यक्षिणी से विवाह सत्य अनुभव 6वां अंतिम भाग
नमस्कार दोस्तों धर्म रहस्य चैनल पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। यक्षिणी से विवाह सत्य अनुभव यह भाग 6 है और इस भाग में हम इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
नमस्ते गुरुजी अब जैसा कि मैंने बताया उसके बाद सासू मां तांत्रिक के पास पहुंचकर उससे कह चुकी थी कि जो आपने कहा था, वह बिल्कुल सत्य है। मेरी बहू, मेरी बहू नहीं है। वह तो कोई अलग ही चीज है तब उस तांत्रिक ने पूछा, माता जी आप बताइए आपने क्या देखा तो फिर सासू मां कहने लगी कि मैंने एक? स्त्री को सर्प रूप में इधर-उधर टहलते हुए देखा यानी वह आदमी इंसान और आधी नागिन जैसी दिख रही थी। यह सुनकर अब अचरज भरी दृष्टि से तांत्रिक भी। सासु मां को देखने लगा और कहने लगा कि यह कैसे संभव है। मैंने जो देखा था, वह तो कुछ और था। आपने जो देखा है, यह तो कुछ और ही है तब वह कहने लगी। अब जो भी हो चलिए जल्दी से। मेरी बहू के पास और इस रहस्य का पता लगाइए क्योंकि मैं तो अब आपकी बातों से और भी ज्यादा अचरज में आ गई हूँ। तब तांत्रिक ने कहा, ठीक है माता जी, मैं आपके साथ ही चलता हूं जब वह। तांत्रिक को लेकर अपनी नवीन वधु के पास पहुंची तो वधू ने फिर से माता के पैर छुए और अपनी सासू मां का आदर सत्कार करते हुए कहने लगी। माता आज बताइए आप भोजन में क्या खाएंगे तब सासू मां एक बार फिर से उसके चेहरे को गौर से देखती हैं। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि जो उन्होंने देखा था वैसा यहां पर उन्हें नजर नहीं आ रहा था। यह तो वही उनकी सबसे प्यारी बहू है जो उनका बहुत अधिक ख्याल रखती है और परिवार में सभी सदस्यों का रखती है। तब? एक बार फिर से तांत्रिक ने कहा। पुत्री मेरे लिए जल लाओ।
तब?वह कन्या जो नई नवेली बहू बनकर उस घर में आई थी। उस तांत्रिक के लिए जल लेकर के आई और तब जल्दी कर तांत्रिक ने कहा, ऐसा करो आज मैं तुम्हें एक कार्य सौपता हूं। सामने जो देवी मां का मंदिर है। यहां बैठकर तुम साधना करो और यह साधना बहुत अधिक आवश्यक है। किंतु वह साधना करने के लिए तैयार नहीं हुई। तब सासु मा ने कहा, इन्होंने तुम्हारे पति की रक्षा के लिए एक विशेष साधना बताई है जिसे आपको करना आवश्यक है, इसलिए तुम मना नहीं कर सकती हो। जाओ, पूजा की तैयारियां करो।
इस प्रकार मजबूरी में ही लेकिन उस नवेली बहू को पूजा की सारी सामग्री सहित पूजा करने की व्यवस्था करनी पड़ी और यह सब कुछ अब उसके सामने इस तरह घटित हो रहा था जिसे वह रोक नहीं सकती थी। अब मरती क्या ना करती इसलिए अब उसके पास और कोई विकल्प नहीं शेष था। उसे तो अब यह कार्य करना ही था। इसीलिए अब वह तैयार थी। उस कार्य को करने के लिए उसने सारी व्यवस्था कर ली और माता जगदंबा के आगे बैठ करके साधना करने की कोशिश करने लगी। लेकिन यह कार्य आसान बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि तांत्रिक ने ऐसी व्यवस्था की थी कि एक बार जो पूजा शुरू हो जाए तो फिर पूजा को बीच में छोड़कर नहीं भाग सकते हो और उस पूजा स्थल को चारों तरफ से एक रक्षा कवच के माध्यम से कीलित भी किया गया था। ताकि इस कीलिन की सहायता से। कुछ क्षेत्र को रक्षा कवच में कीलित कर बांध लिया गया हो इस प्रकार अब मजबूरी में उस नवेली मधु को मां दुर्गा की साधना शुरू करनी पड़ी। वह अपनी साधना को इस प्रकार करती रही। कि वहां अचानक से ही तेज हवाएं चलनी शुरू हो गई। सारे कमरे में अंधेरा सा छाने लगा। और केवल तांत्रिक के अलावा अब उस कन्या को कोई और नहीं देख सकता था और इसी कारण से वहां पर कुछ भी दिखाई स्पष्ट रूप से नहीं दे रहा था। सासु मा ने तांत्रिक से कहा, यह कैसी माया है। इस कमरे में मुझे कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई दे रहा है। लेकिन तांत्रिक ने कहा, माताजी आप चिंता ना करें। जो आप नहीं देख सकती वही तो मैं देखने आया हूं। आखिर इस नई नवेली बहू का रहस्य क्या है? इस प्रकार वहां लगातार हवाएं बहती रही। लेकिन साधना चलती रही और फिर उसके बाद तांत्रिक ने जो देखा, वह सच में किसी आश्चर्य से कम नहीं था। सामने एक शक्तिशाली यक्षिणी मौजूद थी जो कि मां दुर्गा की उपासना कर रही थी। उसके पास पहुंचकर अब सीधे स्वरों में तांत्रिक ने कहा, तुम कौन हो? तो वह हंसने लगी और कहने लगी। तू वास्तव में बहुत अधिक चतुर है। तूने मेरा वास्तविक स्वरूप सबके सामने ला दिया है लेकिन मेरी भी शक्ति देख कि तेरे अलावा यहां मुझे कोई और नहीं देख सकता है। मैं अपने वास्तविक रूप में बैठ कर पूजा कर रही हूँ। लेकिन मेरे इस रूप को तेरे अलावा कोई भी नहीं देख पाएगा। जब यह साधना समाप्त होगी तो मैं अपने वास्तविक रूप में लौट आऊंगी। और तब मैं इस प्रकार हवाये चलाना और आंखों में धूल झोंकना भी बंद कर दूंगी। तब तांत्रिक ने कहा, वह सब तो ठीक है, लेकिन यह तो स्पष्ट हो गया कि तुम एक इंसान नहीं हो। अब मुझे बताओ तुम्हारे यहां आने का प्रयोजन क्या है तब उस यक्षिणी ने कहा, मैं माता की सेवा करने वाली और उनके साथ युद्ध में भाग लेने वाली एक यक्षिणी और मेरी साधना पूर्व जन्म में जिस पुरुष ने की थी जो कि इस जन्म में मैं अपना पति उसे बना चुकी हूं। पूर्व जन्म में जब इसने मेरी सिद्धि की तो इसने मुझे पत्नी स्वरूप में प्राप्त किया था। लेकिन मृत्यु के पश्चात जब इसने नया जन्म लिया तो मैं इस बात की राह देख रही थी कि कब यह मुझे फिर से सिद्ध करेगा लेकिन ना तो इसे कोई गुरु मिला और ना ही इसे मंत्रों और विधान का पता था। स्वप्न में एक दो बार मैं इसके आई, लेकिन मेरे रिश्ते को यह कभी नहीं समझ पाया। अब जब इसका विवाह तय हो गया तो मुझे लगा कि अब यह यही अवसर है। इससे दोबारा प्राप्त करने का, पूर्व जन्म में इसने मेरे लिए बहुत प्रयास किया था। इसीलिए मैं इस जन्म में अब इसके लिए प्रयास करना चाहती हूं। इसे अपना पति बना कर इसे सभी प्रकार के सुख देना चाहती हूँ। इसी कारण से मै इसके जीवन में पदार्पण कर पाई थी। उस कन्या को मैंने यक्ष लोक मे भेज दिया था और स्वयं उसकी जगह लेकर यहां आ गई हूं। तांत्रिक ने कहा देवी तुमने जो भी किया यह तुम्हारा प्रेम हो सकता है, लेकिन उस कन्या की क्या गलती थी? जिसकी सजा तुमने उसे दे दी है। तब यक्षिणी ने कहा, मैंने तो उसे एक अच्छा लोक प्रदान किया है और उसे कोई समस्या भी नहीं होने वाली है। वह हजारों वर्षों तक उस शक्तिशाली लोक में रहेगी जब तक कि मैं यहां इस पुरुष के साथ विद्यमान हूँ और जब इस व्यक्ति की मृत्यु होगी तो मैं इसके साथ इसे अपने लोक लेकर जाऊंगी और सुख पूर्वक रहूंगी। तब मैं इस कन्या को वापस पृथ्वी पर नया जन्म लेने भेज दूंगी। तब तांत्रिक ने कहा, इस प्रकार प्रकृति के नियमों में बदलाव करना बहुत ही गलत बात है। अगर आप ऐसा करते हो तो आप का विनाश हो सकता है। तब यक्षणी ने कहा, यह सब तो ठीक है किंतु मैं क्या करूं? मैं अपने पति को नहीं छोड़ सकती और सती के आगे भगवान का विधान भी फीका पड़ जाता है। मैं तुमसे वचन लेना चाहती हूं। जैसे मैंने किसी को भी यहां परेशान नहीं किया है। तुम्हें भी नहीं करूंगी। सब की सेवा सत्कार इसी प्रकार करती रहूंगी। तुम मुझे वचन दो कि तुम मेरे कार्य में बाधा नहीं बनोगे। तांत्रिक को कुछ देर विचार करना पड़ा और आखिरकार वह मान गया। उसने उस नव नवेली बधू रूपी यक्षिणी को। उस घर! की बहू स्वीकार कर लिया और जैसे ही पूजा समाप्त हुई, उसने सासू मां को बुलाकर कहा, आपके घर से वह बुरी शक्ति जा चुकी है। और अब आपको किसी प्रकार की समस्या नहीं है। आपकी वधू भी पवित्र हो चुकी है। आप आराम से खुशियों भरा जीवन बिताएं। इस प्रकार वह परिवार सुख पूर्वक रहने लगा। मेरे उन पूर्वज की आयु जब 51 वर्ष की हुई तो वह और वह स्त्री दोनों नदी के जल में नहाने के लिए गए थे और उसके बाद फिर दोनों गायब हो गए। कुछ लोगों ने कहा कि उनकी मृत्यु हो गई है। पानी में डूबने से पर सारे लोगों का यही कथन था कि ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि। मेरी वह पूर्वज बड़े अच्छे तैराक थे। इसीलिए हम जानते हैं कि उन्होंने जल क्रिया के माध्यम से बूढ़े होने से पहले ही अपने नए यक्ष लोक में प्रवेश किया होगा। इसी कारण से उन्होंने यह जीवन त्याग दिया और एक नवीन जीवन की ओर कदम रखा था। कुछ लोग इन बातों पर विश्वास नहीं करते इसलिए इसे मैंने कथा के रूप में आप सभी को सुनाया है। लेकिन हमारे परिवार में इसे एक सत्य माना जाता है। गुरु जी आप एक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। धर्म और तंत्र के गूढ़ विषयों को समाज के सामने लाकर और हम जैसे लोगों को अपना पक्ष रखने का एक माध्यम भी दे रहे हैं। आपका कोटि-कोटि धन्यवाद संदेश-तो देखिए यहां पर इन्होंने यक्षिणी कथा को इस प्रकार समाप्त किया है। आपने देखा कि यक्षिणी? हमेशा बुरी नहीं होती लेकिन अपने कार्यों को सिद्ध करने के लिए वह कोई भी रास्ता बना सकती हैं। यह थी घटना। अगर आपको यह कथा अच्छी लगी है तो लाइक करें। शेयर करें, सब्सक्राइब करें। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
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