नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है जैसा कि मैंने आप लोगों से कहा था कि रेगुलर वे में वीडियोस नहीं आ पाएंगे। उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। जैसे कि मैंने भाग 1 अनुभव में आपको बताया था कि किस प्रकार से मैं कैसे लोक में पहुंच गया जहां पर सारे के सारे पेड़ पौधे वनस्पतियां अपने आप में अद्भुत शक्ति संपन्न थे। उनके अंदर से दिव्य ऊर्जा निकल रही थी। तभी मुझे पीछे से आवाज आती है। सुनो रुको! मैं पीछे पलट कर देखता हूं तो एक अत्यंत ही सुंदर! स्त्री मेरे सामने खड़ी थी जो गहने आभूषणों से पूरी तरह से लदी हुई थी। उनका रूप बहुत ही दिव्य लग रहा था। उन्हें देखकर के केवल एक भाव मन में आता था जैसे कि मैं कोई छोटा बालक बन जाऊं और यह मेरी माता है। उनकी मुस्कान अद्भुत थी और ऐसा लगता था जैसे अपना वात्सल्य वह छलका रही हो। मैं उन्हें देखकर पूरी तरह से आश्चर्य में पड़ गया था। उनका रूप बहुत अधिक दिव्य था। रंग में पूरी तरह से गौर वर्णी और पूरी तरह से स्वर्ण आभूषणों से लदी हुई दिखाई पड़ती थी।
उन्होंने मुझसे कहा कि कर्मों की गति बड़ी बहन होती है। चाहे कितने जन्म पूर्व भी कोई कर्म किया गया हो, उसका फल निश्चित होता है। आज नहीं तो कल उसे भोगना ही पड़ता है। ऐसा ही तुम्हारे साथ भी हो रहा है। लेकिन चिंता ना करो जैसे प्रत्येक कर्म का अपना अपना एक फल होता है उसी तरह कुछ कर्मों के शुभ फल भी अवश्य ही प्राप्त होते हैं। ऐसा ही तुम्हारे साथ भी हो रहा है। देखो इधर तुम शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो लेकिन इसी के साथ तुमको एक अद्भुत दुर्लभ सिद्धि की भी प्राप्ति हो गई है। अब अपने गुरु मंत्र का उच्चारण करो और इस रहस्य को जान लो। उनकी बातों में एक अद्भुत। चमत्कार सा नजर आता था। ऐसा लगता था कि उनकी बात लगातार कई युगों तक सुनी जा सकती है। पिछली बार मैंने आपको बताया था कि मैं यह नहीं बता सकता कि देवी कौन थी किंतु उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया था कि जिस प्रकार मातृशक्ति हर लोक में हर जगह विद्यमान है, वैसे ही वह उनका एक रूप थी।
उनके इस आचरण से प्रभावित होकर मैंने मन ही मन अपने गुरु मंत्र का उच्चारण किया और सामने एक चमत्कार घटित हुआ। वहां पर लाखों की संख्या में अप्सराएं मौजूद थी। सब की सब वनस्पति स्वरूप मे, वहां पर विद्यमान थी। उन्हें देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। सब की सब खुश होकर चहक रही थी। मैंने माता से पूछा, हे मां मुझे बताइए यह लोग कौन हैं और यहां पर यह इतनी सारी अप्सराएं क्या कर रही हैं। उन्होंने कहा कि कुछ अप्सराएं गोलोक की हैं। कुछ अप्सराएं शिवलोक की हैं कुछ अप्सराएं शक्ति लोक से आई हैं। कुछ मां भगवती त्रिपुर सुंदरी के मणि द्वीप की निवासिनी भी हैं। इस प्रकार भिन्न भिन्न लोगों से यहां पर आकर इकट्ठा हुई है और तुम ही को अपना स्वरूप दिखाने के लिए यहां पर आई हैं। मैंने उनसे पूछा माता अगर ऐसा है तो मुझे इनके यहां उपस्थित होने का अभिप्राय पूरी तरह से बताइए। इस पर माता ने कहा। कि तुम्हारे बीमार पड़ने का? तुम्हारे पूर्व जन्मों से संबंधित जो भी कर्म था, उसका फल तुम्हें मिल रहा है। धीरे-धीरे करके तुम ठीक हो जाओगे। लेकिन कर्म को तो भोगना ही पड़ता है इसलिए अपनी बीमारी को तुम्हें भोगना पड़ेगा। किंतु यहां पर यह उपस्थित सारी अप्सराएं। चाहती हैं कि तुम इन सब को भी अपने देश काल वातावरण को बताओ। यानी कि यह सभी चाहती हैं इनका परिचय जो अभी तक गुप्त था, तुम पूरी दुनिया को बताओ। यही संदेश देने के लिए उन्होंने यहां पर अपना प्राकृतिक रूप दिखाया है।
मैं कुछ समझा नहीं। मैंने माता से पूछा, इस पर उन्होंने कहा, तुम खुद ही क्यों नहीं पूछ लेते तभी मैंने वहां पर कई वनस्पतियों को प्रणाम करते हुए उनसे पूछा तो वनस्पतियां अप्सरा रूप लेकर प्रणाम करते हुए मुझे बोली कहने लगी। हमारी साधना को कोई नहीं जानता। लेकिन आप अगर चाहे तो आप हमारी साधना को भौतिक जगत में उतार सकते हैं। अभी तक किसी भी लोक में हमारी साधनाओं का वर्णन पूरी तरह से नहीं किया गया है। सारी बातें छुपा कर रखी गई है। ऋषि मुनि हम को सिद्ध करके आयुर्वेदिक औषधियों का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेते थे और हम केवल और केवल दाता स्वरूपा हैं। यानी देने ही वाली है इसलिए हमारी सिद्धि होने पर न सिर्फ आध्यात्मिक वृद्धि होती है बल्कि भौतिक वृद्धि अवश्य ही होती है। मैंने पूछा, कैसे? उन्होंने कहा- पृथ्वी पर हर मनुष्य मृत्यु के सन्निकट प्रत्येक दिन पहुंच रहा है। इसी कारण से उसके शरीर में रोगों की उत्पत्ति होती है और हम विभिन्न प्रकार के रोगों के निदान के लिए अपने अपने स्वरूप लिए हुए हैं। इसलिए हमारी साधना का ज्ञान आपको स्वतः ही होता चला जाएगा और आप इसे जगत में प्रत्येक व्यक्ति को पहुंचा दीजिए अपने संदेश के माध्यम से।
मैं यह सुनकर बहुत ही प्रसन्न हो गया। मैंने सोचा कि माता की कृपा से मुझे न सिर्फ दिव्य अप्सराओं के बारे में ज्ञान हो रहा है। अब मैं जनता का भला करने के लिए ही ऐसी साधनाओं को जनता के समक्ष उपस्थित करूंगा। जिसके कारण से सब का भला होगा। सब के रोग दुख। सब कुछ नष्ट हो जाएंगे। मैंने माता से पूछा कि क्या सच में इसी कारण से मैं बीमार पड़ा। उन्होंने कहा कि तुम्हारे कर्म और तुम्हारी सोच दोनों इस रास्ते पर लाए हैं। कर्मों ने तुम्हें तुम्हारे संदेश को पहुंचाने वाले एक नेता के रूप में तुम्हारा निर्माण कर दिया है। लेकिन पूर्व जन्मों के कर्मों को भोगना तो पड़ता ही है। और भौतिक जीवन की वास्तविकता यह है कि दूसरे के किए गए कर्मों का भी प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति पर अवश्य ही पड़ता है। यानी कि अगर कोई गलत पदार्थ किसी को खिलाएं तो? जिसे खिलाया गया है उसे अवश्य ही उसके फल को भोगना होगा। ऐसा ही तुम्हारे साथ भी हुआ है और यह बात बिल्कुल सत्य थी क्योंकि मेरे साथ ऐसा ही हो चुका है। आप लोग जानते ही हैं कि मैं अपनी बीमारी से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा हूं और साथ ही साथ आप लोगों के लिए भी संदेश का निर्माण कर रहा हूं।
किंतु इसी बीमारी के कारण शायद माता की कृपा मुझ पर हुई और उन्होंने मुझे इन दिव्य वनस्पति और दिव्य अप्सराओं के बारे में जानकारी दी है। जिसका ज्ञान उन्होंने कहा है तो मुझे स्वतः ही होता जाएगा और इनकी साधना कैसे करनी है। तुम सब को बताते चले जाओगे। इन! सभी अप्सराओं की साधना मैं भविष्य में आपको देता चला जाऊंगा। लगभग 600 700 की इनकी संख्या है लेकिन जितना ज्ञान मुझे समय के साथ माता प्रदान करती रहेंगी। वह सब मैं जान लूंगा और आप लोगों को अवश्य ही देता रहूंगा। कैसे रोगों में इनका इस्तेमाल किया जाएगा। यह इनका भौतिक फायदा है और आध्यात्मिक स्तर पर यह आपकी मित्र प्रेमिका दोस्त मां बहन किसी भी रूप में आप से सिद्ध भी होंगी और आपको जीवन का सारा सार उपलब्ध भी करवाती रहेंगी । मैंने गौर से देखा तो उनके अंदर मुझे ऋषि तत्वों का। वर्णन देखने को मिला। मैंने माता से पूछा कि माताजी इनके अंदर ऋषि तत्व क्यों मिल रहा है तो वह मुस्कुराते हुए बोली कि वास्तव में कई जन्मों पूर्व यह ऋषि ही थे। इन्होंने सारे जीवन साधना और उपासना करके अंततोगत्वा इन का शरीर ग्रहण किया है। कुछ गो लोक की है जो भगवान श्री कृष्ण का लोक हलाता है। कुछ शिवलोक की अप्सराएं हैं जो भगवान शिव की सीमा में रहती है कुछ शक्ति उपासक साथ में रहती हैं और इसी तरह कुछ मणिद्वीप की है जो मां त्रिपुर सुंदरी के लोक निवासिनी है। इन सभी अप्सराओं और दिव्य औषधियों का ज्ञान तुमको स्वता ही होता चले जाएगा। मेरी कृपा से और यह कहकर माता वहां से अदृश्य हो गई।
मेरे को भी अपने शरीर की चेतना वापस लौटती हुई सी नजर आई और यह सब कुछ मेरे साथ अचानक ही घटित हुआ था और यह ज्ञान अब मैं आपको अवश्य ही प्रदान करूंगा। इसीलिए मैंने कहा था। इस वीडियो को देखना आपके लिए बहुत ही आवश्यक है। भविष्य में मैं आपके लिए सभी दिव्य औषधियों का ज्ञान और उनकी साधना लेकर आऊंगा। कैसे उन्हें आप अप्सरा के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही साथ दूसरों का भला कर सकते हैं उनकी चिकित्सा में। और अपने जीवन को भी अच्छा बना सकते हैं। मेरा रोग धीरे-धीरे करके नष्ट अवश्य हो जाएगा क्योंकि सबके कर्मों का एक फल निश्चित होता है। आप सभी स्वस्थ रहें और आपका जीवन सुखमय होता चला जाए। यही कामना है मेरी और यही शायद अनुभव भी मेरी जीवन में घटित इसीलिए हुआ, ताकि मैं इस बीमारी के माध्यम से माता को पुकार सकूं और वह अपने एक विशेष रूप के माध्यम से मुझे दर्शन दे सके ।
रही बात उस कीड़ा मकोड़ा वाले प्रसाद को खाने की थी। तो मैं यह स्पष्ट रूप से बता दूं कि इसी रूप में देवी शक्ति परीक्षाएं लेती हैं। अगर उन सभी लोगों में केवल एक मात्र मैंने ही कीड़े मकोड़ों का प्रसाद ग्रहण किया जो मेरी सच्ची भक्ति को दर्शाता है। दूसरे किसी भी व्यक्ति ने उनका दिया हुआ प्रसाद नहीं खाया। इसी कारण से उनमें से किसी को भी उनकी कृपा प्राप्त नहीं हुई। वह कृपा शायद मेरे लिए ही थी। तभी माता का ऐसा रूप स्वरूप मुझे देखने को मिला था। जब कभी भी आपकी परीक्षा हो तो उस परीक्षा में सदैव खरे उतरने की कोशिश करें क्योंकि देवी शक्तियां किसी भी प्रकार से आप की परीक्षाएं ले सकती हैं और सुपात्र होने पर ही आपको सिद्धियां और आगे का मार्ग प्रदान करती है। मां जो राह दिखाएंगी उसी पर मुझे चलना है और आप लोगों का कल्याण करते हुए सभी मानव मात्र का कल्याण करते रहना है । क्योंकि सेवा कर्म और दूसरों की भलाई ही सबसे बड़ा पुण्य कर्म माना जाता है। तो अगर आज का वीडियो पोस्ट आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।