मेलक यक्षिणी साधना और कथा भाग 1
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। आज हम मेलक नाम की एक यक्षिणी की साधना और उसकी कथा के विषय में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं इस गुप्त रहस्यमई कथा और इसकी साधना का ज्ञान। आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व मेलक नाम के 1 ग्राम में एक व्यक्ति मानवेंद्र रहा करता था। वह उस समय साधना के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना चाहता था। वह चाहता था कि वह दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त करें क्योंकि गांव में आने वाले साधु संतो को सभी लोग बहुत अधिक इज्जत और सम्मान देते थे। यह गांव भी काफी ज्यादा संपन्न था। एक बार वह जब योग्य गुरु की तलाश कर रहा था तभी उसके दरवाजे पर एक साधु दस्तक देता है और परिवार के सभी लोग उस साधु का आदर सहित सत्कार करते हैं और उसे बैठा लेते हैं उसके बाद उसे भोजन, सामग्री इत्यादि प्रदान की जाती है। साधु कहता है मैं जब आपके ग्राम से होकर गुजर रहा था तो मेरा मन हुआ कि चलो सरसों के खेतों से होकर गुजरा जाए। मैं वहां से गुजर ही रहा था कि तभी एक सुंदर स्त्री मुझे वहां से गुजरते हुए दिखाई दी। उस स्त्री के पीछे पीछे मैं इस गांव में भी आ गया। मैं उस स्त्री को दोबारा देखना चाहता हूं। वह स्त्री आपके गांव में निवास करती है क्या? लेकिन समस्या यह है कि मुझे ऐसा लगता है जैसे वह इंसान नहीं थी क्योंकि उसका रंग। पीला था और वह दिखने में बहुत अधिक सुंदर थी। उसकी सुंदरता का वर्णन मैं क्या करूं मेरा तो हृदय उसके प्रति। समर्पित सा होता जाता है। यद्यपि मैं एक साधु हूं, लेकिन कोई भी जो उसे देख ले वह उसके आकर्षण में बंध जाएगा। क्या आप लोगों को इसके बारे में कुछ पता है तब बड़ी ही एकाग्रता के साथ यह बात सुन रहे मानवेंद्र ने उनके पास बैठना उचित समझा। गांव के सभी लोग अब साधु महाराज की इन रहस्यमई बातों को सुनने के लिए वहां पर इकट्ठा होने लगे। साधु महाराज ने कहा, आपको शायद नहीं पता पर मुझे लगता है किसी देवी का वास आपके गांव में है लेकिन आप लोगों में से इसे कोई नहीं जानता। मैं आपके गांव में रुकना चाहता हूं। तब उस गांव के मुखिया और अन्य वृद्ध ग्रामीण व्यक्तियों ने उस साधु से कहा, अवश्य आप यहां रुक जाइए। यह तो हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी कि आप यहां रुकते हैं। इसी बहाने साधु की सेवा करने का मौका मिलेगा। हम आपको गांव के ही एक मंदिर के नजदीक बनी हुई कुटिया देते हैं। आप वही रहिए और हमें अपनी सेवा का अवसर प्रदान कीजिए। साधु महाराज बहुत खुश होते हैं और कहते हैं आपके जैसा गांव यहां आस-पास कहीं नहीं। यहां के लोगों में बहुत अधिक मानवीयता है। आप सभी बहुत ही सुखी है, संपन्न है। इसका कारण भी यही है कि आप सभी! गुरु और गुरु का महत्व जानते हैं। मैं आपका नेत्रत्व करने और आपको अपना ज्ञान देने के लिए इस गांव में अब उस समय तक जरूर रुकूंगा। जब तक मैं इस रहस्य से पर्दा नहीं उठा देता कि आखिर वह स्त्री कौन है? जिसे मैंने देखा था। मानवेंद्र यह सारी बातें सुन रहा था। उसके मन में एक विशेष बात आ रही थी। वह चाहता था कि वह साधु से कुछ ज्ञान सीखे और इसका सीधा मौका उसे अब मिल गया था क्योंकि साधु अब उनके गांव में ही रुकने वाला था। साधु ने वहां के मुखिया को कहा, आपके घर बच्चा नहीं हो रहा है। इसलिए मैं आपको एक मंत्र विधि प्रदान करता हूं। इसका जाप कीजिए। 1 वर्ष से पहले ही आपके घर संतान अवश्य आ जाएगी और फिर मुखिया जी ने बड़ी ही प्रसन्नता के साथ साधूजी के पैर धोए क्योंकि यह बात सिर्फ उन्हें ही पता थी कि उनके घर में पुत्र समस्या। बड़ी होती जा रही है। इसीलिए उन्होंने साधु महाराज को सिद्ध जानकर उनके पैर धोना उचित समझा। तभी मानवेंद्र भी वहां आ गया और साधु के पैर धोने लगा। साधु ने पूछा, तुम्हें देख कर तो ऐसा लगता है जैसे तुम मेरा सब कुछ प्राप्त करना चाहते हो तब मानवेंद्र ने हंसते हुए कहा, गुरु जी मैं आपका सब कुछ नहीं आपका केवल आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हूं क्योंकि मैं भी कुछ तंत्र विद्या सीखना चाहता था। अगर आपकी कृपा होगी तो अवश्य ही मुझे कुछ ना कुछ ज्ञान तो मिलेगा ही। साधु ने मानवेंद्र के चेहरे को देखा और मुस्कुरा कर कहने लगे मानवेंद्र! तुम सच में एक योग्य सिद्ध साधक बनने लायक अधिकार रखते हो क्योंकि तुम्हारे चेहरे को पढ़कर मुझे लगता है। तुम्हारे अंदर पूर्ण एकाग्रता है और सबसे महत्वपूर्ण साधक बनने के लिए यह होता है कि आपके अंदर एक विशेष तरह की भावना हो कि आप यह कार्य करना चाहते हैं। आपकी उत्सुकता ही आपके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । यह रहस्य आप अवश्य ही जानते होंगे इसीलिए मैं तुम्हें अपनी गुप्त विद्या जरूर प्रदान करूंगा। लेकिन गुरु दक्षिणा के रूप में मैं तुमसे सेवा भी लूंगा। क्या तुम इसके लिए तैयार हो तब मानवेंद्र ने हंसते हुए कहा, गुरु जी आप सिर्फ आज्ञा कीजिए। मैं तो सुबह शाम आपकी ही सेवा में उपस्थित हूं। इसके बाद साधु महाराज उस कुटी में चले गए जो उन्हें प्रदान की गई थी। वह वहीं रहने लगे और वहां उनकी सेवा रोजाना मानवेंद्र सुबह से शाम करता रहा। 1 माह बाद प्रसन्न होकर साधु महाराज ने कहा। कि मैंने तेरी भक्ति देखी है। तू मेरे लिए सच में एक योग्य शिष्य साबित होगा। तेरे अंदर ना तो कोई घमंड है और ना ही समर्पण करने में तुझे कोई हिचकिचाहट होती है। इसलिए मैं तुझ से प्रसन्न हूं। सबसे पहले मैं तुझे भगवान शिव का गुरु मंत्र प्रदान करता हूं और इस प्रकार साधु महाराज ने भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र गुरु मंत्र के रूप में मानवेंद्र को प्रदान किया। अब वह इसी मंत्र का जाप करने लगा। कुछ दिन और बीत जाने के बाद एक दिन साधु महाराज कुछ सोच रहे थे। तभी मानवेंद्र पैर छूकर उनके पास आ गया और बैठ कर बोला गुरु जी मैं आपको देख रहा हूं आप काफी! ध्यान मग्न है किस विषय में आप सोच रहे हैं तब साधु ने कहा, वह स्त्री मुझे दिखी थी लेकिन तब से वह नजर नहीं आई। मैं उसके विषय में ही ज्ञान प्राप्त करना चाहता था, लेकिन कुछ भी जान नहीं पाया हूं। मैं सोच रहा हूं कि अब तो कोई साधना ही करनी पड़ेगी। मेरे गुरु ने जिस विषय में तुम नहीं जानते हो उसकी साधना विधि बताई थी। मैं आज उसी का ही प्रयोग करने की सोच रहा हूं। तब मानवेंद्र ने कहा, ठीक है गुरु जी मैं इसमें आपकी सहायता करूंगा। तब साधु ने कहा, अच्छा तो ठीक है। यहां जो सरसों के खेत हैं वहां से कुछ सरसों मेरे लिए रोज पूजा के दौरान तू लेकर आ जाना। मुझे साधना करने में सहायता प्रदान करना मानवेंद्र इसके लिए तुरंत तैयार हो गया और खेतों में लगे सरसो को तोड़कर बाहर ले आया। उसने अब अपने गुरु से पूछा, गुरु जी इन की क्या आवश्यकता है तब गुरु ने कहा, पूरी जानकारी जब तक सिद्धि प्राप्त नहीं हो जाती नहीं देनी चाहिए ऐसा कर तू मेरे लिए पीले रंग का ऊनी आसन लेकर आ जा। और? उस पर कुछ सरसों के पीले फूल भी डाल देना। इस प्रकार अब मानवेंद्र वहां के एक बनिए के पास गया और वहां से पीले रंग का एक आसन लेकर आ गया उस पर उसने सरसों को डाल दिया और इसके बाद फिर अब गुरु के लिए वह बनिए के पास से सरसों के तेल को भी लेकर आ गया। इस प्रकार! पूजा के लिए दीपक भी तैयार हो चुका था। अब उन्हें! इस बात के लिए तैयार होते देखना था कि गुरु जी कौन सी साधना करने जा रहे हैं। गुरु जी अपने गेरूवे वस्त्र त्याग कर, पीले रंग के वस्त्रों में उसके सामने उपस्थित हुए और कहने लगे। मैं इस स्थान पर अब पूजा करने जा रहा हूं। तू दूर मुझसे बैठ और मेरी साधना के दौरान मुझे किसी भी प्रकार से परेशान मत करना और ना ही कोई परेशानी आने देना। इस प्रकार उसके गुरु उस साधना में बैठ गए। यह साधना क्या थी? और इस साधना को कैसे किया जाता है। इसका विवरण मैंने अपने इंस्टामोजो अकाउंट में डाल दिया है। यह साधना एक यक्षिणी की साधना है जो कि उस दौरान उन साधु महाराज ने मानवेंद्र को सिखाई थी। इस कथा में आगे क्या हुआ अगले भाग में हम लोग जानेंगे। तो यह था आज का? विवरण इस साधना और इस कथा का अगर आप इस साधना को करते हैं तो मेरे इंस्टामोजो अकाउंट में जाकर इस साधना को खरीद सकते हैं, जिसका लिंक मैंने नीचे डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दे दिया है तो अगर आज का वीडियो आपको पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद। |
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