Site icon Dharam Rahasya

मेलक यक्षिणी साधना और कथा 3 अंतिम भाग

मेलक यक्षिणी साधना और कथा 3 अंतिम भाग

नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। मानवेंद्र ने जब यह प्रश्न अपने गुरु साधु महाराज से किया तो साधु महाराज हंसते हुए कहने लगे। स्त्री का आकर्षण होता ही ऐसा है और यदि वह स्त्री संसार की समस्त स्त्रियों से कहीं अधिक सुंदर हो तो फिर पुरुष तो उसके प्रभाव में आएगा ही, ऐसा ही कुछ तुम्हारे साथ भी हो रहा है। यह एक यक्षिणी है जो कि अपने इस स्वरूप में। इस गांव में निवास कर रही है। अब तुम्हें यहां से उसकी सिद्धि प्राप्त करनी है। तुम्हें काफी अधिक मेहनत करनी होगी। साधना इतनी आसानी से सिद्ध नहीं होती और तुम्हें मैं स्पष्ट रूप से बता दूं कि तुम्हें सबसे ज्यादा भय और ब्रह्मचर्य इन दोनों की रक्षा करनी होगी। वैसे तुम्हें अपनी रक्षा तो करनी ही है। साथ में अपनी काम शक्ति पर भी नियंत्रण रखना अनिवार्य है। सिद्धि के बाद तुम्हें समस्त सुख यह शक्ति प्रदान करेगी। मानवेंद्र ने जब गुरु मुख से यह सारी बातें सुनी तो उसके हृदय में अब उस यक्षिणी को प्राप्त करने की इच्छा और अधिक बलवती हो गई और वह लग गया अपनी साधना में।

साधना के बीच में अचानक से ही 1 दिन मानवेंद्र को एक अति सुंदर स्त्री दिखाई दी। उसकी झलक चंद्रमा के समान थी। उसकी झलक की वजह से वह उठकर अपने साधना क्षेत्र से उसके पीछे-पीछे चलने लगा। धीरे धीरे चलती हुई उसकी पायलों की झंकार उसके पास से आती हुई खुशबू उसे मदहोश कर रही थी जैसे उसका वशीकरण कर दिया गया हो, लेकिन उस आनंद में मानवेंद्र सब कुछ भूल रहा था। तभी एक सरसों के खेत में पहुंचकर वह स्त्री रुक गई।

फिर उसने इशारा करते हुए मानवेंद्र को एक जगह दिखाई, खेत के बीच का वह स्थान कुछ अजीब तरह से था। मानवेंद्र ने जब उस जगह को देखा तो वहां कोई आयामी द्वार था जो सीधा एक नई दुनिया को दिखा रहा था। तब मानवेंद्र ने उस स्त्री से पूछा, यह क्या है? तब उस स्त्री ने कहा, मैं अपने लोक में बहुत खुश थी, लेकिन नई जगह देखना मुझे बहुत अधिक पसंद है तो एक बार मैंने मनुष्यों के बारे में यक्षिणी स्त्री सहेलियों को बात करते सुना। वह सब कह रही थी कि मनुष्य बड़े प्रेमी होते हैं। वह यक्षों की तरह निष्ठुर नहीं होते।

और जिस से प्रेम करते हैं उसे बहुत अधिक प्रसन्न रखने की कोशिश करते हैं। यह बात जब मैंने सुनी तो मेरे मन में। पृथ्वी के पुरुषों से मिलने की भावना प्रभावी हो गई। मेरा मन किया कि मैं एक बार पृथ्वीलोक जरूर जाऊं तो मैं अपने सिद्ध गुरु यक्ष महाराज के पास पहुंची। उनसे बोला कि मुझे कुछ दिनों के लिए पृथ्वी पर जाने की आज्ञा प्रदान कीजिए। तब उन्होंने कहा, मैं तेरे लिए आयामी द्वारा निर्मित कर दूंगा।

और तब तू मनुष्यों की दुनिया में जाकर घूम सकती है। लेकिन याद रखना कि तुझे कुछ दिनों बाद वापस आना होगा क्योंकि द्वार बंद हो जाएगा और फिर 100 दिनों बाद ही खुलेगा। मैंने कहा ठीक है और मैं आ गई। इधर तभी मैंने तेरे गुरु को मुझ पर नजर डालते हुए देखा किंतु मैं शरीर में बहते खून और वासना को भी महसूस कर सकती थी। मैंने देखा यह तो साधू है किंतु इसके अंदर वासना आ रही है। इसलिए मैंने कहा ठीक है, मैं तुझे मुझ को प्राप्त करने नहीं दूंगी और! जब यह साधना में मुझे पुकार रहा था तो मैंने इसका वीर्य नष्ट करवा दिया। इससे इसकी साधना शक्ति मुझे प्राप्त हुई है और मैं और अधिक शक्तिशाली महसूस कर रही हूं मैं तो इधर-उधर घूम रही थी।

फिर तेरे गुरु ने तुझे इस साधना के लिए बोला पर मैं तुझे देखकर समझ गई। तेरे मन में वासना नहीं है। तू तो सिर्फ मुझसे प्रेम करना चाहता है। मेरी एक झलक देखने के लिए इतना बेचैन है बस उसी समय मैं तुझे पसंद करने लगी। और अपनी इच्छा से तुझ से सिद्ध होना चाहती हूं। तुम मनुष्यों के मंत्र बड़े शक्तिशाली होते हमें बांध लेते हैं और अपने वश में ला देते हैं। तुम्हारे मंत्रों के माध्यम से हमें शक्ति भी मिलती है किंतु हम किसी ऐसे पुरुष या स्त्री से नहीं जुड़ सकते, जो हमारी शक्तियों का गलत उपयोग करें और हमें नौकर की तरह समझे।

हमें सिर्फ प्रेम करने वाला शुद्ध हृदय और वासना से दूर रहने वाला पुरुष ही पसंद है। तब यह सारी बातें सुनकर मानवेंद्र ने। उस स्त्री का हाथ पकड़ कर उसके हाथों को चूमा और कहा, आपको देखकर मेरे शरीर में बेचैनी सी बढ़ जाती है। मैं आपको सच्चे हृदय से पसंद करता हूं। आपके साथ जीवन बिताना। मेरा एकमात्र लक्ष्य हो गया है। क्या आप मेरी जीवनसंगिनी बनेगी? तब यक्षिणी ने मुस्कुराते हुए कहा ठीक है। मैं 100 दिन तक तुम्हारे साथ रहूंगी। यह सुनकर मानवेंद्र दुखी हो गया और कहने लगा। 100 दिन बहुत कम होते हैं।

इतने दिनों में मैं तुम्हारे साथ कोई प्रेम नहीं निभा पाऊंगा और तब तक तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी तो यह सुनकर भाई यक्षिणी हंसने लगी और उसने कहा, अरे पागल हमारे यहां एक दिन तुम्हारे यहां के।

बहुत दिनों के अंतर के बराबर होता है। तुम इस रहस्य को नहीं समझ सकते। तुम्हारे यहां तो पूरा युग बीत जाता है। तब कहीं जाकर तुम्हारे लोक में परिवर्तन आता है पर हमारे यहां ऐसा नहीं होता। मैं अपने यहाँ के 100 दिन का मतलब तुम्हारे यहां के 1000 वर्ष बता रही हूं। यानी 1000 इस मृत्युलोक के वर्ष तक में इसी धरती पर रहूंगी और द्वार बंद होने के समय यहां से चली जाऊंगी। मैं सबसे पहले इन सरसों के खेतों में प्रकट हुई थी इसलिए मैं सरसों के अंदर वास करती हूं। यही हमारी शक्ति है। अब सरसों के मदद से तुम मुझे सिद्ध कर अपने बंधन में बांध सकते हो। इस प्रकार अब मानवेंद्र बहुत अधिक प्रसन्न हो चुका था। उसने आगे की साधना जारी रखी। और बिना किसी परेशानी के उसने अपनी साधना संपन्न की। साधना के आखिरी दिन साक्षात वह यक्षिणी उसके आगे प्रकट हो गई और कहने लगी। मैं तुम्हारी कौन हूं तब मानवेंद्र ने कहा, तुम मेरी पत्नी हो और तुम्हें मैंने प्राप्त किया है। मैं तुम्हारे साथ जीवन भर रहना चाहता हूं। तब उस स्त्री ने कहा, मेरा नाम क्या होगा तो वह काफी देर सोचने के बाद अपने गांव यानी मेलक गांव के आधार पर उसने उसका नाम मेलक यक्षिणी रखा और उससे कहा कि तुम इस गांव में निवास करो और मेरे साथ रहो। मेरी जीवन संगिनी बनकर इस प्रकार मानवेंद्र की मृत्यु होने तक यक्षिणी उसके साथ रही और मृत्यु के बाद मानवेंद्र!

अपने अगले जन्म यानी पृथ्वी पर दोबारा।

वापस आया तो फिर वह एक साधु के रूप में जीवन जी रहा था तभी अचानक एक दिन।

मेलक उसे दोबारा एक सरसों के खेत में दिखाई पड़ी और इस प्रकार उसने वह ज्ञान उसे स्वप्न के माध्यम से दिया और उसकी मंत्र विधि और साधना बताई। अगले जन्म में भी मानवेंद्र ने मेलक यक्षिणी को प्राप्त किया यह देखकर। आखिरकार!

यक्ष लोक की अन्य शक्तियां भी धरती पर आई और वह भी पुरुषों की चाह में भ्रमण करने लगी। 1000 वर्ष! तक वह यहां रही और उसके बाद यहां से अपने लोक को वापस लौट गई, लेकिन बहुत सारी यक्षिणी आज भी सच्चे प्रेम की चाहत में मेलक यक्षिणी के स्वरूप में धरती पर घूम रही हैं जिनको हम मेलक यक्षिणी साधना द्वारा सिद्ध कर प्राप्त कर सकते हैं। इस साधना की विधि मैंने पीडीएफ के रूप में इंस्टामोजो अकाउंट में डाल दी है। अगर यह साधना कोई करना चाहता है तो वह वीडियो के नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दिए गए लिंक पर क्लिक करके इंस्टामोजो में जाकर इसे खरीद सकता है। तो यह थी मेलक यक्षिणी साधना और उसकी कथा अगर आपको यह जानकारी और कहानी पसंद आई है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।

Exit mobile version