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माता त्रिपुर भैरवी जयंती: एक दिव्य तांत्रिक पर्व

माता त्रिपुर भैरवी का रहस्य

माता त्रिपुर भैरवी जयंती: एक दिव्य तांत्रिक पर्वहेलो

माता त्रिपुर भैरवी की जन्म कथा

माता त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति से जुड़ी कथा तंत्र और पुराणों में वर्णित है। एक प्रमुख कथा इस प्रकार है:

1. सृष्टि के प्रारंभ की कथा

सृष्टि की रचना के समय जब चारों ओर अंधकार और अशांति व्याप्त थी, तब ब्रह्मांड की रक्षा और संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से माता त्रिपुर भैरवी को प्रकट किया।

  • वे शिव की शक्तियों का उग्र रूप थीं, जिनका उद्देश्य सृष्टि को विनाशकारी शक्तियों से बचाना था।
  • माता ने ब्रह्मांड में व्याप्त सभी राक्षसों और नकारात्मक शक्तियों का नाश किया।

2. त्रिपुरासुर वध की कथा

पुराणों के अनुसार, त्रिपुर नामक तीन अत्यंत शक्तिशाली असुरों ने तीन लोकों पर अधिकार कर लिया था। ये असुर शिव और विष्णु से वरदान प्राप्त थे, जिससे उन्हें मारना लगभग असंभव हो गया था।

  • इन असुरों के आतंक से सभी देवता और मानव परेशान हो गए।
  • तब शिव ने अपनी शक्ति से माता त्रिपुर भैरवी को प्रकट किया।
  • माता ने अपनी उग्रता और तांत्रिक शक्ति से त्रिपुरासुर का वध कर तीनों लोकों को मुक्त किया।

3. दक्ष यज्ञ और उनका प्रकट होना

एक अन्य कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जब शिव का अपमान किया गया, तब माता त्रिपुर भैरवी उग्र रूप में प्रकट हुईं।

  • उन्होंने यज्ञ को नष्ट कर दिया और सभी देवताओं को यह संदेश दिया कि शिव और शक्ति के बिना सृष्टि का संतुलन संभव नहीं है।

माता त्रिपुर भैरवी का स्वरूप और महत्व

माता त्रिपुर भैरवी को त्रिकाल की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। वे जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं और अज्ञान, अहंकार, और कामना जैसी दोषों का नाश करती हैं। तंत्र साधना में उनका प्रमुख स्थान है।


त्रिपुरासुर वध और त्रिपुर भैरवी की कथा

त्रिपुरासुर, तीन असुर भाई, जिन्होंने स्वर्ण, चांदी और लोहे के नगर बनाए और तीनों लोकों पर आतंक मचाया। भगवान शिव ने माता त्रिपुर भैरवी की शक्ति का आह्वान किया। देवी ने त्रिपुरासुर की रक्षा करने वाली तंत्र शक्तियों को नष्ट कर, शिव को उनके वध में सहायता दी।


तंत्र साधना में त्रिपुर भैरवी

मूलाधार चक्र की देवी त्रिपुर भैरवी कुंडलिनी जागरण और आत्मा की शुद्धि में सहायक हैं। उनकी पूजा से मृत्यु बंधन और नकारात्मक शक्तियां समाप्त होती हैं।


साधना विधि

  1. लाल वस्त्र और चंदन का उपयोग करें।
  2. रात्रिकालीन साधना के लिए दीपक और सुगंधित धूप का प्रयोग करें।
  3. मंत्र:
    • “ॐ ह्रीं त्रिपुर भैरव्यै नमः।”
    • “ॐ त्रिपुरायै विद्महे भैरव्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात।”

भक्ति और मुक्ति का संगम

देवी साधकों को भक्ति और मुक्ति प्रदान करती हैं। उनके सौम्य रूप को त्रिपुरा सुंदरी और उग्र रूप को काली स्वरूप में पूजा जाता है।

माता त्रिपुर भैरवी की विशेषताएं

  1. स्वरूप:
    माता त्रिपुर भैरवी लाल रंग के परिधान और तेजस्वी आभा से युक्त हैं। उनके चार हाथ हैं:

    • एक में खड्ग (तलवार),
    • दूसरे में त्रिशूल,
    • तीसरे में पाश,
    • चौथा हाथ वरद मुद्रा में है।
  2. महाविद्या में स्थान:
    वे दस महाविद्याओं में से एक हैं। तंत्र साधना में उनका स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  3. उपासना का फल:
    उनकी पूजा से भय, मृत्यु और अज्ञान का नाश होता है। साधक को ज्ञान, शक्ति, और सिद्धि प्राप्त होती है।

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