
भगवान श्री कृष्ण भगवान श्री विष्णु के अवतार कहे जाते हैं तो भगवान श्री कृष्ण का गोलोक क्यों हैं, वैकुंठ क्यों नहीं है? भगवान श्री कृष्ण भगवान श्री विष्णु की शक्ति है या वह स्वयं पूर्ण अवतार है? भगवान श्री राम भगवान श्री विष्णु के अवतार हैं तो वह श्री राम के रूप में धरती पर थे तो बैकुंठ लोक खाली था क्या और जगत का पालन भगवान श्रीराम धरती लोक से करते हैं क्या?
उत्तर – जब ईश्वर! विभिन्न रूपों में अपने आप को विग्रह कर लेता है, तोड़ लेता है तो वही अवतार कहलाते हैं। अवतरित होने का मतलब होता है अवतार लेना। जब वह अपने किसी लीला कार्य के रूप में धरती पर आते हैं तो उसको अवतरण कहते हैं, प्रकट होना कहते हैं, वही अवतार कहलाता है। अब परमात्मा पूर्ण रूप से कभी भी पृथ्वी पर अवतार नहीं ले सकता है क्योंकि उसे लीलाएं करनी है क्योंकि उसकी ऊर्जा पृथ्वी सहन नहीं सकती। इसलिए उसे मनुष्य रूप धारण करना होता है. तो आप स्वयं ही समझ लीजिए कि कोई भी अवतार पूर्ण नहीं होता है क्योंकि अवतारों के साथ में उनकी कुछ लीलाएं जुड़ी होती हैं। उनके कार्य बंधन होते हैं। उनकी एक सीमा होती है।अवतार तो भगवान विष्णु भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव भी हैं क्योंकि वह साकार रूप में दर्शन देते हैं। परमात्मा निराकार रूप में है वो तीन रूपों में अवतार लेता है। शक्ति के रूप में तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव होते हैं। वही परमात्मा फिर से जब इन रूपों से अपने विग्रह रूपों में जन्म लेता है धरती पर विशेष कल्याण करने के लिए तो वही राम-कृष्ण विभिन्न प्रकार के रूपों को धारण करता है। यहां पर बात समझने वाली है।
हां अपनी आस्था के अनुसार, जब हम भगवान के रूप में उन्हें पूजने लगते हैं तो हमारे लिए रास्ता बन जाता है कि यही यह परमात्मा है पर ऐसा होता नहीं। जो अवतरित है। वह पूर्ण नहीं होता क्योंकि उसने शरीर शरीर को धारण कर अपने आपको, अपनी शक्ति को अपनी ऊर्जा को कमजोर करके वह धरती पर अवतरित किया है ताकि पृथ्वी उसकी ऊर्जा को सहन कर सके। इसलिए वह मनुष्य लोक में गंदे हड्डी मांस से बने हुए शरीर के रूप में जन्म लेता है। केवल यहां के कार्यों को संपादित करने के लिए लोगों को शिक्षा देने के लिए, लोगों को एक वास्तविक ज्ञान को प्रदान करने के लिए इसलिए कभी भी यह मान लेना कि वह पूर्ण है। वह पूर्ण हो ही नहीं सकता है। उसका मूल उद्देश्य मैसेंजर की तरह होता है वह तो मैसेज देने के लिए धरती पर आते हैं ताकि जो हमारी मानवता है, मनुष्य योनि है, समझदार बनी रहे। वह भटके नहीं माया में, इतनी अधिक लिप्त ना हो जाए कि खुद ही फंस जाए। इसलिए वह भिन्न-भिन्न रूपों में जन्म लेता है तो आप समझ ही गए होंगे।
भगवती से राधा मां का रहस्य क्या है। जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण भगवान श्री विष्णु का अवतार है। भगवती श्री राधा किसका अवतार है। अगर वहां श्री भगवती लक्ष्मी का अवतार है तो मां भगवती रुकमणी किसका अवतार है ?
यहां पर भी वही बात है। विग्रह रूप में जन्म लेना। एक ही मां भिन्न-भिन्न रूपों में जन्म अवतार लेती है जो जिसकी शक्ति होती है वह उसी के साथ में विद्यमान होकर जन्म लेती हैं। भगवान विष्णु की जो शक्ति हैं, वह भगवती माता लक्ष्मी हैं। मूल रूप में अपने कितने भी विग्रह बना सकती हैं। उनका एक विग्रह एक राधा स्वरूप बनाया। एक लक्ष्मी स्वरुप बनाया । एक रुकमणी स्वरूप बनाया। अन्य भिन्न रूपों में भी वो प्रकट हुई। माता अपने अपने नए नए रहस्यों को उजागर करने के लिए और अपने अपने अवतारों के उद्देश्यों को पूर्ति करने के लिए भिन्न-भिन्न रूप धारण करती हैं। इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए।
गुरुजी स्वप्न में मुझे अक्सर संभोग के दृश्य दिखाई देते हैं। मेरा प्रपात भी होने वाला था, किंतु मेरे अंदर से हम आज भी कि रुको और मुझे होश आया और ध्यान आया कि हम आपके शिष्य मां भगवती श्री परा शक्ति के उपासक हैं और इस प्रकार कम से कम 3 बार माँ द्वारा मेरी ब्रह्मचर्य और मेरी रक्षा हुई है। गुरुजी ऐसे दृश्य क्यों दिखते हैं?
शरीर जो है वह हड्डी मांस का बना हुआ है और पूरी तरह से वासनाओं से घिरा हुआ है। वासना अपनी जोर मारती है और आपको मुक्ति से भटकाना चाहती हैं, क्योंकि शरीर सत्य नहीं है। इसीलिए शरीर अपने अधीन हर चीज को रखना चाहता है। अपरा शक्ति जो होती है, वही यह कार्य करती हैं। इस शक्ति का मूल उद्देश्य भी यही है। इसी कारण से अपरा हमेशा शरीर जिन चीजों में फंसाए रखना चाहते हैं, उनसे मुक्ति केवल पराशक्ति ही दिला सकती हैं। इसलिए सदैव उनकी उपासना करते रहना यही मेरा उद्देश्य है। सभी को इसीलिए मैं गुरु मंत्र देता रहता हूं। माता का और उसके माध्यम से हम मुक्ति की ओर धीरे धीरे करके बढ़ते चले जाते हैं।
गुरुजी भगवती योग निद्रा देवी को आप महाकाली कहते हैं और भगवती श्री मां महाकाली, बाबा श्री महाकाल की शक्ति हैं तो आपने उन्हें भगवान श्री विष्णु की शक्ति क्यों कहा? योगनिद्रा वाली वीडियो में बहुत जगह मां श्री योगनिद्रा को भगवान श्री विष्णु की जो है। उनकी शक्ति कहा जाता है। इस प्रकार वास्तव में मां श्री भगवती योगनिद्रा का रहस्य क्या है?
देखिए मैं पहले भी बता चुका हूं। आगरा मेरी दुर्गा सप्तशती टीका भाग एक पढ़ेंगे तो वहां से सब कुछ आपको पता चल जाएगा। लेकिन फिर भी संक्षिप्त रुप में मैं आपको समझा दूं। कि पुरुष रूप में परमात्मा जब तीनों रूपों को लेता है, चाहे वह ब्रह्मा व विष्णु हो। शिव हो, तो जब वे साधना करते हैं, उपासना करते हैं तो उनकी यौगिक ऊर्जा है। कुंडलिनी योग ऊर्जा जागृत होती है।
उन्हीं के अधीन सब कुछ है इस कारण से उनकी शक्तियां उनके अंदर विद्यमान हो जाती हैं। संसार को देखने के लिए भगवान जब क्योंकि संसार तामसिक है। संसार उद्देश्यों से भरा हुआ है। वासनाओं से भरा हुआ है इसलिए वासनामई शक्ति और योग की शक्ति से मिली हुई योगनिद्रा देवी उनके नेत्रों में निवास करती हैं। वहां से प्रकट होती है क्योंकि ऊर्जा तो एक ही है। वही महाकाल के साथ महाकाली के रूप में विद्यमान रहती है। वही ऊर्जा ब्रह्मा के साथ ब्रह्माणी के रूप में रहती है। वही ऊर्जा शिव के साथ उनकी शक्ति के रूप में रहती है। विष्णु के साथ उनकी शक्ति के रूप में रहती है और वहीं प्रकट हो करके उन्हें सत्य का बोध कराती है। क्योंकि जगत को चलाना है इसलिए इन शक्तियों का प्रकट होना आवश्यक होता है।
इसीलिए भगवान विष्णु की नेत्रों में निवास करने वाली योगनिद्रा असल में वह योगनिद्रा ले रहे होते हैं वे योग साधना कर रहे होते हैं। वह जब टूटती तभी वह नींद से जागते हैं। इसी प्रकार भगवान शिव जब जागते हैं संसार के विनाश के लिए, तो उनकी शक्ति महाकाली के रूप में प्रकट होती हैं और संसार का विनाश करती हैं क्योंकि वही उनका अर्थात महाकाल का कार्य भी है। इसीलिए एक ही शक्ति भिन्न-भिन्न रूपों में हर व्यक्ति के साथ विद्यमान रहती है। वह शक्ति उनकी कुंडलिनी शक्ति के रूप में रहती है और वही रूप स्वरूप धारण करके उद्देश्यों को आप की कामनाओं को और जो भी कार्य संपादित करने हैं, उनका रूप धारण करके वहां पर प्रकट हो जाती है।
गुरुदेव बहुत जगह वीडियो में देखने को मिलता है कि लोगों ने माना है कि बाबा श्री गोरखनाथ ने भगवती श्री मां महाकाली को परास्त कर दिया था । गुरु यह कैसे संभव हो सकता है कि मां को कोई परास्त कर सके। इस बात में कितनी सच्चाई है जबकि मां पार्वती की श्राप के कारण गुरु गोरखनाथ के गुरु मछिंद्रनाथ किसी स्त्री के मोह पाश में फंस गए हो।
हमारे देश की विशेषता है हम जिसके उपासक होते हैं या जिस भी पंथ संप्रदाय को मानते हैं उसी के ही गुणों का बखान करना हमारा उद्देश्य होता है। इसमें हम इतना अधिक फस जाते हैं क्योंकि जब हमसे कोई हमारे ही जैसे पंथ वाला कोई व्यक्ति आकर बात करने लगता है, जैसे कि एक उदाहरण स्वरूप भगवान शिव का उपासक भगवान शिव को बहुत मानता है। वही कोई महाकाल का उपासक है वह महाकाल को बहुत मानता है तो दोनों अपने अपने ईष्ट को ऊपर बताने की कोशिश करेगे । ऐसा ही कुछ यहां पर हुआ इसी तरह की कहानियां भी बताई गई । हां, यह सत्य है कि गोरखनाथ ने काली को परास्त किया लेकिन काली उस क्षेत्र में निवास करने वाली कोई तामसिक देवी थी ।जो माता महाकाली की कोई संक्षिप्त शक्ति रही होगी। आप कैसे मान सकते हैं कि किसी एक क्षेत्र में ही महाकाली का वास होगा।या कोई काली देवी का वास होगा। वह देवी वहां पर नरबलि ले लेती थी।
माता काली के भिन्न-भिन्न रूप हैं जैसे कि मैं पहले भी बता चुका हूं। कि एक पिशाचिनी से लेकर के पूरी योगनियों की शक्तियां सब उनकी सेवा में तत्पर रहती है और वह सब उनके ही साथ युद्ध मे भाग करती हैं। ऐसी कोई काली शक्ति वहां पर विद्यमान थी। जिसको गोरखनाथ जी ने सत्य का ज्ञान कराया और बताया कि हे देवी काली वास्तविकता क्या है? इसी कारण से लोगों ने समझ लिया कि उन्होंने माता महाकाली को परास्त कर दिया। यह सोचना बहुत ही गलत है एक काली शक्ति। उससे बड़ी काली शक्ति उससे भी बड़ी महाकाली शक्तियाँ, बहुत बड़ी महाकाली शक्तियां विध्यमान हैं और जो इन सब को धारण करती है, वह महाकाली कहलाती हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड को धारण करती हैं। क्या पृथ्वी में इतनी सामर्थ्य हैं कि माता महाकाली धरती पर आए और पृथ्वी जल ना जाए?
यह तो सिर्फ समझ की बात है और लोगों को ज्ञान की कमी के कारण उन कहानियों का जब प्रचार-प्रसार करते हैं तो उस सत्य से भटक जाते हैं। गोरख नाथ जी ने किसी काली शक्ति को परास्त किया होगा और उन्हें ज्ञान दिया होगा कि नरबलि नहीं लेनी चाहिए। लेकिन क्या मां ऐसी है कि नरबलि उनको आवश्यक लगती है? क्या नरबलि जैसी चीज के लिए, किसी कामना के लिए वह अधीर या बेचैन है, उनके महाकाली स्वरूप से ब्रह्मांड की रचना की हुई है। यह सोच बहुत गलत है जो महाकाली को कुछ और ही समझ बैठते हैं। महाकाली स्वरूप ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है। इसलिए उनकी जो काली शक्तियां हैं जो एक पिशाचिनी से भी शुरू हो जाती है। उसको आप महाकाली से जोड़ कर नहीं देख सकते हैं और अगर आपने किसी पिशाचिनी को हरा दिया या किसी विशेष शक्तिशाली महा पिशाचिनी को हरा दिया तो भी आप यह सोच लो कि आपने केवल और केवल मां की छोटे से अंश को जो उन्हीं की सेवा में तत्पर है क्योंकि उसे मुक्ति चाहिए आपने उसे परास्त किया है ।
जब महाकाली युद्ध करती हैं तो उनके साथ अरबों खरबों की संख्या में काली शक्तियां आकर युद्ध करती हैं और सब राक्षसों का विनाश करती हैं। इसका मतलब यह थोड़ी है कि जो उनके अंश है, वह भी महाकाली ही हैं। या उन्हीं के समान है। ऐसा कुछ भी नहीं है। हजारों योगनियां उनके साथ रहती हैं। करोड़ों की संख्या में पिशाचिनी भूतनी या डाकनियाँ हो सकतीहैं। वह सब उनके साथ युद्ध करती हैं क्योंकि वह उन सब की स्वामिनी है और उन सबको मुक्ति भी वही प्रदान करती हैं । इसी कारण से उनके साथ में उनकी सेवा में ये शक्तियाँ उपस्थित रहती हैं। अब ऐसे में अगर किसी ने उन को पराजित कर दिया या यह वास्तविक ज्ञान उसे कराया। इसका मतलब महाकाली पराजित हो गई। क्या यह मूर्खता वाली बात नही है और उस सत्य को ना समझने वाली बात।
गुरुदेव भगवती श्री मां कौशिकी कौन है? गुरु जी इनका प्रादुर्भाव भगवती श्री मां पार्वती के शरीर से हुआ था तो क्या वह माता पार्वती से अलग हैं, कहीं कहीं देखने को मिलता है कि मां पार्वती के शरीर से मां महासरस्वती प्रकट हुई, किंतु उनकास्वरूप महाकाली का है तो यह कैसे हुआ ?
मैं उदाहरण देते हुए आपको बता चुका हूं कि सत्य को समझना और उसकी लीलाओं को समझना अलग-अलग बातें हैं। मां भगवती एक है लेकिन भिन्न-भिन्न रूपों को भिन्न-भिन्न कलाओं को करने के लिए बुरी शक्तियों को नाश करने के लिए विभिन्न स्वरूपों में प्रकट होती है। जैसी शक्ति होती है और जैसा उसका स्वभाव होता है। उसके अनुसार ही उस समय जो लीला करना उन्हें उपयुक्त लगता है, उसी प्रकार वे प्रकट होती हैं। मां पार्वती के शरीर से क्यों प्रकट हुई ?क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और विनाश का कार्य भगवान शिव का है। इसी कारण जब भी विनाश करना होगा तो शक्तियां मां पार्वती के स्वरूप से ही प्रकट होगी और मां पार्वती स्वयं काली स्वरूप हैं । माता महासरस्वती जो कि सब की जननी है उनका स्वरूप श्री दुर्गा सप्तशती के माध्यम से आप जान सकते हैं। लेकिन सब शक्तियां एक ही शक्ति से प्रकट होती हैं। वह माता पराशक्ति हैं। इस सत्य को तब समझेंगे जब आप सच्ची भक्ति करेंगे …….आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।