विश्वविजय सरस्वती कवच
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज मैं आपके लिए विशेष रूप से बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में माता सरस्वती की एक साधना लेकर आया हूं जो 1 दिन में की जा सकती है और माता इससे अत्यंत ही प्रसन्न होती हैं, जिन लोगों को भी माता सरस्वती की कृपा चाहिए। उनके लिए यह साधना अत्यंत ही उत्तम मानी जाती है। माता सरस्वती अपनी कृपा से व्यक्ति को विद्वान बुद्धिमान ज्ञानवान बना देती है। ऐसा कौन सा उनका कवच है जिसको पढ़ने से वह अवश्य ही प्रसन्न होती हैं। जी हां मैं बात कर रहा हूं विश्वविजय सरस्वती कवच के बारे में। माता की इस वंदना को करने से निश्चित रूप से माता की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है। अगर यह साधना! बसंत पंचमी के दिन की जाए जिस दिन माता का प्राकट्य हुआ था तो आपको अवश्य ही इसमें विशेष लाभ देखने को मिलता है।
इन्हें ब्रह्मा विद्या एवं नृत्य संगीत की देवी। माना जाता है। शक्ति स्वरूपा होने के कारण भगवान शिव की अनुजा या छोटी बहन कहकर भी संबोधित किया जाता है। इन्हें वाणी शारदा, वागेश्वरी, वेदमाता इत्यादि नामों से जाना जाता है। श्री पंचमी यानी बसंत पंचमी को इनकी पूजा करना विशेष रूप से फलदायक होता है। विश्व विजय इनका कवच है। आपको यह श्री ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के अध्याय 4 में देखने को मिलता है। इनकी कृपा से। निश्चित रूप से प्राणी में बुद्धि विवेक ज्ञान।
प्राप्त होता ही है जो लोग पढ़ाई के क्षेत्र में है और साथ ही साथ कंपटीशन की तैयारी कर रहे हैं। उनके लिए भी उत्तम साधना है और कवच है। इस कवच का अगर 108 बार वसंत पंचमी को जाप किया जाए तो माता की कृपा और गुप्त सिद्धि प्राप्त होती है। कवच के अर्थ को यहां पर मैं आपको बताऊंगा। ताकि आप लोगों को समझने में आसानी हो इस साधना को करना कैसे सबसे पहले उसके बारे में बात करते हैं? इसके लिए आप पूर्व दिशा में माता सरस्वती का एक आसन निर्मित करें। और? वहां पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर वस्त्र और आसन की व्यवस्था उनके लिए कीजिए सामने उनकी मूर्ति अथवा फोटो रख लीजिए। अब! पीले वस्त्र पहन करआप रुद्राक्ष की माला से जाप करना शुरू करेंगे।
108 बार आपको माला फेरनी है। यह जो विश्व विजई कवच है, यह थोड़ा लंबा है तो 108 बार पढ़ने में आपको काफी समय लग सकता है। लेकिन बसंत पंचमी के दिन अगर आप इस साधना करते हैं तो आपको विशेष फायदा होगा। यह साधना आप सुबह के समय से शुरू कर सकते हैं। ब्रह्म मुहूर्त से शुरू करने पर विशेष लाभ होगा।
आप सबसे पहले इनके मंत्रों का जाप करने के बाद ब्राह्मी के घी से ही उस दिन खिचड़ी का सेवन करें ताकि माता की कृपा आप को शारीरिक रूप से भी प्राप्त हो। चलिए विश्व विजय कवच का अर्थ हिंदी भावार्थ है, उसको जान लेते हैं। यह श्री ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 4 में मुनि बने भगवान नारायण से यानी नारद जी ने जब बात की तो उन्हें भगवान नारायण ने स्वयं बताया था और कहा था कि सरस्वती जी का कवच विश्व पर विजय प्राप्त कराने वाला कहलाता है। ब्रह्मा जी ने गंधमादन पर्वत पर भ्रुगू के आग्रह से इसे उन्होंने बताया था। क्या है इसका अर्थ? ब्रह्माजी बोले-
।।ब्रह्मोवाच।।
श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम्। श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम्।।
उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वमे। रासेश्वरेण विभुना वै रासमण्डले।।
अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम्। अश्रुताद्भुतमन्त्राणां समूहैश्च समन्वितम्।।
यद् धृत्वा भगवाञ्छुक्रः सर्वदैत्येषु पूजितः। यद् धृत्वा पठनाद् ब्रह्मन् बुद्धिमांश्च बृहस्पति।।
पठणाद्धारणाद्वाग्मी कवीन्द्रो वाल्मिको मुनिः। स्वायम्भुवो मनुश्चैव यद् धृत्वा सर्वपूजितः।।
कणादो गौतमः कण्वः पाणिनीः शाकटायनः। ग्रन्थं चकार यद् धृत्वा दक्षः कात्यायनः स्वयम्।।
धृत्वा वेदविभागं च पुराणान्यखिलानि च। चकार लीलामात्रेण कृष्णद्वैपायनः स्वयम्।।
शातातपश्च संवर्तो वसिष्ठश्च पराशरः। यद् धृत्वा पठनाद् ग्रन्थं याज्ञवल्क्यश्चकार सः।।
ऋष्यश्रृंगो भरद्वाजश्चास्तीको देवलस्तथा। जैगीषव्योऽथ जाबालिर्यद् धृत्वा सर्वपूजिताः।।
कचवस्यास्य विप्रेन्द्र ऋषिरेष प्रजापतिः। स्वयं च बृहतीच्छन्दो देवता शारदाम्बिका।।१
सर्वतत्त्वपरिज्ञाने सर्वार्थसाधनेषु च। कवितासु च सर्वासु विनियोगः प्रकीर्तितः।।२
श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वतः। श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।।३
ॐ सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्रे पातु निरन्तरम्। ॐ श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।।४
ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोऽवतु। ॐ ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।।५
ॐ श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपङ्क्तीः सदावतु। ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।।६
ॐ श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धौ मे श्रीं सदावतु। ॐ श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्षः सदावतु।।७
ॐ ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्। ॐ ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम हस्तौ सदावतु।।८
ॐ सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु। ॐ वागधिष्ठातृदेव्यै सर्व सदावतु।।९
ॐ सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु। ॐ ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।।१०
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा। सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।।११
ऐं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु। कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।।१२
ॐ सर्वाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु। ॐ ऐं श्रीं गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेऽवतु।।१३
ऐं सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु। ॐ ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोर्ध्वं सदावतु।।१४
ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु। ॐ ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोऽवतु।।१५
इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम्। इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मरुपकम्।।
पुरा श्रुतं धर्मवक्त्रात् पर्वते गन्धमादने। तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित्।।
गुरुमभ्यर्च्य विधिवद् वस्त्रालंकारचन्दनैः। प्रणम्य दण्डवद् भूमौ कवचं धारयेत् सुधीः।।
पञ्चलक्षजपैनैव सिद्धं तु कवचं भवेत्। यदि स्यात् सिद्धकवचो बृहस्पतिसमो भवेत्।।
महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत्। शक्नोति सर्वे जेतुं स कवचस्य प्रसादतः।।
इदं ते काण्वशाखोक्तं कथितं कवचं मुने। स्तोत्रं पूजाविधानं च ध्यानं वै वन्दनं तथा।।
।।इति श्रीब्रह्मवैवर्ते ध्यानमन्त्रसहितं विश्वविजय-सरस्वतीकवचं सम्पूर्णम्।।
(प्रकृतिखण्ड ४।६३-९१)
भावार्थः-
ब्रह्माजी बोले – वत्स ! मैं सम्पूर्ण कामना पूर्ण करने वाला कवच कहता हूँ, सुनो ! यह श्रुतियों का सार, कान के लिये सुखप्रद, वेदों में प्रतिपादित एवं उनसे अनुमादित है। रासेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण गोलोक में विराजमान थे। वहीं वृन्दावन में रासमण्डल था। रास के अवसर पर उन प्रभु ने मुझे यह कवच सुनाया था।
कल्प-वृक्ष की तुलना करने वाला यह कवच परम गोपनीय है। जिन्हें किसी ने नहीं सुना, वे अद्भुत मन्त्र इसमें सम्मिलित हैं। इसे धारण करने के प्रभाव से ही भगवान् शुक्राचार्य सम्पूर्ण दैत्यों के पूज्य बन सके। ब्रह्मन् ! बृहस्पति में इतनी बुद्धि का समावेश इस कवच की महिमा से ही हुआ है। वाल्मीकि मुनि सदा इसका पाठ और सरस्वती का ध्यान करते हैं। अतः उन्हें कवीन्द्र कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। वे भाषण करने में परम चतुर हो गये। इसे धारण करके स्वायम्भुव मनु ने सबसे पूजा प्राप्त की। कणाद, गौतम, कण्व, पाणिनी, शाकटायन, दक्ष और कात्यायन – इस कवच को धारण करके ही ग्रन्थों की रचना में सफल हुए। इसे धारण करके स्वयं कृष्णद्वैपायन व्यासदेव ने वेदों का प्रणयन किया। शातातप, संवर्त, वशिष्ठ, पराशर, याज्ञवल्क्य, ऋष्यश्रृंग, भारद्वाज, आस्तीक, देवल, जैगीषव्य और जाबालि ने इस कवच को धारण करके सबमें पूजित हो ग्रन्थों की रचना की थी।
विप्रेन्द्र ! इस कवच के ऋषि प्रजापति हैं। स्वयं वृहती छन्द है। माता शारदा अधिष्ठात्री देवी है। अखिल तत्त्व-परिज्ञान-पूर्वक सम्पूर्ण अर्थ के साधन तथा समस्त कविताओं के प्रणयन एवं विवेचन में इसका प्रयोग किया जाता है।
श्रीं-ह्रीं-स्वरुपिणी भगवती सरस्वती के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सब ओर से मेरे सिर की रक्षा करें। ॐ श्रीं वाग्देवता के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सदा मेरे ललाट की रक्षा करें। ॐ ह्रीं भगवती सरस्वती के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे निरन्तर कानों की रक्षा करें। ॐ श्रीं ह्रीं भारती के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सदा मेरे दोनों नेत्रों की रक्षा करें। ऐं ह्रीं स्वरुपिणी वाग्वादिनी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सब ओर से मेरी नासिका की रक्षा करें। ॐ ह्रीं विद्या की अधिष्ठात्री देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे होठ की रक्षा करें। ॐ श्रीं ह्रीं भगवती ब्राह्मी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे दन्त-पङ्क्ति की निरन्तर रक्षा करें। ‘ऐं’ यह देवी सरस्वती का एकाक्षर मन्त्र मेरे कण्ठ की सदा रक्षा करें। ॐ श्रीं ह्रीं मेरे गले की तथा श्रीं मेरे कंधों की सदा रक्षा करें। ॐ श्रीं विद्या की अधिष्ठात्री देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सदा वक्षःस्थल की रक्षा करें। ॐ ह्रीम विद्या-स्वरुपा देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे मेरी नाभि की रक्षा करें। ॐ ह्रीं क्लीं-स्वरुपिणी देवी वाणी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सदा मेरे हाथों की रक्षा करें। ॐ स्वरुपिणी भगवती सर्व-वर्णात्मिका के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे दोनों पैरों को सुरक्षित रखें। ॐ वाग् की अधिष्ठात्री देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे मेरे सर्वस्व की रक्षा करें। सबके कण्ठ में निवास करने वाली ॐ स्वरुपा देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे पूर्व दिशा में सदा मेरी रक्षा करें। जीभ के अग्र-भाग पर विराजने वाली ॐ ह्रीं-स्वरुपिणी देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे अग्निकोण में रक्षा करें। ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।’ इसको मन्त्रराज कहते हैं। यह इसी रुप में सदा विराजमान रहता है। यह निरन्तर मेरे दक्षिण भाग की रक्षा करें। ऐं ह्रीं श्रीं – यह त्र्यक्षर मन्त्र नैर्ऋत्यकोण में सदा मेरी रक्षा करे। कवि की जिह्वा के अग्रभाग पर रहनेवाली ॐ-स्वरुपिणी देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे वायव्य-कोण में सदा मेरी रक्षा करें। गद्य-पद्य में निवास करने वाली ॐ ऐं श्रींमयी देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे उत्तर दिशा में मेरी रक्षा करें। सम्पूर्ण शास्त्रों में विराजने वाली ऐं-स्वरुपिणी देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे ईशान-कोण में सदा मेरी रक्षा करें। ॐ ह्रीं-स्वरुपिणी सर्वपूजिता देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे ऊपर से मेरी रक्षा करें। पुस्तक में निवास करने वाली ऐं ह्रीं-स्वरुपिणी देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे मेरे निम्न भाग की रक्षा करें। ॐ स्वरुपिणी ग्रन्थ-बीज-स्वरुपा देवी के लिये श्रद्धा की आहुति दी जाती है, वे सब ओर से मेरी रक्षा करें।
विप्र ! यह सरस्वती-कवच तुम्हें सुना दिया । असंख्य ब्रह्ममन्त्रों का यह मूर्तिमान् विग्रह है। ब्रह्मस्वरुप इस कवच को ‘विश्वजय’ कहते हैं। प्राचीन समय की बात है- गन्धमादन पर्वत पर पिता धर्मदेव के मुख से मुझे इसे सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। तुम मेरे परम प्रिय हो। अतएव तुमसे मैंने कहा है। तुम्हें अन्य किसी के सामने इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिये। विद्वान् पुरुष को चाहिये कि वस्त्र, चन्दन और अलंकार आदि सामानों से विधि-पूर्वक गुरु की पूजा करके दण्ड की भाँति जमीन पर पड़कर उन्हें प्रणाम करे। तत्पश्चात् उनसे इस कवच का अध्ययन करके इसे हृदय में धारण करे। पाँच लाख जप करने के पश्चात् वह कवच सिद्ध हो जाता है। इस कवच के सिद्ध हो जाने पर पुरुष को बृहस्पति के समान पूर्ण योग्यता प्राप्त हो सकती है। इस कवच के प्रसाद से पुरुष भाषण करने में परम चतुर, कवियों का सम्राट् और त्रैलोक्य-विजयी हो सकता है। वह सबको जीतने में समर्थ होता है। मुने ! यह कवच कण्व-शाखा के अन्तर्गत है।
इस प्रकार से। ब्रह्मा जी का संवाद यहां पर समाप्त होता है। मैंने आपको बताया है कि यह बसंत पंचमी के दिन पढ़ने से आपको माता की कृपा विशेष रूप से प्राप्त होगी। लेकिन अगर आप इसी की संपूर्ण सिद्धि कर कर विश्व विजय चाहते हैं तो इसका 500000 जप आप को पूर्ण करना होगा। जैसा कि ब्रह्म देव ने यहां पर आज्ञा दी है।
अगर आपको यह? पाठ समझ में आया हो तो अवश्य ही इस पाठ को आप बसंत पंचमी के दिन करें ताकि आपको माता सरस्वती की कृपा अवश्य प्राप्त हो।
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