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माता शाकंभरी रहस्य कथा मंदिर विवरण आरती सहित

माता शाकंभरी रहस्य कथा मंदिर विवरण आरती सहित

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। शाकंभरी नवरात्रि बृहस्पतिवार जनवरी 18, 2024 से शुरू हो रही है और। शाकंभरी जयंती जनवरी 25, 2024 को है। इसलिए माता शाकंभरी के रहस्य उनकी कथा उनकी विवरण और उनके मंदिरों के बारे में जानकारी आवश्यक हो जाती है जो कि आज की इस वीडियो के माध्यम से माता शाकंभरी के रहस्य को मैं आप सभी के सामने प्रदर्शित करूंगा। तो जैसे कि हम लोग जानते हैं कि माता शाकंभरी कौन है। यह आदिशक्ति जगदंबा का ही अवतार मानी जाती है। यह चार भुजा धारी पर कहीं अष्ट भुजाधारी भी दिखाई पड़ती है। इनका सबसे बड़ा और सबसे प्राचीन सिद्ध पीठ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है। यह मा वैष्णो देवी चामुंडा, कांगड़ा वाली, ज्वाला, चिंतपूर्णी ,कामाख्या, शिवालिक पर्वतवासिनी, चंडी ,बाल सुंदरी, मनसा, नैना और शताक्षी देवी कहलाती हैं। मां शाकंभरी को रक्तदंतिका, छिन्नमस्तिका, भीमा देवी, ब्राह्मनी और श्री कनकदुर्गा भी कहते हैं। मां शाकंभरी के हमारे देश में अनेकों पीठ और मंदिर है। लेकिन सबसे प्राचीन जो है वह सहारनपुर में स्थित है। इसके अलावा शाकंभरी माता राजस्थान में सकराए पीठ वहां भी और सांभर पीठ राजस्थान में है। तो अगर हम माता के दर्शन उनके स्वरूपों के विषय में जानकारी और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए देवी दर्शन यात्रा में है तो वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में हम, माता चामुंडा देवी फिर, माता बज्रेश्वरी देवी फिर, मां ज्वाला देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां नैना देवी, माता मनसा देवी, मां कालिका देवी और मां शाकंभरी देवी सहारनपुर की यात्रा करते हैं। नौ देवियों में शाकंभरी माता का रूप सबसे ज्यादा करुणा वाला है और सबसे ज्यादा ममता देने वाला है।

स्कंद पुराण में शाकंभरी क्षेत्र और शार्केश्वर महादेव की प्रत्यक्ष महिमा बताई गई है। इनकी गणना प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में की जाती है और माता सती का शीश यहीं पर गिरा था। माता अपनी साथ विभिन्न।

रहस्य को लेकर आई थी और। इनकी जो मूल रूप से प्रसाद है उसमें हलवा पूरी शाक सब्जी फल मिश्री मेवे और शाकाहारी भोजन भोग में लगाया जाता है माता। इनकी कृपा से जीवन में हर प्रकार के संकट टल जाते हैं। अक्षय, धन, अन फल, धान्य और धन की प्राप्ति होती है। माता की जो दंत कथाएं और कथा है उनके अनुसार अलग-अलग। कहानियां हमें प्राप्त होती हैं। महाभारत में अगर 1 पर्व में आप देखेंगे। तो? शाकंभरी देवी ने शिवालिक पहाड़ियों में 100 वर्ष तक तप किया। महीने के अंतराल में एक बार शाकाहारी भोजन को आहार में लेती थी। उनकी कीर्ति को सुनकर ऋषि मुनि उनके दर्शन के लिए आए देवी ने भी उनका स्वागत साग सब्जी से किया। इसीलिए वह शाकंभरी नाम से वहां पर कही गई और उनके लिए यह केवल शाकाहारी भोजन सब्जियों का व ग्रहण करती है। स्कंद पुराण में भी कथा आती है कि यमुना के पूर्व भाग में एक सूर्य कुंड है जहां पर विष्णु कुंड और बाणगंगा पीठ विद्यमान है। पूर्व काल में भगवान विष्णु ने रुद्र भगवान को प्रसन्न करने के लिए यहां तप किया था। इसी के दक्षिणी भाग में शाकंभरी देवी विराजमान है जो श्रेष्ठ हैं और सर्व कामेश्वरी हैं। यहां के शकेश्वर महादेव प्रत्यक्ष हैं। एक अन्य कथा के अनुसार भी माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। तब उन्होंने अन् और जल का त्याग कर दिया था और जीवित रहने के लिए केवल शाक सब्जियां ही खाई थी। शाक एक पत्ता भी होता है इसीलिए उनका नाम अपर्णा भी पढ़ा था।

देवी भागवत की कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई और मनुष्य कष्ट सहने लगे तब देवी ही प्रकट होकर उन्होंने अपने शरीर से उत्पन्न हुए शाह को सब्जियों फल और वर्षा के जल जो कि वह स्वयं के रोने के कारण अपने पुत्र जनता को देख कर। परेशान और करुणा में होने के कारण रोने लगी थी। उनकी आंखों से बहते हुए आंसू जब धरती पर गिरने लगे तो उससे नदियां प्रकट हो गई और सभी जीवो को पानी की प्राप्ति हुई। उनके शरीर से साग सब्जियां फल उत्पन्न होने लगे, जिससे ऋषि मुनि भोजन प्राप्त कर पाए। इसीलिए इन्हें बहुत ही करुणामई देवी के रूप में जाना जाता है।

देवी! इतनी अधिक अद्भुत है कि इनकी कृपा से जीवन में केवल शुभता की प्राप्ति होती है। अगर माता शाकंभरी और दुर्गामासुर की कथा को जाने तो इसका वर्णन हमें देवी पुराण, शिव पुराण और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में होता है। इस कहानी के अनुसार हिरण्याक्ष की वंश में एक दानव था जिसका नाम रूरू था रूरू का पुत्र हुआ दुर्गम और दुर्गम ने भयंकर ब्रह्मा जी की तपस्या की। इससे यह दुर्गामासुर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। उसने चारों वेदों को अपने अधीन कर लिया था। वेदों के ना रहने से समस्त क्रियाएं लुप्त होने लगी। ब्राह्मणों ने अपना धर्म त्याग दिया। चारों तरफ हाहाकार मच गया। ब्राह्मण धर्म विहीन होने से यज्ञ अनुष्ठान इत्यादि सभी चीजें बंद हो गई। इसके कारण स्वर्ग की देवताओं की शक्ति भी क्षीण होने लगी। इसके कारण भयंकर अकाल पड़ने लगा। किसी भी प्राणी को जल नहीं मिला। जल के अभाव में वनस्पतियां भी सूख गई और भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे। दुर्गामासुर के देवताओं से फिर उसने भयंकर लड़ाई की जिसमें देवता शक्तिहीन होने के कारण हार गए। दुर्गामासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवता गण शिवालिक पर्वत मालाओं में जाकर छुप गए और जगदंबा का ध्यान जब पूजन और स्तुति करने लगे उनके द्वारा जगदंबा की स्थिति होने पर मां भगवती पार्वती महेश साहनी धनेश्वरी नाम से प्रसिद्ध हो गई और वह आयोनिजा अर्थात जिसके ना कोई माता हो, ना पिता हो। इस स्वरूप में इस स्थल पर प्रकट हो गई। समस्त सृष्टि की दुर्दशा को देखते हुए जगदंबा माता का हृदय भर गया उनकी आंखों से अश्रु की धारा प्रवाहित होने लगी। मां के शरीर पर 100 नेत्र प्रकट हो गए। इसीलिए इन्हें शताक्षी और नैना देवी के नाम से भी जाना गया।

इनकी कृपा से महान वर्षा शुरू हो गई। नदी तालाब और जल सब भर गए। देवताओं ने उस समय माता की शताक्षी देवी के नाम से आराधना की थी। शताक्षी देवी ने एक दिव्य और सौम्य स्वरूप धारण किया। चतुर्भुजी मां कमल के आसन पर विराजमान हो गई और अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी।। भगवती परमेश्वरी ने अपने शरीर से लोगों की भोजन के लिए अनेकों शार्क और सब्जियां प्रकट कर दी। जिनको खाकर संसार की सुधा शांत हुई। माता ने पहाड़ पर दृष्टि डाली तो सर्वप्रथम सराल नामक कंदमूल की उत्पत्ति हुई थी। इसी दिव्य रूप में मां शाकंभरी देवी पूजित भी हुई। तत्पश्चात दुर्गामासुर को रिझाने के लिए उसका वध करने हेतु सुंदर स्वरूप धारण कर शिवालिक पहाड़ी पर आसन लगाकर बैठ गई। जब असुरों ने पहाड़ी पर बैठी जगदंबा को देखा तो उन्हें पकड़ने का विचार उनके मन में आया। स्वयं दुर्गामासुर भी वहां आ गया। तब देवी ने पृथ्वी और स्वर्ग के बाहर एक घेरा बना दिया और स्वयं उसके बाहर खड़ी हो गई। दुर्गामासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ। अंत में दुर्गामासुर मारा गया। इसी स्थल पर मां जगदंबा ने दुर्गामासुर तथा अन्य देशों का संघार किया था। और भक्त भूरे देव जो कि भैरव का ही एक रूप है को अमृत का आशीर्वाद दिया। मां की असीम अनुकंपा से वर्तमान में सर्वप्रथम उपासक भूरे देव के दर्शन भी करते हैं। तत्पश्चात पथरीले रास्ते से गुजरते हुए माता शाकंभरी के यहां पर। शाकंभरी धाम में दर्शन हेतु जाते हैं। जिस स्थल पर माता ने दुर्गामासुर नामक राक्षस का वध किया था। अब वहां पर वीर खेल का मैदान है जहां पर माता सुंदर रूप बनाकर पहाड़ी पर शिखा पर बैठ गई थी। वहां पर मां शाकंभरी देवी का भवन। स्थापित है जिस स्थान पर मां ने भूरा देव को अमरत्व का वरदान दिया था। वहां पर बाबा भूरा देव का मंदिर स्थापित है।

प्राकृतिक स्थान दे हरी भरी घाटी से परिपूर्ण क्षेत्र यह देवी पुराण में वर्णित है और दुर्गा मां सुर का वध करने के कारण इनका नाम दुर्गा भी पड़ा और इसीलिए माता दुर्गा की आराधना दुर्गामासुर के वध करने के कारण भी होती है। इतना ही नहीं यह शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध है। इस स्थान का वर्णन आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य जो कि चंद्रगुप्त के समय में मां शाकंभरी पीठ में आए थे और दर्शन करते थे। इतना ही नहीं शाकंभरी पीठ चौहान वंश के लिए भी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्धि है क्योंकि इन्हीं देवी की आराधना करके चौहानों ने दिल्ली पर शासन किया था और पृथ्वीराज चौहान जैसे महान शासक इस वंश में देवी की कृपा से ही उत्पन्न हुए थे।

तो देवी का यह रहस्य है और देवी मां का यह धाम भी बहुत प्रसिद्ध है। माता शाकंभरी देवी अपने करुणा में स्वरूप में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यह सात्विक से भी अति सात्विक स्वरूप में दर्शन देती है। इनको कभी भी तामसिक भोग नहीं लगाना चाहिए। इनको सदैव, सात्विक और शार्क और सब्जियों वाला ही भोग देना चाहिए माता।

अपने पुत्रों को कभी भूखा नहीं रहने देती उनकी कृपा से। समस्त प्रकार के संकट टल जाते हैं जैसे देवताओं और मनुष्यों के टल गए थे। देवी मां के अन्य भी मंदिर है जिनका वर्णन मैं आपको बता रहा हूं। शाकंभरी देवी त्रियुगी नारायण मंदिर उत्तराखंड में है। शाकंभरी मंदिर नागपाडा में भी है। शाकंभरी देवी कटक में भी स्थित है। शाकंभरी मंदिर हरिद्वार में भी है। शाकंभरी मंदिर कुरालसी उत्तर प्रदेश में है। शाकंभरी मंदिर शाहाबाद मारकंडा में है और शाकंभरी मंदिर कांधला में भी स्थित है।

इसके अलावा मां बनशंकरी मध्य कर्नाटक राज्य के भागलपुर जिले के बादामी में बना हुआ है। तो माता की जय! 4 प्रतिमाओं का भी एक रहस्य है। क्योंकि माता शाकंभरी देवी उनके साथ में देवी भी मां भ्रामरी और शताक्षी श्री विग्रह उनके साथ रहते हैं तो माता शताक्षी स्वयं शाकंभरी देवी है और दुर्गामासुर के अत्याचारों का नष्ट करने के लिए अयोनिजा अर्थात जिनकी माता और पिता ना हो, रूप में शरीर धारण कर प्रकट हुई तो नेत्रों से उन्होंने रोते हुए संसार में वर्षा की। इसीलिए उनका नाम शताक्षी पड़ा था। माता भीमा देवी भीमा देवी का स्वरूप मां ने उस समय धारण किया। जब हिमालय और शिवालिक क्षेत्र में राक्षसों का साम्राज्य हो गया था और दानव ऋषि मुनियों की तपस्या में विघ्न डालते थे। तब मां जगदंबा ने भीम भयंकर रूप धारण करके दानवों का संहार किया था। इसीलिए भीमा देवी के नाम से बहुत जगत में प्रसिद्ध हुई थी। मां का भ्रामरी स्वरूप भी है जब अरुण नामक राक्षस ने अत्याचारों से सब देव पत्नियों का सतीत्व नष्ट करने का प्रयास किया था। सभी देवताओं की पत्नियों को अपनी पत्नी बनाने के लिए उनका अपहरण कर लिया था। तब महादेवी शक्ति ने उसके वरदान के अनुसार भ्रामरी यानी भौरे इसे कहते हैं उसका रूप धारण करके उसका वध किया था। इसी कारण से देवी का यह स्वरूप भ्रामरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

इस प्रकार आप माता शाकंभरी के रहस्य को आज समझे होंगे माता का? बहुत ही दुर्लभ रहस्य है।

इनकी आरती भी है। जो कि इस प्रकार से पढ़ी जाती है-

जय जय शाकंभरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता

हम सब उतारे तेरी आरती

री मैया हम सब उतारे तेरी आरती

संकट मोचनी जय शाकंभरी तेरा नाम सुना है

री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता

हम सब उतारे तेरी आरती

मांग सिंदूर विराजत मैया टीका शुभ सजे है

सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है

री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकंभरी माता

हम सब उतारे तेरी आरती

क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ निशुंभ को मारा

महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा

मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता

हम सब उतारे तेरी आरती

चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे।

भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें

री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता

हम सब उतारे तेरी आरती

कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी

तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी

री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता

हम सब उतारे तेरी आरती

सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला

शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला री

मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता

हम सब उतारे तेरी आरती

शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें

सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे

री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता

हम सब उतारे तेरी आरती

सुंदर भवन माँ तेरा विराजे शिवालिक की घाटी

बसी सहारनपुर मे मैय्या धन्य कर दई माटी

री मैय्या जंगल मे मंगल करती सबके भंडारे भरती

हम सब उतारें तेरी आरती

नीलभवन तेरे मात भवानी सेवा करते तेरी

मैहर सागडी उपर करदे अब क्यों लाई देरी

री मैय्या भवनों मे आप विराजें द्वारे पर नौबत बाजे

हम सब उतारे तेरी आरती

यह था माता शाकंभरी का विवरण उनके मंदिर के बारे में व्याख्यान उनकी कथा और उनकी आरती अगर आज का वीडियो आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

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